प्रश्न : सद्‌गुरु, आपने कहा कि अगर हम एक पर्यटक के रूप में कैलाश जाते हैं, तो हम सिर्फ पहाड़ के रास्ते को थोड़ा और घिसते हैं, लेकिन जब हम एक तीर्थयात्री के रूप में जाते हैं तो हम अपने भीतर किसी चीज को थोड़ा घिसते हैं। हम कैसे अपने भीतर ख़ुद को थोड़ा और घिसें ताकि हम कैलाश के लिए तैयार हो सकें?

सद्‌गुरु : वह क्या है, जिसे आप ‘मैं’ कहते हैं? आप एक असलियत नहीं हैं। आप तो एक कोलाज हैं, जो बना है आपके अनुभवों, यादों, रिश्तों, योग्यताओं और निश्चित रूप से आपके फेसबुक एकाउंट से। दरअसल आप टुकड़ों में बंटे हैं। अगर आप सब कुछ एक तरफ रख कर जीवन के एक अंश की तरह चलना सीख लें, तो आपके अंदर कुछ ऐसा है, जो आपको अपने माता-पिता, अपने दोस्तों, परिवार, कॉलेज या अपनी योग्यता से नहीं मिला है। सिर्फ उस एक चीज को सजाने के लिए हमने अपने जीवन में एक शरीर और बाकी सब कुछ इकट्ठा किया है। मगर अब ये सजावटें इतनी बड़ी हो गई हैं कि हम भूल गए हैं कि हम सजा किसे रहे हैं।

जीवन को सजाकर इसे बेहतर नहीं बना सकते

इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कोई इंसान अपने जीवन में क्या कर रहा है – कोई शाम को शराब पी रहा है, कोई ड्रग ले रहा है, कोई मंदिर में बैठकर भजन गा रहा है, कोई ध्यान कर रहा है, कोई कैलाश जाना चाहता है, कोई पैसे कमाने में व्यस्त है – हर इंसान अपना जीवन बेहतर करने की कोशिश कर रहा है और उन्हें लगता है कि इसी से यह हो सकता है।

चीजें जोड़ते हुए आप सहूलियत ला सकते हैं, मगर जीवन को बेहतर नहीं बना सकते।
हमने जीवन को बेहतर करने का तरीका यह ढूंढा है कि उसे सजाएं। अगर आप एक जोड़ी कपड़े पहनते हैं, तो यह बहुत बढ़िया है। हो सकता है कि आप जब पहाड़ों परजाएँ तो वहां के मौसम के कारण आप एक के ऊपर एक चार कपड़े पहन लें। मगर क्या आप पच्चीस परत कपड़े पहन सकते हैं, सिर्फ इसलिए कि आपके पास इतने हैं? और आप बारह जोड़ी जूते कैसे पहन सकते हैं?

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यह सजावट उस चीज से बड़ी हो जाती है, जिसे हम सजा रहे हैं क्योंकि कहीं न कहीं हमें लगता है कि चीजें जोड़ते हुए हम अधिक हो जाएंगे। चीजें जोड़ते हुए आप सहूलियत ला सकते हैं, मगर जीवन को बेहतर नहीं बना सकते। जब मैं ‘चीजें’ कहता हूं तो मेरा मतलब लोग, रिश्ते और हर उस चीज़ से होता है जिसे आप अपना समझते हैं। आपने अपने जीवन में ये सभी चीजें इसलिए जोड़ीं क्योंकि आपको लगा कि वे आपका विस्तार करेंगी। यह आपके मन में एक भ्रम पैदा करता है कि सब कुछ परफेक्ट है, लेकिन अगर उसका एक हिस्सा नष्ट हो जाता है, तो अचानक आपको लगने लगता है कि अब कुछ भी नहीं रहा।

अगर दुनिया में एक इंसान मर जाता है, जो आपका काफी करीबी था, तो अचानक सब कुछ टूटसा जाता है। हालाँकि दुनिया में बस इतना हुआ कि सवा सात अरब लोगों में एक कम हो गया। यह सुनने में बहुत निर्मम और भावनाशून्य लग सकता है मगर मुद्दा यह नहीं है। मैं भावनाओं से ख़ाली नहीं हूं। लोगों के साथ मेरे बहुत बढ़िया रिश्ते हैं, मगर ऐसा क्यों होता है कि सिर्फ इस एक व्यक्ति के मरने पर सब कुछ बिखर जाता है और दूसरे व्यक्ति के मरने पर कोई फर्क नहीं पड़ता?

