भीष्म देश के प्रति गहरी निष्ठा का भाव रखते थे और वे इस तरह उसे टुकड़ों में बँटते हुए नहीं देख सकते थे। वे हस्तिनापुर के दूसरे बुज़ुर्गों के पास गए और कहा, ‘आप सबको इस मामले में बोलना चाहिए वरना हमारे देश के दो हिस्से हो जाएँगे।’ उन्होंने जवाब दिया, ‘जब तुमने आजीवन ब्रह्मचारी रहने का मूर्खतापूर्ण संकल्प लिया था, तब तुमने हमारी राय नहीं ली थी। अब तुम्हें हमारी याद आई है?’ वे सब जानते थे कि ये हालात विभाजन की ओर जा रहे थे और वे चाहते थे कि भीष्म ही यह कार्य करने की पीड़ा भी सहें।

बंटवारे में पांडवों को खांडवप्रस्थ सौंपा गया

भीष्म पर ही अपनी प्रिय मातृभूमि के दो हिस्से करने का भार आ गया। उन्होंने आख़िरकार धृतराष्ट्र से कहा, ‘ठीक है, देश का विभाजन कर दो। एक हिस्सा पांडवों को दे दो और कौरवों को हस्तिनापुर पर शासन करने दो।’ धृतराष्ट्र ने भरी सभा में पांडवों को बुलवाया और कहा कि वे उन्हें खांडवप्रस्थ का इलाका देंगे जिसमें कुरुओं की प्राचीन राजधानी भी शामिल है। कई पीढ़ियों पहले की बात है- प्रथम चंद्रवंशी राजा, बुध के पुत्र पुरुरवा को ऋषियों ने श्राप दिया था जिसकी वजह से खांडवप्रस्थ खंडहर हो कर, रेगिस्तान में बदल गया था और फिर उसे ख़ाली छोड़ दिया गया था। राजा धृतराष्ट्र ने पांडवों को वही इलाका सौंपा था।

भीम गुस्से से पगला उठा। उसने ग़ुस्से में कहा, ‘मैं दुर्योधन और उसके भाईयों को जान से मार दूँगा। वे हमें शासन करने के लिए ऐसी जगह कैसे दे सकते हैं?’

युधिष्ठिर ने, जैसा कि वे थे, विनम्रतापूर्वक उसे स्वीकार कर लिया और अपनी पत्नी और भाईयों के साथ जाने के लिए तैयार हो गए। तब कृष्ण ने दख़ल देते हुए कहा, ‘अगर आप पूरा न्याय कर रहे हैं तो उन्हें आधा सोना, पशु, घोड़े और रथ आदि भी दिए जाने चाहिए। मल्ल, लुहार व सुनार आदि जो भी पांडवों के साथ जाना चाहे, उन्हें जाने दिया जाए। किसी के भी जाने या रहने पर पाबंदी न हो।’ मल्ल कुश्ती लड़ने वाले लोग होते थे, जिनको उन दिनों बहुत महत्वपूर्ण माना जाता था। अगर आप सेना को ट्रेनिंग देना चाहते हैं, तो आपको ऐसे लोगों की जरूरत होती थी जो व्यायामशाला में उन्हें ट्रेनिंग दे सकें। कौरवों के लिए यह बात किसी झटके से कम नहीं थी। कृष्ण ने कहा कि प्रजा को पांडवों के पास जाने की आजादी दी जाए। धृतराष्ट्र और कौरव यह दिखाने की कोशिश कर रहे थे कि उन्होंने पूरा न्याय किया है। पर वास्तव में उन्होंने राज्य का बेहतरीन भाग अपने लिए रख लिया था और पांडवों को बंजर और वीरान भूमि हिस्से में दी थी।

भीम क्रोध से पगला उठा

कई लोगों का तो यह भी मानना था कि पांडव उस शापित भूमि में मारे जाएँगे। लेकिन दुर्योधन कोई भी कसर नहीं छोड़ना चाहता था। उसके पास यह काम करने के लिए योजना भी थी। पर पहले, कौरवों को उन्हें आधा सोना, पशु और रथ आदि देने पड़े। बहुत सारी प्रजा ने पांडवों के साथ जाने का चुनाव किया। आख़िर उनका काफिला चल पड़ा। कई दिनों तक चलने के बाद, बहुत सारे लोग रास्ते में मर गए, इस तरह वे कई कष्ट सहते हुए खांडवप्रस्थ पहुँचे। पहुँचने से पहले तक पांडव उत्साहित थे पर उस जगह को देखते ही उनका दिल डूब गया। भीम गुस्से से पगला उठा। उसने ग़ुस्से में कहा, ‘मैं दुर्योधन और उसके भाईयों को जान से मार दूँगा। वे हमें शासन करने के लिए ऐसी जगह कैसे दे सकते हैं?’

