आधुनिक काल में योग - पूर्व से पश्चिम तक
आदियोगि ने जिस योग की शुरुआत भारत-भूमि से की थी, पंद्रह हजार साल की काल-यात्रा पूरी करते हुए वह योग पश्चिमि दुनिया तक पहुंच गया। पूर्व से पश्चिम तक के इस सफर में योग के हमसफर रहे कुछ योगियों के बारे में पेश है कुछ जानकारी.
ArticleJun 8, 2015
आदियोगी ने जिस योग की शुरुआत भारत-भूमि से की थी, पंद्रह हजार साल की काल-यात्रा पूरी करते हुए वह योग पश्चिमि दुनिया तक पहुंच गया। पूर्व से पश्चिम तक के इस सफर में योग के हमसफर रहे कुछ योगियों के बारे में पेश है कुछ जानकारी...
- स्वामी विवेकानंद (12 जनवरी 1863 - 4 जुलाई 1902) : आधुनिक योग का इतिहास शुरू होता है 1893 में शिकागो में आयोजित धर्म संसद के साथ। उन्नीसवीं सदी के अंत में आधुनिक योग अमेरिका पहुंचा। इसी सम्मेलन में संत रामकृष्ण के शिष्य स्वामी विवेकानंद ने अमेरिकी जनता पर अपनी अमिट छाप छोड़ी। उनके भाषण के शुरुआती शब्द थे ‘अमेरिका के भाइयों और बहनों!’ इन शब्दों से उन्होंने अमेरिका में लाखों दिलों को जीत लिया और बहुत से विद्यार्थियों को योग और वेदांत की ओर आकर्षित किया।
- स्वामी रामतीर्थ (22 अक्टूबर 1873- 27अक्टूबर 1906): स्वामी रामतीर्थ पहले एक गणित के शिक्षक थे, जिन्होंने बाद में शिक्षण के बजाय आध्यात्म का जीवन पसंद किया। वह 1902 में अमेरिका गए और उन्होंने कैलिफ ोर्निया में माउंट शास्ता पर एक रिट्रीट सेंटर की स्थापना की। वह सिर्फ दो साल वहां रहे और 1906 में तैंतीस साल की छोटी आयु में भारत आकर गंगा नदी में अपना शरीर त्याग दिया। मशहूर किताब ‘इन वुड्स ऑफ गॉड - रिएलाइजेशन’ के पांच खंडों में उनके कुछ प्रेरक प्रवचन संकलित हैं, जो आज भी महत्वपूर्ण हैं। स्वामी विवेकानंद ने उनके आध्यात्मिक जीवन को बहुत प्रेरणा दी। उन्होंने स्वामी विवेकानंद को पहली बार लाहौर में देखा था और एक संन्यासी के रूप में उस महान स्वामी के दर्शन ने उनके अंदर गेरुआ वस्त्र धारण करने की चाहत जगा दी।
- रमना महर्षि (30 दिसंबर 1879-14 अप्रैल 1950): एक पूर्व पत्रकार-संपादक और विख्यात पुस्तक ‘ए सर्च इन सीक्रेट इंडिया’ के लेखक पॉल ब्रूंटन ने पश्चिमी जिज्ञासुओं को रमना महर्षि से परिचित कराया। आने वाले सालों में उनकी कलम से बहुत से ग्रंथ लिखे गए, अंत में ‘द स्पिरिचुअल क्राइसिस ऑफ मैन’ प्रकाशित हुई। फिर 80 के दशक में उनके मरणोपरांत उनकी नोटबुक्स सोलह खंडों में प्रकाशित हुई जो गंभीर योग के लिए एक गुप्त खजाना है।
Subscribe
Get weekly updates on the latest blogs via newsletters right in your mailbox.
- परमहंस योगानंद (5 जनवरी 1893-7 मार्च 1952): स्वामी विवेकानंद के बाद, पश्चिम में अगले लोकप्रिय गुरु थे, परमहंस योगानंद जो 1920 में बोस्टन पहुंचे थे। उन्होंने लॉस एंजेलेस में ‘सेल्फ रियलाइजेशन फेलोशिप’ की स्थापना की। उन्होंने 1952 में अपना भौतिक शरीर त्याग दिया मगर उनके अनुयायी आज भी दुनिया भर में हैं। उन्होंने प्रसिद्ध पुस्तक ‘ऑटोबायोग्राफी ऑफ ए योगी ’(एक योगी की आत्मकथा) लिखी। उनकी शिक्षाओं को योगोदा-शिक्षा कहा जाता है।
- श्री अरबिंदो (15 अगस्त 1872-5 दिसंबर 1950): भारतीय मूल के प्रसिद्ध आधुनिक गुरु श्री अरबिंदो थे जिन्हें इंटीग्रल या पूर्ण योग का जनक माना जाता है।.
