भरपूर उर्जा का स्रोत है एकाग्रता
बचपन से हम सुनते आ रहे हैं कि कोई भी काम ध्यान से करो। यानी एकाग्रता के साथ। लेकिन क्या कभी सोचा है कि वाकई कितनी महत्वपूर्ण है यह एकाग्रता? यह हमें ऊर्जा का एक वैकल्पिक स्रोत तक दे सकती है। लेकिन कैसे?
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प्रश्न:
सदगुरु, आप मेरुदंड का स्पर्श करके सुषुम्ना नाड़ी को सक्रिय करने की बात करते हैं। क्या आप इसे विस्तार से बताएंगें?
सदगुरु:
थोड़े दिन पहले मैंने टेलीविजन चैनल पर एक बड़ा ही खूबसूरत विज्ञापन देखा, जो किसी सीएफएल बल्ब का था। उस विज्ञापन में एक तिब्बती बालक हाथ में किताब लिए एक खंभे के पास बैठा हुआ है। उसके पीछे प्रभामंडल अपने तेज के साथ चमक रहा है। एक वृद्ध औरत की नजर इस पर पड़ती है। वो बोलने लगती है, ‘रिनपोचे, रिनपोचे’। तिब्बत की बौद्ध जीवन शैली में ‘रिनपोचे’ एक सम्मानीय उपाधि है जो कि गुरुओं को प्रदान की जाती है। कस्बे में रहने वाले लोग उस वृद्धा की आवाज सुनते हैं और जल्द ही सारा कस्बा वहां आ जाता है। कस्बे के सारे लोग उस लड़के के सामने खड़े होकर ‘रिनपोचे, रिनपोचे’ कहने लगते हैं। लड़का उन सब लोगों को देखता है। सबको देखकर वो नीचे उतर आता है और उनके साथ मिलकर वह भी ‘रिनपोचे’ शब्द दुहराने लगता है। विज्ञापन के अंत में पता चलता है कि लोग जिसे प्रभामंडल समझ रहे थे वो वास्तव में सीएफएल बल्ब का प्रकाश था।
आप अभी उस तरह से चमकने में सक्षम नहीं हो सकते लेकिन कुछ है जो प्रकाशित हो रहा है। अगर कुछ भी प्रकाशित नहीं हो रहा होता तो हमने यहां ईशा योग केन्द्र में जो वातावरण तैयार किया है वह एक ऐसा स्थान न होता जहां आप एक प्रकार का मानसिक और सामाजिक आराम महसूस कर पाते। यह एक ऐसा वातावरण नहीं है जो आपको किसी प्रकार का अधिकार देता हो या आपकी पकड़ मजबूत करता हो।
हमारे पास एक विस्तृत सिस्टम है जो यह निर्धारित करता है कि हर एक के जीवन को किस प्रकार प्रभावित किया जाए, ताकि उनके जीवन में हलचल तो हो, परेशानी तो हो, लेकिन इतना न हो कि वो भाग खड़े हों। यह दी गई परेशानी काफी नपी-तुली होती है, क्योंकि हम नहीं चाहते कि लोग स्थिर हो कर बैठ जाएं। यह आश्रम घर से दूर एक घर नहीं है। यह तो एक ऐसा तरीका है जो आपको पूरी तरह घर के बिना रहना सिखाता है। ध्यानलिंग एक घर की तरह नहीं, एक गर्भ की तरह है। क्या आपने कभी ऐसा सुना है कि कोई औरत अपने बच्चे को हमेशा अपने गर्भ में ही रखना चाहती हो क्योंकि वो उससे बहुत प्यार करती है? वह उससे जितना भी प्यार करे लेकिन फिर भी वह उसे जन्म देती है। ध्यानलिंग ऐसा ही है।
प्रेम के मामले में आपकी समझ को बढ़ाने करने की जरूरत है। आप हमेशा यह सोचते हैं कि प्रेम का मतलब किसी को अपने पास रोक कर रखना होता है। जबकि प्रेम का तो मतलब होता है मुक्त करना और आगे की ओर बढ़ाना। अगर आप वास्तव में जीवन की परवाह करते हैं तो आपके लिए प्रेम का मतलब है - जहां तक संभव हो सके जीवन को महत्तम ऊंचाई तक ले जाना। अगर आप जीवन के किसी रूप से प्रेम करते हैं तो आप चाहेंगे कि जीवन का वह रूप अपने सर्वोच्च स्तर को प्राप्त करे। लोगों के मन को संतुलित करने के लिए हम ईशा योग का उपयोग एक प्रभावकारी यंत्र के रूप कर रहे हैं। यह बड़ी सुंदरता से आपके ऊबड़ खाबड़ मन को समतल करता है और इस मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया के तहत जब ग्रहणशीलता का पल आता है तभी हम आपके मेरुदंड को छूते हैं।
