सद्‌गुरुमन के तार्किक आयाम को बुद्धि कहा जाता है। सद्‌गुरु हमें बता रहे हैं कि मन का ये आयाम सिर्फ उस सुचना के आधार पर काम करता है जो उसे पांच इन्द्रियों के माध्यम से मिलती है। पढ़ते हैं बुद्धि के पांच अलग-अलग रूप और उनकी विशेषताएं

बुद्धि – मन के चार हिस्सों में से एक है

हमने दुनिया को नहीं देखा है। हम इसे उसी रूप में जानते हैं, जिस रूप में हमारे मन में इसकी परछाई पड़ती है। अंग्रेजी भाषा में माइंड यानी मन बस एक शब्द है, जिससे उम्मीद की जाती है कि वह सब कुछ समेट ले, लेकिन योग में इसके सोलह पहलू होते हैं।

बुद्धि तथ्यपरक है, यह तथ्यों को समझती है, उन्हें अपने भीतर उतारती है, उनका आकलन करती है और इस दुनिया के कामकाज में हमारी मदद करती है। 
हर हिस्से का अपना एक विशेष काम होता है। ऐसे कई अभ्यास और प्रक्रियाएं हैं, जिनकी मदद से कोई इंसान अपने मन के इन सोलह पहलुओं को अपने काबू में कर सकता है। समझने की सहूलियत के लिए इन सोलह हिस्सों को चार समूहों में बांटा जा सकता है। मन का पहला पहलू है बुद्धि। मुझे लगता है कि आधुनिक समाज खासकर आधुनिक शिक्षा ने इस बुद्धि पर जरूरत से ज्यादा ही ध्यान दिया है। अपने तर्कों पर हम बहुत ज्यादा मुग्ध हैं। हमने मानवीय बुद्धि पर बहुत ज्यादा ध्यान दिया है और अपने भीतर काम करने वाली प्रज्ञा के दूसरे पहलुओं को अनदेखा कर दिया है।

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बुद्धि तथ्य और तर्क से जुड़ी है

जब हम बुद्धि कहते हैं तो हमारा मतलब मन के तार्किक पक्ष से होता है। दूसरे शब्दों में कहें तो आपकी बुद्धि आपको इस बात को नहीं मानने देगी कि दो और दो छह होते हैं।

बुद्धि के पांच बुनियादी रूप होते हैं। आकार, ध्वनि, सुगंध, स्वाद और स्पर्श को समझने के लिए बुद्धि के ये पांच अलग-अलग रूप होते हैं।
दो और दो चार ही होने चाहिए, नहीं तो आप मान लेंगे कि सामने वाला पागल है। तो बुद्धि तथ्यपरक है, यह तथ्यों को समझती है, उन्हें अपने भीतर उतारती है, उनका आकलन करती है और इस दुनिया के कामकाज में हमारी मदद करती है। दूसरे शब्दों में कहें तो यह चाकू की तरह है, जितनी तेज धार, उतना बेहतर। चाकू को चीजों को काटकर खोलने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। तो इस जगत को समझने, उसकी पड़ताल करने का एक तरीका चीरफाड़ है। हाई स्कूल में आपने भी जरूर किसी चीज की चीरफाड़ की होगी - कोई केंचुआ या फिर कोई मेंढक। चीरफाड़ के जरिए आप कुछ न कुछ तो जान ही जाते हैं, लेकिन इससे जीवन की मूल प्रकृति को नहीं समझा जा सकता।

पांच इन्द्रियों की सूचनाओं के आधार पर काम करती है बुद्धि

आपको यह जरुर समझना चाहिए कि आपकी बुद्धि आपकी पांचों इंद्रियों के जरिए ही काम करती है। अगर इंद्रियों के जरिये सूचना नहीं मिल रही है, तो आपकी बुद्धि काम नहीं करेगी। बुद्धि के पांच बुनियादी रूप होते हैं। आकार, ध्वनि, सुगंध, स्वाद और स्पर्श को समझने के लिए बुद्धि के ये पांच अलग-अलग रूप होते हैं। इनमें से आकार को समझने वाली बुद्धि को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि इसी से सृष्टि की ज्यामिति समझ में आती है।

