Sadhguru जब भी व्यक्ति तार्किक दिमाग की गणनाओं से निकल कर जीवन को अंर्तज्ञान से देखने की कोशिश करता है तो उस स्थिति में चंद्रमा काफी महत्वपूर्ण हो उठता है। आमतौर पर चंद्रमा के प्रभाव को अतार्किक माना जाता है।


सद्‌गुरु: हम आज ऐसे आधुनिक दौर में पहुंच चुके हैं, जहां दिन हो या रात, हमारी आंखें रोशनी से भरी रहती हैं। यहां तक कि अगर पूर्णिमा की रात भी हो तो मुझे लगता है कि आज शहरों में रहने वाले ज्यादातर लोग इस पर गौर भी नहीं करते होंगे। आखिर कोई इंसान पूर्णिमा के चांद की अनदेखी कैसे कर सकता है? उस रात चांद तो काफी बड़ा और काफी चमकदार होता है।

आप आसमान में चांद की हर कला को देखकर उसपर गौर कर सकते हैं। अगर आप अपने सिस्टम में एक खास स्तर की जागरूकता व ग्रहणशीलता ले आते हैं और फि र अपने शरीर को देखेंगे, तो आप पाएंगे कि चंद्रमा की हर कला में शरीर का व्यवहार थोड़ा अलग होता है। हालांकि ऐसा महिला व पुरुष दोनों के शरीर में होता है, लेकिन महिला के शरीर में यह ज्यादा प्रकट होता है। जिस चक्र में चांद इस धरती का चक्कर लगाता है और इंसान अपने भीतर जिस चक्र से गुजरता है, जिससे इंसान का जन्म होता है - यानी इस शरीर के निर्माण की प्रक्रिया, आपस में बहुत गहराई में जुड़े हैं।

Subscribe

Get weekly updates on the latest blogs via newsletters right in your mailbox.

अपने साथ कुछ भी करने के लिए चंद्रमा की स्थिति जान लेना बेहतर रहता है, क्योंकि यह मानव तंत्र में अलग तरह के गुण और ऊर्जाएं पैदा करता है। अगर व्यक्ति इनके प्रति जागरूक है तो वह इनका इस्तेमाल कर सकता है। चंद्रमा की अलग-अलग स्थितियां मानव शरीर, उसकी बनावट और उसकी मानसिकता पर अलग-अलग प्रभाव छोड़ती हैं। भारत में हर दिन की गणना की गई है कि कैसे चंद्रमा की अलग-अलग स्थितियों का इस्तेमाल मानव की बेहतरी के लिए किया जा सकता है। इसकी गणना हमारी संस्कृति का एक अहम हिस्सा हुआ करती थी। चंद्रमा की विभिन्न स्थितियों का इस्तेमाल विभिन्न मकसदों के लिए हुआ करता था। पूर्णिमा से लेकर अमावस्या और फिर पूर्णिमा तक के चांद के सफर में बहुत सारी चीजें घटित होती हैं।

चूंकि हमारे दैनिक जीवन पर चंद्रमा का खासा प्रभाव होता है, पूर्वी संस्कृतियों में खासकर भारत में हमने दो तरह के कैलेंडर तैयार किए हैं। दुनियावी कामों के लिए हम सौर कैलेंडर का इस्तेमाल करते हैं।

चूंकि हमारे दैनिक जीवन पर चंद्रमा का खासा प्रभाव होता है, पूर्वी संस्कृतियों में खासकर भारत में हमने दो तरह के कैलेंडर तैयार किए हैं। दुनियावी कामों के लिए हम सौर कैलेंडर का इस्तेमाल करते हैं। जबकि जीवन के उन बाकी व्यक्तिपरक पहलुओं के लिए - जो महज जानकारी, सूचना या तकनीक न होकर एक जीवंत आयाम है - हम चंद्र कैलेंडर का इस्तेमाल करते हैं। यह हमेशा से रहा है कि जो भी चीज तार्किकता से परे रही है, उसका संबंध हमेशा चंद्रमा से रहा है।

तर्क से परे

जब भी व्यक्ति तार्किक दिमाग की गणनाओं से निकल कर जीवन को अंर्तज्ञान से देखने की कोशिश करता है, तो उस स्थिति में चंद्रमा काफी महत्वपूर्ण हो उठता है। आमतौर पर चंद्रमा के प्रभाव को अतार्किक माना जाता है। पश्चिम में किसी भी अतार्किक चीज पर पागलपन का लेबल चिपका दिया जाता है। अंग्रेजी भाषा में चांद को ‘ल्यूनर’ कहा जाता है। अगर आप एक कदम और आगे बढ़ते हैं तो आपको ‘ल्यूनैटिक’ यानी उन्मादी या पागल करार दिया जाता है। लेकिन भारतीय संस्कृति में हमेशा हमने तर्क की सीमाओं को समझा है। इंसान के भीतर तार्किकता का एक पहलू होता है, जो सांसारिक पहलुओं को संभालने में हमारी मदद करता है। दरअसल तार्किकता जीवन के भौतिक या सांसारिक पहलुओं से निपटने में काफी मददगार होती है। अगर आप अपना कारोबार चलाना चाहते हैं, अगर आप अपना घर बनाना चाहते हैं, अगर आप दुनिया में ये सारी चीजें करना चाहते हैं तो आपको तार्किक होना पड़ेगा। इनको करने का कोई और तरीका हो ही नहीं सकता। लेकिन तर्क से परे भी एक आयाम है, जिसके बिना आंतरिक आयामों तक कभी पहुंचा ही नहीं जा सकता।

