विषय सूची
1. साधना - जीवन की लहरों पर सवार होने का तरीका सीखना
2. भैरवी साधना से ज़्यादा से ज़्यादा फायदे कैसे लें
3.भैरवी साधना का महत्व
4. भैरवी साधना कैसे शुरू करें
5. भैरवी साधना के फायदे
6. भैरवी साधना का प्रभाव

सदगुरु : आज के तथाकथित आधुनिक समाजों में समय-समय पर की जाने वाली साधना को लोग समझ नहीं रहे हैं, जानते ही नहीं हैं – लोग साधना को भूलते जा रहे हैं। आजकल सिर्फ अनपढ़ लोग और गाँवों में रहने वाले लोग ही ऐसी साधना करते हैं। जब लोग पढ़ लिख जाते हैं तो कोई सही काम नहीं करते। आधुनिक शिक्षण लोगों को इधर उधर बिखेरने वाला बना रहा है। ये लोग समूहों में आने से कतराते हैं। उन्हें लगता है कि वे बाकी सब से बेहतर हैं। पर, हर चीज़ के बारे में वे उलझन में होते हैं। जिस बात को अनपढ़ किसान जानते, समझते हैं, ये पढ़े लिखे लोग नहीं जानते पर फिर भी मानते हैं कि वे श्रेष्ठ हैं, सभी लोगों से बेहतर हैं। वे निश्चित तौर पर कहीं गहरे स्तर की उलझन में हैं।

साधना एक ऐसा साधन है जो आपको जीवन की लहरों पर सवार होने के काबिल बनाता है। कुछ समय के लिये की जाने वाली साधना का महत्व यही है कि आपके जीवन को आसान बनाने के लिये आपके तंत्र में जैविक बुद्धिमानी को लाया जाये, बढ़ाया जाये। आपको ऐसी कल्पना करने की ज़रूरत नहीं है कि ये सृष्टि कोई समस्या है जिसे आपको सुलझाना है। सृष्टि में कोई समस्या नहीं है। ये एक जबर्दस्त अद्भुत घटना है। आप चाहें तो इस पर सवारी कर सकते हैं या इसके नीचे कुचले जा सकते हैं। चुनना आपको है। अगर आप इस पर सवारी कर लेते हैं तो ये ऐसी अद्भुत घटना है जो किसी की भी कल्पना में न आ सके। अगर आप इसके नीचे कुचले जाते हैं तो ये एक भयानक चीज़ है।

#1.साधना - जीवन की लहरों पर सवार होने का तरीका सीखना

जीवन की लहरों पर सवार होने का तरीका सीखना ही साधना है। साधना शब्द का शाब्दिक मतलब है कोई साधन या उपकरण। ये एक ऐसा साधन है जो आपको जीवन की लहरों पर सवार होने के काबिल बनाता है। कुछ दिनों पहले, मैं एक अंतर्राष्ट्रीय हवाईअड्डे पर था जहाँ एक युवा स्त्री हॉल के अंदर, आने जाने के रास्ते पर बैठी थी, किसी कुर्सी पर नहीं बल्कि अपने बैग पर। हजारों लोग अपनी ट्रॉलियां ले कर इधर उधर आ जा रहे थे, कोई हवाई जहाज पकड़ने के लिये दौड़ रहा था, कोई उतर कर बाहर जा रहा था - पर उसे इन सब से कोई परेशानी नहीं थी, वो अशांत नहीं हो रही थी बल्कि एक छोटा शीशा और बाल तोड़ने की एक छोटी चिमटी ले कर बैठी थी और अपनी भौंहों के फालतू बाल बड़ी कुशलता से निकाल रही थी। मुझे लगा कि उसका फोकस बहुत ऊँचे स्तर का था। छोटा सा वो साधन महत्वपूर्ण था जिसे वो हवाईअड्डे की भीड़भाड़ वाली जगह पर, बीचोबीच बैठी, बड़ी कुशलता से इस्तेमाल कर रही थी जहाँ हज़ारों लोग उसके चारों ओर, इधर उधर आ जा रहे थे।

