प्रश्न: ऐसा लगता है कि प्रेम मेरे जीवन के लिए एक ड्राइविंग फ़ोर्स है। लेकिन मैं थोड़े भ्रम में हूं कि किसी के साथ एक हो जाने और किसी के लिए बिना शर्त प्रेम करने में क्या फर्क है?

सद्‌गुरु: क्या वह वाकई बेशर्त है?

प्रश्न: पता नहीं। हो सकता है कि न हो।

सद्‌गुरु : इसमें बहुत सारी शर्तें मौजूद होती हैं। आपने दूसरे इंसान के लिए जो शर्तें तय की हैं, उससे आपकी जो उम्मीदें हैं, अगर वे सब कल टूट जाएं, तो यही प्रेम क्रोध और फिर नफरत में बदल जाएगा। इसलिए अगर हमें आपके प्रेम को कायम रखना है तो हमें दूसरे इंसान को इस तरह कंट्रोल करना होगा कि वह सिर्फ वही करे जो आप उससे उम्मीद करते हैं। वरना यह बढ़िया प्रेम बहुत बुरे गुस्से में बदल जाएगा।

प्रेम जीवन का बहुत नाजुक आयाम है

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मैं रिश्तों को कम करके आंकने की कोशिश नहीं कर रहा हूं, मगर उसकी सीमाओं को जानने में कोई बुराई नहीं है। उसकी अपनी सीमाएं हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वह ख़ूबसूरत नहीं है। एक फूल बहुत सुंदर होता है, लेकिन अगर मैं उसे कुचल दूं, तो दो दिनों में वह खाद बन जाएगा। मैं एक पल में एक फूल को नष्ट कर सकता हूं मगर क्या इससे फूल की सुंदरता और अहमियत कम हो जाती है? नहीं। इसी तरह, आपका प्रेम बहुत नाजुक है। उसके बारे में काल्पनिक धारणाएं न बनाएं। साथ ही, मैं उससे जुड़ी सुंदरता से इंकार नहीं कर रहा हूं।

लेकिन अगर आप जीवन के इतने क्षणभंगुर आयाम को अपने जीवन का आधार बनाते हैं तो स्वाभाविक रूप से आप हर समय चिंतित और बेचैन रहेंगे क्योंकि आप इतने नाजुक फूल पर बैठे हुए हैं। मान लीजिए अगर आप अपना घर जमीन पर नहीं, फूल पर बनाते हैं क्योंकि वह बहुत सुंदर है, तो आप हमेशा डर-डर कर जिएंगे। अगर आप जमीन पर बुनियाद रख कर घर बनाते हैं और फिर फूल को निहारते हैं, उसे सूंघते और छूते हैं, तो यह आपके लिए बहुत बढ़िया होगा। लेकिन अगर आपने फूल के ऊपर घर बनाया, तो आप लगातार डर में रहेंगे। मैं सिर्फ उसी संदर्भ में यह बात कर रहा हूं। हम प्रेम के महत्व से इंकार नहीं कर रहे।

प्रेम के नाम पर खुद को लाचार बना रहे हैं लोग

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हालाँकि मैं ये सबके लिए नहीं कहना चाहता, मगर बहुत से लोगों के लिए ऐसा ही है कि एक स्तर पर प्रेम बस उनकी एक जरूरत है जिसके बिना वे नहीं जी सकते। जिस तरह शरीर की जरूरतें होती हैं, भावनाओं की भी जरूरत होती है। जब मैं कहता हूं, ‘मैं तुम्हारे बिना नहीं जी सकता,’ तो यह ऐसा कहने से अलग नहीं है, ‘मैं बैसाखी के बिना नहीं चल सकता’। अगर आपके पास ऐसी बैसाखी हो जिसमें हीरा जड़ा हो तो आप बड़ी आसानी से अपनी बैसाखी के प्रेम में पड़ सकते हैं। अब अगर आपने उसे अगले दस सालों तक इस्तेमाल कर लिया फिर अगर हम आपसे कहें, ‘अब आप इस बैसाखी के बिना चलने के लिए स्वतंत्र हैं’। तो आप कहेंगे, ‘नहीं, नहीं, मैं इसे कैसे छोड़ सकता हूँ।’ इसमें कोई समझदारी नहीं है। इसी तरह, प्रेम के नाम पर आप अपने भीतर खुद को पूरी तरह असहाय और अपूर्ण बना लेते हैं।

