प्रश्नकर्ता : हिंदु सनातन धर्म वास्तव में क्या है, इसका क्या अर्थ है ? और क्या आजकल ये हल्का पड़ गया है?

 सदगुरु : “हिंदु सनातन धर्म” नाम की कोई चीज़ नहीं है। ये सिर्फ 'सनातन धर्म' है। सनातन का अर्थ है चिर काल तक, हमेशा रहने वाला। जो चीज़ हमेशा है, वो हमेशा सच है।

सनातन धर्म जीवन के उस आयाम को कहते हैं जो कभी नहीं बदलता, जो हमारे अस्तित्व का आधार है। वो चाहे एक कीटाणु हो, कीड़ा हो, पक्षी, पशु, वनस्पति हो, सभी सनातन धर्म के द्वारा शासित हैं, उसके अनुसार चलते हैं। सनातन धर्म वे मूल नियम हैं जो सारे अस्तित्व को चलाते हैं। ये कोई मनुष्यों द्वारा एक दूसरे पर लागू किया गया दंड विधान नहीं है जिससे समाज को नियंत्रण में रखा जाये। व्यावहारिक नियम जो पीढ़ी दर पीढ़ी बदलते रहते हैं, उनकी बात अलग है। सनातन धर्म व्यवहार का धर्म नहीं है, यह अस्तित्व का धर्म है। 

आईये, हम पहले 'धर्म' शब्द को समझें। धर्म का अर्थ है कानून। धर्म का अर्थ हिंदु, मुस्लिम, ईसाई, सिख, यहूदी, जैन आदि होना नहीं है। हमारी संस्कृति में हम धर्म को इस अर्थ में बिल्कुल नहीं लेते। हम वास्तव में, सिर्फ ये देखते हैं कि वे मूल नियम कौन से हैं, जिनसे आप का जीवन सबसे अच्छी तरह से चलता है। हमारी संस्कृति यह समझती है कि जब तक आप इन नियमों का पालन नहीं करते, तब तक जीवन अच्छी तरह से नहीं चल सकता। तो ये ज़बरन थोपे हुए नियम नहीं हैं, बल्कि ये अस्तित्व का आधार हैं। अगर आप ये नियम जानते हैं और उनके साथ लय में हैं तो आप का जीवन कोई प्रयत्न किये बिना ही बहुत आसान होगा। और अगर आप ये नियम नहीं जानते तो आप बिना किसी कारण के दुःख भोगेंगे।

क्या सनातन धर्म हिंदु, भारतीय, या और किसी व्यक्ति का ही है ? वो मुद्दा है ही नहीं। आप चाहे कहीं भी हों, आप चाहे भारतीय हों या न हों, हिंदु हों, गैर हिंदु हों, आप चाहे कुछ भी हों, सनातन धर्म सभी पर लागू होता है, क्योंकि ये वो नियम हैं जो जीवन की मूल प्रक्रिया को निर्देशित करते हैं। किसी भी अन्य संस्कृति ने इतनी गहराई से इस बात पर विचार या काम नहीं किया है। इसीलिये, शायद गर्व की अनुभूति से हम इसे हिंदु सनातन धर्म कह लें पर इस तरह सनातन धर्म की असीमित संभावना को हम ‘हिंदु’ शब्द लगा कर सीमित कर रहे हैं। हिंदु एक भौगोलिक पहचान है - हिमालय से ले कर इंदु सागर तक की भूमि हिंदु है। लेकिन सनातन धर्म हर तरह के जीवन के लिये है। सनातन धर्म इस बारे में बात करता है कि अजन्मे जीव से ले कर जन्मे हुए, वयस्क, मृत जीवों के बारे में, जीवन की अलग अलग अवस्थाओं और जीवन के सभी आयामों को संचालित करने का तरीका क्या है । ये एक बहुत ही गहन तरीका है जीवन को देखने का।

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स्मृति एवं श्रुति

आप अगर 100 वर्ष पहले जन्में होते तो अलग तरह की पोशाक पहनते तथा कुछ और कर रहे होते। यदि 1000 वर्ष पहले आये होते तो भी आप कुछ और ही अलग पहनते और करते - शायद आप किसान या मछुआरे होते।

