प्रश्न: जब मैं सचमुच खुश होता हूं और मेरा मन पूरी तरह से साफ होता है, तो मेरे भीतर उल्लास का एक सोता बह उठता है। ऐसा लगता है मानो मैं पिघल रहा हूं। हालांकि मेरे आसपास के लोग मेरे उस उल्लास को कम करने में लगे रहते हैं, लेकिन मेरी कोशिश होती है कि वे सफल न होने पाएं। दूसरी तरफ अगर मैं खुद को अपने तक ही रोक लेता हूं तो मुझे अकेलापन महसूस होने लगता है। मुझे क्या करना चाहिए?

सद्‌गुरु: मैं आपको एक बात समझाना चाहता हूं। आप खुद को जितना अकेला समझेंगे, खुद को जितना निराश महसूस करेंगे, उतना ही आपको लोगों के साथ की जरूरत महसूस होगी। लेकिन आप जितना खुश होंगे, आप भीतर से जितना उल्लासित और उत्साहित महसूस करेंगे, आपको लोगों के साथ की जरूरत उतनी ही कम महसूस होगी। इसलिए जब आप खुद के साथ हैं और तब आप अकेलापन महसूस करते हैं तो इसका सीधा सा मतलब है कि आप एक खराब संगत में हैं। अगर आप एक अच्छे इंसान की संगत में हैं तो आप अकेलापन कैसे महसूस कर सकते हैं? तब तो आपको बहुत अच्छा और विशिष्ट महसूस करना चाहिए। आपके उल्लास को पैदा नहीं किया सकता। अगर यह ओढ़ा हुआ या कृत्रिम रूप से बनाया हुआ उल्लास है तो बेशक आपको लोगों के साथ की जरूरत महसूस हो सकती है। अकसर लोग उल्लास या आनंद का मतलब समझते हैं - संगीत सुनना, नाचना और झूमना। आनंद के लिए ये सब करना बिल्कुल जरूरी नहीं है। आप चुपचाप एक जगह शांति से बैठकर भी पूरी तरह से आनंद और उल्लास को अपने भीतर महसूस कर सकते हैं।

आनंदित होकर काम करें, या फिर आनंद पाने के लिए काम

इस एक अंतर को समझना होगा कि अगर आप अपने स्वभाव से ही आनंदित रहने वाले इंसान हैं, या आपका जीवन आनंदमय हो गया है तो आपका काम बस उसका एक परिणाम भर होता है। लेकिन कई बार आपका जीवन उल्लासपूर्ण नहीं होता, बल्कि आप कुछ गतिविधियों की मदद से इसे उल्लासपूर्ण बनाने की कोशिश कर रहे होते हैं।

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असलियत तो यह है कि जब पौधे अपने भीतर ऊर्जा या उल्लास को संभाल नहीं पाते तो वह फूलों के रूप में उसे व्यक्त कर देते हैं। जीवन भी इसी तरह होना चाहिए। 
इन दोनों स्थितियों में एक बड़ा फर्क है। एक में आप नृत्य करके आनंद की स्थिति में पहुंचते हैं जबकि दूसरी में आप आनंद से भरे होते हैं और उस आनंद को संभाल न पाने के कारण आप नाचने लगते हैं। ये दोनों चीजें अलग-अलग हैं। या तो आपके भीतर की खुशी से आपकी हंसी फूट पड़ती है या फिर किसी ने आपसे कहा होता है कि अगर हर सुबह उठकर आप हंसेंगे तो एक दिन आपको खुशी मिल जाएगी। ये दो अलग-अलग तरीके हैं। अब आप अपने चारों तरफ नजर दौड़ाइए और देखिए कि जीवन कैसे चलता है।

क्या ऐसा होता है कि फूलों को जब खिलना होता है, तो उन्हें सहारा देने के लिए पौधे और उसकी जड़ें उगती हैं? क्या कभी ऐसा होता है? हां कुछ और हालत में ऐसा होता है, जैसे माइक्रोफोन के साथ ऐसा है। पहले माइक्रोफोन बना, फिर बोलने वाले को तकलीफ नहीं हो, इसलिए स्टैंड बनाया गया जो एक तने जैसा है। क्या ऐसा ही फूलों के साथ भी है कि उनके खिलने के बाद तने उन्हें सहारा देने के लिए निकल आते हैं? असलियत तो यह है कि जब पौधे अपने भीतर ऊर्जा या उल्लास को संभाल नहीं पाते तो वह फूलों के रूप में उसे व्यक्त कर देते हैं। जीवन भी इसी तरह होना चाहिए। अगर आपने दूसरे तरह से जीने की कोशिश की तो जीवन बड़ा मुश्किल हो जाएगा।

