कोई भी ऐसा नहीं है, जो ज्ञान नहीं पा सकता। अगर आप उसे जानने के क़ाबिल नहीं होते, तो मैं आपके ऊपर अपना समय बर्बाद नहीं करता। मेरी बात मानिए, मैं इन सब मामलों में बिलकुल दया नहीं दिखाता। अगर आप पूरी तरह नाकाबिल हैं, आप एक संभावना नहीं हैं, तो मैं एक भी पल आपके साथ बर्बाद नहीं करूंगा। क्या आपने मुझे मेंढकों को ध्यान सिखाने की कोशिश करते देखा है? मैंने जीवविज्ञान(बायोलॉजी) की कक्षा के अलावा उन पर एक भी पल नहीं गँवाया क्योंकि मुझे उनमें कोई संभावना नहीं दिखी।

काबिल सभी हैं, बस इच्छा पैदा करनी होगी

यह क़ाबिलीयत का प्रश्न ही नहीं है, यह तो इच्छा की बात है। इच्छा आपको कोई और नहीं दे सकता, वह आपकी ओर से आनी चाहिए। आपको खाना परोसा जा सकता है, लेकिन जब तक आप खाने के लिए इच्छुक नहीं होंगे, वे सिर्फ परोस सकते हैं, वे अनुरोध(विनती) कर सकते हैं, मगर उसके आगे कुछ नहीं हो सकता। यह भी उसी का एक सूक्ष्म रूप है। हम सिर्फ इसे आपके सामने पेश कर सकते हैं। इच्छा आपकी ओर से होनी चाहिए। इसका कोई दूसरा तरीका नहीं है। अब सवाल उठता है, ‘इच्छुक होने के लिए मुझे क्या करना चाहिए?’ इसकी जगह आपको इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि आप खुद को अनिच्छुक बनाने के लिए क्या कर रहे हैं।

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आपके मन को अनिच्छा की स्थिति में नहीं होना चाहिए। ‘नहीं, नहीं, मैं इसे करना चाहता हूं, लेकिन...’ यह ‘लेकिन’ अनिच्छा है। आपको इस लेकिन से निपटना होगा। 
इच्छा जीवन की प्रकृति है। हो सकता है कि अभी आप अपने बगल में बैठे शख्स को पसंद न करते हों, मगर फिर भी आप उसकी छोड़ी हुई हवा को अपने अंदर साँस के रूप में लेने के लिए तैयार हैं। यहां तक कि आपकी सास जो सांस छोड़ती है, उसे भी आप अपने अंदर लेते हैं! आम तौर पर जब आप किसी ऐसे इंसान के आस-पास होते हैं, जिसे आप पसंद नहीं करते, तो आप गहरी सांस लेते हैं। तो खास कर जब आपकी सास आस-पास होती है, आप सामान्य से कहीं अधिक हवा खींच रहे होते हैं!

विचारों में ‘लेकिन’ का आना अनिच्छा है

इच्छा जीवन की प्रक्रिया है, सिर्फ सांस के स्तर पर नहीं। अगर आप परमाणु के स्तर पर जाएं, तो उसका भी बाकी अस्तित्व के साथ लगातार एक लेन-देन चलता रहता है। हर वो चीज़ जिसे आप जीवन कहते हैं, वह इच्छा की एक प्रक्रिया है। सिर्फ एक जगह आपके पास इच्छुक होने या न होने का चुनाव होता है, वह है आपका मन और आप उसे बर्बाद कर दे रहे हैं।

