महान ग्रंथ महाभारत की कहानी में आप पढ़ रह रहे हैं कौरव और पांडवों के जन्म की कहानी। अब तक आपने पढ़ा कि भीष्म शांतनु और सत्यवती के पुत्र विचित्रवीर्य के लिए काशी नरेश की तीन पुत्रियों अंबा, अंबिका और अंबालिका का हरण कर उन्हें हस्तिनापुर लाते हैं। अंबिका और अंबालिका तो विचित्रविर्य से शादी कर लेती हैं, लेकिन अंबा चेदि के राजा शल्य से प्रेेम करती थी और उनसे ही शादी करना चाहती थी। यह बात पता चलने पर भीष्म उसे वापस भेज देते हैं लेकिन चेदि नरेश शल्य उसे यह कह कर अस्विकार कर देते हैं कि मैं दान स्वीकार नहीं कर सकता। निराश अंबा फिर भीष्म से विवाह का प्रस्ताव रखती है, लेकिन भीष्म अपनी शपथ की वजह से उसके प्रस्ताव को ठुकरा देते हैं। अब आगे पढ़िए:

Subscribe

Get weekly updates on the latest blogs via newsletters right in your mailbox.

अंबा बोली, ’मुझे आपकी शपथ से कोई फर्क नहीं पड़ता।’ भीष्म ने जब फिर इनकार कर दिया तो गुस्से में भरकर अंबा ने भी एक शपथ ली, ’तुमने मेरा जीवन बर्बाद कर दिया और अब मुझसे विवाह करने से भी मना कर रहे हो। मैं निस्सहाय स्त्री हूं और तुम महानायक। मैं तुम्हारा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकती, लेकिन मैं पुरुष के रूप दोबारा जन्म लूंगी और तब तुम्हारे अंत का कारण बनूंगी।’
अब इससे थोड़े पहले के एक प्रसंग पर चलते हैं। बात उस वक्त की है, जब भीष्म ने अपने पिता के सत्यवती से विवाह की खातिर खुद कभी विवाह न करने और संतान पैदा न करने की शपथ ली थी। पुत्र के इस बलिदान पर उनके पिता इतने भावुक हो गए थे कि उन्होंने उसे एक वरदान दिया। पिता ने कहा, ’तुम किसी के हाथ से नहीं मरोगे। तुम्हारी मृत्यु तभी होगी, जब तुम्हारी खुद की इच्छा होगी। तुम अपनी इच्छा से ही मरोगे। अगर तुम्हारी मरने की इच्छा नहीं होगी तो तुम हमेशा जीवित रह सकते हो।’ खैर, अंबा ने शपथ ली थी कि वह कहीं और एक पुरुष के रूप में जन्म लेगी और भीष्म की मत्यु का कारण बनेगी। यह एक ऐसी बात थी, जिसने भीष्म को पूरी जिंदगी परेशान रखा। उन्हें हमेशा यही लगता रहा कि उन्होंने कहीं न कहीं एक स़्त्री की जिंदगी बर्बाद की है। दरअसल, भीष्म बेहद धर्मात्मा व सदाचारी व्यक्ति थे।

आर्य परंपरा में यह एक स्थापित चलन था कि एक संस्कार के तहत रानियों और राजकुमारियों का महान संतों से किसी विधि द्वारा गर्भाधान कराया जाता था। संतान पैदा करना कोई अहम की बात नहीं थी। उस समय के लोग यह जानते थे कि स्त्री में बीज डालने के लिए सबसे सही पुरुष कौन है।

