सद्‌गुरुसद्‌गुरु बता रहे हैं कि किस तरह भारत में आध्यात्मिक प्रक्रिया में गुणवत्ता नियंत्रण को बरकरार रखा गया था और पिछले हजार सालों में बाहरी आक्रमणों के दौरान वह नष्ट हो गया।

प्रश्न: सद्‌गुरु, आपने कहा कि पहले आध्यात्मिकता में क्वालिटी कंट्रोल यानी गुणवत्ता पर नियंत्रण था, मगर हजार सालों की विदेशी दासता ने उन नियंत्रणों और संतुलनों को नष्ट कर दिया। क्या आप इसे विस्तार से समझा सकते हैं?

आत्म ज्ञानियों का भीतरी अनुभव मार्गदर्शन करता था

सद्‌गुरु : नियंत्रण और संतुलन भीतर से होते थे। यह परखने के लिए कोई बाहरी अधिकारी नहीं था जो यह देखे कि कोई आध्यात्मिक प्रक्रिया असली है या नहीं, या उसका इस्तेमाल सही दिशा में हो रहा है या नहीं।

मगर पहले जब इस तरह का इकोसिस्टम था तो वहां कुदरती तौर पर नियंत्रण और संतुलन था, क्योंकि समाज में ऐसे बहुत सारे लोग थे जिनके अनुभव का स्तर बहुत गहन था।
इस पर खुद ही नियंत्रण किया जाता था, क्योंकि आध्यात्मिक प्रक्रिया कोई अलग पहलू नहीं थी। ऐसा नहीं था कि आध्यात्मिक मार्ग पर चलने वाले लोग किनारे पर हों, आध्यात्मिकता मुख्यधारा की चीज थी। दुनिया के किसी दूसरे हिस्से में कभी ऐसा नहीं हुआ है। धार्मिक चीजें हुईं हैं, मगर समाज के एक बड़े तबके के लिए एक सक्रिय आध्यात्मिक प्रक्रिया कभी कहीं और घटित नहीं हुई है।

एक ही शहर में कई गुरु होते थे, हर गुरु अलग-अलग चीजें बताता था मगर किसी का किसी से टकराव नहीं था। यह इतना व्यापक था कि आध्यात्मिकता में भी लोकतांत्रिक तरीका था। लोगों के पास यह विकल्प था कि आज वे एक जगह जा रहे हैं तो अगले दिन किसी और जगह जा सकते हैं और उसके अगले दिन किसी और जगह भी।

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आज एकमात्र समस्या यह है कि आपके पास बहुत सारे विकल्प नहीं हैं, जहां आप खोजने जा सकें।
गुरु असुरक्षा का शिकार नहीं होते थे। वे किसी को कहीं जाने से नहीं रोकते थे। वे कहते थे, ‘अगर आपको लगता है कि यह जगह सबसे अच्छी नहीं है, तो आप यहां मत रहिए। जहां चाहे, वहां जाइए।’ आज भी मैं वही कहता हूं। आज एकमात्र समस्या यह है कि आपके पास बहुत सारे विकल्प नहीं हैं, जहां आप खोजने जा सकें। मगर पहले जब इस तरह का इकोसिस्टम था तो वहां कुदरती तौर पर नियंत्रण और संतुलन था, क्योंकि समाज में ऐसे बहुत सारे लोग थे जिनके अनुभव का स्तर बहुत गहन था। तब अगर कोई कुछ गलत कहता तो हर कोई तत्काल समझ जाता था।

योग्य दर्शक और श्रोता

उदाहरण के लिए मान लीजिए आप भारतीय शास्त्रीय संगीत सीखते हैं। आप जाकर अटलांटा में गाइए, वे आपके लिए तालियां बजाएंगे। आप दिल्ली या मुंबई में गाएंगे, वे तालियां बजाएंगे। मगर जब आप चेन्नई में जाकर गाएंगे, तो एक गलती करने पर दर्शक उठ कर चले जाएंगे क्योंकि वहां के दर्शकों को संगीत की गहरी समझ है।

मगर पहले जब इस तरह का इकोसिस्टम था तो वहां कुदरती तौर पर नियंत्रण और संतुलन था, क्योंकि समाज में ऐसे बहुत सारे लोग थे जिनके अनुभव का स्तर बहुत गहन था।
चेन्नई इकलौती ऐसी जगह है जहां दिसंबर और जनवरी में, पूरे साठ दिनों तक सैंकड़ों अलग-अलग जगहों पर रोजाना पांच कंसर्ट होते हैं। लोग एक से दूसरे कंसर्ट में जाते रहते हैं। ऐसी संस्कृति धरती पर और कहीं नहीं है। भले ही यह एक बड़ा कार्यक्रम हो जो दुनिया भर के दर्शकों को आकृष्ट करता हो, मगर वे उसका प्रचार नहीं करेंगे क्योंकि वे शुद्धतावादी होते हैं। उनका कहना है, ‘अगर आपकी नाक संवेदनशील है, तो खुश्बू से आप खिंचे चले आएंगे। अगर आपके पास ऐसी अनुभूति नहीं है, तो हम नहीं चाहते हैं कि आप आएं।’

