अभी तक क्या हुआ: द्रौपदी के स्वंयवर में भाग लेने के दौरान शर्त हार जाने से दुर्योधन बौखला जाता है और हर वक्त इसी उधेड़बुन में डूबा रहता है कि अगला क्या करें। जब उसकी पत्नी भानुमति उसे समझाती है कि वह कृष्ण से पूछे कि उसे आगे क्या करना चाहिए तो यह सुनते ही दुर्योधन क्रोध में आपे से बाहर हो जाता है। इतना ही नहीं, वह भानुमति पर जीवन में कभी कृष्ण से संपर्क करने या मिलने पर भी रोक लगा देता है। यह सुनकर भानुमति पूरी तरह से निराशा से भर उठती है; वह अपने होने वाले बच्चे के लिए कृष्ण का आशीर्वाद चाहती है, इसके लिए वह अपनी बहन जलंधरा की मदद मांगती है। जलंधरा कृष्ण तक पहुँचने के लिए भीम के साथ एक गुप्त मुलाकात का कार्यक्रम बनाती है:

भीम महाभारत के सबसे धुरंधर किरदारों में से है। कौरव भीम से डरे रहते थे और उसे मारने के बारे में सोचते रहते थे। एक बार उन्होंने एक अघोरी से भीम को मारने को कहा। आइये जानते हैं कि कैसे यह घटना महाभारत और भीम के जीवन को एक अलग मोड़ दे सकती थी...

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जलंधरा भीम से कहती है कि भानुमति कृष्ण से मिलना चाहती है, लेकिन दुर्योधन ने उस पर कृष्ण से मिलने की रोक लगा दी है। साथ ही, उसने तुरंत भीम को यह भी जता दिया कि वह उसकी तरफ जो ख़ास ध्यान देता है, वह उसे अच्छा लगता है। अपनी तारीफ सुनकर भीम का गुस्सा थोड़ा ठंडा पड़ गया। जलंधरा लगातार बोलती गई, ‘अगर मेरे स्वयंवर में तुम आते तो मैं सबको छोड़ केवल तुम्हारे गले में ही वरमाला डालती। मैं तुम्हारे अलावा, किसी और को नहीं चुनती।’ इतना सुनते ही भीम पूरी तरह पिघल गया। उसने जलंधरा से कहा कि मैं तुम्हारे लिए कुछ भी करूंगा। उसने कहा कि मैं कृष्ण से मिलकर उनसे तुम्हारी मुलाकात का प्रबंध कराता हूं। इतना सुनते ही जलंधरा और उसकी दासी वहां से चले गए। अगर लोगों को पता चलता कि एक राजकुमारी होकर वह एक पराए पुरुष से गुप्त रूप से मिलने व्यायामशाला आई है तो उसकी सारी प्रतिष्ठा और सम्मान धूल में मिल जाती। इसलिए भीम पहले उन दोनों को वहां से निकलने देता है और फिर कुछ देर बाद उनसे कुछ दूरी बनाते हुए अपने एक मित्र के साथ वहां से निकला।

तभी भीम का ध्यान गया कि एक आदमी पास ही एक पेड़ के पीछे छिपा है और जैसे ही जलंधरा और उसकी दासी वहां से निकलती हैं, कुछ पल ठहरकर उस आदमी ने उनका पीछा करना शुरू कर दिया। भीम को तुरंत लगने लगा कि राजकुमारी खतरे में है। भारी भरकम भीम तुरंत उस आदमी के पास गया और उसकी गर्दन पकड़कर उससे पुछा कि वह कौन है।

