भारतीय संस्कृति बहुत जटिल है और एक जबर्दस्त घालमेल-सी लगती है। लेकिन इस घालमेल-सी दिखने वाली हजारों साल पुरानी संस्कृति की बुनियाद विज्ञान पर आधारित है। इस लेख में सद्‌गुरु बता रहे हैं गोत्र और कुल का वैज्ञानिक पहलु :

सद्‌गुरु, लिंग भैरवी में अभिषेक करते समय अपना नाम, नक्षत्र और गोत्र बताने की क्या अहमियत है?

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सद्‌गुरुसद्‌गुरु: जिस समय देवी-देवताओं को एक खास तरह से रचा गया था, ये सब चीजें बहुत अहमियत और मायने रखती थीं। जिंदगी की जबरदस्त जटिलताओं के प्रति हमारी गहरी समझ के अनुसार भारतीय संस्कृति को रचा गया था। लेकिन आज यह एक जबरदस्त घालमेल बन गई है। इसका कारण रहा है- पिछले 1800 सालों में इस देश पर बार-बार हुए हमले। इन हमलों में उन साधनों और संस्थाओं के साथ बहुत बुरी तरह से छेड़-छाड़ किया गया जो इस ज्ञान को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुंचाने वाले थे। अगर समझा जाए तो यह एक बहुत प्रभावशाली विज्ञान है।

आपके कुल में हरेक को मंदिर जाने की जरूरत नहीं, आप अकेले वहां जा कर वह खास पूजा-विधि पूरी करें, हर किसी को उसका लाभ मिलेगा, क्योंकि आपके कुल के सारे लोग आपस में जुड़े हुए हैं।
पुराने समय में जो भी मंदिर बनाए जाते थे, उनमें जीवन होता था। वे बड़े जीवंत होते थे, किसी दिखावटी गुड़िया जैसे नहीं, कि आप बस दर्शन और पूजा कर लें। वहां अलग-अलग क्षमता, किस्म, और गुणों वाली एक जीवंत शक्ति पैदा की जाती थी। लोग हर मंदिर में नहीं जाते थे। कुछ मंदिर सबकी सामान्य भलाई के लिए बने होते थे, जहां सभी लोग जाया करते थे। पर खास मकसद के लिए वे अपने कुल-देवता के मंदिर में ही जाते थे। यह आनुवंशिकी यानी जेनेटिक्स की उनकी गहरी समझ की ओर इशारा करता है।

आजकल ये संभव है कि किसी खुदाई में मिली सौ साल पहले मरे किसी इंसान की हड्डी को वैज्ञानिक, प्रयोगशाला में ले जा कर उसके डीएनए की जांच करें और फिर आपके डीएनए के साथ मेल कर के बता दें कि वे आपके परदादा की हड्डी है। यह किसी दस हजार साल पुरानी हड्डी के साथ भी किया जा सकता है। विज्ञान ने आपको इतनी जानकारी उपलब्ध करा दी है। इसी तरह हजारों साल तक लोगों ने अपने तरीके से अपने जेनेटिक चिह्नों को गोत्र और कुल के रूप में बनाए रखा। इन वंश-चिह्नों को कभी बिगड़ने नहीं दिया, कभी कोई मिलावट नहीं की– तकि उनकी संतान अच्छी होती रहे। इतना ही नहीं, कुछ इस तरह की खास ऊर्जा भी आप तैयार कर सकते हैं जो उन वंश-चिह्नों के सहारे पूरे कुल में फैल सके। आपके कुल में हरेक को मंदिर जाने की जरूरत नहीं, आप अकेले वहां जा कर वह खास पूजा-विधि पूरी करें, हर किसी को उसका लाभ मिलेगा, क्योंकि आपके कुल के सारे लोग आपस में जुड़े हुए हैं। अब मेडिकल साइंस भी इस दिशा में आगे बढ़ रहा है। वैज्ञानिक ऐसा भी कुछ ढूंढ़ सकते हैं, जो आपके डीएनए के लिए काम करेगा और उससे उन सबको फायदा मिलेगा जिनमें वह डीएनए है।

उस समय के लोगों ने यह बात अच्छी तरह से समझ ली थी और वे पूरी गंभीरता से आनुवंशिक या वंश से जुड़े चिह्नों को वंशवृक्षों में बनाए रखते थे। उस खास डीएनए और उस वंश से जुड़े रुझान के लिए खास ऊर्जा-स्रोत तैयार किया जाता था। मंदिर जाने पर लोग ऊपर बैठे भगवान को अपने कुल का बयान नहीं सुनाते थे, वे बस अपनी उपस्थिति दर्ज करते थे, “यह मैं हूं, इस वंश का हूं, मेरा गोत्र यह है, मेरा नक्षत्र यह है, यह मेरा कुल है।” दरअसल उनकी बात का मतलब होता था, “यह मेरा डीएनए है, मेरे लिए कुछ कीजिए।” अपनी बात रखने का यह तरीका कितना वैज्ञानिक है! यह जिंदगी की बहुत गहरी और बढ़िया समझ है।