ईशा योग केंद्र का जन्म

सद्गुरु: जब हमने ध्यानलिंग की स्थापना के लिए स्थान की खोज आरंभ की तो उन्होंने मुझे तमिलनाडू में बहुत जगहें दिखाईं। वे मुझे जो भी जगह दिखाते, मैं कहता, ”नहीं, यह नहीं,“ ”यह नहीं,“ ”यह भी नहीं है,“। लगभग सभी परेशान होने की सीमा तक आ गए थे - ”आखि़र आप क्या खोज रहे हैं?“

फिर एक दिन, हम अचानक उस जगह के पास से जा रहे थे, जहाँ आज वर्तमान आश्रम खड़ा है, शाम के पौने सात होने वाले थे। ज्यों ही हमारी कार एक मोड़ के पास से निकली, मेरी नज़र सातवीं पहाड़ी पर गई। मैं वहाँ कुछ पलों के लिए वहीँ खड़ा रहा और मैं जानता था कि अब मुझे कहाँ जाना था। उस समय, इस जगह तक आने के लिए कोई सड़क भी नहीं थी, जहाँ आज आश्रम बना हुआ है। यह पूरी तरह से बंद था। हमने जंगल के रास्ते से होते हुए, अपने लिए मार्ग बनाया और जब हम यहाँ आए तो मैंने कहा, "यही है, हमें यह जगह चाहिए।"

मेरे आसपास के लोगों ने कहा, ”हम तो यह भी नहीं जानते कि इसका मालिक कौन है, यह भी नहीं पता कि यह जगह बिकाऊ है भी या नहीं।“ मैंने उनसे कहा कि इस बात से कोई अंतर नहीं पड़ता था और फिर उनसे मालिक का पता लगाने को कहा।

वह ज़मीन कोयंबटूर के एक धनी परिवार की थी और उन्हें उसे बेचने की कोई आवश्यकता नहीं थी। मेरे आसपास के सभी लोगों को पूरा यकीन था कि वे अपनी ज़मीन बेचने के लिए हामी नहीं भरेंगे पर मैंने उनसे कहा कि वे पहले जा कर, पता तो करें। जब हमने इस जगह पर पहला क़दम रखा, उससे ठीक ग्यारहवें दिन, यह जगह ईशा फाउंडेशन के नाम रजिस्टर्ड हो गई थी।