पहले उस आग में महाअघोरी की दाढ़ी और बाल जली और फिर उसके पूरे शरीर ने आग पकड़ ली। आग में घिरा अघोरी बिना एक शब्द बोले शांत रहा, जब आग ने उसे पूरी तरह घेर लिया तो बस उसने इतना ही कहा, ‘मां मैं आ रहा हूं।’ न वह दर्द से करहा, न चिल्लाया, बस पूरी शांति से मृत्यु को गले लगा लिया।
उस आदमी ने भीम को तब तक कुछ नहीं बताया, जब तक भीम ने उसकी खासी मरम्मत नहीं की। काफी मार खाने और कुछ दांत टूटने के बाद आखिर उस आदमी ने स्वीकार कर लिया कि वह शकुनि का भेजा एक जासूस है। चूंकि शकुनि छल प्रपंच का महारथी था तो भीम को चिंता हुई कि देखें यह जासूस और क्या क्या जानता है? भीम उस जासूस से पूछता है, ‘क्या तुम जानते हो कि तुम किसका पीछा कर रहे हो?’ वह आदमी जवाब देता है,‘मुझे यह तो नहीं पता कि यह कौन है, लेकिन उस महिला ने जिस तरह के कपड़े पहन रखें हैं, जिस तरह की छवि और चाल है और उसके साथ दासी है, उसे देखकर लगता है कि जरूर यह महिला महल से संबंध रखती है। इसीलिए मैं उसका पीछा कर रहा था।’

इस पर भीम ने लगातार उसकी पिटाई चालू रखी। भीम ने धमकाते हुए उससे पूछा, ‘इसके अलावा तुम और क्या-क्या जानते हो?’ अपनी जिंदगी खतरे में देख जासूस ने कहा,  ‘शकुनि व दुशासन आपको, भीष्म और कृष्ण को मारने की योजना बना रहे हैं। अगली अमावस्या तक आप तीनों मारे जाएंगे।’ भीम ने उसे थोड़ा और धमकाते हुए पूछा, ‘सारी चीजें विस्तार में बताओ।’ जासूस ने कहा, ‘नदी के पार एक साधु रहता है, जिसका नाम महाअघोरी है।’ अघोर योग की एक चरम व रहस्यमयी शाखा है। उसने कहा, ‘शकुनि व दुशासन इस समय महा अघोरी के साथ बैठ कर कोई काला जादू कर रहे हैं। जिससे आप तीनों को मारा जा सके।’

भीम ने उस जासूस को अपने साथ ले लिया। उन्होंने एक नाव के जरिए नदी पार की। नदी पार करके वे वहां पहुंचे, जहां महाअघोरी पूजा करा रहा था। वे लोग पास ही में एक पेड़ के पास छिप गये। शकुनि व दुशासन एक छोटी सी कुटिया के आगे एक छप्पर के नीचे महाअघोरी के साथ बैठे हुए थे। उनके सामने आग जल रही थी। 75-80 साल का अघोरी पूरी तरह से नग्नावस्था में था। जैसे आमतौर पर अघोरी होते हैं। जब वह धीमी आवाज में मंत्र पढ़ रहा था - और कुछ बड़बड़ा रहा था तो उसके सामने बैठे शकुनि व दुशासन आंखें फाड़े हैरानी से उसे देख रहे थे। भीम ने पेड़ के पीछे खड़े होकर उन तीनों में होने वाली बातचीत सुनी। अघोरी ने उनसे पुछा कि तुम सबसे पहले किसे खत्म करना चाहते हो? दुशासन जवाब देता है, ‘सबसे पहले हम भीष्म को खत्म कराना चाहते हैं। वह हमेशा रास्ते में रोड़ा बन कर खड़े रहते हैं। उसके बाद कृष्ण को खत्म करना चाहते हैं और फिर भीम को। वह ही पांडवों की असली ताकत है। अगर वह खत्म हो जाता है तो हम पांडवों को तोड़कर रख देंगे।’

महाअघोरी ने एक खास पूजा की और देवी का आवाहन किया। अचानक एक भयानक आवाज आनी शुरू हुई, जो महाअघोरी से बात करने लगी। वह आवाज महाअघोरी को ‘मेरे बच्चे’ कह कर संबोधित कर रही थी। महाअघोरी ने उससे कहा, ‘ये लोग अगली अमावस्या तक गंगापुत्र भीष्म को खत्म कराना चाहते हैं।’ उस आवाज ने जवाब दिया, ‘भीष्म को इच्छा-मृत्यु का वरदान मिला है, इसलिए इस मामले में मैं कुछ नहीं कर सकती। इसके अलावा और क्या है?’ अघोरी ने कहा - ‘फिर कृष्ण वासुदेव को जाना चाहिए।’ इस पर देवी अट्टहास करते हुए कहती हैं, ‘वह एक दिव्य अस्तित्व हैं। उन्हें हम छू भी नहीं सकते।’ तब वे कहते हैं, ‘फिर तो पांडु पुत्र भीम को मरना चाहिए।’ देवी जवाब देती हैं, ‘जरूरी भेंट व पूजा अर्पित करो। फिर मैं देखती हूं।’