एकदम छोटे में छोटे उपकरण से लेकर बड़े से बड़े उपकरण के इस्तेमाल करने में फोकस और पूरी तरह से शामिल होना ही वो दो बातें हैं जो उपकरण को असरदार बनाती हैं। हाँ, साधन की डिज़ाइन महत्वपूर्ण है, पर फिर भी, जब इतने सारे लोग आपके आसपास घूम रहें हो तो उस छोटी सी चिमटी को आप अपनी आँखों में भी घोंप सकते हैं - यानि आपके शामिल होने का स्तर बहुत अहम हो जाता है। सवाल बस यही है कि यह सब आपके लिये कितना अहम है! आपकी भौंहें नहीं, आपकी आध्यात्मिक प्रक्रिया। अगर आप कोई तीसरी आँख बढ़ा लें, तो ठीक करने के लिये एक और चीज़ होगी। पर, वास्तविकता में, आध्यात्मिक प्रक्रिया से भौंह नहीं आती, सिर्फ आँख आती है।

#2.भैरवी साधना से महत्तम फायदा कैसे उठायें

साधना की प्रक्रिया को इस तरह बनाया गया है कि कम से कम प्रयास में ज्यादा से ज्यादा परिणाम मिलें। साधना भौहों के बाल तोड़ने की छोटी सी चिमटी की तरह है - अगर आप इसे बहुत ध्यान दे कर, सावधानी से और पूरी तरह शामिल हो कर इस्तेमाल करेंगे तो ये अच्छी तरह काम करेगा, नहीं तो आप अपनी आँखें भी फोड़ सकते हैं। ये उस तरह के परिणाम के लिये नहीं बनाया गया है। इसे बहुत ध्यान दे कर सावधानी से और पूरी तरह शामिल हो कर काम करने के लिये बनाया गया है जिससे आपको सही परिणाम मिलें। उपकरण/ साधन महत्वपूर्ण है पर आप उसको किस तरह इस्तेमाल करते हैं वो ज्यादा महत्वपूर्ण है। अगर मैं आपको किसी चीज़ को सही ढंग से फिट करने को कहूँ और आप पेंचकस का गलत सिरा उस पर लगायें तो शायद आप खुद को ही नुकसान पहुँचायेंगे।

भैरवी साधना बहुत सरल है। हम इसे ज्यादा जटिल बना सकते थे पर अगर हम इसे बहुत पेंचीदा और जटिल बना दें तो बहुत से लोग ये नहीं समझेंगे कि ये सब क्या है! पर, आप इसकी सरलता से गफलत में मत आ जाईये। अगर आप खुद को इसमें पूरी तरह से झोंक दें तो आप जिनकी कल्पना भी नहीं कर सकते ऐसे परिणाम आपको मिलेंगे। यही सब जीवन के साथ भी होता है क्योंकि हमें जीवन को बनाना नहीं है, ये तो पहले से ही है। हमें इसे बस ऐसा कर देना है कि ये सबसे ऊँचे स्तर पर, सही ढंग से, कुशलता से काम करे। अगर आपको जीवन बनाना होता तो ये एक अलग तरह की चुनौती होती। पर सब कुछ यहाँ है। आपको इसे सही स्थिति में रखना है, बस यही करना है। और, ये तो साधना करने से ही होगा।

#3.भैरवी साधना का महत्व

इस साधना की संरचना इरादतन इस तरह से की गयी है कि इसका कुछ भाग आपको पसंद आयेगा और कुछ नापसंद होगा। जो भाग आपको झुका, थका या तोड़ नहीं देगा उसमें तो आप आराम से रहेंगे पर जो आपको पसंद नहीं है, वो ही ज्यादा महत्वपूर्ण है। आपको जो पसंद है उसे अगर आप 100% शामिल हो कर करते हैं तो फिर, जो पसंद नहीं है, उसे आपको 200% शामिल हो कर करना चाहिये।

