कोटि-कोटि नमन जांबाज जवानों को
सद्गुरु की सियाचिन यात्रा को पूरे विस्तार से सहेजते हुए यह ब्लॉग हम समर्पित करते हैं अपने देश के वीर जवानों को, जिनकी वजह से आज हम यह ब्लॉग पढ़ पा रहे हैं। अपनी सेना के लिए बस हम इतना कहना चाहेंगे - कोटि-कोटि नमन जांबाज जवानों को! जय हिन्द।
किसी भी राष्ट्र की संप्रभुता इस बात पर निर्भर करती है कि उस देश की सैन्य शक्ति कैसी है। किसी देश के लिए सैन्य शक्ति केवल इसलिए आवश्यक नहीं होती कि वह देश किसी दूसरे देश पर आक्रमण करना चाहता है या सीमाओं का अतिक्रमण करना चाहता है, बल्कि यह राष्ट्र-सम्मान और राष्ट्राभिमान के लिए जरुरी होता है।
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हमारा देश न केवल आध्यात्मिक रूप से, बल्कि जीवन के हर क्षेत्र में अपनी समृद्धि और संपन्नता से पूरी दुनिया को आकर्षित करता रहा है। विदेशी कभी ज्ञान की खोज में तो कभी लूटने की मंशा से इस देश में आते रहे हैं। इस देश को निरंतर संघर्ष से गुजरना पड़ा है। यह सिलसिला आजादी के बाद भी बना रहा और हमें बार-बार अपने पड़ोसियों की बदनीयती का जवाब देना पड़ा है। ऐसे में यह समझना मुश्किल नहीं कि अगर हमारी सेना जरा भी कमजोर होती, तो आज हमारा क्या हश्र होता। लेकिन हमारी राष्ट्रभक्त और जांबाज सेना दुरुह भौगोलिक हालातों में भी डटी रहकर हमें जो सुरक्षा और आजादी देती है, वह जीवन को संपूर्णता और समग्रता में जीने के लिए आवश्यक है।
बेशक आज हमें चाहे केवल आध्यात्मिक साधना ही करनी हो, लेकिन क्या उसके लिए एक सुरक्षा भाव जरुरी नहीं है? चाहे हमें नए शोध करने हों या सिनेमा देखना हो, खेलना हो या अंतरिक्ष में अपना यान भेजना हो, हमारे भीतर सुरक्षा भाव का होना बेहद जरुरी है। और यह सुरक्षा भाव मिलता है, हमारी सेना के सशक्तिकरण से। जब हमारी सेना सशक्त होगी, तो हम सुरक्षित, सशक्त और प्रगतिशील बनेंगे।
आज पूरी दुनिया यह समझने लगी है कि योग कोई व्यायाम नहीं है, बल्कि यह मानव सशक्तिकरण का एक बड़ा उपकरण है। ऐसे में भला हम अपनी सेना को इससे वंचित कैसे रख सकते हैं? अपनी सेना को योग के हथियार से लैस करने के लिए सद्गुरु पहुंच गए समुद्र तल से लगभग अठारह हजार फीट की ऊंचाई पर, मुश्किल भौगोलिक परिस्थितियों में तैनात अपने जवानों के पास। सियाचिन की दुर्गम चोटियों पर योग सिखाने के लिए सद्गुरु का जाना कई मायनों में महत्वपूर्ण है। उन्होंने सेना को न केवल योग का उपहार दिया, बल्कि यह अहसास भी दिलाया कि इतनी ऊंचाई पर वे अकेले नहीं हैं, उनके साथ पूरा देश है। अगर देश में कुछ लोग अपनी सेना के प्रति कृतज्ञता अनुभव नहीं करते या नकारात्मक विचार रखते हैं, तो उनकी वजह से सेना को यह कदापि नहीं सोचना चाहिए कि देश उनके साथ नहीं है।