विवश(मजबूर) होकर कुछ करना पशु प्रकृति है – यह बंदर की तरह मूर्खतापूर्ण काम है। इंसानी प्रकृति एक चेतन रूप में सक्रीय होना है और जब जरूरत हो, तब काम करना है।
अगर आप अपने शरीर, सांस, हृदय, जिगर या किडनी को अनिच्छुक बना दें, तो आप मर जाएंगे। आपके जीवन के लिए जो चीजें जरूरी हैं, प्रकृति ने उन्हें अपने हाथ में रखा है। उसने आपको सिर्फ एक छोटी सी चीज दी और उसे भी आप गड़बड़ करना चाहते हैं। आपके पास सिर्फ आपका मन है। आप उसे जीवन की प्रक्रिया के प्रति इच्छुक या अनिच्छुक बना सकते हैं। बाकी सभी चीजों के लिए आपके पास कोई चुनाव नहीं है, वे चीजें अपने आप इच्छुक हैं। मैं आपके लिए समूचे अस्तित्व को संभाल लूँगा, मगर इस एक चीज – अपने मन – को आपको खुद संभालना होगा। आपके मन को अनिच्छा की स्थिति में नहीं होना चाहिए। ‘नहीं, नहीं, मैं इसे करना चाहता हूं, लेकिन...’ यह ‘लेकिन’ अनिच्छा है। आपको इस लेकिन से निपटना होगा। इस ‘लेकिन’ को हटाने के लिए आपको अपने जीवन को ध्यानपूर्वक देखना होगा – आप यहां किस लिए हैं?

मजबूर होकर जानवर काम करते हैं

यह एक ऐसा सवाल है, जिसे पूछने के लिए बहुत से लोग खुद को दो पल भी नहीं देते। अगर आप खुद को थोड़ा समय दें – अगर आप सिर्फ 24 घंटे अपने परिवार के साथ न बिताकर या टेलीविजन या किताब से दूर रहते हुए या खिड़की से बाहर न देखते हुए, बस 24 घंटे चुपचाप बैठें तो यह सवाल जबरदस्त रूप में आपके सामने आएगा, ‘आख़िर मेरा अस्तित्व क्यों है?’ आप इस प्रश्न से बच नहीं सकते। https://www.youtube.com/embed/nDgrNviYdC8 मगर आप खुद को ये चंद पल नहीं देते। आप खुद को कसी न किसी काम में लगाए रखते हैं। इसलिए नहीं कि दुनिया को आपके काम की जरूरत है। दुनिया आपके बिना चल सकती है, चाहे आप कोई भी हों। दुनिया आपके और मेरे बिना मज़े से चल सकती है। आप जो भी कर रहे हैं, उसे दुनिया के लिए नहीं कर रहे, आप इसलिए काम करते हैं क्योंकि आप कुछ-न-कुछ करते रहने के लिए मजबूर हैं। आप उसे रोक नहीं सकते। आप कोशिश करके देख लीजिए कि क्या आप अपने शरीर और मन में होने वाले कामों या बातों को रोक सकते हैं।

आपको अपनी चरम खुशहाली पर ध्यान देना होगा। जीवन का यह अंश क्या चाहता है? अगर आप इस पर ध्यान दें, तो आप सब समझ जाएंगे।
विवश(मजबूर) होकर कुछ करना पशु प्रकृति है – यह बंदर की तरह मूर्खतापूर्ण काम है। इंसानी प्रकृति एक चेतन रूप में सक्रीय होना है और जब जरूरत हो, तब काम करना है। बहुत सारी चीजें हैं जो किए जाने की जरूरत है, मगर किसी को उन्हें करने में दिलचस्पी नहीं है। सभी लोग बस करने के लिए कुछ करना चाहते हैं। उससे लोगों का जीवन बेहतर नहीं हो सकता।

परम खुशहाली पर ध्यान देना होगा

अपने जीवन को देखें कि जब से आपने काम करना शुरू किया है, तब से आप अधिक खुश हैं या कम। उस नौकरी को पाना आपका सपना था। मगर दस साल काम करने के बाद अब आप पहले से अधिक आनंदित व्यक्ति हैं? अधिकतर लोगों का जवाब होगा - नहीं। बस ध्यानपूर्वक देखिए कि मेरे जीवन की प्रकृति क्या है? मैं किस चीज की इच्छा कर रहा हूं? अगर आप इसे देख पाते हैं, तो आप उससे जुड़ जाएंगे, कोई दूसरा तरीका नहीं है। आपको जुड़ना होगा। जो भी वाकई अपनी खुशहाली में दिलचस्पी रखता है, अगर ऐसी इच्छा उसके अंदर आती है, तो चाहे वह कोई भी हो, जहां भी रहे, मैं उसके साथ मौजूद रहूंगा। आपको अपनी चरम खुशहाली पर ध्यान देना होगा। जीवन का यह अंश क्या चाहता है? अगर आप इस पर ध्यान दें, तो आप सब समझ जाएंगे।