देवी यंत्र के बारे में अपने अनुभवों को बांटते हुए जब किसी ने सद्‌गुरु से ये जानना चाहा कि कैसे देवी की कृपा और अर्जित की जा सकती है, तो सद्‌गुरु ने क्या कहा, आइए हम भी जानते हैं-

सद्‌गुरु, हम बहुत खुशकिस्मत थे कि पिछले वर्ष हमें आपसे एक देवी यंत्र प्राप्त करने का अवसर मिला। उन्होंने हमारे घर को पूरी तरह बदल कर रख दिया है। यहां तक कि वह हमारे पड़ोस में भी जिंदगियों को बदल रही हैं। बहुत से लोग चाहे उनकी कोई पारिवारिक समस्या हो या वे तलाक या सेहत से जुड़े मसलों से जूझ रहे हों, आकर देवी के कक्ष में बैठते हैं। मैं उनकी कृपा को देखकर अचंभित हूं। मेरा जीवन उन्होंने काफी हद तक बदल दिया है मगर हम उनकी और कृपा कैसे अर्जित कर सकते हैं?

 

सद्‌गुरु:

आपको जो प्रक्रियाएं सिखाई गई हैं, वे आपके लिए सबसे बेहतर तरीके से तब काम करेंगी, जब आप देवी को अपनी प्राथमिकता बना लें।

देवी यंत्र एक चिरस्थायी मशीन है, जिसे असल में किसी रखरखाव की जरूरत नहीं होती। आपको बस एक खास माहौल बनाना पड़ता है
ऐसा सिर्फ देवी के साथ नहीं है, यह किसी भी चीज पर लागू होता है। किसी प्रेम प्रसंग को भी कामयाब बनाने के लिए आपको उसे प्राथमिकता देनी पड़ती है। अगर आप किसी चीज या किसी व्यक्ति को खुद से अधिक महत्वपूर्ण मानते हैं, तो वह आयाम आपके लिए खूबसूरत हो जाता है। मगर जब ऐसा किसी इंसान के साथ करते हैं, तो दिक्कत यह आ सकती है कि हमें यह नहीं मालूम होता कि सामने वाला व्यक्ति कितना समझदार होगा। कोई व्यक्ति किसी पेड़ को देखकर उसे महज लकड़ी समझ सकता है, वह किसी स्त्री को देखकर उसे कुछ और नहीं, सिर्फ वासना पूर्ति का साधन समझ सकता है। हमारी मूल चेतनता इस तरह की हो गई है कि आप किसी भी चीज को देख कर यही सोचने लगते हैं कि यह चीज आपके लिए कितनी उपयोगी होगी ? आपके मन में यही बात आती है कि हम इससे क्या हासिल कर सकते हैं?

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देवी यंत्र एक शक्तिशाली ऊर्जा रूप है, जिसका अपना कोई प्रयोजन नहीं है। आप भी एक ऊर्जा रूप हैं, मगर आप एक खास स्तर पर चेतनता को कायम नहीं रख सकते क्योंकि आपके विचार, भावनाएं और शरीर की विवशताएं आपकी चेतनता पर हावी रहती हैं और उसे दूषित कर देती हैं। आपने बहुत से इंसानों में यह बात देखी होगी कि वे एक पल में बहुत बढ़िया होते हैं और अगले ही पल बहुत बुरे होते हैं।

इसलिए हम एक शक्तिशाली ऊर्जा रूप बनाते हैं, जिसे खुद से कोई सरोकार नहीं होता और उसकी कोई विवशता नहीं होती क्योंकि यह एक शुद्ध ऊर्जा रूप है। पारा, तांबा और पत्थर का भौतिक रूप सिर्फ उस ऊर्जा रूप को सहारा देने के लिए एक मचान होता है। यंत्र एक किस्म की मशीन है। यंत्र जिसे आप दिव्य मशीन कह सकते हैं और कारें, जिन्हें आप डेट्रॉयट मशीन कह सकते हैं, दोनों आपको एक जगह से दूसरी जगह ले जाती हैं। इन दोनों मशीनों के बीच मूलभूत अंतर यह है कि देवी यंत्र एक चिरस्थायी मशीन है, जिसे असल में किसी रखरखाव की जरूरत नहीं होती। आपको बस एक खास माहौल बनाना पड़ता है क्योंकि देवी एक उपेक्षित स्थान में नहीं रहना चाहतीं।

