क्या जल, वायु, अग्नि तत्वों के अलग-अलग देवता होते हैं?

भारत की प्राचीन परंपराओं में मौलिक तत्वों पर आधारित देवताओं की पूजा भी की जाती थी। क्या सचमुच इस तरह के देवता होते हैं? जानते हैं सद्गुरु से
प्रश्न : सद्गुरु, प्राचीन काल में भारतीय मौलिक तत्वों की पूजा करते थे, जैसे इंद्र, वायु, सूर्य, वरुण...
सद्गुरु: नहीं, इंद्र एक मौलिक तत्व नहीं हैं।
प्रश्नकर्ता: इंद्र मौलिक तत्व नहीं है, मगर वह बादल और बारिश के देवता हैं। क्या ये तत्व वास्तव में कोई आकार ग्रहण कर सकते हैं? क्योंकि इन देवताओं को लेकर बहुत सी कहानियां प्रचलित हैं...
सद्गुरु: ऐसा नहीं है कि मूलभूत तत्व इंसानी रूप ले लेते हैं। बस मूलभूत तत्वों की प्राण प्रतिष्ठा की जा सकती है।
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हर तत्व के लिए अलग लिंग
अगर हम पांच तत्वों को कोई आकार दें, तो योगिक प्रणाली और विज्ञान की समझ के कारण हम पांच अलग-अलग तरह के लिंग बनाएंगे। वास्तव में दक्षिणी भारत में पांच तत्वों के मंदिर पहले से मौजूद हैं।
तो क्या वायु एक दीर्घवृत्त के रूप में आकार ले सकती है? अगर आप इसे ऊपरी तौर पर देखेंगे तो जवाब होगा नहीं। लेकिन अगर आप अधिक गहराई में देखेंगे तो हां ऐसा हो सकता है। हम ऐसा लिंग बना सकते हैं जो गति का प्रतीक हो। वा-यु का अर्थ है, वह जो गतिशील है। हम ऐसा लिंग बना सकते हैं, जो गति को दर्शाता हो, वह वायु का प्रतीक बन सकता है। इसी तरह हम अन्य तत्वों के लिए भी लिंग तैयार कर सकते हैं। क्या हम इसे इंसानी आकार में बना सकते हैं? हां। देवताओं को बनाते समय भी जरूरी नहीं है कि पूरा आकार देवता या ऊर्जा रूप के तौर पर काम करे। आम तौर पर, देवता के भीतर एक छोटा यंत्र बनाया जाता है।
अगर आप तमिलनाडु के होंगे, तो आपको पता होगा कि कुछ साल पहले राज्य में एक बड़ा हंगामा हुआ था। त्रिची या तिरुचिरापल्ली में विष्णु का एक प्रसिद्ध मंदिर है, श्रीरंगम मंदिर। उनके हृदय पर एक पीतल का एक यंत्र हुआ करता था। किसी विवाद के कारण उस यंत्र को वहां से हटा दिया गया।
उस यंत्र को हटाते ही लोग कहने लगे, ‘रंगा चले गए।’ विष्णु वहां के लोगों के लिए इतने अंतरंग थे कि वे उन्हें उनके पहले नाम – ‘रंगा’ से बुलाते हैं। वह उनके लिए रंगा हैं। इसलिए उन्होंने कहा, ‘रंगा मंदिर से चले गए।’ यह एक तरह से सच्चाई है। देवता को पूरा मानवीय रूप इसलिए दिया जाता है, कि लोग उनसे जुड़ सकें। उनके हाथ-पैर, आंखें इसलिए बनाई जाती हैं कि लोग उनसे जुड सकें। मानवीय रूप में रचे गए ऐसे देवता भी हैं, जो पूरी तरह एक यंत्र के रूप में काम करते हैं। मगर उसमें बहुत ज्यामिति की सटीकता की जरुरत होती है। इसीलिए तंजावुर कांस्य इतने कीमती और महत्वपूर्ण हैं क्योंकि उनकी ज्यामिति बहुत सटीक है।
सही ज्यामिति या आकार देना जरुरी है
अगर आप एक इंसानी रूप बनाना चाहते हैं और उसे संपूर्ण रूप में, छोटी उंगली सहित, एक यंत्र की तरह बनाना चाहते हैं, तो आपको उसकी ज्यामिति बहुत सटीक बनानी होगी।
आप अलग-अलग तत्वों के लिए एक यंत्र बनाकर उसे इंसानी आकारों में लगा सकते हैं। फिर वह एक तात्विक देवता के रूप में काम करेगा। अगर वह अग्नि है, तो उसका रूप-रंग उग्र होगा। अगर वायु तत्व का देवता बनाया जाता है तो उसमें वैसे ही गुण होंगे। ऐसी चीजें इसलिए की जाती हैं कि लोग इनसे जुड़ सकें क्योंकि मनोवैज्ञानिक रूप से ग्रहण करने के लिए तैयार होना और उस रूप से जुड़ना उतना ही महत्वपूर्ण है, जितना कि वह ऊर्जा रूप। अगर लोग उस रूप से नहीं जुड़ेंगे तो वे वहां बैठने के लिए तैयार नहीं होंगे। फिर वे उस ऊर्जा का अनुभव नहीं कर पाएंगे। उन्हें जो करने के लिए कहा जाएगा, वह नहीं करेंगे। अगर यहां मौजूद एक लिंग को मैं वायु बताऊं और दूसरे लिंग को अग्नि, लेकिन अगर आपको दोनों लिंग एक जैसे दिखेंगे तो आप वे चीजें नहीं करेंगे जो आपको करनी चाहिए।
लेकिन अगर मैं कहूं ‘यह वायु देवता है’ और उस मूर्ति के बाल हवा में लहराते हुए बने होंगे, तो आप उसे वायु देवता मानकर वह करेंगे जो आपसे कहा जाएगा। इसलिए यह देवता के निर्माण का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है कि लोग उससे जुड़ सकें। चाहे उसमें जरूरी ऊर्जा हो, अगर लोग उससे नहीं जुड़ेंगे तो उस ऊर्जा का लाभ नहीं उठा पाएंगे। तो क्या तात्विक देवता का निर्माण किया जा सकता है? हां, ऐसा किया जा सकता है। क्या वे जीवंत हो सकते हैं? हां, अगर सही प्रकार से ऐसा किया जाए, तो वे जीवंत हो सकते हैं और आपके साथ चल-फिर और रह सकते हैं। ये ऊर्जा के रूप होते हैं। लेकिन अगर आप समझते हैं कि ऊपर आसमान में कोई वायु देवता बैठा है, जो एक दिन नीचे आपके पास आएगा तो नहीं, ऐसा कुछ नहीं होता।