क्या इसका मतलब यह है कि इसमें कोई सुंदरता नहीं है, इसका कोई दूसरा आयाम नहीं है? जरूर है। ऐसे बहुत सारे लोग हुए हैं, जिन्होंने ने इस तरह जीवन जिया कि वे दूसरे के बिना अपना अस्तित्व नहीं रख सकते थे। अगर वाकई ऐसा होता है कि दो लोग एक की तरह हो जाते हैं, तो यह बहुत अद्भुत है।

राजस्थान की एक घटना

यह घटना राजस्थान की है। एक राजा थे जिनकी एक युवा पत्नी थी जो उनसे बेहद प्रेम करती थी और उनके प्रति पूरी तरह समर्पित थी। मगर राजाओं की हमेशा ढेर सारी पत्नियां होती थीं। इसलिए जिस तरह रानी उनके ध्यान में पूरी तरह डूबी रहती थी, उसे यह काफी मूर्खतापूर्ण लगता था। वह हैरान होता था और उसे यह अच्छा भी लगता था, लेकिन कई बार अति हो जाती थी। फिर वह उसे थोड़ा दूर करके बाकी रानियों के साथ समय बिताता था, लेकिन वह स्त्री उसके लिए पूर्ण रूप से समर्पित थी।

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उसने सिर्फ एक सनक में आकर उसके साथ मजाक किया और वह वास्तव में मर गई। उसने आत्महत्या नहीं की, वह बस यूं ही मर गई।

राजा और रानी के पास दो बोलने वाली मैना थी। मैना ऐसी चिड़िया होती है जो ट्रेनिंग देने पर तोते से बेहतर बोल सकती है। एक दिन इनमें से एक चिड़िया मर गई तो दूसरी ने खाना-पीना छोड़ दिया और चुपचाप बैठी रही। राजा ने उसे खिलाने की हर संभव कोशिश की मगर सफल नहीं हुआ और वह चिड़िया दो दिन में मर गई।

इस बात ने राजा को काफी प्रभावित किया। ‘यह क्या है? किसी भी जीव के लिए पहले अपने जीवन को महत्व देना स्वाभाविक है। मगर यह चिड़िया बैठी रही और मर गई।’

यह कहने पर उसकी पत्नी ने कहा, ‘जब कोई वास्तव में किसी से प्रेम करता है, तो दूसरे के साथ मर जाना उनके लिए स्वाभाविक है क्योंकि उसके बाद उनके लिए अपने जीवन का कोई अर्थ नहीं रह जाता।’

राजा ने मजाक में पूछा, ‘क्या तुमभी मुझसे इतना प्रेम करती हो?’

वह बोली, ‘हां, मेरे साथ भी ऐसा ही है।’ राजा यह सुनकर बहुत खुश हुआ।

एक दिन, राजा अपने दोस्तों के साथ शिकार खेलने गया। उसके दिमाग में चिड़ियों के मरने और पत्नी की यह बात घूम रही थी कि उसके लिए भी यह सच है। वह इसे जांचकर देखना चाहता था। इसलिए उसने अपने कपड़े लेकर उस पर खून लगाकर एक सिपाही के हाथों महल भिजवा दिया। उसने घोषणा कर दी, ‘राजा पर एक बाघ ने हमला कर दिया और उन्हें मार डाला।’ रानी ने अपनी आंखों में आंसू लाए बिना बहुत गरिमा के साथ उनके कपड़े लिए, लकड़ियां इकट्ठी कीं, उनके ऊपर उन कपड़ों को रखा और फिर खुद उस पर लेटकर मर गई।

