क्या 8 घंटे की नींद जरुरी है?
सवाल है कि मेरे शरीर को आखिर कितनी नींद की जरूरत है? यह इस बात पर निर्भर करता है कि आप शारीरिक स्तर पर क्या-क्या करते हैं। आपको अपनी नींद को तय करने की कोई जरूरत नहीं है।
अनुज: सद्गुरु, आदर्श रूप से एक इंसान को कितनी देर सोना चाहिए?
सद्गुरु: मैं जानता हूं कि इस बात को लेकर काफी चर्चा होती है कि इंसान को कम से कम आठ घंटे सोना चाहिए। देखिए, इस शरीर को नींद की नहीं, बल्कि आराम की जरूरत होती है। अगर आप अपने शरीर को दिनभर आराम में रखेंगे तो आपकी नींद का कोटा अपने आप कम हो जाएगा। अगर आपका काम भी आपको आराम देता हो, आपका व्यायाम करना भी आपके लिए एक आराम बन जाए, तो आप देखेंगे कि आपकी नींद की जरुरत काफी कम हो जाएगी। लेकिन आज लोग हर काम पूरा जोर लगाकर करना चाहते हैं, मैं देखता हूं कि लोग पार्क में भी पूरा दम लगाकर टहल रहे हैं। आप सहजता से क्यों नहीं टहल सकते? चाहे आप टहल रहे हों या जॉगिंग कर रहे हों, आप यह काम सहजता से और आनंद में क्यों नहीं कर सकते? ताकत लगाकर किए गए ये काम आपकी भलाई से ज्यादा आपका नुकसान कर रहे हैं। दरअसल, आप हर काम इस तरह से कर रहे हैं, मानो आप एक लड़ाई लड़ रहे हों।
काम को सहजता के साथ करना
आप जीवन के साथ लड़ाई मत कीजिए। आपको यह जरुर जानना चाहिए कि जीवन के साथ लय में कैसे रहा जाए। आप एक जीवन हैं, आप जीवन के विरोधी नहीं हैं। आपको सिर्फ इस जीवन के साथ लयबद्ध होना है। खुद को चुस्त-दुरुस्त और सेहतमंद रखना एक संघर्ष नहीं है। इसके लिए कोई भी ऐसी गतिविधि कीजिए जिसमें आप आनंद ले सकें - आप कोई खेल खेलिए, तैरिए, सैर कीजिए, जो भी अच्छा लगता है वह कीजिए। लेकिन आपको हलवा खाने के अलावा कुछ अच्छा नहीं लगता। तब तो आपको पता ही है कि दिक्कत होगी। नहीं तो किसी काम को सहजता के साथ करने में कोई दिक्कत नहीं है, आप बस रिलैक्स होना सीखिए।
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तो सवाल है कि मेरे शरीर को आखिर कितनी नींद की जरूरत है? यह इस बात पर निर्भर करता है कि आपकी शारीरिक गतिविधि किस तरह की है। आपको अपनी नींद या खाने को तय करने की कोई जरूरत नहीं है। ‘मुझे रोज कितनी कैलोरी खानी चाहिए, मुझे रोज कितना सोना चाहिए?’ जीवन को संभालने का यह मूर्खतापूर्ण तरीका है। आप अपने शरीर को ही तय करने दीजिए कि आज कितना खाना खाना है। आज आपकी गतिविधि का स्तर कम था, इसलिए आपने कम खाया। कल आपके कामकाज का स्तर बहुत ऊंचा होता है तो आप ज्यादा खाएंगे। यही बात नींद पर भी लागू होती है। अगर आप खूब सहज व आरामदेह स्थिति में रहते हैं, तो आप जगे हुए रहेंगे।
जीवन जीने की ललक
आपके शरीर को किसी अलार्म से जागने की ज़रूरत नहीं होनी चाहिए। एक बार शरीर जब पूरी तरह से रिलैक्स हो जाए तो फिर यह अपने आप जग जाएगा। अगर जीवन जीने की ललक है तो आपके सिस्टम को ऐसा ही होना चाहिए। और अगर यह बिस्तर को एक कब्र के रूप में देख रहा है तो यह उससे बाहर नहीं आना चाहेगा। अगर आपको इस मौत से बाहर निकालने के लिए किसी की जरूरत पड़ती है तो यह खुद में एक समस्या है। आपको अपने शरीर और मन को ऐसा रखना चाहिए, जिससे इनमें हमेशा जीने की चाहत बनी रहे, उनमें जिंदगी से भागने की चाहत नहीं होनी चाहिए। यह सब कुछ इस पर निर्भर करता है कि आप जीवन को किस तरह से ले रहे हैं। अगर आप एक खास तरह की मानसिक स्थिति में हैं, जहां आप जीवन से बचना चाहते हैं, तो नींद एक अच्छा जरिया बन जाती है। तब आप ज्यादा से ज्यादा खाना और सोना चाहेंगे।
आप चाहे जो कुछ भी खाएं, सोने से कम से कम दो घंटे पहले आपका खाना हो जाना चाहिए। अगर ऐसा नहीं होता है, तो आपका खाना बेकार चला जाता है, क्योंकि अगर आप खाना पचाना चाहते हैं तो आपकी मेटाबॉलिक क्रिया काफी ऊंची होनी चाहिए, जबकि सोने के लिए कम स्तर के मेटाबॉलिक क्रिया की जरूरत होती है। अगर आप खाते ही सो जाते हैं तो शरीर को समझ ही नहीं आता कि वह क्या करे। उस स्थिति में या तो शरीर आपको सोने नहीं देता या फिर यह खाए हुए भोजन को हजम नहीं कर पाता।
तो आखिर कितना सोयें
अगर आप खाने के दो घंटे या उससे कम समय के भीतर सो जाते हैं तो आपके द्वारा खाए हुए भोजन का 80 प्रतिशत हिस्सा बेकार चला जाता है। सोने से पहले पाचन का काम पूरा हो जाना चाहिए। लेकिन आजकल होता ये है कि लोग खाना खाते हैं, और सीधे सोने चले जाते हैं, क्योंकि फिर उसके बाद वे सो नहीं सकते। लोग आज ऐसी मानसिक अवस्था में पहुंच चुके हैं जहां उन्हें तब तक नींद ही नहीं आती, जब तक वे खाने से अपना पेट भर नहीं लेते और शरीर को शिथिल नहीं बना देते। अगर आपके साथ भी ऐसा हो रहा है, तो आपको इस बारे में ध्यान देने की जरूरत है। अगर आप भी बिना पूरा पेट भरे सो नहीं सकते, तो समझ लीजिए कि आपको तुरंत कोई कदम उठाने की जरूरत है। यह मामला नींद से जुड़ा नहीं है, बल्कि यह एक खास तरह की मानसिक अवस्था है।
तो सवाल फिर वही है कि कितना सोया जाए? इसका जवाब होगा - बस जितनी शरीर को नींद की जरूरत है। नींद और खाने के बारे में अपने बजाए शरीर को फैसला लेने दीजिए, क्योंकि आप इनके बारे में सही फैसला नहीं ले सकते। भोजन और नींद दोनों के बारे में शरीर को ही तय करने दीजिए। क्योंकि यह सब कुछ शरीर से ही जुड़ा हुआ है।