क्या भीष्म का प्रतिज्ञा लेना बुद्धिमानी का काम था?
भीष्म पितामह को उनकी भयंकर प्रतिज्ञा के लिए जाना जाता है। वे उस प्रतिज्ञा को अपना धर्म मानते थे। क्या ऐसा धर्म अपनाना कारगर हो सकता है? क्या भीष्म ने बुद्धिमानी का काम किया था?
साक्षी: सद्गुरु, भीष्म का धर्म क्या था - अपने देश को बचाना या अपनी प्रतिज्ञा का मान रखना? जब देश को बचाने के लिए अपनी प्रतिज्ञा को तोड़ने की बारी आई तो उन्होंने अपनी प्रतिज्ञा को तोडऩे से साफ इन्कार कर दिया। भीष्म जैसे बुद्धिमान व्यक्ति ने ऐसा क्यों किया?
स्मार्ट होना और बुद्धिमान होने में अंतर है
सद्गुरु: आप कह रहे हैं कि वह बुद्धिमान व्यक्ति थे। मैं यह नहीं कहूंगा। मैं यह नहीं कह रहा कि वे बुद्धिमान नहीं थे, मैं सिर्फ खुद को इससे दूर कर रहा हूँ। मैं ऐसा इसलिए नहीं कहना चाहता, क्योंकि बुद्धिमानी का मतलब स्मार्टनेस या चतुराई नहीं है। लोग अपनी चतुराई से पैसे बना सकते हैं, अपनी जिंदगी को सुविधाजनक और आरामदेह बना सकते हैं, लेकिन यह बुद्धिमानी नहीं है। देखिए, आप मानते हैं कि दुनिया में रचयिता जैसी कोई चीज होती है, क्योंकि आपने अपने आसपास एक जबरदस्त रचना देखी है, ऐसी रचना, जिसके बारे में आप यह जान ही नहीं पाते कि उसकी गहराई क्या है। आपको तो यह भी नहीं पता कि वह कहां शुरू होती है और कहां खत्म होती है। एक नन्हा व छोटा सा ग्रह है, आप उसे भी पूरी गहराई से समझ नहीं पा रहे हैं और वह आपको हैरान करता है। तो वो बुद्धिमानी कैसी होगी, जिसने इसकी रचना की है। तो रचयिता की एक खूबी जिसे अनदेखा नहीं कर सकते – वो उसकी बुद्धिमानी है। हमें नहीं पता कि वह प्रेम करने वाला है या नहीं, हमें पता नहीं कि वह करुणामय है या नहीं, हमें पता नहीं कि वह उदार है या नहीं, लेकिन हमें यह अच्छी तरह पता है कि वह जबरदस्त बुद्धिमान है, है न?
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ईश्वर की बुद्धिमानी की कहीं बात नहीं होती
अगर हम ‘बुद्धिमान’ शब्द के प्रयोग को समझें - मैं केवल सवाल को ही दुरुस्त कर रहा हूं, मैं अभी भी उस सवाल का जवाब नहीं दे रहा हूं, जब आप ‘बुद्धिमान’ की बात करते हैं, तो क्या आप फूल को बनाने के पीछे छिपी बुद्धिमानी को देख पाते हैं? अगर आप अपना सारा दिमाग लगा दें, तब भी आप एक ऐसा फूल नहीं बना सकते, जो असली फूल की तरह सुगंध दे सके। इस सृष्टि के पीछे छिपी बुद्धिमानी लगातार हमें निहार रही है। लेकिन एक बात मुझे बेहद हैरान करती है कि दुनियाभर की किसी भी संस्कृति में कहीं किसी ने यह नहीं कहा कि ईश्वर बुद्धिमान है, क्योंकि लोगों ने ईश्वर की इस खूबी की अहमियत ही नहीं समझी और यह मानवता की सबसे बड़ी भूल रही है। हमें और ज्यादा प्रेम करने वाले लोग नहीं चाहिए, हमें और ज्यादा करुणामय और दयालु लोग नहीं चाहिए, हमें और ज्यादा उदार लोग नहीं चाहिए, हमें और ज्यादा शांतिमय लोग नहीं चाहिए, बल्कि हमें और ज्यादा समझदार लोग चाहिए। हमें बस इसी की जरूरत है, है न?
वे निष्ठावान थे, बुद्धिमान नहीं
तो बुद्धिमानी का मतलब है एक खास तरह की समझदारी। क्या भीष्म सबसे बुद्धिमान इंसान थे? बेशक नहीं। अपनी थोड़ी बहुत बुद्धि के जरिए वे अपनी परम प्रकृति तक पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं, यह उनकी बुद्धिमानी है। आपको यह स्वीकार करना होगा कि वह इतने बुद्धिमान तो थे ही, फिर भी वह थोड़े कम बुद्धिमान थे। मैं कम बुद्धिमानी वाली बात इसलिए कह रहा हूं, क्योंकि जो व्यक्ति अपनी प्रतिज्ञा से बंधा हुआ रहता है, वह कम बुद्धिमान होता है। जो लोग नारों, ग्रंथों या शास्त्रों की कही बातों से बंधकर जीते हैं, वे और भी कम बुद्धिमान होते हैं। अगर आप वाकई बुद्धिमान हैं तो आप अपनी चेतना से काम करेंगे। आप इस तरह के धर्म इसलिए तय करते हैं, क्योंकि आप जानते हैं कि आप इतने बुद्धिमान नहीं हैं कि आप अपना जीवन बिना एक सीमा तय किए संभाल सकें। आप जानते हैं कि अगर आप अपने लिए एक मार्ग निश्चित नहीं करेंगे तो आप हर हाल में डगमगाएंगे। उन्होंने अपने जीवन में यही बुद्धिमानी दिखाई। इसके लिए आपको उनकी तारीफ करनी होगी कि वह अपने तय किए हुए मार्ग पर टिके रहे, आपको उनकी निष्ठा की सराहना करनी होगी। निष्ठा की बात मैं मानता हूं, लेकिन बुद्धिमानी की बात नहीं।
आखिर क्यों ली उन्होंने भयंकर प्रतिज्ञा?
भीष्म जबरदस्त निष्ठा के प्रतीक हैं। आप किसी भी हद तक उन पर भरोसा कर सकते हैं, वह अपने वचनों से नहीं फिरेंगे। लेकिन बुद्धिमानी? नहीं। तो फिर उन्होंने ऐसी प्रतिज्ञा क्यों ली? क्योंकि यही एक तरीका था, जिससे वह अपनी जिदंगी को समझदारीपूर्ण बना सकते थे। अगर वह अपने लिए एक सीमा-रेखा नहीं बनाते तो वह खो जाते, वह यह बात जानते थे। यह ज्यादातर लोगों की सच्चाई है कि अगर वे अपने लिए एक रेखा तय नहीं करेंगे तो वे खो जाएंगे। वे इस बात को समझने के लिए पर्याप्त बुद्धिमान थे।