रकुल प्रीत सिंह: मेरे मन में कई चीज़ों को लेकर कौतुहल रहता है – जैसे आकर्षण का नियम(Law of attraction)। कहते हैं कि आप जो भी चाहते हैं, विश्वास रखते हैं और अगर उसे ब्रह्माण्ड में लगातार भेजते रहते हैं, तो वह ज़रूर घटित होगा। क्योंकि कहा जाता है कि आप अपनी नियति ख़ुद रचते हैं, आप अपने जीवन का ख़ाका ख़ुद तैयार करते हैं। मतलब आप एक सकारात्मक संदेश दे रहे हैं...

सद्‌गुरु: संदेश किसे दे रहे हैं?

रकुल प्रीत सिंह: ब्रह्मांड को।

सद्‌गुरु: किस दिशा में? ऊपर या नीचे?

रकुल प्रीत सिंह: यही तो मैं पूछ रही हूँ कि आकर्षण का नियम(Law of attraction) कैसे काम करता है?

सद्‌गुरु: यह काम नहीं करता।

रकुल प्रीत सिंह: तो क्या काम करता है? आप अपनी नियति(किस्मत) कैसे रचते हैं?

सद्‌गुरु: जहाँ दो चुंबक होंगे या फिर नर और मादा हों, उत्तरी ध्रुव और दक्षिणी ध्रुव हों, आकर्षण का नियम(Law of attraction) दो विपरीत चीज़ों के बीच काम करता है। अब आप ब्रह्माण्ड की बात कर रही हैं - इसका मतलब हुआ कि आप इस ब्रह्माण्ड में एलियन हैं?

रकुल प्रीत सिंह: हम इसका ही एक हिस्सा हैं।

सद्‌गुरु: अगर आप इसका ही एक हिस्सा हैं, तो आकर्षण की बात कहाँ से आई?

रकुल प्रीत सिंह: वे यह क्यों कहते हैं कि आप अपनी नियति स्वयं बना सकते हैं?

सद्‌गुरु: आप अपनी नियति तय कर सकते हैं और आपको यह करनी ही चाहिए - इंसान होने का यही मतलब है। अगर आप भी इस ग्रह पर दूसरे किसी जीव की तरह आए होते, जिन्हें मजबूर हो कर अपने जीवन चक्र को जीना पड़ता, तो फिर ठीक था, क्योंकि उनके लिए यह ठीक है, वे यही कर सकते हैं।

Subscribe

Get weekly updates on the latest blogs via newsletters right in your mailbox.

अगर आप अपने जीवन की ओर देखें, आप भी अन्य जीवों से कुछ खास बेहतर नहीं कर रहे हैं। उनका जन्म हुआ - आपका जन्म हुआ। वे बड़े हुए - आप बड़े हुए। उन्होंने संतान पैदा की - आपने संतान पैदा की। वे मरे - आप भी मरे। कोई बड़ा अंतर नहीं है, लेकिन हम यही सारी बातें चेतन होकर भी कर सकते हैं। इंसान के बारे में यही सबसे महत्वपूर्ण बात है।

अगर आप अपने हाथ को चेतन होकर चलाएंगे, तो यह वही करेगा, जो आप कहेंगे। उसी तरह अगर आप अपने विचारों को चेतनता के साथ चलाते हैं, तो वह आपके हिसाब से चलेगी। अगर आपकी सोच आपके हिसाब से चले, तो आप ख़ुद को किस तरह रखना चाहेंगे – आनंदमय या दुखी?

रकुल प्रीत सिंह: आनंदमय।

सद्‌गुरु: अगर आप आनंदमग्न होंगे तो क्या आप ख़ुशी की तलाश करने निकलेंगे?

रकुल प्रीत सिंह: नहीं, अगर हम आनंदमग्न होंगे तो हम संतुष्ट होंगे।

सद्‌गुरु: अगर आप आनंदमग्न होंगे तो आपका जीवन ख़ुशी की तलाश नहीं करेगा। लोगों को लगता है कि शांत और खुश रहना ही उनके जीवन में सबसे बड़ी बात है, जब आप आनंदमग्न हों तो ये आपके लिए कोई मायने नहीं रखते। अगर आपकी सोच और भावनाएँ आपसे निर्देश लें तो आप ख़ुद को आनंद के सबसे ऊँचे स्तर पर रखेंगे, चाहे वह जो भी हो?

