दुनिया को सुन्दर बनाने के लिए आइए कुछ कर दिखाएँ
एक साल से लगभग बिना रुके यात्रा करने के बाद, सद्गुरु आखिरकार ईशा योग सेन्टर में वापस आए और आते ही उन्होंने आने वाले समय के लिए अपनी योजना बनाई जिसे आज के स्पॉट के ज़रिए हमसे साझा कर रहे हैं।
पिछले कुछ महीनों में मेरी यात्रायें इतनी ज़्यादा हो रहीं थीं कि लगभग डेढ़ सप्ताह पहले ईशा योग सेंटर में वापस आने तक मैं पिछले एक साल में सिर्फ 32 दिन ही अपने बिस्तर पर सोया हूँ। बाकी लगभग हर दिन मैं एक अलग शहर में रहा और कई बार तो एक अलग देश में होता था।
आज 12-15 साल के बच्चे अध्यात्म में रूचि रखने लगे
पूरी दुनिया अभी जिस तरह से - न सिर्फ हमारे या ईशा के, बल्कि आध्यात्मिकता के करीब आई है, ऐसा इससे पहले कभी नहीं हुआ। ‘युवा और सत्य’ अभियान के साथ हमारी पहुंच कम से कम 25 गुना बढ़ गयी है। भारत में अंग्रेज़ी जानने, पढ़ने, समझने, बोलने वाले लगभग हर किसी ने ‘यूथ & ट्रुथ’ के बारे में कुछ न कुछ सुना है। अज़रबैजान जैसे देश में भी रास्ते चलने वाला लगभग हर दूसरा इंसान ऐसा निकलता था जिसने हमारा कोई वीडियो देखा हुआ होता था। सबसे अच्छी बात यह हुई है कि युवा, और 12-15 साल की उम्र तक के बच्चे भी, अब आध्यात्मिक बातें सुनने लगे हैं।
अभी हाल ही में भारतीय सेना का एक दल हमारे साथ यहां एक ट्रेनिंग प्रोग्राम के लिये आया था। उन्होंने अंगमर्दन और कुछ दूसरे अभ्यासों में खास रुचि दिखाई जो वे अपने अधिकारियों एवं जवानों को सिखाना चाहते हैं। जब मैं सियाचिन और कुछ दूसरे स्थानों पर कुछ समय पहले, सैनिकों से मिला था तो उन दुर्गम स्थानों, कठिन मौसम एवं खराब हालात को देखते हुए मुझे लगा कि उन्हें इन अभ्यासों की ज़रूरत है। ये अभ्यास उनके लिये फ़ायदेमंद साबित हो सकेंगे। इसलिए हमने सेना प्रमुख एवं दूसरे अधिकारियों से बातचीत की और उन्होंने ट्रेनिंग लेने के लिये एक दल यहाँ भेजा।



कुछ दिन पहले मैंने भारत के हड्डी के डॉक्टरों के संगठन (ऑर्थोपेडिक एसोसिएशन) के वार्षिक सम्मेलन IOACON को संबोधित किया था। कुछ माह पहले मैंने हार्वर्ड मेडिकल स्कूल में एक न्यूरो वैज्ञानिक तथा एक एनेस्थेशिया प्रोफेसर के साथ याद्दाश्त और चेतना के बारे में चर्चा की थी। ये बस कुछ उदाहरण हैं यह बताने के लिये कि मेडिकल प्रोफ़ेशन के लीडर भी अब इन बातों में रुचि लेने लगे हैं। ऐसा पहले नहीं था।