बनें ऊर्जा का स्रोत
अगर आप इसे आगे भी जारी रखना चाहते हैं और निरंतर बढ़ाना चाहते हैं ताकि आपका तेज केवल आपके रूंपातरण के ही काम न आए बल्कि ये आपको इस ग्रह पर ऊर्जा का एक ‘वैकल्पिक स्रोत’ बनाए तो आपको बहुत ज्यादा ध्यान देना पड़ेगा। बहुत ज्यादा का मतलब बहुत ज्यादा है। लेकिन आप किसी चीज पर बहुत ज्यादा ध्यान इसलिए नहीं दे सकते क्योंकि आप केवल उतना ही दे सकते हैं जितना आपके पास है। लेकिन जितना आपके पास है, उतना भी न दें तो यह अच्छी बात नहीं होगी। ध्यान का या एकाग्रता का जो भी स्तर अभी आपका है, आपके लिए वही अंतीम संभावना नहीं है। आपके अंदर और अधिक क्षमता है, लेकिन वह अभी प्रकट अवस्था में नहीं है, अभी आपकी पहुंच में नहीं है। लेकिन कम से कम ध्यान का जो स्तर आपके पास है उसी के साथ इस पर काम करना होगा। अगर आप मौजूदा स्तर को काम में नहीं लाते, रोके रखते हैं तो जिस चीज को स्पर्श किया गया है उसमें विस्तार और सुधार की संभावना बहुत दूर की बात होगी।
अगर मानसिक एकाग्रता की भी बात करें तो आप पूरी तरह एकाग्र नहीं हैं, आप देखिए इसे। जीवन के अलग-अलग समय पर आपकी एकाग्रता का स्तर भी अलग-अलग होता है। अगर आप अपना काम कर रहे हैं तो आप एकाग्रता के एक स्तर पर है, अगर आप आध्यात्मिक क्रिया कर रहे हैं तो आपकी एकाग्रता का स्तर अलग हो जाता है। अगर आप कोई ऐसी चीज खा रहे हैं जिसे आप बहुत ज्यादा पसंद करते हैं तो आपकी एकाग्रता का स्तर कुछ और होगा। कुल मिलाकर अलग-अलग समय पर आपकी एकाग्रता का स्तर अलग-अलग होगा। आपने जीवन में एकाग्रता का जो सर्वोच्च स्तर कभी छुआ होगा, वह भी आपकी एकाग्रता का अंतिम स्तर नहीं है। वह आपकी कुल संभव एकाग्रता का एक छोटा सा हिस्सा है। आप उससे कहीं अधिक एकाग्रता के काबिल हैं।
मान लीजिए मैं आपको आधी रात को घने जंगल में बिना टाॅर्च के छोड़ दूं। आप महसूस करेंगे कि घनघोर अंधेरे में आपकी एकाग्रता का स्तर बिल्कुल अलग है। जब आप खतरे का सामना करेंगे और जंगली जानवरों की आवाजें सुनेंगे लेकिन कुछ देख नहीं पाएंगे तो आपकी एकाग्रता का स्तर अलग तरह का होगा। जब जीवन मरण का सवाल सामने खड़ा हो जाएगा तब आप बिल्कुल अलग तरह से एकाग्र हो जाएंगे।
कुछ साल पहले की बात है। कर्नाटक के सुब्रमण्य और मैंगलौर के बीच बिछी रेलवे लाइन पर ट्रेकिंग के लिए मैं कुछ लोगों के साथ जा रहा था। इस मार्ग में तकरीबन 300 पुल और 100 सुरंगे आती हैं। आप अधिकांश समय या तो पुल पर होते हैं या सुरंग में। आस-पास खड़े सुंदर पर्वत आपको यात्रा में उत्साह प्रदान करते हैं। कुछ सुरंगे एक किलोमीटर से भी ज्यादा लंबी हैं। अगर आप दिन में भी इनमें जाते हैं तो आपको घना अंधेरा मिलेगा। आप अपनी आंखों के सामने अपना हाथ रखेंगे लेकिन वो आपको नजर नहीं आएगा। इतना अंधेरा होगा वहां। कुछ समय बाद आपको यह भी नहीं समझ आएगा कि आपकी आंखें खुली हुई हैं या बंद हैं। इस कदर अंधकार से घिरे होंगे आप। अधिकांश लोग इस तरह के स्थान पर नहीं जा पाते। तारों की रोशनी भी आपको कुछ हद तक देखने के लिए काबिल बनाती हैं। सुरंगों में आप कुछ भी नहीं देख सकते, केवल घना अंधकार होता है वहां।
