कृष्ण के मार्ग पर चलना
सद्गुरु समझा रहे हैं कि कृष्ण के मार्ग पर चलने का मतलब धर्मग्रंथ पढ़ना या धर्म को समझना नहीं है – इसका अर्थ अपने भीतर खुद एक कृष्ण बन जाना है।
कैसे चलें कृष्ण के आध्यात्मिक मार्ग पर?
Sadhguru: आप जितने जीवित होते हैं, उतना ही जीवन को जानते हैं। अभी अगर आप सिर्फ शारीरिक रूप से जीवित हैं, तो आप सिर्फ भौतिक जीवन को ही जान सकते हैं। अगर आप दिमागी तौर पर जीवित हैं, तो आप थोड़ा-बहुत बौद्धिक जीवन को जान पाएंगे। अगर आप भावनात्मक तौर पर जीवित हैं, तो आप थोड़ा-बहुत भावनात्मक जीवन को जान पाएंगे। इसी तरह, अगर आप दूसरे आयामों में जीवंत हैं, तो आप उन आयामों में भी जीवंतता या जीवन को जान सकते हैं।
भगवद्गीता आपके लिए तब तक एक सच्चाई नहीं है, जब तक कि आप अपने भीतर खुद कृष्ण नहीं बन जाते। सिर्फ उस में विश्वास करना और उसकी सराहना करना उसे आपके लिए सच नहीं बना देता।
जब तक आप जीवंत नहीं होते, तब तक अगर आप कृष्ण या किसी और की कही बात पर विश्वास करते हैं, तो वह सिर्फ एक कहानी होती है। कृष्ण जानते थे कि वह क्या कह रहे हैं, मगर आप नहीं जानते क्योंकि जब तक आप जीवन का अनुभव उस तरह से नहीं करेंगे, जैसे उन्होंने किया था, तब तक आपको नहीं पता चलेगा कि वह किस चीज की बात कर रहे थे। आप सिर्फ उस रास्ते पर चलने के लिए उनके जीवन को एक प्रेरणास्रोत बना सकते हैं। आप सिर्फ उनकी किसी बात को लेकर उसे सच नहीं बता सकते, क्योंकि वह सच नहीं है। भगवद्गीता तब तक आपके लिए एक सच्चाई नहीं है, जब तक आप अपने भीतर खुद कृष्ण न बन जाएं। सिर्फ उस में विश्वास करना और उसकी सराहना करना उसे आपके लिए सच नहीं बना देता। जब आप कृष्ण बन जाते हैं, तभी वह आपके लिए सच होता है।
गीता, बाइबिल, कुरान, जो भी धर्मग्रंथ लिखे गए, वे इसी तरह हैं। एक दिन एक व्यक्ति समुद्र तट पर गया। समुद्र तट पर सुबह की ठंडी हवा इतनी शानदार थी, कि वह आनंदित हो गया। जब भी आप किसी खूबसूरत चीज का अनुभव करते हैं, तो आप उसे किसी के साथ साझा करना चाहते हैं, है न? चाहे आप एक अच्छा चुटकुला सुनें, आप रजाई में घुसकर खुद को ही वह चुटकुला नहीं सुनाते। आप उसे किसी को सुनाना चाहते हैं। इसलिए, यह व्यक्ति किसी ऐसे इंसान के साथ अपनी खुशी साझा करना चाहता था, जिसे वह पसंद करता था। वह इंसान बीमार था और अस्पताल में था। वह समुद्र तट पर नहीं जा सकता था। मगर यह व्यक्ति अपना अनुभव साझा करने के लिए इतना उत्सुक था कि वह एक बड़ा ताबूत के आकार का बक्सा लाया, इस ठंडी हवा को उसमें भरा और सीलबंद करके एक नोट के साथ उस बक्से को अस्पताल भेज दिया।
यदि आप कृष्ण के रास्ते पर चल सकें तो अहा, वह कितना अच्छा होगा। लेकिन अगर आप भगवद्गीता को अपने सिर पर ढोते हुए जीवन में आगे बढ़ेंगे, तो आपमें मूर्खता आ जाएगी।
वह बक्सा अस्पताल पहुंचा। मान लीजिए, अस्पताल में पड़े इंसान आप हैं। अब आप दो चीजें कर सकते हैं। आप बड़ी सावधानी से बक्सा खोलकर उसमें घुस सकते हैं और उसे सीलबंद करके उस शानदार ठंडी हवा का अनुभव कर सकते हैं। या आप संदेश को समझकर स्वस्थ होने के बाद उसके रास्ते पर चलकर उस जगह पर पहुंच सकते हैं और उस शानदार हवा का आनंद ले सकते हैं। आपके पास ये दोनों विकल्प हैं।
