ज्यादातर लोगों के जीवन की क्वालिटी उनके संबंधों की क्वालिटी से तय होती है। क्या आपने कभी सोचा कि संबंधों का आधार क्या है? इंसान को संबंधों की आवश्यकता आखिर होती क्यों है?

रिश्तों की प्रकृति और प्रकार कैसा भी क्यों न हो, लेकिन मूल बात यह है कि इंसान की कोई न कोई ऐसी आवश्यकता जरूर होती है जिसे वह पूरा करना चाहता है। इंसान के अंदर खास तरह का अपूर्णता का अहसास है जिसके चलते उसकी आवश्यकताएं बढ़ गई हैं। जीवन में कई ऐसे मौके भी आते हैं, जब हम किसी विशेष जरूरत को पूरा करने के मकसद से संबंध बनाते हैं। इस संबंध से अगर वह आवश्यकता पूरी नहीं हुई तो रिश्तों में कड़वाहट आ जाती है।

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इंसान अपने अंदर एक खास तरह की अपूर्णता व अधूरापन महसूस करता है। यही  अपूर्णता उसके रिश्तों की बुनियाद है।

इसकी मूल वजह यह है कि हमने इस जीवन को पूरी गहराई के साथ समझा ही नहीं है। हालांकि यह मूल वजह जरूर है, लेकिन रिश्तों की एक जटिल प्रक्रिया है। रिश्तो में बस उम्मीदें ही उम्मीदें हैं। मजे की बात यह है कि इंसान किसी रिश्ते से जैसी उम्मीद बना लेता है, उन उम्मीदों को पूरा करना इस धरती पर किसी के भी वश की बात नहीं है। चूंकि लोग उम्मीदों की जड़ को समझ पाने में असमर्थ होते हैं, इसीलिए वे उम्मीदों को पूरा नहीं कर पाते। शुरू-शुरू में उम्मीदें एक जैसी ही हो सकती हैं, लेकिन जैसे जैसे हम जीवन में आगे बढ़ते हैं, हमारी सोच और अनुभवों में बदलाव के कारण उम्मीदें भी बदलतीं रहतीं हैं। परेशानी यह है कि लोग उस गति से नहीं बदलते।

खासकर पुरुष और स्त्री के संबंधों में उम्मीदें इतनी ज्यादा हैं कि अगर आपकी शादी किसी देवी या देवता से भी हो गई तो भी वह असफल ही साबित होगी।
तो अगर आप इन चीजों का प्रबंधन या मैनेजमेंट करने चलें तो ऐसा कोई तरीका नहीं है जिससे आप इन्हें 100 फीसदी नापकर एक खूबसूरत रिश्ता कायम कर सकें। अगर आप दूसरे शख्स के दिमाग को पढ़ने की कोशिश करेंगे और लगातार उसकी उम्मीदों को पूरा करने की कोशिश करते रहेंगे तो और यह कभी न खत्म होने वाला सर्कस बन जाएगा। कुछ हद तक आपको यह सब करना चाहिए, लेकिन तय मानिए कि यह किसी अच्छे रिश्ते का आधार कभी नहीं हो सकता।

मूल रूप से आपने किसी संबंध की इच्छा क्यों की ? क्योंकि आप खुश रहना चाहते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो आप दूसरे शख्स को अपनी खुशी के साधन के तौर पर इस्तेमाल करना चाहते हैं। आप कोई संबंध खुशी पाने के लिए बना रहे हैं और इस खुशी को दूसरे में से निचोड़ने की कोशिश कर रहे हैं, और दूसरा भी अपनी खुशी को आपके अंदर से निचोड़ने की कोशिश में लगा है तो तय मानिए कुछ ही समय के बाद यह रिश्ता बहुत दुखदायी हो जाएगा। शुरुआत में यह सब अच्छा लग सकता है क्योंकि काफी कुछ इच्छाएं पूरी हो रही हैं। दूसरी तरफ अगर आपने खुद के भीतर ही खुशी ढूँढ ली है और खुद ही आनंदमय हो गए हैं तो आपके जिससे भी संबंध होंगे, उसे आपसे कोई शिकायत नहीं होगी। ऐसा इसलिए क्योंकि आप अपने आनंद को दूसरों के साथ बाँटना चाहते हैं, दूसरों से उसे पाने की चाहत नहीं रखते।

जितना ज्यादा द्वंद आज घर की चारदीवारी के भीतर देखने को मिलता है, उतना दुनिया में कहीं नहीं मिलता। बस गनीमत इतनी है कि बमबारी नहीं हो रही है!

तो अगर आपकी जिंदगी आनंद को प्रकट करने का माध्यम बन जाए तो रिश्ते अपने आप ही खूबसूरत हो जाएंगे। अब दूसरों की उम्मीदों को पूरा करना और दूसरों से उम्मीद रखने वाला पूरा मामला आएगा ही नहीं। क्योंकि अगर आप खुद आनंदित हैं और आनंद को प्रकट भी करते हैं, तो वे लोग हर हाल में आपके साथ रहना चाहेंगे। दूर तो वे तब होंगे जब आप उनके भीतर से अपनी खुशी को निचोड़ लेने की कोशिश करेंगे। रिश्ते कई तरह के होते हैं और अगर हम चाहते हैं कि वे वाकई अच्छे रहें, तो हमें जीवन को खुशी की अंतहीन खोज न बनाकर आनंद को प्रकट करने का जरिया बनाना होगा।