रकुल प्रीत सिंह: बिलकुल ठीक।

सद्‌गुरु: अगर ऐसा होता है तो आपके जीवन की सारी प्रक्रिया सहज हो जाएगी। इस समय आप एक घात लगाए हुए चीते के समान हैं। आपको हमेशा कुछ न कुछ चाहिए। अगर पाने के लिए कुछ न हो, अगर आप इस जगह बैठे और आपका जीवन संपूर्ण हो - यह पूरी तरह से सहज हो। जब आप इस तरह के सहज भाव में होते हैं तो आपके भीतर एक बोध उभरता है। कोई पेशा अपनाने, पैसा कमाने, यहाँ तक की खुश होने, प्यार देने या लेने जैसी किसी भी बात से आपका संबंध नहीं रहता क्योंकि केवल बैठने से आपको परमानंद का अनुभव हो रहा है।

तो आप ऐसे जीवन का क्या करेंगे? आप कुछ ऐसा खोजेंगे जो अभी आपके बोध में नहीं है। इसी तरह आध्यात्मिक सिलसिले की शुरूआत होती है, इसी तरह आप जीवन की बागडोर अपने हाथ में लेते हैं।

अब आप अपने लिए कुछ चाहते हैं ....मैं आपको बताना चाहता हूँ, लोग जो भी चाहते हैं, उसमें से कम से कम पचास प्रतिशत पूरा हो जाता है। वे बस कुछ ही चीज़ों पर ध्यान देते रहते हैं जो उन्हें नहीं मिलीं। सही तरह से व्यवस्थित समाज में आपकी नब्बे प्रतिशत इच्छाएं पूरी हो जाती हैं और आप बाकी के दस प्रतिशत के लिए शिकायत करते हैं। आप उस नब्बे प्रतिशत का आनंद नहीं लेते क्योंकि वह दस प्रतिशत आपके हिसाब से घटित नहीं हुआ।

जो थोड़ा सा आपको नहीं मिला, वही आपके दुख की वजह है। ऐसा इसलिए है क्योंकि कभी भी सारे हालात हमारे हिसाब से नहीं होंगे क्योंकि किसी परिस्थिति में केवल आप नहीं, बहुत सारे लोग और ताक़तें शामिल होती हैं। उन सबको मेरे हिसाब से चलने की जरूरत नहीं है। पर अगर मैं अपने तरीके से चल रहा हूँ तो मैं आनंदमग्न हूँ। गोल्फ की गेंद सीधी जाए या पहाड़ों में निकल जाए, मैं फिर भी आनंदमग्न हूँ।

रकुल प्रीत सिंह: जब तक आप गोल्फ खेल रहे हैं।

सद्‌गुरु: चाहे मैं गोल्फ नहीं भी खेल रहा, तब भी ॰॰॰

रकुल प्रीत सिंह: तो जब तक चीज़ें आपके हिसाब से घटित हो रही हैं, और आप अपने रास्ते पर बढ़ रहे हैं और आप आनंद में मग्न हैं...

सद्‌गुरु: नहीं, नहीं! मैं यह नहीं कह रहा कि जब तक सब कुछ आपके हिसाब से हो रहा है, आप आनंद में रहेंगे। अगर आप आनंद में होंगे तो इससे कोई अंतर नहीं पड़ता कि चीज़ें कैसे हो रही हैं। चीज़ें जैसे भी होंगी, आपका आनंद बना रहेगा। दुनिया ने गाड़ी के आगे घोड़े को जोत दिया है। अभी आप यहाँ बैठी हैं। आपके लिए अपनी ज़िम्मेदारी लेना आसान है या अआपके सामने बैठे सभी लोगों की ज़िम्मेदारी लेना आसान होगा?

रकुल प्रीत सिंह: अपनी ज़िम्मेदारी लेना आसान है।

सद्‌गुरु: अपनी ज़िम्मेदारी। आपको पहले वही करना चाहिए जो आसान हो। अगर आप अपनी ज़िम्मेदारी लेते हैं तो हम देख सकते हैं कि आपको बाक़ी लोगों से कितना सहयोग मिल सकता है। जब आप ख़ुशी की तलाश करती हैं, उसका मतलब होता है, हर कोई वैसे काम करे जैसा आपको पसंद है। जब हम कहते हैं, ‘जब यह होगा, तब मुझे खुशी होगी, जब वह होगा, तब मुझे खुशी होगी’ इसका मतलब है कि पूरे ब्रह्माण्ड को आपके हिसाब से चलना चाहिए।

