सद्गुरु बताते हैं कि ‘योग’ शब्द का अर्थ क्या है और क्या नहीं है।

सद्गुरुः दरअसल इस परंपरा में, जब हम किसी भी चीज के साथ ‘योग’ शब्द को जोड़ते हैं, तो यह संकेत करता है कि यह अपने आप में एक मार्ग है। हम ‘हठ योग’ कहते हैं, लेकिन हम ‘आसन योग’ नहीं कहेंगे। बेशक, अगर आप अमेरिका से आए हैं, तो वे कुछ भी कहते हैं!

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जिस पल आप ‘योग’ शब्द को जोड़ते हैं, तो यह संकेत करता है कि यह अपने आप में एक मार्ग है।

अगर यह अपने आप में एक मार्ग है, तो इसकी ओर कैसे बढ़ना चाहिए? अगर यह बस एक सरल अभ्यास या कसरत होती तो आप इसके प्रति एक तरह का रुख अपना सकते थे। अगर यह कला का एक रूप होता या बस मनोरंजन होता तो आप इसके प्रति दूसरे तरह का रुख अपनाते। मैं इन सब शब्दों को इसलिए इस्तेमाल कर रहा हूं क्योंकि इनका आज की दुनिया में उपयोग होता है। लोग ‘मनोरंजन योग,’ ‘हेल्थ योग’ कर बात करते हैं, लोग इसे एक कला के रूप में ले रहे हैं - वे सोचते हैं कि इसे एक कला का रूप कहकर वे योग की सेवा कर रहे हैं। जिस पल आप ‘योग’ शब्द को जोड़ते हैं, तो यह संकेत करता है कि यह अपने आप में एक मार्ग है।

योग शब्द का वस्तुतः अर्थ है कि ‘वह चीज जो आपको हकीकत पर ले आती है।’ इसका शाब्दिक अर्थ है ‘एकत्व’ या एक हो जाना। एकत्व का अर्थ है कि यह आपको परम वास्तविकता में ले आता है, जहां जीवन की अलग-अलग अभिव्यक्तियां सृजन की प्रक्रिया में सतह के बुलबुले की तरह हैं। अभी, एक नारियल का पेड़ और एक आम का पेड़ उसी धरती से निकले हैं। उसी धरती से, मानव शरीर और अनेकों जीव निकले हैं। ये सभी वही धरती हैं।

योग का अर्थ है - एक ऐसी अनुभवजन्य हकीकत की ओर बढ़ना जहां व्यक्ति अस्तित्व की परम प्रकृति को जाना जाता है, जिस तरह से यह बना है।

योग शब्द का वस्तुतः अर्थ है कि ‘वह चीज जो आपको हकीकत पर ले आती है।’

योग, आपके द्वारा ‘एकत्व’ को एक सोच, एक फिलॉसफी या एक अवधारणा के रूप में आत्मसात करना नहीं है। अगर आप एक बौद्धिक विचारधारा के रूप में ब्रह्माण्ड के एकत्व की वकालत करते हैं, तो यह आपको किसी पार्टी में लोकप्रिय बना सकता है, यह आपको समाज में प्रतिष्ठा दिला सकता है, लेकिन इसका कोई दूसरा मकसद नहीं निकलता। आप देखेंगे, जब बात पैसों पर भी आती है - इसे जीवन और मृत्यु तक आने की जरूरत नहीं है - पैसे के लिए भी, ‘यह मेरा है, वह तुम्हारा है।’ सीमारेखा बिलकुल स्पष्ट होती है। तब तुम और मैं एक होने का सवाल ही नहीं होता।

असल में यह व्यक्ति को हानि पहुंचाता है अगर आप बौद्धिक रूप से हर चीज को एक देखते हैं। लोग हर तरह की मूर्खता की चीजें करते हैं क्योंकि उन्होंने यह सोच बना ली है कि हर कोई एक है। जब कोई उन्हें एक अच्छा सबक सिखाता है, तब वे समझते हैं, ‘यह मैं हूं, वह तुम हो। होने का कोई दूसरा तरीका नहीं है।’

अगर यह एक अनुभवजन्य हकीकत बन जाता है, तो इससे कोई अपरिपक्व हरकत नहीं होगी। यह जीवन का एक जबरदस्त अनुभव ले आएगा। अलग-अलग व्यक्ति होना एक सोच है। सार्वभौमिकता एक सोच नहीं है, यह एक वास्तविकता है। दूसरे शब्दों में, योग का मतलब है कि आप अपनी सारी सोच को दफना देते हैं।