विचारों और भावनाओं की जागरूकता को आसान बनाती है साधना
सद्गुरु बता रहे हैं कि विचारों और भावनाओं को मनचाहा रूप देने के लिए उनसे दूरी बनना जरुरी है, ऐसा करने के लिए साधना मदद कर सकती है।
प्रश्न : सद्गुरु, अगर हम अपनी भावनाओं में फंस जाएं तो उससे बाहर कैसे निकलें? क्या साधना ही इसका एक तरीका है?
सद्गुरु: इसका एक तरीका तो जागरूकता है। आपकी भावनाओं की, आपके विचारों की जो भी प्रकृति हो, पहले इन पर ध्यान देना सीखिए। देखिए जब आपको किसी चीज पर ध्यान देना होता है, तो आपको दो अस्तितिवों का निर्माण करना पड़ता है। आपकी भावनाएं केवल तभी बंधन बनती हैं, जब आपके और आपकी भावनाओं के बीच कोई दूरी नहीं होती। वहां आप खुद ही भावना बन जाते हैं। सारी समस्याओं की जड़ यही है। अगर आप ध्यान देना सीख लेंगे तो उनसे दूरी बनाने लगेंगे। अगर आप और आपकी भावनाओं के बीच दूरी हो, आप और आपके विचारों के बीच दूरी हो, आप और आपके शरीर के बीच दूरी हो, तो फिर ये सारी चीजें कोई समस्या नहीं रह जातीं। आपके पास एक शरीर है, यह कोई समस्या नहीं है, यह एक शानदार साधन है। आप सोचने के काबिल हैं, यह कोई समस्या नहीं है। जीवन को इतना विकास करने में लाखों वर्ष लगे कि वह सोचने के काबिल बन सके। तो विचार कोई समस्या नहीं है। बल्कि यह एक महान वरदान है कि हम सोच सकते हैं। आपके विचार क्रेजी हो गए हैं - नहीं आप क्रेजी हो गए हैं, इसलिए विचार एक समस्या लगता है।
जागरूक होने से दूरी बढ़ती जाएगी
आपकी भावनाएं कोई समस्या नहीं है, बिना भावनाओं के आप एक सूखी लकड़ी की तरह होंगे। ये भावनाएं ही हैं, जो आपके जीवन को मधुर और खूबसूरत बनाती हैं। ये भावनाएं ही हैं, जो आपके जीवन में प्रवाह लाती हैं। लेकिन यही भावनाएं तब एक समस्या बन जाती हैं, जब ये आपके नियंत्रण से बाहर जाकर पागलपन का रूप ले लेती हैं। अगर आप भावनाओं पर ध्यान देते हैं, उनके प्रति जागरूक होते हैं, तो आप जैसे-जैसे जागरूक होते जाएंगे, वैसे वैसे आपके और इनके बीच दूरी बढ़ती जाएगी। देखिए, एक बार अगर दूरी आ गई तो आप बिना शरीर हुए, अपने शरीर का इस्तेमाल कर सकते हैं। आप अपने विचार का इस्तेमाल कर सकते हैं, लेकिन आप विचार नहीं हैं, आप भावुक हो सकते हैं, लेकिन आप भावना नहीं हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि तब आप किस तरह की भावना पैदा करेंगे? सबसे मधुर भावनाएं। अगर आप सजगता से अपने विचारों का इस्तेमाल करें तो आप किस तरह के विचार पैदा करेंगे? आप ऐसे विचारों को पैदा करेंगे, जो आपके हित में हों या आपके खिलाफ हों? निश्चित रूप से अपने हित से जुड़े विचारों को पैदा करेंगे।
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जागरूक हुआ कैसे जाए?
‘अरे सुनने में तो यह बहुत अच्छा लगता है, लेकिन जागरूक हुआ कैसे जाए?’ आप अपने विचारों को देखने की कोशिश कीजिए - एक विचार, दो विचार और फिर खत्म। ज्यादातर लोग दो विचारों से आगे ध्यान नहीं दे पाते। इसलिए साधना की जरूरत पड़ती है, क्योंकि बिना जरूरी ऊर्जा के, जागरुक होने की कोशिश करना बेहद कठिन है। अगर आप अपने भीतर पर्याप्त ऊर्जा पैदा कर लेते हैं, तो आप देखेंगे कि आपका शरीर यहां बैठा है, आपके विचार कहीं और होंगे, आप कहीं और होंगे, इस तरह से साधना अपना रास्ता खुद बना लेती है।
अगर आपकी ऊर्जा, आपकी शारीरिक या मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया से अधिक प्रबल हो जाती है, विचार प्रक्रिया से अधिक तीव्र होती है या आपके भीतर उठ रही भावनाओं से ज्यादा प्रबल हो जाती है तो अचानक आप पाएंगे कि हर चीज यहां अलग-अलग है। अगर आपको यह पता चल जाए कि कौन सी चीज क्या है, तो आप उनको जैसे चाहें, इस्तेमाल कर सकते हैं। अब आप इनका कैसा इस्तेमाल करते हैं, इसके लिए बेशक आपको कौशल की जरूरत होती है। यह कौशल बस यूं ही नहीं आ जाता, व्यक्ति को इसे हासिल करना पड़ता है। लेकिन एक बार अगर आप इसे पा लेते हैं तो आप खुद शरीर, मन, विचार या भावना नहीं बनते, बल्कि ये सब आपके लिए काम करते हैं। ये हमारे जीवन का सबसे बड़ा वरदान बन जाते हैं।
बिना साधना के जागरूक होना मुश्किल है
तो साधना इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह प्लेटफॉर्म तैयार करती है। क्या साधना के बिना आप जागरूक हो सकते हैं? हां, यह संभव है, लेकिन ज्यादातर इंसानों के लिए यह काफी मुश्किल है। अभी जब आप यह लेख पूरी सजगता के साथ पढ़ रहे हैं तो गौर कीजिए कि सहज रूप से बैठे-बैठे आपने कितनी बार सांस ली और कितनी बार छोड़ी? तीन, चार या पांच सांसों पर गौर करेंगे, उसके बाद ज्यादातर लोग भूल जाएंगे। सांस पर ध्यान देना कोई मुश्किल काम नहीं है। सांस आ रही है, सांस जा रही है, बस इतना ही देखना है। अगर मैं आपसे कहूं कि आप अपनी किडनी पर गौर कीजिए कि वह कैसे काम कर रही है, तो यह अलग बात होगी। अगर आपको सांसों पर गौर करना है तो इसके लिए आपको अपनी आंखें बंद करनी होंगी और अपने मन को एकाग्र करना होगा। केवल इसी एक तरीके से आप अपनी सांस के प्रति जागरुक हो सकते हैं। कई महीनों के अभ्यास से आप उस स्थिति में पहुंच सकते हैं, जहां आप चलते हुए, बात करते हुए भी अपनी सांस के प्रति सजग हो सकते हैं।
ऊर्जा को तीव्र किए बिना जागरुक होने की क्षमता शायद दो से तीन फीसदी लोगों में ही होगी। बाकी लोगों से यह नहीं होगा। बेहतर होगा कि आप खुद को उन दो प्रतिशत लोगों में मानने के बजाय साधना कीजिए।