सद्‌गुरुजैसे जैसे हमारे पास नई नई टेक्नोलॉजी आती जा रही हैं, हम और अधिक परेशान होते जा रहे हैं। कुछ सर्वे तो बताते हैं कि नेपाल और भूटान सबसे ज्यादा खुश देशों में से एक हैं। तो क्या नई टेक्नोलॉजी से दूर रहना इसका समाधान है? जानते हैं सद्‌गुरु से...

नमन: सद्‌गुरु, सर्वे बताते हैं कि नेपाल व भूटान दुनिया के सबसे खुश देश हैं। ये देश विकसित देशों से भी ज्यादा खुश हैं। ये सारी टेक्नोलॉजी लोगों को और पीडि़त ही कर रही है। अगर लोग इतनी टेक्नोलॉजी के बाद भी खुश नहीं हैं तो फिर इस विकास का मतलब क्या है?

सद्‌गुरु: जब आप टेक्नोलॉजी की बात करते हैं तो मैं चाहता हूं कि पहले आप इसे समझें। देखिए जैसे सुपर कंप्यूटर एक टेक्नोलॉजी है, इसी तरह से बैलगाड़ी भी एक टेक्नोलॉजी है। आप के घर में बिजली से चलने वाला ‘वेजिटेबल चॉपर’ हो या हाथ से काटने वाला चाकू - ये दोनों ही टेक्नोलॉजी हैं। आप ये पूछ रहे हैं कि क्या हल्के दर्जे की टेक्नोलॉजी, ऊंचे दर्जे की टेक्नोलॉजी से बेहतर है? मुझे ऐसा नहीं लगता।

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आपको जिसने भी यह विचार दिया है कि टेक्नोलॉजी के अभाव से लोग खुश हैं, यह सही नहीं है।

जब तक आप यह नहीं समझेंगे कि किस चीज का कितना इस्तेमाल किया जाए, तब तक हर चीज आपके लिए एक समस्या होगी। अगर टेक्नोलॉजी की कमी एक समस्या है तो टेक्नोलॉजी भी अपने आप में एक समस्या है।
बात सिर्फ इतनी है कि टेक्नोलॉजी के चलते हर चीज थोड़ी हाइपर हो जाती है, कम से कम कम्यूनिकेशन टेक्नोलॉजी के साथ तो ऐसा ही होता है। किसी दूर दराज के इलाके में कोई व्यक्ति अगर बुरी तरह बीमार है तो आपको पता ही नहीं चलेगा, क्योंकि वहां कोई आपको यह बताने वाला नहीं है। लेकिन जहां भारी-भरकम टेक्नोलॉजी मौजूद है, वहां किसी के साथ जो कुछ भी होता है, वह पूरी दुनिया को पता चल जाता है। आज से हजार साल पहले अगर मुंबई में एक हजार लोग मर जाते, तब भी हम लोग यहां बैठकर आसमान और पर्वतों को निहारते हुए कहते, ‘वाकई कितनी शांतिमय दुनिया है?’ आज अगर मुंबई में कोई मर जाए तो उसका खून पूरी दुनिया में सभी घरों के ड्राइंगरूम में फैल जाएगा। तो हम जानते हैं कि कहां क्या हो रहा है। यहां तक कि आपके बेडरूम में भी एक टीवी है। शुक्र है कि आपने बाथरूम को छोड़ दिया है। उसे अलग ही रखिए, कम से कम वह एक शांतिमय जगह बची है, जहां लोग गाना गाते हैं और खुश रहते हैं।

टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल न करना समाधान नहीं है

तो टेक्नोलॉजी तो मौजूद है, लेकिन इसका कैसे इस्तेमाल करना है, यह आपके विवेक पर निर्भर करता है। टेक्नोलॉजी ने कभी नहीं कहा कि आप अपने विवेक का इस्तेमाल मत कीजिए। जब तक आप यह नहीं समझेंगे कि किस चीज का कितना इस्तेमाल किया जाए, तब तक हर चीज आपके लिए एक समस्या होगी। अगर टेक्नोलॉजी की कमी एक समस्या है तो टेक्नोलॉजी भी अपने आप में एक समस्या है। आजकल लोग यह कह रहे हैं कि ऐसी बहुत सी बीमारियां हैं, जो अमीरी के चलते आई हैं, तो ऐसे में क्या आप गरीबी की वकालत कर रहे हैं? अमीर लोग इन बीमारियों से जूझ रहे हैं, इसलिए सबसे अच्छा होगा कि दुनिया को गरीब रखा जाए! यह तो बहुत ही बचकाना हल हुआ, बल्कि यह तो कोई हल हुआ ही नहीं। हम तो पहले भी उस हालत में थे, जब टेक्नोलॉजी कम हुआ करती थी, गरीबी थी। हम पहले से जानते हैं कि यह कोई समाधान नहीं है। हम लोगों ने उस हालात से बाहर निकलने की कोशिश की। उस समय हमारे लिए समाधान के तौर पर जो सामने आया, आज हम लोग उससे भी समस्याएं पैदा कर रहे हैं। उसकी वजह है कि हमने अपने भीतरी विकास के लिए कुछ नहीं किया, कोई इनर इंजीनियरिंग नहीं की।

भीतरी टेक्नोलॉजी की कमी ही समस्याएँ खड़ी कर रही है

हमारी सारी टेक्नोलॉजी बुनियादी रूप से हमारे बाहरी हालात को उस तरह से ठीक करने में लगी रहीं, जैसा हम चाहते थे। आज हमारे पास एयरकंडीशनर है। हमें बाहर का मौसम अच्छा नहीं लगता, तो हम मौसम को उसी तरह से तैयार कर रहे हैं, जैसा हम चाहते हैं और यही टेक्नोलॉजी है। यह हमेशा बाहरी परिस्थितियों को उसी हिसाब से ठीक करती है, जैसा हमें अच्छा लगता है। हालांकि हमने बाहरी परिस्थितियां तो ठीक कर दीं लेकिन हमारी भीतरी स्थिति अभी भी पहले की तरह परेशानहाल है। अभी तक भीतर को ठीक करने वाली टेक्नोलॉजी पर ठीक से ध्यान नहीं दिया गया है। जब तक हम भीतरी टेक्नोलॉजी पर भी काम नहीं करेंगे, तब तक विज्ञान व टेक्नोलॉजी द्वारा लाई गईं तमाम सुविधाएं और आराम बेकार साबित होते रहेंगे। अगर इंसान खुश नहीं है तो इन सारी सुविधाओं व आराम की कोशिशों का कोई मतलब ही नहीं है।

टेक्नोलॉजी विकसित हो रही है, फिर भी मेहनत बढ़ रही है

क्या आप जानते हैं कि इस धरती पर किसी भी पीढ़ी ने इतना काम नहीं किया होगा, जितना आज हम कर रहे हैं? मान लीजिए कि अगर आप एक गुफा-मानव होते तो आप शिकार के लिए दो घंटे बाहर निकलते, एक शिकार मारकर लाते और फिर अगले एक हफ्ते तक आप उसी को खाते, नाचते, गाते और सोते। यही सब तो आप करते थे।
फिर हमें लगा कि शिकार पर निर्भर जिंदगी तो बहुत ही अनिश्चित है, और तब हम भोजन जुटाने के लिए खेती की ओर मुड़ गए। जब इंसान खेती करता था तो साल के 365 दिनों में से वह सिर्फ सौ या डेढ़ सौ दिन काम करता और बाकी दिन वह त्योहार व उत्सव मनाता और खाता व सोता। हम लगातार टेक्नोलॉजी का विकास करते गए, क्योंकि हमें कहीं न कहीं लगा कि अगर हम टेक्नोलॉजी का विकास कर लेंगे तो फिर हमें काम नहीं करना पड़ेगा और हमारे जीवन में आराम ही आराम होगा। तब टेक्नोलॉजी के पीछे यही सोच थी। लेकिन आज आप इतना काम कर रहे हैं, जितना आपने पहले कभी नहीं किया। पूरे तीन सौ पैंसठ दिन। यहां तक कि जब आप छुट्टियों पर भी जाते हैं तो आपको अपने साथ अपना लैपटॉप ले जाना होता है। तो कहीं न कहीं हम इस बात से भटक रहे हैं कि हम जो कुछ भी कर रहे हैं, वह आखिर क्यों कर रहे हैं?

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