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आपको जो पसंद है उसे अगर आप 100% शामिल हो कर करते हैं तो फिर, जो पसंद नहीं है, उसे आपको 200% शामिल हो कर करना चाहिये।

क्या आप सुबह नीम की गोलियाँ खा रहे हैं? शायद आप इन्हें पूरा जोर लगा कर गले में पीछे की ओर धकेलते हैं और उस पर बहुत सारा पानी पी लेते हैं। वास्तव में आपको उन्हें मुँह में रख कर चबाना चाहिये। हम आपको नीम की गोली की जगह रसगुल्ला भी दे सकते हैं। आप एक रसगुल्ला पूरी जागरूकता के साथ खा सकते हैं पर, अगर, हम आपको ढेर सारे रसगुल्ले दें तो कुछ समय बाद आपको पता भी नहीं चलेगा कि आप कितने रसगुल्ले खा गये हैं! पर, आप ये कभी भी नहीं भूल सकते कि आपने नीम की गोलियाँ कितनी खायी हैं? अगर कोई कहे कि आपने सिर्फ दो गोलियाँ खायी हैं तो आप तुरंत कहेंगे, "नहीं, मैंने तीन खायी हैं"! नीम बहुत ही फायदेमंद है पर सबसे ज्यादा बड़ी बात ये है कि जिन चीजों को आप पसंद नहीं करते वे आपको जीवन के प्रति सतर्क, सजग कर देती हैं।

आपकी पसंद और नापसंद सिर्फ विचारों की ही तो बात है। आप ऐसा सोच सकते हैं, "मुझे ये व्यक्ति पसंद है", और अगले ही पल आप ये भी सोच सकते हैं, "मुझे इस व्यक्ति से नफरत है"। आपके पास ये स्वतंत्रता है। अगर आप ये सोचते हैं, "मुझे ये व्यक्ति पसंद है", तो ये सच होगा। अगर आप सोचें, "मैं इसे पसंद नहीं करता", तो ये भी आपके लिये सच ही होगा। आखिरकार ये आपका ही विचार है - तो आपको कम से कम ऐसा करना चाहिये कि जो सोचें वो सुखपूर्वक, खुशी से सोचें। साधना इस तरह की है कि आप शरीर, मन, वाणी, देखने और सुनने के साधनों को समझते हैं। ये सब आपके साधन हैं और आप किस तरह से इनका इस्तेमाल सीखते हैं ये आपका मामला है। आप इनको अपनी खुशहाली के लिये इस्तेमाल कर सकते हैं, या आप उन्हें ऐसे भी इस्तेमाल कर सकते हैं कि आप खुद को खुद के बनाये नर्क में डाल लें।

#4.भैरवी साधना कैसे शुरू करें

इस साधना के दौरान हर कदम हर साँस और हृदय की हर धड़कन लगातार चलती ही रहनी चाहिये। तभी आपको पता चलेगा कि सरल चीजें कितनी महत्वपूर्ण हो सकती हैं और क्या बड़ा काम कर सकती हैं। ऐसी सरल चीजों ने चमत्कारिक काम किये हैं। परमाणुओं से मिल कर ही सारा ब्रह्मांड बना है। वे इतने सूक्ष्म हैं कि आप उन्हें माइक्रोस्कोप में भी नहीं देख सकते। हम उन्हें अनदेखा कर सकते थे पर उन्होंने ही तो सब कुछ, सारा ब्रह्मांड बनाया है। ऐसी सरल चीजों को हमें अनदेखा नहीं करना चाहिये। हमारा जीवन इसीलिये जटिल हो जाता है क्योंकि हम ऐसी सरल चीजों पर पर्याप्त ध्यान नहीं देते, उन्हें महत्वपूर्ण नहीं मानते, उन्हें अनदेखा करते हैं। अगर आपने इन सब चीजों की परवाह की होती तो जीवन अद्भुत होता।