लोगों को विश्वास नहीं हो रहा था। रानी बस चिता पर लेटी और मर गई। कुछ और करने को नहीं था क्योंकि वह मर चुकी थी, इसलिए उन्होंने उसका अंतिम संस्कार कर दिया। जब यह खबर राजा को मिली, तो वह दुख में डूब गया। उसने सिर्फ एक सनक में आकर उसके साथ मजाक किया और वह वास्तव में मर गई। उसने आत्महत्या नहीं की, वह बस यूं ही मर गई।

मंगलसूत्र : दो लोगों की ऊर्जाओं को आपस में जोड़ना

wedding at Linga Bhariavi

लोग इस तरह भी प्रेम करते थे क्योंकि कहीं न कहीं दो लोग आपस में जुड़ जाते थे। भारत में विवाह के संस्कारों का एक पूरा विज्ञान होता था। जब दो लोगों का विवाह होता था तो सिर्फ दो परिवारों और दो शरीरों की अनुकूलता नहीं देखी जाती थी। दोनों के बीच ऊर्जा की अनुकूलता पर भी ध्यान दिया जाता था।

पवित्र धागा तैयार करना एक विस्तृत विज्ञान है। हम रुई के कुछ रेशे लेकर उसमें सिंदूर और हल्दी लगाते हैं, फिर उसे एक खास तरह से ऊर्जा दी जाती है।

ज्यादातर यह होता था कि दोनों ने एक-दूसरे को देखा तक नहीं होता था। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता था क्योंकि उनकी अनुकूलता कोई ऐसा व्यक्ति तय करता था, जो इस बारे में उनसे बेहतर जानता था। अगर वे खुद चुनाव करते, तो उनका चुनाव नाक, आंख व बाक़ी की कई चीजों के आधार पर होता। ये चीज़ें विवाह के तीन दिन बाद कोई मायने नहीं रखतीं। अगर आपकी पत्नी की आंखें बहुत खूबसूरत हों, मगर वह सिर्फ आपको गुस्से से घूरती रहे, तो उसका क्या फ़ायदा?

जब विवाह जानकार लोगों द्वारा तय किया जाता था, तो वे मंगलसूत्र नाम की एक चीज बनाते थे। मंगलसूत्र का मतलब है, पवित्र धागा। पवित्र धागा तैयार करना एक विस्तृत विज्ञान है। हम रुई के कुछ रेशे लेकर उसमें सिंदूर और हल्दी लगाते हैं, फिर उसे एक खास तरह से ऊर्जा दी जाती है। एक बार इसे बांध देने पर यह जीवन भर और उसके आगे के लिए होता है।

लोगों की नाड़ियाँ भी साथ बाँधी जा सकती हैं

कई बार एक ही पति-पत्नी कई जीवनकालों तक पति-पत्नी रहे और वे सचेतन होकर ऐसा चुनाव करते थे, क्योंकि उन दिनों लोगों को सिर्फ शारीरिक या भावनात्मक स्तर पर ही नहीं बांधा जाता था। आप शरीर, मन और भावना के स्तर पर जो करते हैं, वह मृत्यु के साथ समाप्त हो जाता है। मगर आप ऊर्जा के स्तर पर जो करते हैं, वह हमेशा रहता है। आप लोगों की नाड़ियां भी साथ बांध सकते हैं। इसीलिए इस रिश्ते को जीवन भर के लिए माना जाता था। इस पर फिर से विचार करने का कोई प्रश्न नहीं था क्योंकि आपकी समझ से कहीं गहरी किसी चीज को ऐसे लोगों द्वारा जोड़ा जाता था, जो जानते थे कि क्या किया जाना चाहिए।

भारत में ऐसे कई दंपत्ति हैं, जिनमें एक की मृत्यु हो जाने पर दूसरा कुछ महीनों के अंदर चला जाता है, चाहे वह बिलकुल स्वस्थ ही क्यों न हो, क्योंकि उनकी ऊर्जा इस तरह एक साथ बांध दी जाती है।

आजकल भी वे प्रक्रियाएं की जाती है, मगर यह ऐसे लोग करते हैं, जिन्हें इसके बारे में जानकारी नहीं होती। इसलिए लोग स्वाभाविक(कुदरती) रूप से इंकार करते हैं, ‘हम यह धागा नहीं पहनना चाहते।’ अब आप उसे पहनें या नहीं, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि उसके पीछे का विज्ञान नष्ट हो चुका है।