यही बात आध्यात्मिक प्रक्रिया पर भी लागू होती है, पहले उसका अनुसरण करने वाले योग्य और काबिल लोग थे। मगर जब बाहरी आक्रमण हुए, तो सबसे योग्य लोगों को सबसे पहले मारा गया क्योंकि आक्रमणकारी सिर्फ जमीन, सोना और स्त्रियां नहीं चाहते थे। वे अच्छी तरह समझते थे कि जब तक वे अपना धर्म आपके ऊपर नहीं थोपेंगे, आप पूरी तरह उनके वश में नहीं होंगे। इसलिए सबसे पहले उन्होंने आध्यात्मिक प्रक्रिया को नष्ट किया।

भारत के उत्तरी मैदान हुए प्रभावित

मुख्य रूप से ऐसा भारत के उत्तरी मैदानों में हुआ, जहां बहुत से गुरुओं को अपना जीवन बचाने के लिए तिब्बत के पठार की ओर जाना पड़ा। इसकी वजह से बहुत से लोग दरबदर हो गए।

अगर आप मुझसे पूछें, तो बुरे लोगों से भी ज्यादा खतरनाक अच्छे इरादे वाले वे लोग हैं जो अज्ञानी हैं – क्योंकि अच्छे इरादों से अज्ञान उचित लगने लगता है।
और आज बहुत से ज्योतिषी, पुजारी और ठग, गुरु होने का दावा करने लगे हैं। पर्याप्त संख्या में आत्म-ज्ञानी सिद्ध प्राणियों के न होने के कारण, बहुत से उद्यमी पैदा हो गए हैं। कुछ के इरादे अच्छे हैं मगर अज्ञानता के साथ अच्छे इरादे वाले बहुत खतरनाक साबित हो सकते हैं। अगर आप मुझसे पूछें, तो बुरे लोगों से भी ज्यादा खतरनाक अच्छे इरादे वाले वे लोग हैं जो अज्ञानी हैं – क्योंकि अच्छे इरादों से अज्ञान उचित लगने लगता है। बहुत से अज्ञानी लोग अच्छे होते हैं। आप चाहें तो उनसे शादी कर सकते हैं मगर आप उन्हें अपना गुरु मत चुनिए क्योंकि वे आपको गर्त में ले जाएंगे।

सत्य को मुख्यधारा बनाना

अगर हम गुणवत्ता नियंत्रण को वापस लाना चाहते हैं, तो पहले हमें आध्यात्मिक प्रक्रिया को मुख्यधारा में लाना होगा।

अगर सत्य मुख्यधारा में है, तो किसी के छोटा सा झूठ बोलने पर भी, हर किसी को वह नजर आएगा और वह अपने आप मिट जाएगा। मैं आशा करता हूं कि हर कोई, खास तौर पर युवा लोग सत्य के लिए खड़े हों और उसे मुख्यधारा बनाएं।
ऐसी प्रक्रिया जिसमें लाखों लोग आध्यात्मिक क्रियाएं करें, जो अनुभव से ज्ञान हासिल करते हों और असली तथा नकली के बीच फर्क कर सकें, यह समझ सकें कि क्या उन्हें मुक्ति की ओर ले जाएगा और क्या उन्हें उलझाएगा। अगर योग्य दर्शक होंगे तो कुदरती तौर पर शुद्धीकरण हो जाएगा। सत्य को मुख्य धारा में लाना चाहिए। अभी झूठ मुख्यधारा में है, सत्य हाशिये पर है। शुरुआत में लोग थोड़ी हिचकिचाहट के साथ झूठ बोलते हैं। जैसे-जैसे वे आगे बढ़ते हैं, ज्यादा आत्मविश्वास के साथ झूठ बोलना शुरू कर देते हैं। कुछ समय बाद हर कोई जानता है कि हर कोई झूठ बोल रहा है मगर झूठ के मुख्यधारा में होने के कारण, उससे किसी को फर्क नहीं पड़ता।

अगर सत्य मुख्यधारा में है, तो किसी के छोटा सा झूठ बोलने पर भी, हर किसी को वह नजर आएगा और वह अपने आप मिट जाएगा। मैं आशा करता हूं कि हर कोई, खास तौर पर युवा लोग सत्य के लिए खड़े हों और उसे मुख्यधारा बनाएं