कैसे बैठें, खड़े हों, साँस लें, ये सरल चीजें अपने जीवन में महत्वपूर्ण बनाईये। तब, आपका जीवन एक शालीन, सुंदर प्रक्रिया बन जायेगा। यही तो साधना है। आपके जीवन का एक ही लक्ष्य ये होना चाहिये कि आप अपने जीवन को सबसे ऊँचे, सबसे अच्छे ढंग से जियें। तभी जीवन अर्थपूर्ण होगा नहीं तो बेकार ही होगा। आपको वो करने की ज़रूरत नहीं है जिसे मैं सबसे अच्छा मानता हूँ पर आप जिसे सबसे अच्छा, सबसे ऊँचा मानते हैं, कम से कम वो तो होना ही चाहिये। आप जिसे सबसे ऊँची बात मानते हैं, वो अगर आपके जीवन में नहीं होती तो ये एक बेकार का जीवन है। व्यर्थ जीवन मत बनिये क्योंकि जीवन में सबसे ज्यादा कीमती चीज़ जीवन ही है - हीरे, मोती, धन संपत्ति वगैरह नहीं हैं। तो, आप ये अभी समझेंगे या फिर तब जब आप मृत्युशैया पर होंगे और आखरी साँस ले रहे होंगे? किसी न किसी दिन तो आप समझेंगे ही! तो बस, आज का दिन इसके लिये सबसे अच्छा है।

#5.भैरवी साधना के फायदे

ये साधना, मूल रूप से, आपकी भावनात्मक बुद्धिमानी को ज़्यादा मजबूत, शक्तिशाली बनाने के लिये है। आज की दुनिया में बुद्धिमानी को आईक्यू से ही जोड़ कर देखा जाता है। अब, आईक्यू का मतलब तो यही निकलता है, "आई स्टैंड इन द क्यू", यानी आप हमेशा ही किसी के पीछे हैं। इसकी वजह ये है कि बुद्धिमत्ता का स्वभाव यही है कि किसी की नकल करे और किसी के आगे जाये। किसी से बेहतर करने की इच्छा भी किसी की नकल करना ही है। मूल रूप से इसका मतलब यही है कि हम बंदरों से कुछ बेहतर करने की कोशिश कर रहे हैं - यही क्रमिक विकास है।

ये साधना मूल रूप से आपकी भावनात्मक बुद्धिमता को ज्यादा मजबूत, शक्तिशाली बनाने के लिये है।

ज्यादातर इंसानों की सोच आजकल कुछ ऐसी है कि अगर उनके पास बड़े रूप में बहुत सारी जानकारियाँ जमा न हों तो उनके लिये तार्किक-बुद्धि एक बेकार का साधन बन जाती है। और अगर उनके पास जानकारी न हो, तो बहुत सारे लोगों को पता ही नहीं चलता कि अपनी तार्किक-बुद्धि को इस्तेमाल कैसे करें? ये भावनात्मक बुद्धि का स्वभाव नहीं है क्योंकि उसे जानकारी की ज़रूरत नहीं होती। ये लगभग हर चीज़ से जुड़ जाती है और उसे जान लेती है। ये जीवन से गुज़रकर अपना रास्ता खोज सकती है। न ही इसे किसी के पीछे, कतार में खड़े होने की ज़रूरत है और न ही किसी से बेहतर होने की कोशिश करने की। ये बस जीवन के साथ शामिल हो जाने का एक रास्ता है, न कि जीवन की चीरफाड़ करने का।

तार्किक-बुद्धि और भावना के बीच यही अंतर है। तार्किक-बुद्धि हर चीज़ को काट कर, खोल कर, चीरफाड़ कर के जानने की कोशिश करती है जब कि भावना हर चीज़ को अपने से मिला कर, जोड़ कर जानती है। ये साधना मूल रूप से आपकी भावनात्मक बुद्धि को ज्यादा ऊँचा करने के लिये है क्योंकि कुछ भी करने का ये बहुत आसान तरीका है। अगर आप दिव्यता को काट छाँट कर जानना चाहते हैं तो ये कोई अच्छी बात नहीं है। इससे आप कहीं नहीं पहुँचते। सबसे अच्छी चीज़ ये होगी कि आप उसको अपने से जोड़ लें, मिला लें, अपने में शामिल कर लें। जब आप किसी को गले लगाते हैं, तो खुद को भी उसके गले लगने देते हैं नहीं तो ये गले लगना, मिलना, जुड़ना होगा ही नहीं। भक्ति भी बस यही है।

