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पैलेस ग्राउंड्स, बेंगलुरु का माउंट कारमेल कॉलेज परिसर जबरदस्त गतिविधियों से गूँज रहा था। जिन विद्यार्थिनियों के पास सुरक्षा की जिम्मेदारी थी, वे अंतिम क्षणों में भीड़ प्रबंधन और युवाओं जुड़ो सत्य से! कार्यक्रम की योजनाओं को अंतिम रूप दे रहे थे। कार्यक्रम की योजना तथा उसका आयोजन सटीक था। सुरक्षा की जिम्मेदारी संभालने वाली युवतियां भी अपनी वर्दी – सुंदर लाल और काले कुर्तों में मौजूद थीं।

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दिव्यदर्शी की सभा में आने के लिये युद्ध जैसी स्थिति

कार्यक्रम सुबह 10:30 बजे शुरू होना था लेकिन सभी विभागों से छात्राओं की बहुत बड़ी भीड़ बहुत उत्सुकता के साथ, कार्यक्रम शुरू होने के 1 घंटे पहले ही सभागृह के बाहर एकत्रित हो गयी थी और बहुत गहमा गहमी का वातावरण बन गया था।

छात्रों ने अपने ढंग से बताया कि उन्होंने एक दिव्यदर्शी से मिलने के लिए खुद को मानसिक रूप से तैयार कर लिया है। वे उन्हें देखना चाहते थे, उनके साथ सेल्फी लेना चाहते थे, उन्हें सुनना व उनसे बात करना चाहते थे, उनकी एक झलक पाना चाहते थे और निश्चित रूप से अपनी दुविधाओं पर उनकी स्पष्ट सलाह पाना चाहते थे। इसी बीच कॉलेज की एक शिक्षिका से बात करने पर उन्होंने कहा कि उन्होंने लड़कियों को कॉलेज परिसर में आने वाले मशहूर लोगों के आसपास झुण्ड बनाते बहुत देखा है, पर यह पहली बार है कि वे एक गुरु को ऐसी भीड़ के आकर्षण का केंद्र बनते देख रही हैं।

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छात्राओं की इस कार्यक्रम से उम्मीदें

हमने कुछ उत्सुक छात्राओं से कार्यक्रम से उनकी उम्मीदों के बारे में जानना चाहा। बहुत प्रकार के जवाब सामने आये, जैसे, “वे वास्तविकताओं के बारे में बोलते हैं, और हमें 100 घंटे ध्यान करने को नहीं कहते”, “उनके जवाब हमारे अंतर्मन की समस्याओं को सुलझाते हैं”, “हमें सही दिशा मिलती है” आदि। शिक्षिकायें भी इस बारे में बहुत उत्सुक दिख रही थीं कि सद्‌गुरु उनके परिसर में हैं और वे युवाओं से बात करेंगे तथा उन्हें स्पष्ट एवं संतुलित मार्गदर्शन देंगे।

 

वहां सद्‌गुरु की ऐसी प्रशंसकों की भी कमी नहीं थी जो बहुत ज्यादा ख़ुशी के साथ उछल रहीं थीं, और सभागृह में जाने के लिये बेताब हो रहीं थीं। कुछ अपने लिये किसी भी कीमत पर स्थान पाने की कोशिश में थीं, कुछ ऐसी भी थीं जो किसी भी तरह से अन्दर घुसने की ताक में थीं जिससे वे सद्‌गुरु की झलक पा सकें। हमने अब तक ऐसे विद्यार्थियों के बारे में ही सुना है जो चुपचाप कक्षा से बाहर निकलने की फिराक में होते हैं, क्लास छोड़कर भागना चाहते हैं, लेकिन यहाँ तो बिलकुल उल्टा हो रहा था।

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इन सब हलके फुल्के क्षणों में कुछ ऐसी भी थीं जो गंभीरता से बता रहीं थीं कि कैसे सद्‌गुरु के ज्ञान एवं दिशा-दृष्टि की सहायता से उन्होंने अपने जीवन की कुछ बड़ी कठिनाइयों का सफलतापूर्वक मुकाबला किया और उनमें से बाहर निकलीं हैं।

दरवाजे खुले और ‘बाढ़’ आई

जैसे ही सभागृह के दरवाजे खुले, ऐसा लगा जैसे वहां छात्राओं की बाढ़ आ गयी हो, उन्होंने बहुत तेजी से सभी 2500 सीटें भर डालीं, कोई जगह न बची, और तो और वे गलियारों में, सीढ़ियों पर सब जगह समा गयीं, एक इंच भी खाली जगह नहीं रही और स्वयंसेवकों को भीड़ नियंत्रित करने में पसीने आ गये।

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कार्यक्रम शुरू हुआ ईशा साउंड्स की एक मधुर प्रस्तुति से जिसके बाद ईशा संस्कृति के बच्चों ने अपनी कला का आकर्षक प्रदर्शन किया। फिर ईशा साउंड्स के कलाकार आये कबीर का एक भजन ले कर, “अल्लाह के बन्दे!”। सारा सभागृह तालियों से गूंज गया। दर्शकों का जबरदस्त उत्साह खुले रूप में दिख रहा था।

