तीर्थकुंड : भरपूर ऊर्जा वाले जल का कुंड
तीर्थकुंड जमीन के नीचे बना एक तालाब है, जिसे ठोस किए गए पारे से बने रसलिंग से ऊर्जावान बनाया गया है। ईशा योग केंद्र में पुरुषों के लिए बनाए गए तीर्थकुंड को सूर्यकुंड और महिलाओं के लिए बनाये गए तीर्थकुंड को तीर्थकुंड के नाम से जाना जाता है। तीर्थकुंड और उससे होने वाले फायदों के बारे में आइए जानते हैं सद्गुरु की ही जुबानी –
तीर्थकुंड जमीन के नीचे बना एक तालाब है, जिसे ठोस किए गए पारे से बने रसलिंग से ऊर्जावान बनाया गया है। ईशा योग केंद्र में पुरुषों के लिए बनाए गए तीर्थकुंड को सूर्यकुंड और महिलाओं के लिए बनाये गए तीर्थकुंड को तीर्थकुंड के नाम से जाना जाता है। तीर्थकुंड और उससे होने वाले फायदों के बारे में आइए जानते हैं सद्गुरु की ही जुबानी –
‘तीर्थ’ शब्द का मतलब पवित्र जल नहीं है। तीर्थ का मतलब होता है, कोई ऐसी चीज जो दीप्त हो। इसका मकसद एक ऐसे पदार्थ को सिस्टम में लाना है, जो ऊर्जा से दीप्त हो। इसलिए यह कोई स्नानकुंड नहीं है, बल्कि यह तीर्थकुंड है।
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ऊर्जावान पारे का लिंग
कुंड में मौजूद पारे का लिंग ठोस किए गए 99.8% शुद्ध पारे से बना है। आधुनिक रसायन विज्ञान के सिद्धांतों के मुताबिक आप कमरे के तापमान पर पारे को ठोस नहीं कर सकते। यह लिंग भारतीय रसविद्या के पुरातन विज्ञान की मदद से सामान्य तापमान पर ठोस किया गया है। एक पदार्थ के रूप में पारा दुनिया भर में सभी तरह की आध्यात्मिक रसविद्या का बहुत अहम हिस्सा रहा है। रस विद्या या रस वैद्य नाम से इसका पूरा विज्ञान है। आप जिस रूप में चाहें, पारे की प्रतिष्ठा कर सकते हैं और उसकी गूंज या कहें कि ऊर्जा लगभग अनंतकाल तक बनी रहती है। यह हमेशा मौजूद रहेगा क्योंकि यह पदार्थ ही ऐसा है, यह उस ऊर्जा को काफी लंबे समय तक संभाल कर रखता है।
तीर्थकुंड का उपयोग क्या है
सद्गुरु:
जिन लोगों को आसानी से कोई चीज समझ में नहीं आती, हम उन्हें डुबोना चाहते हैं – पानी में नहीं बल्कि एक खास ऊर्जा क्षेत्र में ताकि कठोर से कठोर व्यक्तिकी भी गांठे खुल जाए और वह भी संवेदनशील हो जाए। इसे मूल रूप से ध्यानलिंग में प्रवेश करने के लिए एक प्रारंभिक प्रक्रिया या उपकरण के रूप में इस्तेमाल किया जाता है लेकिन वह खुद भी बहुत शक्तिशाली है। इसकी एक खास तरीके से स्थापना की गई है जो मूल रूप से किसी इंसान की ग्रहणशीलता को बढ़ाने और किसी व्यक्ति के अंदर ऊर्जा या प्राणशक्ति के असंतुलनों को ठीक करने में मदद करता है जिनसे शारीरिक और मानसिक कल्याण होता है।
कुछ समय पहले, एक 83 वर्षीय बुजुर्ग ने आकर मुझसे कहा, ‘कुंड में दो बार जाने के बाद मैं अपनी उम्र से 5 साल कम महसूस करने लगा हूं।’
सबसे बड़ी बात यह है कि तीर्थकुंड किसी व्यक्ति में आध्यात्मिक ग्रहणशीलता की जबरदस्त भावना पैदा करता है। वहां पर जबरदस्त ऊर्जा है और शरीर जब गीला होता है, तब उसे ग्रहण करने में अधिक आसानी होती है। भारत में ऐसी परंपरा है कि जब आप किसी मंदिर के गर्भ गृह में प्रवेश करना चाहते हैं तो आपको पहले स्नान करना पड़ता है और फिर गीले कपड़ों में अंदर जाना पड़ता है क्योंकि गीला शरीर इन ऊर्जाओं के प्रति हमेशा सूखे शरीर से अधिक ग्रहणशील होता है।