बचपन से ही पूर्वाग्रह का यह जहर अलग-अलग तरीकों से हमारे अंदर भरा जाता है। आपसे कहा जाता है, ‘हम तीन लोग एक हैं। दूसरे लोग हमसे अलग हैं।’ इसे परिवार कहा जाता है, जो पहला अपराध है। फिर उसकी कई परतें बनती हैं – समाज, धर्म, नस्ल, राष्ट्रीयता। अब हम हैरान होते हैं कि लोग लड़ते क्यों हैं और दुनिया में इतनी हिंसा क्यों है। यह हमने ही बनाया है।

ईंट हो या सोना, कोई फर्क नहीं पड़ता

हवेली सुंदर हो या बदसूरत, वह कोई मायने नहीं रखता। समस्या यह है कि आप एक टन ईंट ढो रहे हैं। जब वह आपके सिर पर होता है, तो बोझ तो बोझ ही है। मान लीजिए, मैं आपको एक टन सोना दे दूं, तो क्या आप उसे सिर पर ढो लेंगे?

इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, कि आप एक टन पत्थर ढोते हैं या सोना, जब आप उसके नीचे होते हैं, तो दोनों एक ही चीज है। वह आपको कुचल कर मार देगा। जिसे आप ढो रहे हैं, वह चाहे सुंदर हो या बदसूरत, अगर वह आपके सिर पर हो, तो आपकी मानवता को कुचल देगा।

जीवन या फिर विचार – किसका महत्व ज्यादा है?

खुद को घिसने का मतलब है, सिर्फ उन झूठ के पहाड़ों को घिसना, जिन्हें आपने खुद बनाया है। आपने जो शख्सियत बनाई है, वह बस उन चीजों का एक कोलाज है, जिन्हें आपने बाहर से इकट्ठा किया है, जो आप कभी नहीं थे और न कभी होंगे। अभी आपको लगता है कि वे चीजें आप हैं।

मैं चाहता हूं कि आप जितना हो सके उतनी गंभीरता से इस पर ध्यान दें। आपके अंदर अभी सबसे महत्वपूर्ण क्या है? आपकी भावना या विचार या वह जीवन जो आप हैं?
इसी कारण अगर उसका एक टुकड़ा ले लिया जाता है, तो आप गहरा दुख, अवसाद और कई दूसरी चीजों का अनुभव करते हैं जो इंसानों को पूरी तरह नष्ट कर सकता है। मगर यह ऐसी चीज है, जिसे आपने अपने मन में बनाया है, फिर भी आप उस पर इस हद तक विश्वास करते हैं कि वह आपको पूरी तरह नष्ट कर सकता है।

जब हम शिव को विषकंठ कहते हैं, तो इसका मतलब है कि उनके पास हर तरह के विष के लिए एक छलनी है। विष हमेशा आपके भोजन या पेय के जरिये आपके अंदर नहीं जाता। एक विचार, एक सोच, एक पहचान, एक भावना आपके पूरे जीवन को जहर से भर सकती है।

किन चीजों ने आपको जहर से भरा है? आप किसी चीज को जहर सिर्फ इसलिए कहते हैं क्योंकि वह जीवन को नष्ट करता है। आपके विचार, भावनाएं, पहचान – इन चीजों ने आपके अंदर कितने तरीकों से जीवन को नष्ट किया है? आप किसी न किसी रूप में मनोवैज्ञानिक तौर पर अधूरा महसूस करते हैं और आपको लगता है कि इन चीजों को साथ जोड़ने से आप मजबूत हो जाएंगे। ऐसा कुछ नहीं होगा। कभी वे आपको पूर्णता की झूठी भावना से भर देंगे मगर निश्चित रूप से कभी न कभी या तो वे आपका भ्रम तोड़ देंगे या यह काम मौत कर देगी। किसी न किसी रूप में ऐसा होगा ही। क्या इसका मतलब है कि इंसानी भावनाओं और विचारों का कोई मोल नहीं है? मैं चाहता हूं कि आप जितना हो सके उतनी गंभीरता से इस पर ध्यान दें। आपके अंदर अभी सबसे महत्वपूर्ण क्या है? आपकी भावना या विचार या वह जीवन जो आप हैं? जीवन, है न?