अंग्रेजी शब्द ‘ल्यूना’ का मतलब चांद होता है, लेकिन इसका एक अर्थ यह भी है कि आप तार्किकता से आगे बढ़ गए हैं।

अंग्रेजी शब्द ‘ल्यूना’ का मतलब चांद होता है, लेकिन इसका एक अर्थ यह भी है कि आप तार्किकता से आगे बढ़ गए हैं। अगर आप तार्किकता से आगे बढ़ गए हैं और आपका सिस्टम इसके लिए पूरी तरह से तैयार नहीं है तो आप पागलपन या उन्माद की तरफ बढ़ जाएंगे। लेकिन अगर आपका सिस्टम पूरी तरह से तैयार है तो आप अंर्तज्ञान की ओर बढऩे लगेंगे। चंद्रमा एक परावर्तन या प्रतिछाया है। आप चंद्रमा को इसलिए देख पाते हैं क्योंकि यह सूर्य की रोशनी को परावर्तित करता है। इंसान और उसकी सोच भी अपने आप में एक परावर्तन ही है। अगर आप परावर्तन से अलग कुछ देखते हैं तो इसका मतलब है कि आप सत्य को नहीं देख रहे हैं। कोई भी धारणा या सोच वास्तव में अपने आप में एक परावर्तन है। चूंकि चंद्रमा की प्रकृति ही परावर्तित करना है, इसलिए जीवन की गहन अनुभूति को हमेशा चंद्रमा के प्रतीक रूप में देखा जाता है। इसलिए दुनियाभर में सब जगह चांदनी और रहस्यवाद या अध्यात्म का आपस में गहरा संबंध रहा है। इस संबंध को दर्शाने के लिए शिव ने चंद्रमा के एक हिस्से को अपने माथे पर धारण किया। चंद्रमा उनका आभूषण है।

योग - तर्क से अतार्किक तक 

योगिक विज्ञान और योगिक मार्ग को भी इसी तरह से तैयार किया गया था। इसके शुरुआती चरण पूरी तरह से तार्किकता पर आधारित होते हैं। योग के शुरुआती सोपान बेहद तार्किक और काफी हद तक सूर्य से प्रेरित हैं। इसके अलावा किसी और चीज के लिए वहां कोई गुंजाइश ही नहीं है। लेकिन जैसे-जैसे इस दिशा में आगे की ओर बढ़ते हैं यह आपको तार्किकता से परे उन स्थितियों में ले जाता है, जो पूरी तरह से अतार्किक हैं। तर्कों को हटाना ही पड़ता है, क्योंकि यह जीवन और सृष्टि इसी तरह से बनी है। इसलिए चंद्रमा का महत्व बहुत बढ़ जाता है। जब हम शुरुआत करते हैं तो हम सूर्य के प्रभाव में होते हैं। जब सूर्य होता है तो हर चीज साफ-साफ और अलग नजर आती है। लेकिन जब चंद्रमा होता है तो चीजें आपस में मिली हुई लगती हैं। आपको पता ही नहीं चलता कि कौन सी चीज क्या है।

तर्कों को हटाना ही पड़ता है, क्योंकि यह जीवन और सृष्टि इसी तरह से बनी है। इसलिए चंद्रमा का महत्व बहुत बढ़ जाता है।

किसी भी विज्ञान के होने का एक बस यही तरीका है। अगर आप आधुनिक विज्ञान पर नजर डालें, जो कि अभी भी अपने शैशव अवस्था में है, तो आप पाएंगे कि वहां भी वही चीजें हो रही हैं। शुरुआती दौर में वे सौ फ़ीसदी तार्किक थे। उसके बाद वे जब चंद कदम आगे बढ़े तो अब वे धीरे-धीरे अतार्किक हो रहे हैं। भौतिकशास्त्री भी अब लगभग रहस्यवादियों या दिव्यदर्शियों की तरह बात कर रहे हैं। उन्होनें भी लगभग वही भाषा बोलनी शुरू कर दी है, क्योंकि केवल इसी एक तरीके से आप आगे बढ़ सकते हैं, क्योंकि यह सृष्टि भी ऐसी ही है। अगर आप सृष्टि पर गौर करें तो वह भी आपको ऐसी ही नजर आएगी।

चूंकि हमारे दैनिक जीवन पर चंद्रमा का खासा प्रभाव होता है, पूर्वी संस्कृतियों में खासकर भारत में हमने दो तरह के कैलेंडर तैयार किए हैं। दुनियावी कामों के लिए हम सौर कैलेंडर का इस्तेमाल करते हैं। जबकि जीवन के बाकी आंतरिक पहलुओं के लिए हम चंद्र कैलेंडर का इस्तेमाल करते हैं।