बनावटी ख़ुशी से जीवन मुश्किल हो जाएगा

इस दुनिया में सबसे मुश्किल जीवन वह है, जो खुश न होने पर भी लगातार यह दिखाने की कोशिश करता है कि वह बेहद खुश है। इस तरह का दिखावा करने में बहुत बड़ी मात्रा में जीवन ऊर्जा लगती है। क्या आपने कभी इस पर गौर किया है? दुनिया में कुछ लोग ऐसे होते हैं जो वाकई खुश होने पर तो खुश दिखते हैं, पर जब वो दुखी होते हैं तो दुखी दिखाई देते हैं। ऐसे लोग असलियत में जैसे हैं, वैसे ही दिखाई देते हैं। पूरी दुनिया उनकी इस जीवन-शैली के बारे में जानती है। जबकि कुछ लोग पूरे समय बनावटी हंसी और खुशी बनाए रखते हैं जिसमें उन्हें जबरदस्त उर्जा खर्च करनी पड़ती है। मैं आपको बता दूं कि इससे शरीर के अंदर कई रोग और तकलीफें पैदा हो जाती हैं। इससे आपके शरीर में गांठ और ट्यूमर बन सकता है। आज पूरी दुनिया में ऐसा ही हो रहा है।

आप जिस तरफ  भी जाना चाहते हैं, वह आप तय कर लीजिए। इसका फैसला मैं नहीं कर रहा। लेकिन जहां भी जाना है, उस दिशा में नियमित रूप से लगातार बढ़िए।
अगर आपमें से कोई तैयार हो तो मैं उस पर यह प्रयोग करके भी दिखा सकता हूं। कुछ ही घंटों में, मैं आप ही के द्वारा आपके शरीर में ट्यूमर पैदा करवा सकता हूं। वाकई, मैं मजाक नहीं कर रहा हूं। अगर आप अपने मन को किसी खास दिशा में ढाल लेते हैं, तो आप यह कर सकते हैं। लेकिन सौभाग्य की बात यह है कि आप कोई भी काम लगातार नहीं करते, जिसकी वजह से आप बच जाते हैं। आप कभी खुश होते हैं, कभी नहीं, इसी तरह से आप कभी दुखी होते हैं तो कभी नहीं। कोई भी भाव लगातार नहीं बना रहता। अगर आप गंभीर रूप से लगातार दुखी रहते हैं तो आप उसके नतीजे देख सकते हैं। इसी तरह से अगर आप लगातार खुश रहते हैं तो उसके नतीजे भी देख सकते हैं। अगर आप हमेशा बुरी तरह से गुस्से में रहते हैं, तो उसका भी एक खास नतीजा होगा। आपको किसी भी चीज के पूरे नतीजे इसलिए नहीं मिलते, क्योंकि आपकी भावनाओं की तीव्रता लगातार घटती बढ़ती रहती है।

बार-बार अपनी दिशा न बदलें

लोग अकसर मुझसे सवाल करते हैं कि सद्‌गुरु हमें किस तरह का रवैया और अपनी भावनाएं रखनी चाहिए। इस पर मेरा जवाब होता है कि ‘हर भाव, हर रवैया अच्छा है।’ अगर आप गुस्सा करना चाहते हैं तो चौबीस घंटे बिना रुके लगातार गुस्सा कीजिए। आपको खुद-ब-खुद आत्मानुभूति हो जाएगी। वाकई मैं मजाक नहीं कर रहा। अगर आपको प्रेम करना पसंद है, तो चौबीसों घंटे प्रेम कीजिए। आपको अनुभूति हो जाएगी। आप जो भी कर रहे हैं, उसे लगातार चौबीस घंटे कीजिए और फिर देखिए आपको एक खास तरह की अनुभूति होगी। चीजें बस ऐसे ही घटित होती हैं।

इस सृष्टि का कण-कण, हर एक कोशिका, हर एक परमाणु,आपके लिए अस्तित्व से परे जाने का द्वार बन सकते हैं, अगर आप लगातार एक दिशा में चलें, एक भाव में रहें। लेकिन दिक्कत यह है कि लोग लगातार अपनी दिशा और दशा बदलते रहते हैं। यह आज के दौर की इतनी बड़ी समस्या है, जितनी पहले नहीं थी। लोग ऐसा कहने में अपनी तारीफ समझते हैं कि ‘मेरी एकाग्रता की अवधि बहुत छोटी है।’ अगर आप अपना फोकस लगातार बदलते रहेंगे तो इससे कुछ होने वाला नहीं। आप जिस तरफ भी जाना चाहते हैं, वह आप तय कर लीजिए। इसका फैसला मैं नहीं कर रहा। लेकिन जहां भी जाना है, उस दिशा में नियमित रूप से लगातार बढ़िए। आप रोज-रोज अपनी दिशा मत बदलिए।