कहानी : एक दिन एक ज़ेन मठ में सभी शिष्य अपने गुरु के चारों ओर इकट्ठे हुए। गुरु बोले, "मैं जो कहानी सुना रहा हूँ, उसे पूरे ध्यान से सुनो"। फिर उन्होंने कहना शुरू किया...

"एक बार बुद्ध अपनी आंख बंद किये बैठे हुए थे, उन्हें किसी की आवाज़ सुनाई दी, 'बचाओ, बचाओ'। उन्हें समझ आ गया कि ये आवाज़ किसी मनुष्य की थी जो नर्क के किसी गड्ढे में था और पीड़ा भोग रहा था। बुद्ध को ये भी समझ में आया कि उसे ये दंड इसलिये दिया जा रहा था क्योंकि जब वो ज़िंदा था तब उसने बहुत सी हत्यायें और चोरियां की थीं। उन्हें सहानुभूति का एहसास हुआ और वे उसकी मदद करना चाहते थे।

 

 

उन्होंने यह देखने का प्रयास किया कि क्या उस व्यक्ति ने अपनी जीवित अवस्था में कोई अच्छा काम किया था? उन्हें पता लगा कि उसने एक बार चलते हुए, इसका ध्यान रखा था कि एक मकड़ी पर उसका पैर न पड़ जाये। तो बुद्ध ने उस मकड़ी से उस व्यक्ति की मदद करने के लिये कहा। मकड़ी ने एक लंबा, मजबूत धागा नर्क के उस गड्ढे में भेजा जिससे वो अपना जाला बुनती है। वह व्यक्ति उस धागे को पकड़ कर ऊपर चढ़ने लगा। तब बाकी के लोग भी, जो वहां यातना भोग रहे थे, उसी धागे को पकड़ कर ऊपर चढ़ने लगे। तो उस व्यक्ति को चिंता हुई, 'ये धागा मेरे लिये भेजा गया है, अगर इतने लोग इसे पकड़ कर चढ़ेंगे तो धागा टूट जायेगा'। वो उन पर गुस्से से चिल्लाया। उसी पल वो धागा टूट गया और वो उस गड्ढे में फिर से गिर गया।

 

उस व्यक्ति ने फिर चीखना शुरू किया, बचाओ, बचाओ, लेकिन इस बार बुद्ध ने उसकी तरफ कोई ध्यान नहीं दिया"।

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ज़ेन गुरु ने कहानी पूरी की और अपने शिष्यों से पूछा, " बताओ, इस कहानी में क्या दोष है"?

एक शिष्य बोला, "मकड़ी का धागा इतना मजबूत नहीं होता कि एक व्यक्ति को ऊपर ला सके"।

दूसरे ने कहा, "स्वर्ग और नर्क जैसी कोई चीज़ नहीं होती"।

एक अन्य बोला, "जब बुद्ध आंख बंद कर के बैठे और ध्यान कर रहे थे, तब उन्हें ज़रूर ही कोई और आवाज़ सुनाई दे रही होगी"।

गुरु मुस्कुराये और बोले, "तुम सबने एक महत्वपूर्ण मुद्दे पर ध्यान नहीं दिया"। फिर वे उठे और चले गये।

 

सद्‌गुरु: जो सच्ची करुणा होती है, वो चयन नहीं करती। किसी क्षण कोई ये विचार करे कि मुझे इस व्यक्ति के लिये करुणामय होना चाहिये और फिर ऐसा सोचे कि वह दूसरा व्यक्ति मेरी करुणा का पात्र नहीं है, तो फिर ये करुणा नहीं है। किसी की मदद करने में चयन हो सकता है पर करुणा में चयन नहीं होता। यदि बुद्ध की इच्छा किसी ऐसे व्यक्ति को बचाने की होती जो नर्क में यातना भोग रहा है तो फिर वे अपना विचार बाद में, उस व्यक्ति के एक स्वार्थी कर्म के कारण बदल नहीं देते। पुण्य और पाप, अच्छा और बुरा, ये सब नैतिकता के आधार पर लिखे गये हैं। करुणा, नैतिकता, कानून और विश्वासों से परे की बात है। ऐसा नहीं हो सकता कि एक व्यक्ति पर करुणा दिखायी जाये और दूसरे पर नहीं।

ज़ेन गुरु ने अपने शिष्यों को जो कहानी सुनाई वह नैतिक मूल्यों पर आधारित बात थी जो किसी ने गढ़ी होगी। कहानी की नैतिक शिक्षा ये है कि एक स्वार्थी व्यक्ति को, जिसे दूसरों की परवाह नहीं है, बुद्ध भी नहीं बचायेंगे। यह कहानी किसी ने समाज को शिक्षा देने के लिये, लोगों पर प्रभाव डालने के लिये गढ़ी है।

जहाँ भी आवश्यकता एवं संभावना हो, एक सच्चा आत्मज्ञानी गुरु कभी भी अपनी करुणा बरसाने में हिचकिचायेगा नहीं। बुद्ध वही हो सकता है जिसने अपने अंदर पूरी स्वतंत्रता प्राप्त कर ली हो और जो स्वीकार या अस्वीकार करने की मजबूरी से परे चला गया हो। केवल वही करुणामय हो सकता है जो पूरी तरह से आनंदमय हो। 'बुद्ध' उसी को कहते हैं जो बुद्धि से परे, पूर्ण आनंद की अवस्था में हो।

कुछ धार्मिक कट्टरवादियों ने, अन्य धर्मों की तरह, बौद्ध धर्म का प्रचार करने के उद्देश्य से ऐसी नैतिकतावादी कहानियां गढ़ी हैं। यही कारण है कि ज़ेन गुरु यह कह रहे हैं कि इस कहानी में दोष है।