बच्चों के विकास के लिए 5 टिप्स
सद्गुरु बच्चों की परवरिश के पांच गुर बता रहे हैं जो बच्चों के पालन-पोषण में माता-पिता के बहुत काम आ सकते हैं। चाहे आप मां हों, पिता हों या आप माता-पिता बनने वाले हों, ये परामर्श आपके बहुत काम आ सकते हैं।
सद्गुरु बच्चों की परवरिश के पांच गुर बता रहे हैं जो बच्चों के पालन-पोषण में माता-पिता के बहुत काम आ सकते हैं। चाहे आप मां हों, पिता हों या आप माता-पिता बनने वाले हों, ये परामर्श आपके बहुत काम आ सकते हैं।
माता-पिता बनना एक विचित्र अनुभव है। आप कुछ ऐसा करने की कोशिश करते हैं जो आज तक कोई नहीं जान पाया कि उसे अच्छी तरह कैसे किया जाए। चाहे आपके बारह बच्चे हों, तब भी आप सीख ही रहे होते हैं। हो सकता है कि आपने ग्यारह बच्चे अच्छी तरह पाले हों, मगर बारहवें में आपको परेशानी हो सकती है।
1. सही माहौल बनाएं
जरूरी माहौल तैयार करना बच्चों के पालन-पोषण में एक बड़ी भूमिका निभाता है। आपको सही तरह का माहौल तैयार करना चाहिए, जहां खुशी, प्यार, परवाह और अनुशासन की एक भावना आपके अंदर भी और आपके घर में भी हो। आप अपने बच्चे के लिए सिर्फ इतना कर सकते हैं कि उसे प्यार और सहारा दे सकते हैं। उसके लिए ऐसा प्यार भरा माहौल बनाएं जहां बुद्धि का विकास कुदरती तौर पर हो। एक बच्चा जीवन को बुनियादी रूप में देखता है। इसलिए आप उसके साथ बैठकर जीवन को बिल्कुल नयेपन के साथ देखें, जिस तरह वह देखता है।
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मानव जाति की एक बुनियादी जिम्मेदारी है, कि वे ऐसा माहौल बनाए जिससे इंसानों की अगली पीढ़ी आपसे और हमसे कम से कम एक कदम आगे हो। यह बहुत ही अहम है कि अगली पीढ़ी थोड़ी और खुशी से, कम डर, कम पक्षपात, कम उलझन, कम नफरत और कम कष्ट के साथ जीवन जिए। हमें इसी लक्ष्य को लेकर चलना चाहिए। अगली पीढ़ी के लिए आपका योगदान यह होना चाहिए कि आप इस दुनिया में कोई बिगड़ैल बच्चा न छोड़ कर जाएं, आप एक ऐसा इंसान छोड़ कर जाएं जो आपसे कम से कम थोड़ा बेहतर हो।
2. अपने बच्चे की जरूरतों को जानें
कुछ माता-पिता अपने बच्चों को खूब मजबूत बनाने की इच्छा या चाह के चलते उन्हें बहुत ज्यादा कष्ट में डाल देते हैं। वे चाहते हैं कि उनके बच्चे वह बनें जो वे खुद नहीं बन पाए। अपने बच्चों के जरिये अपनी महत्वाकांक्षाएं पूरी करने की कोशिश में कुछ माता-पिता अपने बच्चों के प्रति बहुत सख्त हो जाते हैं। दूसरे माता-पिता मानते हैं कि वे अपने बच्चों से बहुत प्यार करते हैं और अपने बच्चों को इतना सिर चढ़ा लेते हैं कि उन्हें इस दुनिया में लाचार और बेकार बना देते हैं।
एक योगी थे जो कश्मीरी शैव नामक एक खास परंपरा से ताल्लुक रखते थे। यह योग के सात प्रकारों में से एक है। यह योग का बहुत शक्तिशाली तरीका है मगर यह मुख्य रूप से कश्मीर इलाके में सीमित है, इसलिए इसे यह नाम मिला। एक दिन, इस योगी ने एक ककून देखा जिसमें थोड़ी सी दरार थी और उसके अंदर मौजूद तितली बाहर आने के लिए छटपटा रही थी। ककून का खोल बहुत सख्त था। आम तौर पर तितली ककून से बाहर आने के लिए लगातार लगभग अड़तालीस घंटे संघर्ष करती है। अगर वह बाहर नहीं आ पाती, तो मर जाती है। योगी ने यह देखा और करुणावश उन्होंने अपने नाखून से ककून को खोल दिया ताकि तितली आजाद हो सके। मगर जब वह बाहर आई, तो उड़ नहीं पाई। ककून को तोड़कर बाहर आने का संघर्ष ही तितली को इतना मजबूत बनाता है कि वह अपने पंखों का इस्तेमाल करके उड़ सके। उस तितली का क्या काम जो उड़ ही न सके? बहुत से लोग अपने बच्चों को लाड़-प्यार में ऐसा ही बना देते हैं। ऐसे बच्चे अपने जीवन में ऊँचाइयों को नहीं छू पाते।
