निरख: सद्‌गुरु, एक वीडियो में आपने कहा था - ‘एक पल के लिए आप खुद को मुझ पर छोड़ दें, बाकी मैं संभाल लूंगा।’ इस कथन में ‘एक पल’ से आपका क्या मतलब है? क्या यह एक मिनट, एक घंटा या फिर पूरे एक जीवनकाल के बराबर है?

सद्‌गुरु: एक पल बस एक पल है। यह न तो एक सेकेंड है, न एक मिनट, न ही एक घंटा, न ही कुछ और। यह बस एक पल है। पल समय का सबसे छोटा अंश है। इसे नापा नहीं जा सकता, क्योंकि पल समय की कोई इकाई नहीं है। यह अपने आप में बहुत ही छोटा है। पल से मतलब है ‘अभी’, तुरंत अभी। तो ‘एक पल’ ऐसी चीज है, जिसकी आप गणना नहीं कर सकते, समझ नहीं सकते। इसलिए बेहतर होगा कि इसको एक जीवनकाल के तौर पर देखा जाए। इसका अगर एक फायदा है तो एक बड़ा नुकसान भी हो सकता है। पूरे जीवनकाल में अपने आप को पूरी तरह से सजग रख पाना बहुत मुश्किल है। तो ‘एक पल’ बस एक पल ही है।

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कोई व्यक्ति अगर अपने लिए उपयोगी नहीं है तो वह किसी के लिए भी उपयोगी नहीं है, बल्कि वह किसी भी काम का नहीं है।

अगर मेरा मकसद आपका इस्तेमाल करना या आप से गुलामी कराना होता तो मैं कहता कि पल का मतलब सौ जीवनकाल के बराबर है। हो सकता है कि इस तरह से आप मेरे लिए उपयोगी होते, लेकिन फिर आप अपने लिए उपयोगी नहीं हो सकते। कोई व्यक्ति अगर अपने लिए उपयोगी नहीं है तो वह किसी के लिए भी उपयोगी नहीं है, बल्कि वह किसी भी काम का नहीं है। अगर आपको यह नहीं पता कि अपने साथ अच्छे से कैसे रहा जाए तो क्या आप मेरे साथ अच्छे से रहना जान पाएंगे?

दो तरीके जो एक दूसरे से जुड़े हुए हैं

पूर्व में इस बारे में बहुत कुछ कहा और सिखाया गया है, जैसे ‘खुद की चिंता मत करो, अपनी अनदेखी करो, किसी और के लिए कुछ करो’। उधर पश्चिम में कहा जाता है - ‘किसी और की परवाह मत करो, सिर्फ अपनी परवाह करो और अपने बारे में सोचो’। ये दोनों ही विचार गलत हैं। दोनों ही विचार जीवन को घुमाते हैं। खुद के लिए अच्छा कैसे बना जाए - यह जाने बिना आप किसी और के साथ अच्छे नहीं बन सकते हैं। लेकिन यह भी एक हकीकत है कि दूसरों के प्रति अच्छा होना, एक साधन है, जिसके जरिए आप खुद के लिए अच्छे हो सकते हैं। यह दोनों ही चीजें एक दूसरे से जबरदस्त तरीके से जुड़ी हुई हैं। अगर आप इसमें से सिर्फ किसी एक को करने की कोशिश करेंगे, तो आपका जीवन गलत दिशा में जा सकता है। अगर आप इसलिए सेवा करते हैं कि खुद को खुशी मिले, तो यह काम करेगा। या फिर अगर आप बहुत खुशमिजाज हैं, और आप अपनी इस खुशी को अपने कामों के जरिए या किसी भी रूप में हरेक के साथ बांटना चाहते हैं तो यह भी काम करेगा। लेकिन अगर आप इनमें से कोई एक चीज करेंगे तो यह काम नहीं करेगा। इस धरती की सभ्यताओं ने यह एक बहुत बड़ी गलती की है - उन लोगों ने या तो एक तरीके से चलने की कोशिश की या फिर दूसरे तरीके से, लेकिन वे समझ नहीं पाए कि ये दोनों चीजें एक दूसरे से इस कदर जुड़ी हुई हैं, कि इन्हें किसी भी तरह से अलग नहीं किया जा सकता। दरअसल, ‘मैं’ और ‘तुम’ एक विचार हैं, यह कोई वास्तविकता नहीं है।

उस एक पल को साकार करने का तरीका

यह अफसोस की बात है कि उस ‘एक पल’ को साकार करने में ज्यादातर लोगों को पूरी उम्र लग जाती है। हालांकि यह जरूरी नहीं कि इसमें पूरा जीवन लगाया जाए। यह बस ऐसे ही हो सकता है। अगर आप यह जानते हैं कि खुद को दृश्य से पूरी तरह से कैसे हटाया जाए तो ऐसा हो सकता है। अगर आप सो गए तो आप उस दृश्य से हट जाते हैं। लेकिन अगर आप यही काम सोकर नहीं, बल्कि सजगता और जागरूकता से करें, अगर आप यह जानते हैं कि खुद को कैसे अलग किया जाए, तो फिर इस एक पल को साकार करने में पूरी उम्र नहीं लगती। न ही इसमें एक दिन लगता है, न ही एक घंटा और न ही एक मिनट, बस इसके लिए एक पल चाहिए होता है।

लेकिन फिलहाल हमारा मन इतना भ्रष्ट हो चुका है कि वह पूछेगा, ‘अगर मैं एक पल के लिए खुद को समर्पित कर दूं तो मुझे क्या मिलेगा?’ ओह!

तो यह ‘एक पल’ कितना होगा, यह उस पल की क्वालिटी पर निर्भर करता है। लेकिन फिलहाल हमारा मन इतना भ्रष्ट हो चुका है कि वह पूछेगा, ‘अगर मैं एक पल के लिए खुद को समर्पित कर दूं तो मुझे क्या मिलेगा?’ ओह! तब तो आपको दस जीवनकाल लगेंगे। आप बस इस पल में पूरे खुले मन से यहां रहने की कोशिश कीजिए। आप अपने मन से यह हटा दीजिए कि ‘मुझे क्या मिलेगा?’ इस तरह के विचारों, जैसे ‘मुझे क्या मिलेगा, क्या मुझे आत्म-ज्ञान प्राप्त होगा, क्या मेरा जीवन सुधर जाएगा, क्या मेरे जीवन का मुश्किल दौर खत्म हो जाएगा’ को हटाने में आपको कितना समय लगेगा, यह आप पर निर्भर करता है।

काम एक साधना कैसे बन सकता है?

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मैं हर तरह के काम से नफरत करता हूं। मुझे लगता है कि हर तरह का काम अपने आप में एक अत्याचार है। लेकिन हम लोग हमेशा काम को साधन के तौर पर इस्तेमाल करते हैं। काम, ज्यादा काम, और ज्यादा काम, क्योंकि काम एक गतिविधि है, जहां आप सजग भी रह सकते हैं और अनुपस्थित भी। अगर आप जागरूकता खो देते हैं और दृश्य से हट जाते हैं – तो इसका कोई मतलब नहीं है। अगर आप सजग तो होते हैं, पर पूरी तरह खुद से भरे जाते हैं तो उसका भी कोई मतलब नहीं है। तो उस पल को साकार करने के लिए, उस एक पल में जहां आप वास्तव में सजग भी हों और गैरमौजूद भी हों, उस स्थिति तक पहुंचने में आपको कितना समय लगेगा, यह पूरी तरह आप पर निर्भर करता है। अगर आप चाहें तो यह बिलकुल अभी हो सकता है।