भक्ति में आप दिव्यता को काट-छाँट कर नहीं जानते। इसमें तो दिव्यता के साथ आप नृत्य करते हैं और एक हो जाते हैं। भावनात्मक बुद्धि का मतलब ये है कि अच्छी तरह जीने की आपकी काबिलियत आपके मूल स्वभाव की वजह से है न कि इसलिये कि आप किसी से बेहतर हैं। इसमें कोई ऊँचा - नीचा, कम - ज्यादा, अच्छा - बुरा, छोटा - बड़ा वगैरह नहीं होता। कोई ये तय नहीं करता, " उस व्यक्ति की तुलना में ये व्यक्ति ज्यादा प्रेम करने वाला है"। भावनात्मक बुद्धि का मात्रा से कोई संबंध नहीं है। जब मात्रा का सवाल नहीं होता तब ऊँचा - नीचा, छोटा - बड़ा वगैरह गायब हो जाते हैं और जीवन सामान्य हो जाता है, जैसा है वैसा ही। क्या एक चींटी आपसे ज्यादा महत्वपूर्ण जीवन है या चींटी की तुलना में आप ज्यादा महत्वपूर्ण जीवन हैं? एक चींटी अपने जीवन को उतना ही महत्वपूर्ण मानती है, जितना अपने जीवन को आप मानते हैं, शायद ज्यादा ही!

तार्किक-बुद्धि हमेशा एक चीज़ को दूसरी के खिलाफ खड़ा कर देती है। आपकी तार्किक-बुद्धि ने टकराव की स्थिति पैदा कर दी है, पर आपकी भावनायें इन चीजों को एक दूसरे के पास ला सकती हैं। पर, अगर भावना भी बुद्धिमत्ता के पीछे-पीछे चले, उसके जैसा व्यवहार करे तो भावना भी खतरनाक टकराव खड़ा कर देती है। अगर आपकी तार्किक-बुद्धि आपकी भावनाओं का अनुसरण करती है तो टकराव नहीं होगा, संसार में ज्यादा मधुरता होगी, दुनिया में अद्भुत परिस्थितियाँ बन जायेंगी। मूल रूप से भैरवी साधना का रुझान इसी तरफ है। ये एक सरल संरचना है पर अगर आप खुद को इसकी ओर पूरी तरह से समर्पित कर देते हैं तो ये आपके लिये चमत्कारिक चीजें कर सकती है।

#6.भैरवी साधना का प्रभाव

भैरवी साधना के इन 21 दिनों में अगर आप खुद को पूरी तरह से समर्पित कर देते हैं, तो आप सिर्फ खुद का ही नहीं बल्कि आसपास के सारे स्थानों का शुद्धिकरण कर देंगे। इससे राष्ट्र को और सारी दुनिया को बहुत फायदा होगा। और, भक्ति कोई सिर्फ 21 दिनों का काम नहीं है। आपको रोजाना ही इसके साथ पूरी तरह से, उससे भी ज्यादा, प्रवाहित होते रहना चाहिये। ये कोई करने या न करने की चीज़ नहीं है, ये कुछ ऐसी चीज़ है जिसे आप जीते हैं। भक्ति आपकी साँस की तरह है।

अगर भैरवी की कृपा, उनकी छाप आपके हृदय में पड़ जाये, बस जाये तो फिर आपको हार - जीत की चिंता करने की ज़रूरत नहीं है, न ही संपन्नता-गरीबी की! और तो और, जीवन-मरण की भी नहीं! जो भी दिव्यता की गोद में पहुँच जाता है, उसके लिये ये सब चीजें मामूली हो जाती हैं, उनसे उसे कोई फर्क नहीं पड़ता। मेरी शुभकामना है कि ये प्रक्रिया आपको पूरी तरह अभिभूत कर दे।