दुनिया में योग के अलग अलग रूपों से सिखाया जा रहा है, लेकिन अगर हम योग की परंपरा को देखें तो हम जानेंगे कि आदियोगी, भगवान शिव ने योग – यानी अपनी परम प्रकृति को पाने - के 112 तरीके सिखाये थे। क्या इन तरीकों से अलावा, योग में नए आसन या फिर नए प्रकारों का आविष्कार किया जा सकता है?

 

प्रश्‍न :

सद्‌गुरु, ईशा हठ योग को ‘क्लासिकल हठ योग’ क्यों कहा जाता है और वह अलग कैसे है?

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सद्‌गुरु:

क्योंकि हम कुछ भी नया नहीं सिखा रहे हैं। हर कोई कुछ न कुछ नया सिखा रहा है। यह जैसा था, हम बिल्कुल वही सिखा रहे हैं। हर कोई योग पर अपनी छाप छोडऩे के लिए बेचैन है। मैं योग पर अपनी छाप नहीं छोडऩा चाहता, मैं उसे उस तरह सिखाना चाहता हूं, जिस तरह आदियोगी ने उसे मानव-जाति को सौंपा था। ऐसा नहीं है कि यह उनके कहे का मूर्खतापूर्ण अनुसरण मात्र है। क्योंकि एक समय में मैं जैसा अकड़ू था, मैं हर संभव तरीके ढूंढता था जिससे मैं कुछ अलग कर सकूं।

जब मैं ईशा हठ योग को क्लासिकल या पारंपरिक योग कहता हूं, तो मैं बस उनके आगे झुककर कहता हूं, ‘ठीक है, यह तुम्हारा तरीका है, मेरा नहीं।’ तो यह तरीका पारंपरिक है और यह बहुत ही महत्वपूर्ण है कि यह पारंपरिक ही रहे।
लेकिन मैंने पाया कि यह ऐसी चीज है जिसमें आप कुछ भी नहीं कर सकते। क्योंकि पहली चीज तो यह कि उन्होंने खोजने के लिए कुछ भी अनखोजा नहीं छोड़ा। दूसरी चीज यह है, कि इन पंद्रह हजार सालों में इंसान में कोई ऐसा विकास नहीं हुआ है, कि आपको अलग तरह का योग करना पड़े। कुछ भी विकसित नहीं हुआ है, सब कुछ वैसा ही है।

आप कुछ भी नया करके उसे विज्ञान नहीं कह सकते। आपको किसी चीज को गौर से देखना होता है, उसे समझना होता है कि दरअसल वह है क्या। उन्होंने मानव तंत्र के बारे में सब कुछ देखा और बताया। तब से मेरे जैसे बहुत से मूर्खों ने कुछ अलग करने की कोशिश की है। लेकिन हम में से कोई भी रत्ती भर भी कुछ अलग नहीं कर पाया है, सब कुछ वही है। पंद्रह हजार सालों से उसमें कुछ भी नहीं बदला है, इसीलिए इसे पारंपरिक या ‘क्लासिकल’ नाम दे दिया गया है।

आप अपनी परम प्रकृति को एक सौ बारह तरीकों से प्राप्त कर सकते हैं, जिनके बारे में आदि योगी ने बहुत विस्तार से समझा दिया है। उससे ज्यादा करने के लिए कुछ भी नहीं है। जब मैं ईशा हठ योग को क्लासिकल या पारंपरिक योग कहता हूं, तो मैं बस उनके आगे झुककर कहता हूं, ‘ठीक है, यह तुम्हारा तरीका है, मेरा नहीं।’ तो यह तरीका पारंपरिक है और यह बहुत ही महत्वपूर्ण है कि यह पारंपरिक ही रहे। आपको यह समझना होगा कि यह प्रक्रिया इतनी शक्तिशाली है कि अगर आप उसे सही तरीके से करें तो इससे किसी इंसान को पूरी तरह रूपांतरित किया जा सकता है। आप मुझसे सहमत हों या न हों, यह मेरे लिए सच है। मैंने किसी बहुत महान नहीं, बल्कि एक सरल से अभ्यास से शुरुआत की थी, एक सरल से हठ योग से। उसे बस कुछ सालों तक किया और मेरे अंदर सब कुछ बदल गया, करीब-करीब सब कुछ। पुराना कुछ नहीं बचा। और जब वह इतना शक्तिशाली है, तो यह बहुत अहम है कि उसे सही तरीके से किया जाए।

किसी भी शक्तिशाली चीज को बहुत ही ध्यान से संभाला जाना चाहिए। आपके भीतर के आनुवांशिक गुण जो नहीं कर सकते, आपके माता-पिता जो नहीं कर सकते, जो आपके लिए स्वयं सृष्टि भी नहीं कर सकती, उसे योगाभ्यास कर सकता है।

मैंने किसी बहुत महान नहीं, बल्कि एक सरल से अभ्यास से शुरुआत की थी, एक सरल से हठ योग से। उसे बस कुछ सालों तक किया और मेरे अंदर सब कुछ बदल गया, करीब-करीब सब कुछ।
तो जिस योग का अभ्यास आप करते हैं, अगर वह आपको वहां तक पहुंचाने में मदद कर सकता है, जब कोई चीज इतनी शक्तिशाली है, तो आपको उसका इस्तेमाल बहुत ही ध्यान से करना चाहिए। और अगर आप उसका इस्तेमाल ध्यानपूर्वक करेंगे, तो आप निश्चित रूप से पारंपरिक योग ही करेंगे। आप ये ‘डॉग योग’, ‘पावर योग’, ‘कूल योग’, ‘हॉट योग’, इस तरह के जो भी योग आप जानते हैं, उसे नहीं करेंगे। आप सिर्फ  पारंपरिक योग करेंगे क्योंकि कुछ नया है ही नहीं जिसे किया जा सके।

जब कोई चीज शानदार तरीके से काम कर रही हो, तो किसी नए टोने-टोटके या ताबीज गंडे या कुछ भी नया करने की जरुरत क्या है? क्या आप अपनी छाप छोडऩा चाहते हैं? जो लोग अपनी छाप, अपने कदमों के निशान छोडऩा चाहते हैं, वे कभी नहीं उड़ सकते, यही जीवन की प्रकृति है। जो लोग उड़ते हैं, वे उडऩे की खुशी जानते हैं मगर वे अपने निशान नहीं छोड़ सकते।

गलत चीजें न हों, यह तय करना सबसे अहम है। हो सकता है कि सही चीजें तुरंत न हों मगर सबसे अहम बात यह तय करना है कि गलत चीजें न हों। तो अगर आप जानते हैं कि आप गलत चीजें नहीं कर रहे हैं मगर आप जो सही चीजें कर रहे हैं, वह पर्याप्त नहीं है, वह फिलहाल काफी नहीं है, पर वह समय के साथ पर्याप्त हो जाएगा।

इसलिए हम दुनिया भर में हजारों शिक्षकों को प्रशिक्षित करना चाहते हैं जो योग को उस तरह सिखा सकें, जैसा सिखाया जाना चाहिए, जैसा उसका पारंपरिक रूप है।