रकुल प्रीत सिंह: मैं आपसे यह नहीं कह रही। मैं इसमें विश्वास नहीं रखती, क्योंकि इसका मतलब होगा कि आप अपनी हर बात के साथ शर्त रख रहे हैं। मैं उस काम के बारे में बात कर रही थी, जो आप जीवन में करने जा रहे हैं। बुनियादी मिसाल दी जाए तो मान लेते हैं कि कोई एक्टर बनना चाहता है, या कोई क्रिकेटर बनना चाहता है।

सद्‌गुरु: मान लेते हैं कि ऐसा नहीं हुआ। ‘ऐसा नहीं हुआ’ कहने का क्या मतलब है? लोगों को आपकी एक्टिंग पसंद नहीं आई? कमेटी ने आपको क्रिकेट के लिए नहीं चुना – या कुछ ऐसा ही। आप जो चाहते थे, वह नहीं हुआ। क्या आप तब भी आनंदमग्न रह सकते हैं? यही सवाल है।

रकुल प्रीत सिंह: बहुत से लोग ऐसा नहीं कर सकते।

सद्‌गुरु: तभी तो मैं कह रहा हूँ, जब आप हर किसी से उस चीज़ को पसंद करने की उम्मीद रखते हैं, जो आप करते हैं तो आपको किसी न किसी तरह से उनके दिमागों को अपने वश में करना होगा। अपने फिल्मों के जरिये, एक तरह से, उनके मन पर काबू पा रहे हैं। आप वही कर रहे हैं जो लोगों को पसंद है, इसीलिए यह सब काम करता है। तो आसान क्या है, अपनी ज़िम्मेदारी लेना या दूसरों की? अगर आप अपनी ज़िम्मेदारी लेते हैं, तो आपको अपनी ख़ुशी की खोज नहीं करनी। आपको कोई तनाव नहीं लेना है, आपके सिर पर कोई तलवार नहीं लटक रही, बस आप अपने हर काम को भरपूर तरीके से कर सकेंगे।

चाहे जो हो जाए, आप ठीक रहेंगे - आप केवल इतना जानते हैं। तब आप सब कुछ अपने-आप सहज भाव से बढ़िया करेंगे क्योंकि आपको कोई चिंता नहीं होगी, आपका कहीं भी कोई स्वार्थ निहित नहीं होगा। आप वही करेंगे, जो करना है। जो काम दूसरों को जबरदस्त काम लगते हैं, आप अपने आनंद में मग्न रहते हुए करेंगे।

रकुल प्रीत सिंह: ठीक है। तो, आपने अभी इस बात को पूरी तरह से नकार दिया कि आकर्षण का कोई नियम(Law of attraction) होता है। ऐसा कुछ नहीं है, कि ब्रह्माण्ड आपको वही देता है, जो आप उससे चाहते हैं।

सद्‌गुरु: मैं आपसे पूछ रहा हूँ। ये ब्रह्माण्ड कहाँ है?

रकुल प्रीत सिंह: ठीक, हम इस ब्रह्माण्ड का हिस्सा हैं।

सद्‌गुरु: जब सात ऋषियों - जिन्हें हम सप्तर्षि कहते हैं – ने आदियोगी से पूछा, ‘ब्रह्माण्ड कहाँ से शुरू होता है? कहाँ ख़त्म होता है? यह कितना बड़ा है? यह क्या है?’ आदियोगी हँस दिए और बोले, ‘मैं तुम्हारे सारे ब्रह्माण्ड को एक सरसों के दाने में पैक़ कर सकता हूँ।’ यह तो बहुत जबदस्त पैकिंग होगी। आप जिसे समय और स्थान समझते हैं, वो आपकी मन की प्रकृति पर निर्भर करते हैं। अगर आप अपने तार्किक मन की सीमा के पार जाते हैं, तो जो यहाँ है, वहाँ है और जो वहाँ है, वही यहाँ है। जो तब था, वह अब है और जो अब है, वह तब था। समय व स्थान आदि सब कुछ आपके बोध में घुल-मिल जाता है। जब ऐसा होता है तो आप ब्रह्माण्ड से बातें नहीं करते। जो लोग अपने पड़ोसियों तक से बात नहीं करते, वे ब्रह्माण्ड से बात करते हैं।