देवी के आदेश पर महाअघोरी पूजा का अगला चरण शुरू करने लगा, ताकि अगले एक महीने में भीम को खत्म किया जा सके। अगर सारी चीजें सही तरीके से की जाती तो ऐसा हो संभव हो जाता। लेकिन तभी भीम ने आगे बढ़ते हुए उस झोपड़ी के छप्पर को आग में झोंक दिया, जिससे पूरी झोपड़ी में आग लग गई। पहले उस आग में महाअघोरी की दाढ़ी और बाल जली और फिर उसके पूरे शरीर ने आग पकड़ ली। आग में घिरा अघोरी बिना एक शब्द बोले शांत रहा, जब आग ने उसे पूरी तरह घेर लिया तो बस उसने इतना ही कहा, ‘मां मैं आ रहा हूं।’ न वह दर्द से करहा, न चिल्लाया, बस पूरी शांति से मृत्यु को गले लगा लिया।

महाअघोरी ने एक खास पूजा की और देवी का आवाहन किया। अचानक एक भयानक आवाज आनी शुरू हुई, जो महाअघोरी से बात करने लगी। वह आवाज महाअघोरी को ‘मेरे बच्चे’ कह कर संबोधित कर रही थी।
महाअघोरी, जिसे देवी अपना बच्चा कहकर संबोधित करती है, आग में जलते हुए प्रचंड उर्जा में बदल गया। एक ऐसी उर्जा, जिससे भयानक गर्जना और गूँज फूट रही थी। यह सब देखकर शकुनि और दुशासन डर गये और वे वहां से भाग गये। उन्होंने भाग कर नदी में छलांग लगा दी और तैरते हुए दूसरे किनारे पर पहुंचे। भीम ने अपने आप को छिपा लिया, क्योंकि उसका काम पूरा हो चुका था। इसके बाद उसने जासूस की गर्दन मरोड़ दी, क्योंकि उसे डर था कि अगर जासूस बच जाता तो वह सारा भेद खोल सकता था।

जो लोग अथर्व मार्ग यानी परा विद्या के मार्ग पर चलने वाले होते हैं वे ऐसी चीजें सुन, देख, महसूस, सूंध व चख सकते हैं, जिनकी आप कभी कल्पना तक नहीं कर सकते। जीवन के तौर पर देखा जाए तो बहुत रहस्यमय घटनाएं हो रही हैं। ईशा के पास स्थित इन वेलिंगिरी पर्वतों ने बहुत से सिद्धों, योगियों और तपस्वियों को देखा है। उन्होंने अपनी साधना से जो उर्जा यहां छोड़ी है, उसे कभी खत्म नहीं किया जा सकता। वह हमेशा रहेगी। अगर आप सही स्थितियां व वातावरण तैयार कर दें तो वे अपनी पूरी ताकत से सक्रिय हो सकते हैं, वर्ना वे सहज रूप से वहां मौजूद हैं। कृष्ण द्वैपायन ऋषि ने महा अथर्वन के साथ मिलकर अथर्व वेद को वेदों का एक हिस्सा बनाया। द्वैपायन का मानना था कि अथर्व वेद वेदों में शामिल होने के लिए पूरी तरह से योग्य है। हालांकि लोग इसका दुरुपयोग करते हैं, लेकिन बतौर विज्ञान इसमें कहीं कोई खराबी नहीं है। यह इस पर निर्भर करता है कि आप इसका कैसा इस्तेमाल करते हैं। आप किसी विज्ञान पर सिर्फ इसलिए रोक नहीं लगा सकते, क्योंकि कुछ लोग इसका गलत इस्मेमाल कर सकते हैं। इसी समझ और विचार के कृष्ण द्वैपायन या वेद व्यास ने पाराशर ऋषि के साथ मिलकर कोशिश की कि अथर्व वेद को भी वहीं महत्व व स्थान मिले, जो अपने यहां बाकी वेदों को महत्व मिला है। तब तक बाकी वेद एक पवित्र ग्रंथ के रूप में भारतीय संस्कृति में अपनी जगह बना चुके थे।

अगले अंक में जारी...