आत्म-ज्ञान होने का मतलब है अज्ञानता को संपूर्णता में पा लेना
आध्यात्मिक यात्रा अज्ञान से ज्ञान की ओर नहीं बढ़ती, बल्कि ये एक स्तर के अज्ञान से दूसरे स्तर के अज्ञान की ओर बढ़ती है। आध्यात्मिक मार्ग पर प्रगति का अर्थ है कि आपमें विशाल अज्ञानता का भाव है। जाने हैं आध्यात्मिक मार्ग पर ज्ञान और अज्ञान के फर्क के बारे में

जब मैं अज्ञानता की बात करता हूं तो मेरा मतलब है कि सब कुछ अज्ञानता ही तो है। हम जिसे ज्ञान कहते हैं, वह भी एक तरह का अज्ञान ही है। हर व्यक्ति अज्ञानता की एक सीढ़ी से दूसरी सीढ़ी की ओर तब तक बढ़ता है, जब तक कि वह किसी आत्मज्ञानी की परम विस्मृति में डूब जाने के लिए पूरी तरह तैयार नहीं हो जाता।
रहस्य जानने के लिए शून्य बनना होगा
अज्ञानता हमेशा बहुत सारी परतों और अलग-अलग सीमाओं में होती है। जिंदगी एक रहस्य की तरह चलती रहती है। यह हमेशा से एक रहस्य थी, आज भी है और आगे भी रहेगी। अलग-अलग समय पर हमें अलग-अलग चीजें रहस्यमयी लगीं। शायद हजारों साल पहले हमें यह भी नहीं पता था कि हमारा शरीर कैसे काम करता है। अब हम उसे खोलकर देख चुके हैं, उसके साथ कई सारे काम भी कर चुके हैं। अब हमें उसके बारे में बहुत सारी जानकारी है। लेकिन हम इसके बारे में जितना ज्यादा जानने की कोशिश करते हैं, यह उतना ही रहस्यमय होता जा रहा है, पहले से भी ज्यादा।
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हम बस इतना ही कर रहे हैं कि अपनी अज्ञानता की सीमाओं को धक्का देकर उसे और बड़ा बना रहे है। आज आधुनिक विज्ञान कह रहा है कि हमारा ब्रह्मांड लगातार बढ़ता जा रहा है। जरा सोचिए, अगर आपको विस्तार करना है तो आपको कुछ ज्यादा जगह की जरूरत होगी। अब सवाल यह है कि अगर ब्रह्मांड लगातार बढ़ रहा है तो यह बढ कहां रहा है? यह एक राज है। जब तक कि आप खुद बिल्कुल शून्य नहीं बन जाते, तब तक आप अपनी अज्ञानता की गहराई नहीं जान पाएंगे।
खुद को पूर्ण रूप से अज्ञानी स्वीकार करके रिक्त हो सकते हैं
आत्म-ज्ञान का मतलब जानकारी हासिल करना नहीं है। ज्ञान-प्राप्ति तो असीमित अज्ञानता को छूना है। हर किसी की अज्ञानता की कोई न कोई सीमा होती है। पर आत्म-ज्ञानी व्यक्ति की अज्ञानता असीमित होती है, हर बंधन से मुक्त होती है। जब जिंदगी सीमित तरीकों से चलती है तो हर चीज बिल्कुल साफ मालूम पड़ती है। जब आपकी सीमाओं से परे की चीजें घटित होने लगती हैं, तब कुछ भी स्पष्ट नहीं रह जाता।
आप में से जो लोग किसी खास मार्ग पर हैं.... वैसे मार्ग शब्द एक धोखा है, क्योंकि मार्ग से ये उम्मीद की जाती है कि वह आपको कहीं न कहीं लेकर जाएगा। लेकिन जैसे-जैसे आप आगे बढ़ रहे हैं, आप और ज्यादा भटका हुआ महसूस कर रहे हैं हैं। है न? हो सकता है आप खुशी-खुशी खोये हुए हों, लेकिन खोये हुए तो हैं। जब आप बिल्कुल भटक जाते हैं और आपको कहीं भी पहुंचने की कोई आस नजर नहीं