मैंने अपने साथ के लोगों को बिना टार्च के उन सुरंगों में चलाया। वहां मार्ग में गड्ढे हो सकते थे, सुराख हो सकता था, वहां कुछ भी हो सकता था जो चलने में बाधा डाल सकता था। चमगादड़ तो चारों तरफ उड़ रहे थे। देख वो भी नहीं सकते हैं लेकिन उनको इतना तो ज्ञान होता ही है कि वो कहां जा रहे हैं। वो हर जगह आपके बिल्कुल नजदीक उड़ रहे होते हैं। शुरू-शुरू में लोग चीखते हैं लेकिन कुछ समय के बाद वो यात्रा के अनुभवों का आनंद लेने लगते हैं। अगर आप इस तरह की जगह पर होते हैं तो आपकी एकाग्रता का स्तर सचमुच बहुत ऊंचाई पर पहुंच जाता है। अगर आप जीवन के हर क्षण में एकाग्रता का यही स्तर बरकरार रखते हैं तो आपका चमकना तय है। सचेत रहें मैं क्यों आश्रम के लोगों को निरंतर प्रेरित करता रहता हूं कि आश्रम की छोटी सी छोटी चीज को भी ध्यान में रखिये। मैं ऐसा केवल इसलिए नहीं करता हूं ताकि आश्रम साफ सुथरा रहे। आश्रम की सुंदरता बनाए रखने के लिए ऐसा नहीं किया जाता, यह इसलिए किया जाता है ताकि लोग छोटी सी छोटी चीज के प्रति भी पूरी तरह सचेत रहें। अगर एक कंकड को भी एक जगह से दूसरी जगह रखा गया है तो यह बात आपके ध्यान में रहनी चाहिए। सवाल कंकड़ का नहीं है, सवाल इस बात का है कि आप अपने आस पास की चीजों के प्रति कितने सचेत हैं, कितने एकाग्र हैं। अगर आप एकाग्रता के इस स्तर को और बढ़ाते हैं और पूरी ऊंचाई तक ले जाते हैं तो आपका मेरुदंड तेजयुक्त हो जाएगा। इसका स्पर्श किया जा चुका है, इस बात में कोई संदेह नहीं है। लेकिन अब अगर आप इसकी दीप्ति और बढ़ाना चाहते हैं तो आपको अपनी एकाग्रता का स्तर बढ़ाना होगा। अगर आप एकाग्रता के सर्वोच्च स्तर तक पहुंचना सीख जाते हैं तो हम आपको बता सकते हैं कि अपने भीतर किन चीजों पर ध्यान देना चाहिए और किन चीजों पर नहीं।
अगर आपकी एकाग्रता का स्तर बहुत बढ़ जाता है तो हम विचार कर सकते हैं कि इसका उपयोग कैसे किया जाए। केवल तभी आप सही मायने में अपने जीवन पर ध्यान दे सकते हैं। तभी आपको महसूस होता है कि आपको मालूम ही नहीं कि यह जीवन कहां से शुरू होता है और कहां खत्म होता है। अभी आप इस तरह से जीवन जी रहे हैं कि जो आप कर रहे हैं वही सब कुछ है, वही जीवन की शुरूआत है और वही अंत है। लेकिन जिस पल आप जीवन पर जरा सा भी ध्यान देने लगते हैं आप समझ जाते हैं कि ‘यही सब कुछ नहीं है।’
आध्यात्मिकता का पहला कदम आप तभी उठा पाते हैं जब आपकी एकाग्रताएक निश्चित स्तर तक पहुंच जाती है। अगर आप हर चीज पर बहुत ज्यादा ध्यान देते हैं, अगर आप ध्यान देने की क्षमता को ऊंचा उठाते हैं तो चमत्कारी तरीके से इसका उपयोग किया जा सकता है। यह सही में एक वैकल्पिक ऊर्जा स्रोत की रचना कर सकता है।