देवी यंत्र एक तरह से मूल ऊर्जा का विस्तार है। मूल ऊर्जा है ईशा योग केंद्र में प्रतिष्ठित लिंग भैरवी की ऊर्जा। आप धरती पर ऐसे लाखों यंत्र बना सकते हैं। जब तक मूल ऊर्जा रूप को पूरी तरह जीवंत रखा जाएगा, ये सब सक्रिय रहेंगे। आपको करना बस ये है कि देवी को अपने घर में सर्वोच्च वस्तु या सत्ता के रूप में समझना होगा। अगर आपके घर में आग लगे, तो आपके दिमाग में पहला विचार देवी को बचाने का आना चाहिए। बात यह नहीं है कि आप क्या करते हैं, बात सिर्फ आपकी प्राथमिकताओं की है। अगर देवी आपके लिए सर्वोच्च प्राथमिकता हैं, तो आपकी ग्रहणशीलता अपने आप बढ़ जाएगी। अगर आप यह सोचते हैं, ‘यह बस एक पत्थर है जो सद्‌गुरु ने दिया है, देखते हैं कि इससे मुझे क्या लाभ होता है,’ तो ज्यादा से ज्यादा आपकी सेहत बेहतर हो जाएगी। अगर आप बहुत स्वस्थ हो जाएं मगर वैसे बहुत ही दुखी इंसान हों, तो यह एक मुसीबत या विपत्ति है।

न्यूयार्क के दो दार्शनिकों की एक बार में मुलाकात हुई। वे दुर्भाग्य और विपत्ति के बीच फर्क पर चर्चा करने लगे। एक ने कहा, ‘अभी हम डिनर करने वाले हैं। मान लो, रसोइया मर जाता है, तो आप इसे कोई विपत्ति नहीं कह सकते।

देवी यंत्र एक तरह से मूल ऊर्जा का विस्तार है। मूल ऊर्जा है ईशा योग केंद्र में प्रतिष्ठित लिंग भैरवी की ऊर्जा। आप धरती पर ऐसे लाखों यंत्र बना सकते हैं।
यह‍ एक दुर्भाग्य है – यह नहीं कि वह मर गया बल्कि यह कि हम डिनर नहीं कर सकते।’ देखिए यह लाभ के बारे में सोचने वाली दुनिया है। ‘मगर मान लो अमेरिका के सभी कांग्रेसी एक कैरेबियन क्रूज पर हों और क्रूज का जहाज डूब जाए तो वह एक विपत्ति है मगर किसी भी तरह से यह कोई दुर्भाग्य नहीं है।’ दूसरे ने कहा,‘नहीं, मेरी राय ऐसी नहीं है।’

आपको बस अपनी प्राथमिकताएं तय करनी हैं। आप मंदिर, मस्जिद या चर्च इसलिए जाते हैं क्योंकि आपको लगता है कि वहां जाने से आपकी जिंदगी बेहतर होगी। भारत में ईश्वर से जुड़ने के कई तरीके हैं। आप ईश्वर को अपना पिता मान सकते हैं, अपनी माता मान सकते हैं, आप ईश्वर को पति समझ सकते हैं, उसे प्रेमी के रूप में देख सकते हैं, उसे अपनी संतान समझ सकते हैं, आप ईश्वर के दास हो सकते हैं या उसे अपना दास मान सकते हैं जैसा कि पूरी दुनिया करती है। इसके लिए खास विधियां और तरीके हैं, जो इस पर निर्भर करता है कि आप ईश्वर के साथ कैसा संबंध बनाना चाहते हैं।

आप देवी के साथ जैसे चाहें, जुड़ सकते हैं, मगर महत्वपूर्ण बात यह है कि अगर आप अपने घर में उन्हें सर्वोच्च प्राथमिकता देंगे, तो वह अद्भुत तरीके से काम करेंगी। अगर आप सोचेंगे, ‘वह एक उपकरण हैं। मैं अपने फायदे के लिए उसका इस्तेमाल करूंगा,’ तब भी वह काम करेंगी, मगर साधारण तरीके से। अगर आप उन्हें सर्वोच्च प्राथमिकता के रूप में देखेंगे, अगर आप उन्हें खुद से ऊंचा मानेंगे, तो आपके साथ असाधारण चीजें होंगी। तार्किक दिमाग से कभी यह नहीं समझा जा सकता कि यह कैसे काम करता है।

आप इस साधारण मगर बहुत ही शक्तिशाली ऊर्जा-रूप से जिस हद की गहनता से जुड़ते हैं, उस हद तक वह काम करता है। आपका उससे जुड़ना ही सबसे शानदार चीज है। जुड़ने का मतलब है कि आप इच्छुक हो गए हैं। यह जीवन में हर चीज पर लागू होता है, कोई चीज भयानक है या शानदार है, यह इस बात पर निर्भर करती है कि आप अपनी इच्छा से उससे जुड़ते हैं या बिना इच्छा के। अगर आप किसी चीज के साथ अपने मन से जुड़ते हैं, तो वह एक अद्भुत चीज हो जाती है।

सद्‌गुरु इन यंत्रों की प्रतिष्ठा करते हैं। आप अपना लिंग भैरवी या लिंग भैरवी अविघ्न यंत्र ईशा योगा केंद्र में 22 जुलाई 2017 को आयोजित एक विशेष समारोह में सद्‌गुरु से पा सकते हैं।

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