आती, तो समझिए मकसद पूरा हुआ। आप खोये हुए तभी रह सकते हैं, जब आप कहीं पहुँचने की कोशिश कर रहे हों। जब आप समझ जाते हैं कि आप पूरी तरह और पूरी निराशा के साथ भटक गए हैं, और जब कुछ पाने की आपकी सारी उम्मीदें खत्म हो जाती हैं तो आप सही मायनों में बिल्कुल ठीक होते हैं। जब आपकी अज्ञानता सभी सीमाएं पार कर लेती है और आप पूरे तरह से अज्ञानी बन जाते हैं, तब जानिए कि आप बिल्कुल ठीक हैं। पूर्ण रूप से अज्ञानी बनने का मतलब है कि आप खाली हो गए हैं और खालीपन ही वास्तव में अज्ञानता है। परम अज्ञान ही भगवान शिव हैं, शि-व यानी जो हैं ही नहीं। जो है, वह एक तरह की जानकारी है।
परम विस्मृति ही है अंतिम लक्ष्य
अगर कोई आदमी किसी चीज के पीछे लगा हुआ है, तो यह जान जाइए कि उसकी इस तलाश का कोई अंत नहीं है, यानी यह प्रक्रिया अंतहीन है। हालात कितने भी सुंदर क्यों न हों, जिस पल आपको लगता है कि आपकी तलाश पूरी हो गई, उसी पल आप खुद को अज्ञानता की एक खास अवस्था में जकड़ लेते हैं। जब आप यह जान लेते हैं कि हर एक चोटी एक आधार है, अगली चोटी पर पहुंचने के लिए और अगली चोटी भी कोई मंजिल नहीं है, तो आपका एक ही लक्ष्य हो जाता है और वह है परम विस्मृति यानी सब कुछ भूल जाना। यह सुनने में बड़ा ही नकारात्मक और निराशाजनक लगता है, यह कोई ऐसा लक्ष्य नहीं है जिसे कोई भी प्राप्त करना चाहेगा। लोग स्वर्ग जाना चाहते हैं, सुंदर स्थानों पर बैठना चाहते हैं, भगवान की गोद में बैठना चाहते हैं और मनमोहक काम करना चाहते हैं। अगर जिंदगी इतनी मीठी हो जाए, तो आप डायबिटिज से मर सकते हैं। यह जान जाना कि हम अज्ञानता के एक रूप से दूसरे रूप की ओर बढ़ रहे हैं, किसी इंसान के लिए सबसे बड़ा आशीर्वाद है, जिससे वह शुरुआत कर सकता है।
भगवान किसी भी रूप में आ सकते हैं
एक योगी थे। वह एक मंदिर के प्रांगण में बैठे रहते थे। कभी-कभी ऐसा होता कि वह भगवान की तरह लगने लगते थे। लोग वहां एकत्र हुए और उन्हें पूजना शुरू कर दिया। अगले ही पल वह योगी पागलों की तरह व्यवहार करने लगे। अब लोग उनसे दूर जाने लगे और सोचने लगे कि उन्होंने गलती कर दी। इसी तरह वह कभी कुछ हो जाते तो कभी कुछ और।
एक आदमी जो हर रोज मंदिर आता था, इस योगी की ओर खिंचता चला गया। उसने देखा कि अगर कोई आदमी उस योगी को खाने के लिए कुछ न दे, तो वह कई दिनों तक खाना नहीं खाते। तो उसने यह काम अपने ऊपर ले लिया। हर रोज वह उनके लिए खाना बनाकर लाने लगा। जब तक वह योगी खा नहीं लेते थे, तब तक वह आदमी वहीं बैठा रहता और खुद भी कुछ नहीं खाता था। जब योगी खाना खाकर उठ जाते, तो वह बचा-खुचा खा लेता था। उसने इसी काम को अपनी जिंदगी और अपना लक्ष्य बना लिया। योगी कभी सुबह खाते, तो कभी दोपहर को, कभी शाम को, तो कभी अगली सुबह। यह पता नहीं होता था कि वह कब भोजन करेंगे। लेकिन इस आदमी ने खुद को पूरी तरह से इसी काम के प्रति समर्पित कर दिया था। रोज उनके लिए खाना लेकर आना और फिर जब तक वे न खाएं, प्रतीक्षा करते रहना।
