जीवन में बस कृपा ही कृपा
कृपा पाने का सबसे आसान तरीका है भक्ति। भक्ति कोई सौदाबाजी नहीं है। भक्ति कोई चालाकी नहीं है। फिर भक्ति है क्या? भक्ति के बारे में आज लोगों के दिमाग में तमाम तरह की गलतफहमियां हैं। आइए देखते हैं सद्गुरु का भक्ति और कृपा के महत्व पर क्या कहना है...
सद्गुरु: अगर आप खुद को एक मशीन के रूप में देखें तो आपके पास शरीर है, दिमाग है, आपके पास सब कुछ है। जिसे आप कृपा कहते हैं वो एक चिकनाई की तरह होती है। आपका इंजन कितना भी मजबूत क्यों न हो बिना इस चिकनाई के आप हर जगह अटक जाएगें। इस पृथ्वी पर अनेक लोग हैं जो बुद्धिमान हैं, क्षमतावान है, लेकिन जीवन के हर मोड़ पर वो अटक जाते हैं, क्योंकि उनके पास कृपा की चिकनाई नहीं होती। कुछ लोगों के जीवन में भरपूर कृपा है और उनका जीवन आनंदमय है, जबकि कुछ लोग हर छोटी छोटी चीज़ को लेकर जीवन के साथ जूझ रहे हैं।
जीवन के सफर को आनंदमय बनाने के लिए कृपा प्राप्त करना होगा, और इसे पाने का सबसे आसान तरीका भक्ति है। लेकिन बुद्धि बहुत चालाक है, यह किसी का भक्त नहीं बन सकती। आप भक्ति गीत गा सकते हैं, लेकिन आपकी बुद्धि तर्क करती है, हिसाब लगाती है। एक मतलबी बुद्धि कभी भी भक्ति नहीं कर सकती।। ऐसे में भक्त बनने की कोशिश करना समय और जीवन दोनों की बरबादी है। मैनें बहुत सारे भक्ति गीत व संगीत सुने हैं, वास्तव में इनमें कोई भक्ति नहीं होती, इनमें ईश्वर से केवल व्यापार झलकता है।
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भक्ति तो एक गुण है
एक भक्त किसी व्यक्ति का भक्त नहीं होता, भक्ति तो एक गुण है। भक्ति का अर्थ हैः खुद को किसी एक दिशा या लक्ष्य को 100 फीसदी सौंप देना। यदि आप निरंतर एक दिशा में केन्द्रित हैं, तो आप भक्त हैं। जब कोई व्यक्ति ऐसा हो जाता है कि उसके विचार, भावनायें और सब कुछ एकाग्र हो जाये तब वह कृपा का पात्र हो जाता है, उसके ऊपर कृपा होना स्वाभाविक है। आप किसके प्रति समर्पित हैं या किसके भक्त हैं, मुद्दा यह नहीं है। यदि आप सोचते हैं कि मैं भक्त बनना चाहता हूँ या मैं भक्ति करना चाहता हूँ, लेकिन आपके मन में कहीं यह संदेह है कि ईश्वर है भी या नहीं, फिर आप भ्रम में हैं। आपको यह समझ लेना जरूरी है कि ईश्वर का अस्तित्व नहीं है, लेकिन जहाँ भक्त है वहाँ ईश्वर अवश्य निवास करता है।
भक्ति की शक्ति कुछ ऐसी है कि वह सृष्टा का सृजन कर सकती है। जिसे मैं भक्ति कहता हूँ उसकी गहराई ऐसी है कि यदि ईश्वर नहीं भी हो, तो भी वह उसका सृजन कर सकती है, उसको उतार सकती है। एक तार्किक बुद्धि को हमेशा भक्ति से एलर्जी होती है, क्योंकि तथाकथित भक्तों ने केवल अपनी मूर्खता ही दिखाई है। भय को भक्ति के रूप में पेश किया गया। अधिकांश लोगों ने अपनी कुटिलता को भक्ति के रूप में पेश किया। एक बुद्धिमान व्यक्ति ही भक्ति का आनन्द जान सकता है, कोई मूर्ख नहीं। भक्ति के बिना आपके जीवन में कोई गहराई नहीं होती। भक्ति के बिना आपका जीवन छिछला हो जाता है। यदि आप तर्क विचार करें तो सभी कुछ निरर्थक है। यदि आप अपनी तार्किक बुद्धि की पैनी धार चला कर देखें, तो यह संपूर्ण सृष्टि, आप स्वंय और दुनिया में कोई भी किसी काम का नहीं है। जब भक्ति आती है तभी जीवन में गहराई आती है। भक्ति का अर्थ मंदिर जा कर राम-राम कहना नहीं है। वो इन्सान जो अपने एकमात्र लक्ष्य के प्रति एकाग्रचित्त है, वह जो भी काम कर रहा है उसमें वह पूरी तरह से समर्पित है, वही सच्चा भक्त है। उसे भक्ति के लिए किसी देवता की आवश्यकता नहीं होती और वहां ईश्वर मौजूद रहेंगे। भक्ति इसलिये नहीं आई, क्योंकि भगवान हैं। चूंकि भक्ति है इसीलिये भगवान हैं।
भक्ति को एक भावनात्मक अनुभव के रूप में जानना एक बात है, और उसे जीवन के परम आनंदकारी आयाम के रूप में जानना अलग चीज है। भक्ति को एक भावना के रूप में जानने से आपका जीवन शायद थोड़ा मधुर हो जाय, पर भक्ति जीवन को बस मधुर बनाने के लिये नहीं है। आप अभी जिस तरह से हैं, भक्ति उसे पूरी तरह से ध्वस्त करने के लिये है। भक्ति इसके लिये नहीं है कि आप थोड़ा और सुधार जाएं, भक्ति स्वयं को मिटाने के लिए, विसर्जित करने के लिए है। जो स्वयं को विसर्जित करने को तैयार है, वही सच्चा भक्त है।