कृष्ण एक ऐसे बालक थे जिन्हें रोका नहीं जा सकता था। वे बहुत शरारती, मंत्रमुग्ध कर देने
वाले बाँसुरी वादक, शालीन नर्तक, जिनसे कोई बच न सके ऐसे प्रेमी थे। वे एक बहादुर योद्धा भी
थे, और अपने दुश्मनों का निर्दयतापूर्वक नाश करने वाले विजेता भी। वे एक ऐसे पुरुष थे जिन्होंने
हर घर में किसी का दिल तोड़ा था, वे एक चतुर राजनयिक थे और राजाओं के निर्माता भी। वे एक
सज्जन पुरुष थे और सबसे ऊँची श्रेणी के योगी भी। कृष्ण दिव्यता के सबसे आकर्षक अवतार थे।

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अगर हम उस चेतना से प्रभावित होना चाहते हैं, जिसे हम कृष्ण कहते हैं तो हमें ज़रूरत है लीला की - एक लीला पुरुष के मार्ग की!

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कृष्ण - मनभावन उत्पाती 

कृष्ण के बाल जीवन का सार ये था कि उन्होंने पूरे समाज को अपने प्रति आनंद से पागल बना दिया था। अपने करामाती रूप, अपनी मोहक मुस्कान, अपने बाँसुरी वादन और अपने नृत्य से उन्होंने लोगों को ऐसे उन्माद से भर दिया जो लोगों ने पहले नहीं जाना था।

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जिस दिन कृष्ण का जन्म हुआ, उसी दिन से लोग उन्हें मारने की कोशिश कर रहे थे। वे बहुत मुश्किल परिस्थितियों में से होकर गुज़रे, फिर भी अपना जीवन उन्होंने सफलतापूर्वक जिया। यही कारण है कि वे भारत के सांस्कृतिक लोकाचार के एक अटूट भाग हो गये हैं।

vasudev carrying lord krishna

 

कृष्ण ने अपने जीवन को ऐसे जिया जैसे कि वो कोई उत्सव हो! एक बालक के रूप में भी उन्होंने अपने खुद के बारे में कई सुंदर बातें कहीं, जिनमें एक बात ये थी, "मैं जब सुबह उठता हूँ, तब गायों की हंबार सुनता हूँ, और अपनी माँ को हर गाय को दोहने से पहले उसका नाम ले कर बुलाते सुनता हूँ, तो मुझे पता लग जाता है कि अब मुझे अपनी आँखें मलते हुए मुस्कुराना चाहिये"।
 

krishna sleeping

 

वे जब युद्ध में गये, तब भी उन्होंने अपने सिर पर मोरपंख लगा कर रखा। वे कोई फैशनपरस्त इंसान नहीं थे पर अपने जीवन के हर पहलू को एक उत्सव बनाने के लिये प्रतिबद्ध थे। चाहे ये उनकी भावना हो या मन, उनके काम हों या कपड़े, वे हमेशा अपने आसपास के लोगों के लिये अपने सबसे उत्तम रूप में होना चाहते थे। ये उनका सब के लिये प्यार था।

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गोपाल - एक मनमोहक गोपालक

सामान्यता लोगों को दैवी स्वरूप सिर्फ महान वीतरागी योगियों या राजाओं में ही दिखता था। हालांकि कृष्ण सिर्फ एक गौपालक थे, पर लोग उनकी सुंदरता, बुद्धिमानी, शक्ति, और बहादुरी को अनदेखा नहीं कर सके।

gopal krishna image

 

हम जब कृष्ण को गोपाल कहते हैं तो उनके बारे में प्यार से बात करते हैं। हम जब उन्हें गोविंद कहते हैं तो उन्हें दिव्य स्वरूप मान कर उनके सामने झुकते हैं।

krishna govinda

 