भीम

भीम

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पवन से उपजा

एक बेलगाम हवा का झोंका

ऐसी हवा जिसे देता है दिशा

कोई पर्वत, पहाड़, घाटी या टीला

जो उठा सकता है लहरें सागर में

जो कर सकता है घनघोर गर्जन

लेकिन उठा नहीं सकता एक कंकड़ भी।

हवा – जो है एक बुलबुला प्यारा सा

हवा – जो है एक जीवनदायक साँस।

-सद्गुरु

भगवान कृष्ण ने किया इंद्र का आह्वान

भीम तो पवन पुत्र था - वह एकदम से बौखला गया। बाकी भाईयों के पास भी कहने को कुछ नहीं बचा था। कृष्ण भी एक अलग ही सुर में उनसे बोल पड़े, ‘भीष्म और तुम्हारे गुरुओं – गुरु द्रोण और कृपाचार्य ने ऐसा करने की अनुमति कैसे दे दी। जिन लोगों ने तुम्हारे लिए ऐसा किया, वे तो खुले हाथों अपने लिए मौत को न्यौता दे रहे हैं। अब वह दिन दूर नहीं है।’ पहली बार ऐसा हुआ कि केवल दुर्योधन को दोषी नहीं समझा गया – उन्होंने भीष्म, द्रोण, कृपाचार्य और धृतराष्ट्र आदि सबको इसमें शामिल कर लिया था।

पांडव यात्रा से थके हुए थे। उन्होंने वहीं अपने खेमे गाड़े और आराम करने लगे। कृष्ण ने सबके आराम से सो जाने का इंतजार किया और फिर आसपास के इलाके का मुआयना करने लगे। उन्होंने अपना सिर आकाश की ओर उठाया और एक पुरानी भाषा में इंद्र को पुकारा। बिजली की कड़क और गरजन के साथ इंद्र देव आ गए। कृष्ण ने कहा, ‘तुम्हें अपने जादू से यहाँ नगर बनाना होगा। तब हम इसे इंद्रप्रस्थ नाम देंगे। यह तुम्हारा नगर होगा। इसे ऐसा सुंदर नगर होना चाहिए जैसा दुनिया ने कहीं न देखा हो।’ और फिर वह जादू शुरू हो गया।

पांडवों को लोग देवता समझने लगे

इंद्र के शिल्पी विश्वकर्मा को बुलवाया गया और नगर बसाने का आदेश दिया गया। जब सभी सो गए तो उन्होंने अपने आकाशीय शरीर को सारे नगर में फैला दिया। फिर दीवारें, मीनारे, महल, दरबार, और घर रूप लेने लगे - हर चीज का अस्तित्व दिखाई देने लगा। केवल इंद्र और कृष्ण इस माया के साक्षी थे। जब बाकी सब लोग सुबह सो कर उठे तो उन्होंने ख़ुद को सुंदर सी नगरी में पाया। यह ख़बर चारों ओर आग की तरह फैल गई कि ‘पांडवों ने रातोंरात एक नगर का निर्माण कर लिया।’

उसी पल से पांडव, प्रजा के बीच देवों की तरह माने जाने लगे। पहले से ही उनके बारे में ये किस्से कहे जाते थे कि वे तो मर कर दोबारा जीवित हो गए थे। लोग कहते, ‘पांडव मर गए थे, वे देवलोक गए और देवों का रूप धर लिया। फिर वे धरती पर वापिस आए हैं और देखो अब उन्होंने रातोंरात अपने लिए एक नगरी बसा दी है।’ इंद्रप्रस्थ सबसे सुंदर नगर बना। यहाँ तक कि आज भी यह भारत की राजधानी है - यह नई दिल्ली का एक हिस्सा है। इंद्रप्रस्थ कई शासकों की राजधानी रही। बाहर से आने वाले हमलावरों ने भी शासन के लिए इंद्रप्रस्थ को ही चुना। आज भी यहाँ सत्ता के गलियारे हैं। यह आज भी जादुई है या नहीं, यह एक अलग बात है।