सभी बच्चों पर एक ही नियम लागू नहीं होता। हर बच्चा अलग होता है। यह एक खास विवेक है। इस बारे में कोई सटीक रेखा नहीं खींची जा सकती कि कितना करना है और कितना नहीं करना है। अलग-अलग बच्चों को ध्यान, प्यार और सख्ती के अलग-अलग पैमानों की जरूरत पड़ सकती है। अगर मैं नारियल के बाग में खड़ा हूं और आप आकर मुझसे पूछें कि ‘हर पौधे में कितना पानी देना है,’ तो मैं कहूंगा, ‘कम से कम पचास लीटर।’ लेकिन अगर आप घर जाकर अपने गुलाब के पौधे में 50 लीटर पानी डाल दें, तो वह मर जाएगा। इसलिए आपको इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि आपके घर में किस तरह का पौधा है।
3. बच्चे से सीखें
बहुत से लोग यह मान लेते हैं कि जैसे ही बच्चा पैदा होता है, शिक्षक बनने का समय शुरू हो जाता है। जब एक बच्चा आपके घर में आता है, तो यह शिक्षक बनने का नहीं, सीखने का समय होता है क्योंकि अगर आप अपनी और अपने बच्चे की ओर देखें, तो आपका बच्चा ज्यादा खुश होता है, है न? इसलिए यह उनसे जीवन के बारे में सीखने का समय है, सिखाने का नहीं। आप बच्चे को बस एक चीज सिखा सकते हैं – जो आपको कुछ हद तक सिखाना पड़ता है – कि दुनिया में किस तरह जीवन यापन से जुड़े काम करें। मगर जब खुद जीवन की बात आती है, तो एक बच्चा अपने अनुभवों से जीवन के बारे में ज्यादा जानता है। वह जीवन है, वह जीवन को जानता है। आपके साथ भी ऐसा होता है, कि अगर आप अपने मन पर थोपे गए प्रभावों को दूर कर दें, तो आपकी जीवन ऊर्जा जानती है कि कैसे रहना है। यह आपका मन है जो नहीं जानता कि कैसे रहना है। एक वयस्क हर तरह का कष्ट खुद पर ओढ़ने में माहिर होता है, ये सब कष्ट उसके मन में होते हैं। बच्चा अब तक उस स्थिति तक नहीं पहुंचा है। इसलिए यह सीखने का समय है, सिखाने का नहीं।
4. उसे अपने तरीके से रहने दें
अगर माता-पिता अपने बच्चों की वाकई परवाह करते हैं, तो उन्हें अपने बच्चों को इस तरह पालना चाहिए कि बच्चे को माता-पिता की कभी जरूरत न हो। प्यार की प्रक्रिया हमेशा आजाद करने वाली प्रक्रिया होनी चाहिए, उलझाने वाली नहीं। इसलिए जब बच्चा पैदा होता है, तो बच्चे को चारों ओर देखने-परखने, प्रकृति के साथ और खुद अपने साथ समय बिताने दें। प्यार और सहयोग का माहौल बनाएं।
5. आनंदित और शांत रहें
अगर आप अपने बच्चे का पालन-पोषण अच्छी तरह करना चाहते हैं, तो सबसे पहले आपको खुद खुश रहना चाहिए। अगर आपके बच्चे को घर में रोजाना तनाव, गुस्सा, डर, चिंता और ईर्ष्या देखने को मिलते हैं, तो उसका क्या होगा? पक्के तौर पर वह केवल इन्हीं से सीखेगा, है न? अगर आप वाकई अपने बच्चे का अच्छी तरह पालन-पोषण करने का इरादा रखते हैं, तो आपको खुद को एक प्यार करने वाले, आनंदित और शांत इंसान में बदलना होगा। अगर आप खुद को बदलने के काबिल नहीं हैं, तो अपने बच्चे को अच्छे से पालने का सवाल कहां उठता है?
अगर हम वाकई अपने बच्चे को अच्छी तरह पालना चाहते हैं तो सबसे पहले हमें यह देखना चाहिए कि क्या हम खुद को रूपांतरित कर सकते हैं। जो भी माता-पिता बनना चाहते हैं, उन्हें एक साधारण सा प्रयोग करना चाहिए। उन्हें बैठकर देखना चाहिए कि उनके जीवन में क्या ठीक नहीं है और उनकी जिंदगी के लिए क्या अच्छा होगा। बाहरी दुनिया के लिए नहीं, बल्कि खुद उनके लिए। अगर आप अपने बारे में – अपना व्यवहार, बातचीत, रवैया और आदतें – तीन महीने में बदल सकते हैं, तो आप अपने बच्चे को भी समझदारी से संभाल सकते हैं।