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और तब तालियों की गडगडाहट के बीच सद्‌गुरु मंच पर आये। वे बालकनी में छात्राओं से विनोद पूर्ण ढंग से कह रहे थे “अगर प्रकाश ठीक नहीं है तो आप लोगों को ही खुद प्रकाशित हो जाना चाहिये”। सारा सभागृह उत्साह से झूम उठा और तालियाँ रुक ही नहीं रही थीं। जब सद्‌गुरु ने स्वीकार किया कि वे खुद एक पुराने कार्मेलाइट हैं तो एक बार फिर से जबरदस्त तालियाँ बजीं। उन्होंने बताया कि वे अपने छात्र जीवन में दो वर्ष कारमेल में रहे, एक साल क्राइस्ट द किंग में और एक निर्मला कान्वेंट में।

ये सत्र बहुत ही उमंग से भरा था, और जमकर तालियाँ बजाई जा रही थीं। सत्र की शुरुआत मॉडरेटर्स द्वारा पूछे गए प्रश्नों से हुई, और फिर दर्शकों ने प्रश्न पूछे। धारा 377 को गैर अपराधी बनाये जाने से लेकर रिश्तों में निकटता, स्त्रियों के साथ खराब व्यवहार, वर्तमान शिक्षण व्यवस्था और न बदलने वाली मूल्यांकन प्रणाली तथा डिप्रेस्ड लोगों के लिये मनोविज्ञान एवं उचित चिकित्सा पद्दति के महत्व आदि प्रश्नों की झड़ी लगी रही।

क्या कुर्सियों पर गोंद लगा था?

कार्यक्रम पूर्ण हुआ तो भी लोगों का जैसे मन ही नहीं भरा था। छात्राएं और टीचर अपनी कुर्सियों से उठने का नाम ही नहीं ले रही थीं जैसे कि उन्हें लग रहा हो कि अभी सद्‌गुरु से कुछ और ज्ञान मिलेगा। जब सद्‌गुरु सभागृह से उठ कर बाहर आ रहे थे तब उनके चारों ओर भीड़ लग गयी और सुरक्षा दल को उनके चारों ओर मानव श्रृंखला बनानी पड़ी जिससे वे घेराव में न फंस जायें।

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जब सद्‌गुरु उठ ही रहे थे तो एक शिक्षिका ने, जो धन्यवाद प्रस्ताव देने जा रही थीं, उनसे नम्रता से लेकिन दृढ़तापूर्वक बैठ जाने का अनुरोध किया तो सद्‌गुरु ने मजाकिया लहजे में कहा, “जी हाँ, मैम, मैं जानता हूँ, मैं वापिस स्कूल में आ गया हूँ तो मुझे मानना ही पड़ेगा।”

सभी छात्राओं से मिले सद्‌गुरु

परिसर छोड़ने के पहले सद्‌गुरु ने थोड़ा समय उन छात्राओं के साथ बिताया जो सभागृह के अन्दर नहीं आ सकी थीं। वे उनसे विश्वविद्यालय के खुले थिएटर में मिले। सभी उनके आसपास जुट गयीं, उनकी एक झलक पाने को, आशीर्वाद लेने को, एक आखिरी फोटो के लिये या फिर बस उनकी शॉल के डिजाइन को ध्यान से देखने के लिए।

उम्मीदें उमंग में बदल गयीं

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कार्यक्रम के बाद छात्राओं की प्रतिक्रियाओं से पता चला कि युवा वर्ग कैसे सद्‌गुरु से जुड़ रहा है। मंच पर सद्‌गुरु के साथ रह कर संचालन की प्रक्रिया को संभाल रही छात्राएं, कार्यक्रम पूरा हो जाने के काफी देर बाद भी अपनी उत्तेजना और ख़ुशी को बड़ी मुश्किल से रोक पा रही यहीं। वे एक महीने से बड़ी उम्मीदों के साथ तैयारी कर रहीं थीं, और सभी से प्रश्न इकठ्ठा कर रहीं थीं, जो खुद भी परिसर में होने वाली सद्‌गुरु की मुलाकात को लेकर बहुत उत्साह में थीं। उन सभी को महसूस हुआ कि सद्‌गुरु एवं उनके विचार अत्यंत प्रेरणादायक हैं, जीवन को बदलने वाले हैं तथा वास्तविक हैं।

कार्यक्रम के बाद विद्यार्थी सूत्रधारों(मॉडरेटर्स) ने अपने अनुभव कुछ इस प्रकार व्यक्त किये, “वे कूलेस्ट डूड हैं”, “उन्होंने हमें एकदम आरामदायक परिस्थिति में ला दिया”, “उनके चुटकुले मजेदार थे”, “वे हमसे बराबरी के स्तर पर बात कर रहे थे”, “वे हमारे प्रश्नों और विचारों को कम महत्व नहीं रहे थे”।

युवाओं जुड़ो सत्य से!, माउंट कार्मल कॉलेज कार्यक्रम - मीडिया में

द न्यू इंडियन एक्सप्रेस, बेंगलुरू संस्करण, में एमसीसी कार्यक्रम से पहले और बाद में लेख छपे।

सद्‌गुरु जगगी वासुदेव माउंट कारमेल जाएँगे

'प्रतिक्रियात्मक नारीवाद मदद नहीं करेगा'

 

युवाओं जुड़ो सत्य से!--- माउंट कारमेल कॉलेज—देखिये सद्‌गुरु के कुछ जवाब।

 

 

 

 

 

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