- स्वामी कुवलयानंद (30 अगस्त, 1883-18 अप्रैल, 1966): स्वामी कुवलयानंद एक शोधकर्ता और शिक्षाविद थे जिन्हें मुख्य रूप से योग के वैज्ञानिक आधारों के मार्गदर्शक शोध के लिए जाना जाता है। उन्होंने 1920 में वैज्ञानिक अनुसंधान शुरू किया और 1924 में खास तौर पर योग के अध्ययन को समर्पित अपना पहला वैज्ञानिक जर्नल, योग मीमांसा प्रकाशित किया। उन्होंने ज्यादातर शोध कैवल्यधाम हेल्थ एंड योगा रिसर्च सेंटर में किए, जिसकी स्थापना उन्होंने 1924 में की थी।
- स्वामी शिवानंद (8 सितंबर 1887-14 जुलाई 1963): सबसे प्रमुख योग गुरुओं में एक थे, हिमालयी गुरु स्वामी शिवानंद। वह मलेशिया में डॉक्टर थे और उन्होंने भारत, यूरोप और अमेरिका में योग केंद्र खोले। उन्होंने योग, गीता और वेदांत पर 200 से अधिक किताबें लिखीं। स्वामी विष्णुदेवानंद उनके मशहूर शिष्य थे जिन्होंने ‘कंप्लीट इलस्ट्रेटेड बुक ऑफ योग’ नामक किताब लिखी। उनके दूसरे शिष्यों स्वामी सच्चिदानंद, स्वामी शिवानंद राधा, स्वामी सत्यानंद और स्वामी चिदानंद ने उनके प्रयासों को जारी रखा। स्वामी सत्यानंद ने 1964 में बिहार स्कूल ऑफ योग की स्थापना की।
- जिद्दू कृष्णमूर्ति (11 मई, 1895-17 फ रवरी, 1986): 1930 के दशक की शुरुआत से लेकर 1986 में अपनी मृत्यु तक, जिद्दू कृष्णमूर्ति ने अपने बोलने की शैली और प्रवचनों से हजारों दार्शनिक प्रवृत्ति वाले पश्चिमी लोगों को मुग्ध किया। उन्हें थियोसोफि कल सोसाइटी द्वारा भविष्य के विश्व नेता के रूप में तैयार किया गया था मगर उन्होंने इस मिशन को अस्वीकार कर दिया जो कितना भी महान होने के बावजूद किसी एक व्यक्ति के लिए बहुत ही भारी और दुरूह काम था। उन्होंने ज्ञान-योग के बारे में बताया और बड़ी संख्या में श्रोताओं व पाठकों को आकर्षित किया।
- श्रीला प्रभुपद (1 सितंबर 1896-14 नवंबर 1977): 1965 में श्रिला प्रभुपद अमेरिका आए और उन्होंने ‘इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर कृष्णा कंशसनेस’ (ISKCON) की स्थापना की। उन्होंने भक्ति योग पर आधारित आंदोलन का प्रसार-प्रसार किया।
- भगवान रजनीश (11 दिसंबर 1931-19 जनवरी 1990): भगवान रजनीश जो ओशो के रूप में भी जाने जाते हैं, 70 और 80 के दशक में खूब लोकप्रिय हुए।
- राघवेंद्र स्वामी (1890-1996): बंगलौर से लगभग 250 किलोमीटर दूर कर्नाटक के एक छोटे से गांव, चित्रदुर्ग जिले के मलादीहल्ली के राघवेंद्र स्वामी जो ‘मलादीहल्ली स्वामीजी’ के नाम से मशहूर थे, ने मलादीहल्ली में अनथ सेवाश्रम ट्रस्ट की स्थापना की। उन्होंने मलादीहल्ली में अपना आधार रखते हुए दुनिया भर के 45 लाख से अधिक लोगों को योग सिखाया। उन्होंने योग की शिक्षा पलनी स्वामी से प्राप्त की थी। राघवेंद्र स्वामी सद्गुरु जग्गी वासुदेव के योग शिक्षक थे।
- श्री कृष्णामाचार्य (18 नवंबर 1888-28 फ रवरी 1989): आधुनिक समय में हठ योग के महान व्याख्याता रहे श्री कृष्णामाचार्य का देहांत 1989 में 101 वर्ष की आयु में हुआ। उन्होंने अपने आखिरी दिनों तक हठ योग की विनियोग प्रणाली का अभ्यास किया और उसकी शिक्षा दी। उनके पुत्र टी.के.वी.देसीकाचर अपने संत पिता की शिक्षाओं को जारी रखे हुए हैं। उन्होंने बाकी लोगों के साथ प्रसिद्ध जिद्दू कृष्णमूर्ति को भी योग सिखाया है। श्री कृष्णामाचार्य के एक और मशहूर विद्यार्थी हुए बी.के.एस.अयंगर (14 दिसंबर 1918-20 अगस्त 2014) जो खुद भी एक गुरु थे।
- महर्षि महेश योगी (12 जनवरी 1918- 5 फ रवरी 2008): महर्षि महेश योगी ने 1960 के मध्य में पश्चिम को ट्रैन्सेन्डेटल ध्यान से परिचित कराया।