अब पहुंच जब ऐसी हो गई है तो यह समय रफ़्तार कम करने का नहीं है। पिछले कुछ महीनों में हमने भारतीय और अंतरराष्ट्रीय, दोनों तरह की भाषाओं में अपनी अनुवाद की गतिविधि काफी बढ़ाई है, जिससे अंग्रेज़ी नहीं जानने वालों को भी ये हासिल हों। अब ज़रूरी है कि हम ऑन लाइन इनर इंजीनियरिंग सब के पास पहुचाएं। हम ‘सदगुरु एप्प’ को भी अपग्रेड कर रहे हैं और ऐसी चीजें देने की कोशिश कर रहे हैं कि लोग ज्यादा देखना चाहें।
जब से मैं आश्रम में वापस आया हूँ, बैठकों, मुलाकातों का दौर एक के बाद एक, बिना रुके, लगातार चल रहा है। हम रीजनल कोऑर्डिनेटर, पैनल और इनर इंजीनिरिंग इशांगों से मिल चुके हैं। मैने उन्हें बताया कि दुनिया इतनी तैयार है जितनी पहले कभी नहीं थी। यह समय सभी लोगों तक पहुंचने का है। अगर हम ज़्यादा इंतज़ार करते रहेंगे तो ऐसा अवसर हमें फिर नहीं मिलेगा। आज की परिस्थिति में मैं तो आगे बढ़ रहा हूँ लेकिन एक संगठन के रूप में ईशा को अभी बहुत कुछ करना है। हम आश्रम में एक-एक सप्ताह की ट्रेनिंग कराने जा रहे हैं जिससे स्वयंसेवक अलग-अलग गतिविधियां कराने में सक्षम हो सकें और आश्रम के जोश को अपने भीतर उतार सकें।
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अभी हाल ही में भारतीय सेना का एक दल हमारे साथ यहां एक ट्रेनिंग प्रोग्राम के लिये आया था। उन्होंने अंगमर्दन और कुछ दूसरे अभ्यासों में खास रुचि दिखाई जो वे अपने अधिकारियों एवं जवानों को सिखाना चाहते हैं। जब मैं सियाचिन और कुछ दूसरे स्थानों पर कुछ समय पहले, सैनिकों से मिला था तो उन दुर्गम स्थानों, कठिन मौसम एवं खराब हालात को देखते हुए मुझे लगा कि उन्हें इन अभ्यासों की ज़रूरत है। ये अभ्यास उनके लिये फ़ायदेमंद साबित हो सकेंगे। इसलिए हमने सेना प्रमुख एवं दूसरे अधिकारियों से बातचीत की और उन्होंने ट्रेनिंग लेने के लिये एक दल यहाँ भेजा।

निष्ठा के ऊंचे पैमानों बहुत जरुरी हैं
एक और खास बात जिसके बारे में मैं बहुत ज़ोर देता रहा हूँ वह है निष्ठा। ईशा में किसी से भी, किसी भी तरह की, कोई छोटी सी भी चूक या कहें पथभ्रष्ट नहीं होना चाहिए। यह ऐसा है कि अगर आप कैलाश से एक छोटा सा कंकर भी उठा कर ले आयें तो कल को पूरा हिमालय ही चेन्नई में नज़र आएगा। अगर हम चाहते हैं कि यह आध्यात्मिक अभियान हमेशा जीवंत, जोशपूर्ण, ऊर्जावान रहे और आने वाली पीढ़ियों के लिये भी अपनी पूर्ण पवित्रता के साथ मौजूद रहे तो हमें निष्ठा के ऊँचे पैमाने हमेशा बनाए रखने होंगे।
मैं चाहता हूँ कि ईशा में हम सब आज से सौ साल आगे देखें कि हम क्या हासिल करना चाहते हैं? हम दुनिया में किस तरह से अपना योगदान देना चाहते हैं? हम कैसे सुनिश्चित करेंगे कि ईशा की परंपराएं, संस्कृति हमेशा एकदम शुद्ध और पवित्र रहे? अब वह समय है जब हम सब अपने आप को अपग्रेड करें, अपनी क़ाबिलियत बढ़ाएं जिससे यह आध्यात्मिक संभावना सभी तक पहुंच सके।
आज दुनिया अध्यात्म के लिए प्यासी है
जैसा मैनें कहा दुनिया आध्यात्मिक प्रक्रिया के लिए इतनी प्यासी है जितनी पहले कभी नहीं थी, इसलिए मैं चाहता हूँ कि आप में से हर कोई इस संभावना को इस धरती के हर इंसान तक पहुंचाने के लिये तैयार हो जाए। आप में से हरेक के पास यह अवसर है कि अपनी क्षमता के अनुसार आप इस प्रक्रिया में भाग ले सकें, दुनिया को छूने और बदलने के लिये हमारे संपर्क में आएं। इस जबरदस्त रूप से सक्षम पीढ़ी को विश्व की अब तक की सबसे शानदार पीढ़ी बनायें। आईये, हम सब यह कर दिखाएँ।
प्यार और आशीर्वाद!