मगर आप एक मामूली से विचार या भावना के लिए मरने को तैयार हो जाते हैं। इसका मतलब है कि आप जीवन को उल्टा देख रहे हैं। जीवन का मतलब सिर्फ जीवित रहना नहीं है। जिसके जीवन में बिल्कुल उसूल नहीं हैं, वह जीवित रहने के लिए सब कुछ छोड़ सकता है। मैं उसकी बात नहीं कर रहा। आपके भीतर एक ज्वलंत जीवन है, सिर्फ इसलिए एक विचार, भावना, शरीर, कपड़े, रिश्ते और बाकी सभी कुछ का महत्व है। एक बार जब आप परिणाम को कारण समझ लेते हैं, तो बीज बोने की बजाय आप पेड़ को उल्टा लगाते हैं।

आज भी संकेत के रूप में होती है काशी यात्रा

भारत में आपने एक परंपरा के बारे में सुना होगा। आज अगर आप काशी जाते हैं, तो आप रेलगाड़ी से या हवाई जहाज से जाते हैं, मगर एक समय ऐसा था जब लोग पैदल चलकर काशी जाते थे। आज भी भारतीय विवाहों में प्रतीकात्मक काशी यात्रा होती है।

इस समूची प्रक्रिया का यह महत्व है कि कहीं न कहीं आप समझते हैं कि आप जो हैं और आपने जो इकट्ठा किया है, उनके बीच एक अंतर है।
दूल्हा, जिसका विवाह होने वाला है, वह इस तरह दिखाता है कि वह काशी जाना चाहता है। इसका मतलब है कि उसे इन रिश्तों-नातों की निरर्थकता(बिना किसी मतलब के) का एहसास हो गया है, इसलिए वह अपनी चरम प्रकृति को प्राप्त करने जा रहा है। मगर फिर उसकी शादी करा दी जाती है। इस यात्रा का महत्व यह था कि लोग अपनी आंतरिक खुशहाली की खोज में पैदल चल कर जाते थे। अगर किसी को बस देश के अलग-अलग भागों से दो-तीन हजार किलोमीटर पैदल चलना पड़े, तो इसके लिए एक खास मकसद की जरूरत होती है और वह मकसद उनके भीतर बहुत महत्वपूर्ण था। लोग हमेशा पैदल चलकर काशी जाते थे और चूंकि वह बहुत दूर था, इसलिए वे वापस नहीं आते थे। शायद ही कोई काशी जाकर वास्तव में लौट पाता था। बाकी लोग एक खास उम्र में वहां जाते थे और वहां से कभी वापस नहीं आते थे। इसीलिए आज भी यह परंपरा चल रही है कि लोग काशी में मरना चाहते हैं। इस समूची प्रक्रिया का यह महत्व है कि कहीं न कहीं आप समझते हैं कि आप जो हैं और आपने जो इकट्ठा किया है, उनके बीच एक अंतर है।

हल्के होकर आध्यात्मिक यात्रा करनी होगी

अगर आप पहाड़ पर चढ़ना चाहते हैं, तो आपका बोझ जितना हल्का होगा, उतना ही आपके लिए बेहतर है। चाहे आप इच्छुक न हों, मगर जैसे-जैसे आप पहाड़ पर चढ़ते हुए हांफने लगते हैं, आप बोझ को उतार फेंकेंगे। आप खुद फैसला कीजिए कि आप क्या फेंकना चाहते हैं। यह मैं आपको नहीं बताऊंगा। मगर जो भी फालतू बोझ है, कृपया उसे फेंक दीजिए क्योंकि फालतू बोझ लेकर पहाड़ पर चढ़ना बहुत कष्टदायक है। हल्के होकर चलिए क्योंकि वहां हवा पतली है और अगर आप भारी बोझ लेकर चल रहे हैं, तो आप चल नहीं सकते। आज सोने जाने से पहले कम से कम पांच मिनट आंखें बंद करके चुपचाप बैठें और उन चीजों को ध्यान में लाएं जिन्हें आपने बचपन से इकट्ठा किया है – विचारों में, भावनाओं में, चीजों में, लोगों में। जो भी आपको फालतू बोझ लगता है, उसे टेंट से बाहर फेंक दें और फिर कल सुबह हम यात्रा शुरू करेंगे।