भारत को जानना है तो इसमें डूबना होगा
भारत महज एक राजनैतिक हस्ती नहीं, बल्कि यह अनादि काल से ऋषियों और ज्ञानियों द्वारा मानव जाति को बांटी जा रही सौगात है। यह भूमि जिज्ञासुओं की रही है। जिसने भी परम सुख की खोज करनी चाही उसे इस धरती ने अपनी तरफ आकर्षित किया। सद्गुरु बता रहे हैं इसकी भव्यता को हम कैसे जानें और समझें।

भारत का अध्ययन नहीं हो सकता
मेरा मानना है कि भारत का अध्ययन नहीं हो सकता, इसे जानने का तरीका है इसे अपने अंदर उतारना या सबसे उत्तम तरीका है खुद को उसमें डुबो देना। इसे समझने का सिर्फ यही एक रास्ता है। भारत के बारे में पश्चिमी विश्लेषण हकीकत से काफी परे हैं, और भारत का लक्षणों के आधार पर किया गया विश्लेषण पूरी तरह गलत नतीजों की ओर ले जाएगा। भारत अव्यवस्था के बीच भी खुशी और आनंद में झूमने वाला, और उमंग से भरी जीवंतता के बीच फलने-फूलने वाला देश है।
भारत ईश्वर विहीन देश है
यह एक ईश्वर विहीन, मगर भक्ति से भरपूर देश है। ईश्वर विहीन कह कर मैं ये समझाना चाहता हूँ कि यह दुनिया की एकमात्र ऐसी संस्कृति है, जिसमें न सिर्फ लोगों को अपनी पंसद से भगवान चुनने की आजादी है, बल्कि उन्हें अपना भगवान बनाने तक की छूट है, ऐसा भगवान जिससे वे खुद को जोड़ सकें। जब आदि-योगी शिव से परम-ज्ञान की प्राप्ति के तरीकों के बारे में पूछा गया तो उनका जवाब था कि अगर आप अपने शरीर के दायरे में बंधे हैं तो सिर्फ 112 तरीकों से परम-ज्ञान पाया जा सकता है, लेकिन आप अगर भौतिकता से परे चले जाते हैं तो फिर इस सृष्टि का हर अणु आपके लिए ज्ञान का द्वार बन जाता है।
मुक्ति की इच्छा ने हमें एक साथ बांधे रखा है
भारत अध्ययन की वस्तु नहीं, बल्कि संभावनाओं की एक जबरदस्त भूमि है, जहाँ कई तरह की संस्कृतियों, धर्मों और भाषाओं का संगम है। ये सारी चीजें सिर्फ जिज्ञासा के एक मात्र धागे से बंधी हुई हैं। इस धरती के लोगों में मुक्ति की कामना जबरदस्त रूप से भरी हुई है और यह कामना जीवन और मृत्यु के फेरे से मुक्त होने की है।
हमें एक चीज नहीं भूलनी चाहिए कि व्यक्ति की अज्ञानता का अहसास ही उसकी जिज्ञासा का आधार होता है। व्यक्ति को अपने अस्तित्व की प्रकृति का अहसास ही नहीं है। अपनी संस्कृति में चले आ रहे जनसाधारण के विश्वासों पर चलने की बजाय यहां के लोग अपने अस्तित्व की असलियत को अपने तरीके से खोजने का साहस और निश्चय रखते हैं। यही तो इस देश का आधार है जिसका नाम भारत है। ‘भा’ का मतलब है- संवेदना जो सभी अनुभवों व अभिव्यक्ति का आधार है, ‘र’ का मतलब है- राग, जो जीवन का सुर बताता है और ‘त’ का मतलब है- ताल यानी जीवन की लय, जिसमें मानव और प्रकृति दोनों की लय शामिल है।
धार्मिक कट्टरता में आत्म ज्ञानियों की विरासत खो न जाए
इस देश का निर्माण महत्वकांक्षियों के मन ने नहीं, बल्कि संतों ने की, जिसका मकसद फायदा पाना नहीं, बल्कि गहराई पाना रहा है। भारत को मात्र एक राजनैतिक हस्ती की हैसियत से देखने की बजाय उसे मानव जाति की सबसे आंतरिक कामनाओं की पूर्ति के प्रवेशद्वार के रूप में देखना चाहिए। भारत की इस बुनियादी विशेषता - ज्ञान के विरासत और निरंतर खोज - की रक्षा और पोषण करना, मानवता के लिए एक सच्ची सौगात होगी। एक पीढ़ी के तौर पर यह हमारी खास जिम्मेदारी है जिसे हमें पूरा करना चाहिए। इस धरती के ज्ञानियों व संतों ने असीम संभावनाओ को खोजा और हमे समझाया जिसे हम अपनी धार्मिक कट्टरता और बेमतलब की एकतरफा धार्मिक हठ में गंवा न दें।
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