कुछ सालों तक यही सिलसिला चलता रहा। एक दिन योगी को इस आदमी पर स्नेह उमड़ आया और उन्होंने प्यार से कहा, ‘कल से तुम्हें यहां आने की कोई जरूरत नहीं है। मैं खुद ही तुम्हारे घर आ जाऊंगा। तुम बस खाना बनाकर तैयार रखना। मैं वहीं आकर खाना खा लूंगा।’ यह सुनकर वह आदमी घर चला गया। अगले दिन उसने खाना तैयार किया और योगी का इंतजार करने लगा। वह इंतजार करता रहा, लेकिन योगी नहीं आए। फिर एक कुत्ता उसे परेशान करने लगा। वह खाने के पास जाने की कोशिश कर रहा था। उस आदमी ने कुत्ते को कई बार भगाया, लेकिन वह वापस आ जाता था। अबकी बार उसने एक डंडे से उस कुत्ते की अच्छी तरह पिटाई कर दी। वह कुत्ता पीछे हटकर खड़ा हो गया और आंखों में आंसू भरे वहां से चला गया। इसके बाद वह आदमी शाम तक योगी का इंतजार करता रहा, लेकिन योगी नहीं आए। काफी इंतजार के बाद उसने मंदिर जाकर देखा तो योगी वहीं बैठे थे और उनकी आंखों से आंसू बह रहे थे। यह देखकर वह हैरान रह गया। उसने योगी से पूछा - ‘महाराज, आपने कहा था कि आप घर आएंगे, मैं आपकी राह देखता रहा। और आपकी आंखों में ये आंसू कैसे?’ योगी ने जवाब दिया - ‘मैं तुम्हारे घर कई बार आया था। पूरे बारह बार मैंने तुम्हारे घर में आने की कोशिश की थी। तुमने मुझे गाली दी, मेरा पीछा किया और फिर मुझे भगा-भगा के मारा भी।’ तब उस आदमी को याद आया कि उस कुत्ते ने भी बारह बार घर में आने की कोशिश की थी। ऐसा जरूरी नहीं है कि गुरु या प्रभु हमेशा एक छोटे से सुंदर हंस के रूप में आएं, जैसा कि पुरानी कथाओं में कहा गया है। वह कुत्ते के रूप में भी आ सकते हैं। अगर आप किसी खास रूप, किसी विशेष अनुभव या किसी खास स्थिति से लगाव बना लेते हैं तो आप असली अनुभव से वंचित रह जाएंगे। आप जिस मार्ग पर चल रहे हैं, उसमें उन्नति करने का सीधा सा मतलब यह है कि आपके भीतर विशाल अज्ञानता का भाव है।
रहस्यवाद का असली अर्थ
इधर कुछ सालों से वैज्ञानिक मानने लगे थे कि किसी न किसी दिन हम अस्तित्व की प्रकृति का पता लगा लेंगे, लेकिन आज कई ऊंचे दर्जे के भौतिकशास्त्री इस मसले पर बात कर रहे हैं कि हम अपनी अज्ञानता की सीमाओं का विस्तार करते जाएंगे, लेकिन इस जगत को कभी नहीं जान पाएंगे। मिस्टिसिज्म (रहस्यवाद) का यही मतलब है। एक मिस्टिक (रहस्यदर्शी) का अर्थ है पूर्ण रूप से अज्ञानी व्यक्ति। सामान्य व्यक्ति थोड़ा सा अज्ञानी और थोड़ा जानकार होता है। वह कुछ बातों को जानता है तो कुछ बातों से अनजान भी होता है। जिस व्यक्ति को कुछ भी नहीं पता है और जो ज्ञान के बोझ से दबा हुआ नहीं है, वही मिस्टिक (रहस्यदर्शी) है क्योंकि ज्ञान एक तरह का संचय है। जो शख्स किसी भी तरह के ज्ञान के बोझ तले नहीं दबा है, वही मिस्टिक है क्योंकि उसने अज्ञान को संपूर्ण रूप में चुना है, टुकड़ों में नहीं।