अगर आप किसी चीज को देखते हैं और सबसे पहले उसके आकार पर आप गौर करते हैं, तो इसका मतलब है कि आकार को समझने वाली आपकी बुद्धि दूसरे तरह की बुद्धियों से ज्यादा प्रभावशाली है। अगर रंग की समझ ज्यादा प्रभावशाली है, तो आपको पूरा का पूरा जगत ही रंगीन और खूबसूरत नजर आएगा, लेकिन आपके तर्क इतने प्रबल नहीं होंगे। अगर ध्वनि की समझ ज्यादा शक्तिशाली है, तो आप पाएंगे कि अपने आसपास के जीवन को लेकर आपके पास एक खास तरह की समझ है। एक खास सीमा से परे ध्वनि खूबसूरत बन जाती है, जिसका आप आनंद तो लेते हैं, लेकिन तर्क का इस्तेमाल करने के लिए आपके पास कोई मजबूत आधार नहीं होगा। अगर आपके पास स्पर्श या भावों को समझने की बुद्धि है तो इससे भी आपको आनंद की अनुभूति होगी, लेकिन एक बार फिर आपके पास कोई मजबूत तार्किक आधार नहीं होगा।

आकार से जुडी बुद्धि की विशेषताएं

इस तरह आकार को समझने वाली बुद्धि सबसे अच्छी मानी जाती है, क्योंकि यह हर चीज को ज्यामितीय तरीके से देखती है। इसका मतलब है कि यह हर चीज के साथ संरेखित यानी ‘अलाइन’ या एक सीध में आ सकती है।

हमारे जीवन की सबसे बुनियादी क्षमता विचार, भाव और संवेदनाएं हैं और इन्हें ही संभालने का तरीका लोग जीवन भर नहीं सीख पाते।
बाकी पहलू हमें अलग-अलग विशेषताएं देते हैं, लेकिन इस जगत के साथ अलाइन होने की काबिलियत इसी के साथ आती है। अलाइनमेंट इसलिए अहम है, क्योंकि एक बार अगर आपका अलाइनमेंट ठीक हो जाए तो घर्षण सबसे कम होगा। किसी मशीन को अच्छा तभी कहा जाता है, जब उसमें कम-से-कम घर्षण हो। प्रभावशाली काम का मतलब है आपके साथ हर चीज सबसे कम घर्षण के साथ हो रही है। आनंद में होना, प्रफुल्लित होना, ब्रह्माण्ड की खोज करने की चाह होना, ये सब इसके स्वाभाविक नतीजे हैं। अगर दो विचार उठते ही आपको अपने भीतर एक टकराव महसूस होता हो, तो ऐसी स्थिति में आपका किसी चीज की खोज करने का मन नहीं होगा। अपने आप में यह बात आपको जीवन भर व्यस्त रखेगी।

विचार और भाव को संभालना सीख नहीं पाते हम

बड़ी हैरानी की बात है कि हमारी आबादी का एक बड़ा हिस्सा 50, 60 या 70 साल के अपने जीवन में अपने विचारों और भावों को संभालना नहीं सीख पाता। इससे मुझे हमेशा हैरानी होती है। ऐसा कैसे संभव है? हमारे जीवन की सबसे बुनियादी क्षमता विचार, भाव और संवेदनाएं हैं और इन्हें ही संभालने का तरीका लोग जीवन भर नहीं सीख पाते। कुत्ते, बिल्ली जैसे सारे जानवर अपनी सभी क्षमताओं को अपनी खुशहाली के लिए इस्तेमाल करने का तरीका अच्छी तरह जानते हैं, लेकिन इंसान यह सब नहीं सीख पाता। किसी भी दूसरे प्राणी की तुलना में इंसान के पास कहीं ज्यादा उच्च स्तरीय क्षमताएं और योग्यताएं हैं। चूंकि वह इन्हें अपनी खुशहाली के लिए इस्तेमाल करने का तरीका नहीं सीखता, इसलिए उसकी ये क्षमताएं एक बड़ा झमेला बन जाती हैं।