कृष्ण को एक ऐसे सुंदर व्यक्ति के रूप में पहचाना जाता था जो रंग से काले थे - श्यामसुंदर! वे संध्याकाल की तरह थे। जब सूर्यास्त होने लगता है तो दिन का हल्का नीला रंग एक गहरे काले नीले रंग में बदलने लगता है। वो उनका रंग था।

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जिस सादगी और शालीनता से कृष्ण रहते थे, जिस तरीके से वे हर चीज़ की ओर जाते थे, उनकी चाल, उनके शरीर और मन का संतुलन - सब कुछ ऐसा था कि लोग उन पर से नज़र और ध्यान हटा ही नहीं पाते थे।

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कृष्ण के आभामंडल के सबसे बाहरी चक्र का जो नीलापन था, वह उन्हें जबर्दस्त रूप से आकर्षक बनाता था।

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कृष्ण इतने आकर्षक थे कि हत्यारिन पूतना भी, जो बालक कृष्ण को मारने आयी थी, वो भी उनके प्यार में पड़ गयी थी।

bal krishna with yashoda maiya

 

जाने-अनजाने, कृष्ण के आसपास के लोग बहुत ज्यादा प्यार करने वाले और मीठे स्वभाव के हो गये थे। वे लोगों को मधुर हो जाने के लिये प्रेरित करते थे।

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कृष्ण की साधना थी - अपने आसपास के जीवन के साथ पूरी तरह से लय में होना। जब आप किसी के साथ लय में होते हैं, तभी उनकी हाज़री में सुखद अनुभव कर सकते हैं। अगर ऐसा नहीं है तो ही परेशानी होती है।

krishna sadhana

 

कृष्ण के बचपन की प्रेमिका थी - राधा। राधा का मानना यह था, कि वे कहती थीं, "कृष्ण हमेशा मेरे साथ हैं। वे चाहे कहीं भी हों, किसी के भी साथ हों, फिर भी वे मेरे साथ हैं"।

radha with flute

 

कृष्ण की किशोरावस्था

 

अपनी बाँसुरी से कृष्ण किसी भी तरह के व्यक्ति को, यहाँ तक कि जानवरों को भी सम्मोहित कर देते थे। पर जब वे गाँव छोड़ कर धर्म की रक्षा के लिये चले तो उन्होंने अपनी बाँसुरी राधा को दे दी और फिर कभी उसे नहीं बजाया। उस दिन से राधा कृष्ण की तरह बाँसुरी बजाने लगी।

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कृष्ण - जो हमेशा मुकुट और मोरपंख के साथ सिल्क के कपड़ों में सजे-धजे रहते थे, जब ब्रह्मचारी हो गये तो सिर्फ मृगछाल पहनने लगे और अपनी नयी साधना के लिये पूरी तरह से समर्पित हो गये। उससे पहले दुनिया ने कभी इतना शानदार भिक्षुक नहीं देखा था।

Krishna became a glorious beggar

 

गुरु संदीपनि को कृष्ण को निर्देश देने के लिये कभी मुँह नहीं खोलना पड़ता था। सब कुछ मन ही में कह दिया जाता था और समझ कर पूरा भी कर लिया जाता था।

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धर्मगुप्त - सच्चाई के सम्राट

कृष्ण को धर्मगुप्त कहा जाता था, अर्थात, धर्म और सच्चाई के सम्राट। पर उन्होंने कभी किसी राज्य पर शासन नहीं किया, जबकि उनमें ऐसा करने की शक्ति और योग्यता थी।

krishna the emperor of Dharma

 

उनके जीवनकाल में और अभी भी, बहुत से लोग कृष्ण को मायावी, झूठा और मनमोहक ठग कहते हैं - क्योंकि वे समाज के नैतिक नियमों को नहीं मानते थे। वे बस वही करते थे जिससे, जो भी परिस्थिति हो उसका सबसे अच्छा परिणाम आये।

 

krishna govinda gopala

गोविंद - अंतिम सत्य के रूप में कृष्ण।

जब लोगों ने कृष्ण से पूछा, "हे भगवन! लोग कहते हैं कि आप मुक्तिदाता हैं। तो हमारे पास क्या रास्ता है"? तो  कृष्ण उन पर सवालिया नज़र डालते हुए बोले, "कौन सा रास्ता है? अरे, मैं ही रास्ता हूँ"!

