सुखदा: सद्‌गुरु, आप दुनिया के उन इलाकों में योग क्यों नहीं सिखाते, जहां युद्ध चलता रहता है, जो ‘वार जोन’ बने हुए हैं?

अगर वहाँ जाना ही है, तो सेना के रूप में जाना चाहिए

सद्‌गुरु: देखिए, यह हमेशा से दुनिया में औसत दर्जे के दिमाग वाले लोगों की मूर्खता रही है। वे दुनिया में कैंसर पर ध्यान दे रहे हैं, सेहत पर नहीं। लोगों की यह सोच बन गई है कि जहां भी कोई समस्या है, तुरंत वहां भागो। लेकिन इसका कोई मतलब नहीं है। हालात को इस तरह से स्थिर बनाए रखना कि भविष्य में कोई परेशानी न हो ज्यादा महत्वपूर्ण है, बजाए इसके कि किसी घायल और लड़ाई वाली जगह पर जाकर मरहम पट्टी की जाए। हमें दुनिया में ऐसी स्थितियां बनाने की कोशिश करनी चाहिए, जहां लड़ाई की नौबत ही न आए।

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अगर आप ‘वार जोन’ में जाना चाहते हैं, तो इसका मतलब सिर्फ यह होना चाहिए कि आप भी सेना में शामिल होना चाहते हैं।

जब हालात पूरी तरह काबू से बाहर हो जाए, जब स्थितियां एक हद तक काफी तनावपूर्ण या उग्र हो जाएं, फिर वहां आपके कुछ करने की गुंजाइश बहुत ही कम रह जाती है। अगर आप ‘वार जोन’ में जाना चाहते हैं, तो इसका मतलब सिर्फ यह होना चाहिए कि आप भी सेना में शामिल होना चाहते हैं। अगर आप युद्ध कर रहे दोनों पक्षों में से किसी एक को सही मानते हैं, तो फिर आपको इस पक्ष या उस पक्ष के साथ खड़े होना चाहिए। इसके अलावा, इस स्थिति में आप ज्यादा कुछ नहीं कर सकते।

हर इंसान के अन्दर युद्ध की संभावना हमेशा बनी रहती है

हमें अपने भीतर ऐसी स्थिति बनाने की कोशिश करनी चाहिए, जहां हमारे भीतर संघर्ष न हो। इसी तरह से हमें अपने आसपास ऐसी स्थितियां बनाने की कोशिशें करनी चाहिए, जिससे हमारे आस-पास छोटी-छोटी लड़ाइयों की नौबत न आने पाए। आपके अपने घर और ऑफिस में बहुत सी लड़ाइयां हो सकती हैं। लोग कहीं भी युद्ध शुरू कर देने की क्षमता रखते हैं। मैं ऐसा इंसान नहीं हूं, जो इंसान की क्षमता की व्यावहारिक सच्चाई के बारे में बेखबर हो। युद्ध सिर्फ पैसे या तेल या सत्ता या दूसरी चीजों के लिए ही नहीं होते, लोग छोटी-छोटी चीजों के लिए भी लड़ाई की शुरुआत कर सकते हैं। कोई चाहे तो आज भी ऐसा कर सकता है। मैं इस हकीकत से अनजान नहीं हूं। मैं जानता हूं कि कोई इंसान बड़ी आसानी से समझदारी छोडक़र बेवकूफी भरी चीजें कर सकता है। यह मूर्खतापूर्ण चीज वह सिर्फ अपने साथ ही नहीं, बल्कि जिस हालात में वह रहता है, उसके साथ भी करता है। इसकी गुंजाइश हमेशा रहती है। यह संभावना हमेशा बस एक कदम दूर होती है।

मैं इस हकीकत से अनजान नहीं हूं। मैं जानता हूं कि कोई इंसान बड़ी आसानी से समझदारी छोडक़र बेवकूफी भरी चीजें कर सकता है।

हम जहां रहते हैं वहां स्थिर हालात बनाना बहुत महत्वपूर्ण है, फिर चाहे वह हमारे आसपास के हालात हों या हमारे इलाके, समाज, देश, जिसमें हम रहते हैं, वहां के हालात हों। और यही काम हम कर रहे हैं। हम लोग युद्ध वाली जगहों की ओर नहीं जा रहे हैं। एक बात आपको समझनी होगी कि आपका हर पड़ोस एक संभावित वार जोन है। अगर आप लगातार और हमेशा एक शांतिपूर्ण और खुशनुमा माहौल बनाने की कोशिश नहीं करेंगे, तो हर घर, हर रिश्ता, हर पड़ोस, हर शहर, हर कस्बा एक संभावित युद्ध-क्षेत्र है।

युद्ध फैलाने वाले लोग भी हमारी तरह ही इन्सान हैं

यह मत सोचिए कि युद्ध में लगे हुए लोग आपसे कुछ अलग हैं। वह भी आप जैसे ही इंसान हैं। बात सिर्फ इतनी है कि अचानक कोई एक चीज होगी और वे अपनी सारी समझदारी और सारी मानवता को छोडक़र मूर्खतापूर्ण चीजों को करने में लग जाएंगे। इसे वे हल्के तौर पर नहीं करेंगे, बल्कि एक बड़े मकसद के तौर पर करेंगे। जैसे कि जब आप किसी के साथ लड़ाई करते हैं तो आपको वाकई लगता है कि लड़ाई जरूरी है। यह सब इस पर निर्भर करता है कि अभी आपके पास किस तरह की ताकतें हैं। आपके पास सिर्फ दो हाथों की ताकत है या फिर बीस लाख लोगों की? बड़ा सवाल तो यही है। जब आप अपने दो हाथों के दम पर किसी से लड़ने का फैसला करते हैं, तो उस समय अगर आपके पास बीस लाख लोग होते तो क्या आप उनका इस्तेमाल नहीं करते? इसलिए हर इंसान अपने आप में एक युद्ध की संभावना है। और हम लोग इसी संभावना को खत्म करने की कोशिश में लगे हैं।

युद्ध आने की नौबत को रोकना ज्यादा जरुरी है

इसलिए आप दुनिया के वार जोन्स की चिंता मत कीजिए। वहां भागकर जाने के बजाय यह कोशिश कीजिए कि दुनिया में और कहीं युद्ध-क्षेत्र बनने की नौबत ही न आए। यह काम युद्ध-क्षेत्र में जाकर काम करने से ज्यादा महत्वपूर्ण है। अगर आप पूछना चाह रहे हैं कि अभी तत्काल क्या किया जा सकता है, तो मेरा जवाब होगा, ‘कुछ खास नहीं।’ ज्यादा से ज्यादा आप अपना विरोध दर्ज करा सकते हैं, आप एक ‘पीस-रैली’ निकाल सकते हैं। लेकिन दरअसल इससे भी कुछ खास होने वाला नहीं है। हां, अगर इसे कुछ खास जगहों पर किया जाए तो कुछ हद तक असरदार हो सकता है। अगर आप अपनी गली में ‘पीस-रैली’ निकालते हैं, तो इसका कोई मतलब नहीं है। इसका सिर्फ यही मतलब होगा कि आपकी एक दिन की मेहनत बेकार जाएगी और सडक़ों पर ट्रैफिक जाम होगा। इसके अलावा, और कोई फायदा नहीं होने वाला। इसके बजाय हमें यह कोशिश करनी चाहिए कि हर इंसान के भीतर के एक संभावित युद्ध को कैसे रोका जाए। यह काम ज्यादा महत्वपूर्ण है।