शादी के कुछ समय बाद किसी अजीब सी बीमारी की वजह से विचित्रवीर्य की मौत हो गई। उनकी दोनों पत्नियों के कोई संतान नहीं हुई थी। यानी राजा के कोई संतान नहीं थी। उधर भीष्म ने विवाह करने से इनकार कर दिया था क्योंकि वह शपथ में बंधे थे। ऐसे में सत्यवती ने भीष्म से कहा, ’तुमने यह शपथ इसीलिए ली थी कि तुम्हारे पिता मुझसे विवाह कर सकें। वह सब बातें बीत चुकीं। अब राज्य चलाने के लिए कोई संतान नहीं है। तुम विवाह कर लो और संतान पैदा करो।’ इस राजवंश को भरत राजवंश कहा जाता था। इसी वजह से इस ग्रंथ का नाम महाभारत पड़ा और इसी के कारण हमारे देश का नाम भारत हुआ। सत्यवती ने भीष्म को समझाया, ’भरत वंश को चलाने वाला कोई नहीं है। हम ऐसा नहीं होने देंगे इसलिए तुम्हें विवाह कर लेना चाहिए। ये दोनों लड़कियां अब भी युवा हैं और इनके कोई संतान भी नहीं है। तुम इन दोनों से विवाह कर लो।’ लेकिन सत्यवती के इस प्रस्ताव को मानने से भीष्म ने इनकार कर दिया।
आर्य परंपरा में यह एक स्थापित चलन था कि एक संस्कार के तहत रानियों और राजकुमारियों का महान संतों से किसी विधि द्वारा गर्भाधान कराया जाता था। संतान पैदा करना कोई अहम की बात नहीं थी। उस समय के लोग यह जानते थे कि स्त्री में बीज डालने के लिए सबसे सही पुरुष कौन है। उस वक्त दुनिया के सबसे महान संत कृष्ण द्वैपायन थे। खैर, यह निर्णय किया गया कि अगर वह भरत वंश के लिए संतान उत्पत्ति का काम कर दें तो भरत वंश को अपना वारिस मिल जाएगा और इस तरह वंश आगे चलेगा।
यह एक कर्मकांडी प्रक्रिया होती थी।
मैं निस्सहाय स्त्री हूं और तुम महानायक। मैं तुम्हारा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकती, लेकिन मैं पुरुष के रूप दोबारा जन्म लूंगी और तब तुम्हारे अंत का कारण बनूंगी।
एक खास तरीके से किया जाता था यह सब। कृष्ण द्वैपायन तपस्वी थे। उनके पूरे शरीर पर विभूति और बालों की लटें फैली रहती थीं। एक दिन इन राजकुमारियों को उनके पास भेज दिया गया। अंबिका ने जब उन्हें देखा, तो उन्हें वह इतने भयानक लगे कि उन्होंने अपनी आंखें बंद कर लीं और फिर उन्हें खोला ही नहीं। एक पूरी प्रक्रिया होनी थी। अंबिका ने वह प्रक्रिया पूरी की, गर्भवती हुईं और फिर धृतराष्ट्र को जन्म दिया। चूंकि अंबिका ने अपनी आंखें पूरी तरह से बंद कर ली थीं इसलिए धृतराष्ट्र अंधे पैदा हुए। जब अंबालिका कृष्ण द्वैपायन के पास गईं तो वह और भी ज्यादा डरी हुई थीं। वह डर से कांपने लगीं। नतीजा यह हुआ कि उनके यहां जन्मे पुत्र पांडु को नसों से संबंधित बीमारी हो गई, जिसमें वह लगातार कांपते रहते थे। यानी अंबिका और अंबालिका ने संतानों को जन्म तो दिया, लेकिन उनमें से एक का बच्चा अंधा पैदा हुआ, तो दूसरी का बच्चा कांपता रहता था।
धृतराष्ट्र ने कई विवाह किए और इस तरह उनके 100 पुत्र हुए। पांडु की दो पत्नियां थीं, कुंती और माद्री। कुंती कृष्ण की बुआ और वासुदेव की बहन थीं। कुंती के तीन बच्चे थे, युधिष्ठिर, भीम और अर्जुन। बाकी दो पुत्र नकुल और सहदेव माद्री के थे। तो इस तरह ये पांचों भाई पांडु के पुत्र थे। उधर धृतराष्ट्र के 100 पुत्र थे। पूरा का पूरा नाटक इन दो समूहों के बीच ही आरंभ हुआ। दोनों के बीच राज्य को लेकर झगड़ा हुआ। इस राज्य में आज के भारत का बड़ा हिस्सा शामिल था।
पांचों पांडव जो भी करते, उसी में महारत हासिल कर लेते। चाहे वह युद्ध विद्या हो, ज्ञान हो या फिर नैतिकता। लेकिन अंधे पिता के 100 पुत्र उद्दंड थे और उनके जीवन का मकसद पांडवों की तरह नेक नहीं था। धृतराष्ट्र अपने भाई पांडु से बड़े थे और इस तरह सिंहासन पर बैठने के अधिकारी थे, लेकिन चूंकि वह जन्मांध थे इसलिए पांडु को राजा बनाया गया। इस तरह पांडु के पुत्र युधिष्ठिर स्वाभाविक तौर पर उनके वारिस बने।
उधर सौ भाइयों में सबसे बड़े दुर्याेधन को हमेशा लगता कि उसके साथ धोखा हुआ है। उसे महसूस होता कि जिस चीज पर उसका हक था, वह उसे नहीं मिली। यह असंतोष ही दोनों परिवारों के बीच युद्ध की वजह बना। कृष्ण ने इस मामले में शांति स्थापित करने की पूरी कोशिश की, लेकिन जब कोई भी कोशिश कामयाब नहीं हुई तो दोनों समूहों के बीच महायुद्ध हुआ, जिसे दुनिया के इस हिस्से में होने वाले सबसे बड़े युद्धों में से एक माना जाता है। कहा जाता है कि इस महायुद्ध में पांच लाख से भी ज्यादा सैनिकों ने हिस्सा लिया और लगभग सभी वीरगति को प्राप्त हुए। यह आज से लगभग 3500 साल पहले की बात है।
आगे जारी ...

Image courtesy: Shivani Naidu