अर्श: सद्‌गुरु, अगर मैं अपने विचारों और परिस्थितियों से अपनी पहचान नहीं जोड़ूं तो क्या जरूरत पडऩे पर मैं अपना सौ फीसदी दे पाऊंगा?

पहचान न बनाने से, आपका जुड़ाव जबरदस्त गहरा होगा

सद्‌गुरु: अगर तार्किक रूप से देखा जाए तो किसी चीज से अपनी पहचान न बनाने का मतलब है कि आपके और आपके काम बीच एक दूरी है। लेकिन पहचान नहीं बनाने का मतलब उसके साथ जुड़ाव न रखना नहीं है। दरअसल, जब आप कोई पहचान नहीं रखते तो आप सजग रूप से खुद को जोड़ सकते हैं। अगर आप अपने जीवन की हर स्थिति में खुद को झोंक नहीं देते, तो इसकी सिर्फ एक वजह है कि आपने अपनी पहचान बहुत गहरी बना रखी है। आप अपने स्वार्थ की वजह से खुद को पूरी तरह से समर्पित नहीं कर सकते हैं। लेकिन जब आप चीजों से अपनी पहचान नहीं बनाते, तो फिर आप पूरी तरह से किसी चीज से जुड़ सकते हैं। लेकिन जब आप चीजों से पहचान बनाते हैं, और फिर किसी चीज से जुडऩा चाहें तो हर बार आपका जुड़ाव आपसे सवाल करता है और आपको डराता है कि आप जो हैं, उसका क्या होगा? जब चीजें वैसे नहीं होतीं, जैसा आप सोचते हैं तो आपकी पहचान खतरे में आ जाती है और तब वह स्थिति आपके लिए बेहद असुरक्षित व डरावनी हो उठती है। एक बार जब आप इस अनुभव से गुजरते हैं, तो फिर उस चीज से आपके जुडऩे का स्तर एकदम नीचे आ जाता है। फिर आप बुझे हुए या बिना उससे जुड़े जीने लगते हैं। आप खुद को जीवन के साथ सचमुच तभी जोड़ पाएंगे, जब आप इससे अपनी पहचान स्थापित नहीं करेंगे। यह बात विचार और हालात दोनों पर ही लागू होती है।

 

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अगर किसी अपने के साथ कुछ गलत हो तो क्या करें?

अर्श: मान लीजिए मेरे किसी रिश्तेदार के साथ कुछ गलत हो गया। ऐसे में हो सकता है कि मुझे वहां जाना पड़े और उनकी कुछ मदद करनी पड़े। लेकिन अगर मैं उस स्थिति से प्रभावित नहीं होता हूं तो क्या आपको लगता है कि मैं वहां जाकर वह सब कर पाऊंगा, जिसकी वहां जरूरत होगी?

सद्‌गुरु: मान लीजिए आपके प्रियजन के साथ कुछ घटित हुआ और आपने उनके साथ अपनी पहचान बनाकर नहीं रखी है, तब भी आप अपनी तरफ से हर चीज अपनी पूरी क्षमता के साथ करेंगे। क्योंकि आपकी पहचान स्थापित न होने का मतलब यह नहीं है कि आप का प्रेम, आपका लगाव सबकुछ चला गया। लेकिन अगर आपने अपनी पहचान बनाई होगी, तो आप शायद सो नहीं पांएगे, खा नहीं पाएंगे, आप वो सब कुछ ठीक तरह से नहीं कर पाएंगे, जो सामान्य स्थिति में आप करते। अब आप ही बताइए कि अगर आपके सामने ऐसी स्थिति आए कि आपके आसपास किसी के साथ कुछ गलत घटित हो जाए और उस समय उन्हें आपकी जरूरत हो, तो वहां होने का सबसे अच्छा तरीका कौन सा होगा? वहां अपने होशोहवास व संतुलन को पूरी तरह से बनाए रखते हुए अपनी पूरी क्षमता के साथ मौजूद होना या फिर अपना संतुलन खोकर वहां रहना - दोनों में से बेहतर क्या होगा?

अब आप ही बताइए कि अगर आपके सामने ऐसी स्थिति आए कि आपके आसपास किसी के साथ कुछ गलत घटित हो जाए और उस समय उन्हें आपकी जरूरत हो, तो वहां होने का सबसे अच्छा तरीका कौन सा होगा? वहां अपने होशोहवास व संतुलन को पूरी तरह से बनाए रखते हुए अपनी पूरी क्षमता के साथ मौजूद होना या फिर अपना संतुलन खोकर वहां रहना - दोनों में से बेहतर क्या होगा?

अब तक सारे लोगों ने, सारे अज्ञानी लोगों ने आपको हमेशा यह यकीन दिलाया है कि अगर आपका कोई अपना बीमार होता है, मरता है या उसके साथ कुछ बुरा होता है तो आपको पूरी तरह से टूट जाना चाहिए, नहीं तो ये समझा जाएगा कि आप उन्हें प्यार नहीं करते। जबकि यह सच नहीं है।

 

 

प्रेम कमजोरी नहीं है

प्रेम असमर्थता नहीं है, प्रेम एक क्षमता है। प्रेम एक समर्पण है। प्रेम एक प्रतिबद्धता है। यह बिल्कुल जरूरी नहीं है कि आप बिखर जाएं। अगर अपनों को मुश्किल में पाकर आप टूट जाते हैं, तो इसकी एक साधारण सी वजह है कि आप उनसे अपनी पहचान बनाए हुए हैं, इसकी वजह यह नहीं है कि आप उनसे जुड़े हुए हैं। तब आपको जीवन का आनंद लेने में अपराधबोध महसूस होता है। घर पर कोई बीमार है, मैं हंस रहा हूं, इसे लेकर तो अपराधबोध महसूस करना चाहिए - ये सब बकवास बातें हैं। अगर एक इंसान बीमार है, तो पूरी दुनिया को बीमार होने की जरूरत नहीं है। घर में अगर एक व्यक्ति बीमार पड़ा है तो यह बेहतर होगा कि घर के बाकी लोग आनंदित रहें और उस बीमार सदस्य के लिए जो बेहतर हो सकता है करें। उसके प्रति अपनी हमदर्दी दिखाने के लिए सबका बीमार पड़ जाना तो ठीक नहीं है न?