सभी धर्मग्रंथ इस बक्से की तरह है। किसी को बहुत जबर्दस्त अनुभव हुआ और उसने उस अनुभव को साझा करना चाहा। साझा करने की उत्सुकता में, उन्होंने कुछ बोला, लिखा या किया। मगर अब आप उस किताब को ‘पवित्र’ मानकर अपने सिर पर ढो रहे हैं और किताब के नाम पर और भी मूर्ख बनते जा रहे हैं। यदि आप कृष्ण के रास्ते पर चल सकें तो अहा, वह कितना अच्छा होगा। लेकिन अगर आप भगवद्गीता को अपने सिर पर ढोते हुए चलेंगे, तो आपमें मूर्खता आ जाएगी। बहुत से लोग भगवद्गीता को तकिये के नीचे रखकर सोते हैं, ताकि उनका सीधा संपर्क हो जाए। अगर आप भगवद्गीता को तकिये के नीचे रखकर सोएंगे तो आपकी गर्दन में दर्द हो जाएगा। आप कृष्ण नहीं बन जाएंगे।
इसका मतलब यह नहीं है कि ‘कृष्ण बकवास है’। आप उन चीजों को नहीं जानते। वह जिन चीजों की बात कर रहे हैं, वे अभी तक आपके लिए सच नहीं हैं। यदि आपने इतनी गुंजाइश रखी है कि ‘यह व्यक्ति बहुत सारी चीजें कह रहा है, मैं देखता हूं,’ तो संभावनाएं बनती हैं।
अगर आप उनके रास्ते पर चलते हैं, अगर आप उस संभावना को उत्पन्न करते हैं, जो उन्होंने अपने भीतर पैदा की थी, तब गीता एक वास्तविकता है। जब तक किसी की बात पर विश्वास मत कीजिए। इसका मतलब यह नहीं है कि आपको अविश्वास करना चाहिए। इसका मतलब यह नहीं है कि ‘कृष्ण बकवास है’। आप उन चीजों को नहीं जानते। वह जिन चीजों की बात कर रहे हैं, वे अभी तक आपके लिए सच नहीं हैं। यदि आपने इतनी गुंजाइश रखी है कि ‘यह व्यक्ति बहुत सारी चीजें कह रहा है, मैं देखता हूं,’ तो संभावनाएं बनती हैं।
कृष्ण होने का क्या अर्थ है? ‘मुझे रोमांस करना चाहिए या युद्ध छेड़ देना चाहिए?’ बात यह नहीं है। उन्होंने अपने जीवन में जो कुछ किया, वह अपने जीवन में आने वाली परिस्थितियों के अनुसार किया। पूरा महाभारत एक गहन नाटक है, जिसमें लोगों के सामने हर तरह की चरम स्थितियां आईं। इसमें अच्छे और बुरे, दोनों तरह के लोग हैं, बहुत बुरे लोग भी और असाधारण इंसान भी। इसमें हर तरह के लोग हैं। यह मानव चेतनता के सबसे निचले से लेकर उच्चतम स्तर तक की एक अभिव्यक्ति है। इसमें सभी तरह के इंसान हैं। मगर जब भी हालात तीव्रता के एक निश्चित स्तर से परे चले जाते हैं, तो सभी लोगों को कष्ट भुगतना पड़ता है। अच्छे और बुरे दोनों लोग कष्ट उठाते हैं। यही महाभारत है। अच्छे-बुरे सभी तरह के लोगों को हालातों के कारण कष्ट सहना पड़ता है। मगर कृष्ण एकमात्र ऐसे इंसान हैं, जो बिना किसी पीड़ा के सभी स्थितियों से गुजरते हैं।
अपने पड़ोसी से रोमांस करना कृष्ण का मार्ग नहीं है, किसी के साथ युद्ध करना कृष्ण का मार्ग नहीं है। कृष्ण का मार्ग है, किसी भी तरह के नाटक से प्रभावित हुए बिना उससे गुजरना।
कृष्ण के मार्ग पर चलने का मतलब यही है। अगर आप बिना किसी पीड़ा का अनुभव किए अपने नाटक से गुजर सकते हैं, तो आप कृष्ण की राह पर हैं। अपने पड़ोसी से रोमांस करना कृष्ण का मार्ग नहीं है, किसी के साथ युद्ध करना कृष्ण का मार्ग नहीं है। कृष्ण का मार्ग है, किसी भी तरह के नाटक से प्रभावित हुए बिना उससे गुजरना।