जब यह प्रक्रिया ऐसे लोग करते थे जो जानते थे कि इसे कैसे करना है, तो उन दो लोगों के दिमाग में यह बात नहीं उठती थी कि ‘इस व्यक्ति को मेरी पत्नी होना चाहिए या नहीं?’ ‘क्या यह व्यक्ति हमेशा मेरा पति रहेगा?’ यह रिश्ता बस चलता रहता था। वह मृत्यु के साथ भी नहीं ख़त्म होता था।

भारत में ऐसे कई दंपत्ति(शादीशुदा कपल) हैं, जिनमें एक की मृत्यु हो जाने पर दूसरा कुछ महीनों के अंदर चला जाता है, चाहे वह बिलकुल स्वस्थ ही क्यों न हो, क्योंकि उनकी ऊर्जा इस तरह एक साथ बांध दी जाती है। अगर आप किसी दूसरे इंसान से इस तरह बंधे हैं कि दो लोग एक बनकर रहते हैं, तो यह अस्तित्व का बहुत अच्छा तरीका है। यह एक चरम संभावना नहीं है, मगर फिर भी जीने का एक खूबसूरत तरीका है।

प्रेम अपने आप में लक्ष्य नहीं है, आनन्द लक्ष्य है

आज जब लोग प्रेम की बात करते हैं, तो वे सिर्फ उसके भावनात्मक(इमोशनल) पक्ष की बात करते हैं। भावनाएं आज कुछ कहेंगी और कल कुछ। जब आपने पहली बार यह रिश्ता बनाया था, तो आपने सोचा था, ‘यह हमेशा के लिए है’ मगर तीन महीने के अंदर आप सोचने लगे, ‘आखिर मैं इस इंसान के साथ क्यों हूं?’ क्योंकि यह रिश्ता आपकी पसंद और नापसंद के अनुसार चल रहा है। इस तरह के रिश्ते में आप सिर्फ कष्ट उठा सकते हैं क्योंकि जब कोई रिश्ता अस्थिर होता है, जब वह कभी हां, कभी ना में होता है, तो आप भयानक पीड़ा और कष्ट से गुजरते हैं, जो बिल्कुल अनावश्यक है।

मगर जब आप आनंदित होते हैं, तो आप किसी भी चीज को देखकर उससे प्रेम कर सकते हैं क्योंकि उसमें उलझने का कोई डर नहीं होता। जब उलझने का डर नहीं होता, तभी आप जीवन के साथ भागीदारी को जान सकते हैं।

प्रेम का मकसद पीड़ा पैदा करना नहीं है, हालांकि पीड़ा को लेकर बहुत सी कविताएं लिखी गई हैं। आप प्रेम में इसलिए पड़ते हैं क्योंकि उससे आप आनंद में डूब जाते हैं। प्रेम लक्ष्य नहीं है, आनंद लक्ष्य है। लोग किसी के साथ प्रेम में पड़ने को लेकर पागल होते है, भले ही वे कई बार घायल और चोटिल हो चुके हों क्योंकि प्रेम में पड़ने का अनुभव उनके लिए बहुत आनंददायक था। प्रेम बस आनंद का जरिया है। फिलहाल अधिकांश लोग आनंदित होने का यही तरीका जानते हैं।

मगर अपनी प्रकृति से आनंदित होने का भी एक तरीका है। अगर आप आनंदित हैं तो प्रेमपूर्ण होना कोई समस्या नहीं है, आप वैसे ही प्रेम से भरे होंगे। बस जब आप प्रेम में आनंद खोजते हैं, तब आप यह चुनने लगते हैं कि आपको किसके साथ प्रेमपूर्ण होना है। मगर जब आप आनंदित होते हैं, तो आप किसी भी चीज को देखकर उससे प्रेम कर सकते हैं क्योंकि उसमें उलझने का कोई डर नहीं होता। जब उलझने का डर नहीं होता, तभी आप जीवन के साथ भागीदारी को जान सकते हैं।