devotee praying to krishna

हालांकि कृष्ण लोगों के साथ हर तरह की शरारत करते थे, फिर भी हर कोई कृष्ण से बहुत प्यार करता था क्योंकि वे उन सभी के साथ और अपने चारों ओर के हर जीवन के साथ पूरी लय में रहते थे।

सभी को साथ रखने का, सब के साथ शामिल होने का, कृष्ण का भाव कुछ ऐसा था कि उनके जानी दुश्मन भी उनके साथ बैठते थे और, उनकी बातों को कैसे भी हो, मान लेते थे। कितनी ही बार उन्होंने, बिना खास कोशिश के, कई ऐसे लोगों को बदल दिया था, जो उन्हें गाली देते थे और उन्हें मारने की योजना बनाते थे।

'राधा' शब्द का अर्थ है वो जो जीवन का रस, यानी प्यार देता है। अपने प्यार में राधा ने कृष्ण को अपना ही भाग बना लिया था। लोग कहते हैं कि राधा के बिना कोई कृष्ण है ही नहीं। वे ऐसा नहीं कहते कि कृष्ण के बिना राधा नहीं है। राधा कृष्ण! या राधे कृष्ण!!

स्त्रीत्व एक खास गुण है। ये किसी पुरुष में भी उतना ही जीवंत हो सकता है जितना किसी स्त्री में। आप अगर कृष्ण को जानना चाहते हैं तो आपको पूरी तरह से स्त्रीत्व में डूबना होगा। ये रास्ता अंतरंग और जुनून का है, जो कुछ भी नहीं छोड़ता।

जब कृष्ण कुछ करना चाहते थे तो वे उसे उसी तरह करते थे जैसा उसे किया जाना चाहिये, चाहे कोई कुछ भी कहे। उनके जीवन में ऐसी बहुत सी घटनायें हुईं जिन्होंने उन्हें स्वाभाविक रूप से समाज का नेता बना दिया।

कृष्ण ने ऐसा कभी नहीं माना कि पांडव पूरी तरह से निर्दोष, सच्चे ही थे या कौरव पूरी तरह से दुष्ट थे, खराब थे। वे उस तरह की नैतिकता से भरे हुए नहीं थे कि किसी के बारे में सीधे काला - सफ़ेद के आधार पर फैसला कर लें।

कुछ लोगों के साथ कृष्ण बहुत ही करुणावान थे जब कि कुछ लोगों के साथ निर्दयी। जब जैसी जरूरत होती थी तब वे लोगों का पोषण भी करते थे और उन्होंने कुछ लोगों को मारा भी। उन्होंने जीवन के साथ वैसा किया जैसा करने की ज़रूरत थी, क्योंकि उनके अपने खुद के कोई नीति - नियम नहीं थे। वे स्वयं ही जीवन थे।

हम जिन्हें कृष्ण कहते हैं, वे कोई व्यक्ति नहीं थे बल्कि एक खास चेतना थे।

उद्धव ने एक बार कृष्ण से पूछा कि जब वे दिव्यता की अभिव्यक्ति ही हैं तो वे लोगों की समस्याओं को अपनी उंगली घुमा कर ही क्यों नहीं सुलझा देते? कृष्ण ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, "कोई भी तब तक चमत्कार नहीं कर सकता जब तक उसका लाभ लेने वाला उसमें पूरा विश्वास नहीं रखता"।

अपने जीवनकाल में कृष्ण ने स्वयं ही बहुत सारे लोगों में अपने लिए विश्वास पैदा किया पर वह पर्याप्त नहीं था। ये हमेशा से ऐसे ही रहा है - जब महान लोग हुए तब महान बातें नहीं हुईं क्योंकि वे लोग अपने समय से बहुत आगे थे।

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