हम क्या करते हैं, कैसे कपड़े पहनते हैं, किस तरह से बोलते हैं और किस तरह से काम करते हैं, यह सब समय पर निर्भर करता है और बदलता रहता है। अगली पीढ़ी कैसे काम करेगी, वे क्या पहनेंगे और क्या करेंगे वो उससे बिल्कुल अलग होगा जो हम आज कर रहे हैं। ये जीवन का एक आयाम है - हम इसे स्मृति कहते हैं। शाब्दिक रूप से स्मृति का अर्थ है याददाश्त, वो जो आप को याद है, आप जिसका स्मरण करते हैं। आप ने अपनी यादों से, स्मरण कर के, जो सीखा है वह स्मृति है।

या तो हम वही कर रहे हैं जो हमारे माता पिता ने किया अथवा हमारी संस्कृति ने हमें सिखाया, या फिर प्रतिक्रिया स्वरूप हम बिल्कुल विरोधी बात कर रहे हैं। लेकिन इस प्रक्रिया में लगातार होता है। इस प्रक्रिया में कुछ स्थायी नहीं है, बदलता ही रहता है। सिर्फ एक से दूसरी पीढ़ी में ही नहीं बल्कि हमारे अपने ही जीवन में, हर कुछ वर्षों में, हमारी यादें, हमारी स्मृतियाँ बदलती हैं। हमारी स्मृतियों में से हम अपने जीवन के कई भाग बदल देते हैं।

स्मृति एक ऐसी चीज़ है जो हर पीढ़ी को एक नये अंदाज़ में करनी चाहिये या उसे संशोधित करके करना चाहिये। विकास का अर्थ सिर्फ यही नहीं है कि हम पिछली पीढ़ी से कुछ बेहतर करें। ये बस ऐसा है कि क्योंकि परिस्थितियां बदल रहीं हैं, तो हम अपना विकास कर रहे हैं जिससे हम खुद को नयी परिस्थितियों के अनुरूप ढाल सकें और सही तरह से काम कर सकें।

अलग-अलग परिस्थितियों में होने वाले व्यवहार हमेशा बदलने चाहिएं, और विकसित होने चाहिएं। हम इस पर वाद विवाद कर सकते हैं और कह सकते हैं कि लोग जिस तरह से 100 साल पहले खाते थे, उस तरह से हम आज खाना नहीं चाहते क्योंकि हमारी काम करने की आदतें बदल गयी हैं। जब आप ज़मीन पर हल चलाते थे, तब आप क्या और कितना खाते थे वो अलग था। आप किस तरह से कोई काम करते हैं वह लगातार संशोधित होना चाहिये, बदलना चाहिये। हमारे देश के संविधान में कुछ मौलिक अधिकारों का प्रावधान है जो अत्यंत मूल और पवित्र हैं, जिन्हें आप बदल नहीं सकते, छू भी नहीं सकते। बाकी के क़ानून संशोधन के लिये, सुधार के लिये, बेहतरी के लिये, पूर्ण रूप से हटा देने के लिये भी उपलब्ध हैं।

आप की स्मृति और मेरी स्मृति अलग हो सकती है। लेकिन कुछ और भी है, जिसे हम श्रुति कहते हैं। इसे कई अलग अलग तरीकों से समझाया जा सकता है। इसका एक आयाम यह है कि ये जीवन की धुन है, और इस धुन को आप ने नहीं बनाया - यह सृष्टि है।

अगर आप जीवन की श्रुति को समझ सकते हैं, तो ही आप लय को पा सकते हैं। यही भारत है। भा का अर्थ है भाव, अथवा जीवन का अनुभव, र का अर्थ है राग अर्थात जीवन की श्रुति, और त का अर्थ है ताल अर्थात लय। भाव वह है जो आप को होता है - यह एक अनुभव है परंतु राग या श्रुति तो पहले से ही सृष्टि द्वारा तय की गयी है। अब ये आप पर है कि आप इसकी सही लय खोजें, जिससे जीवन सुंदरता से चल सके जैसे अदभुत संगीत होता है। आप अगर सही लय नहीं पाते हैं तो वही श्रुति जो जीवन की सहायक है, आप को नष्ट कर देगी।

बदलती नहीं है क्योंकि इसे आप ने स्थापित नहीं किया है - इसे सृष्टि ने बनाया है। अतः सनातन धर्म का अर्थ है यह समझना कि आप के जीवन को कौन से नियम चलते हैं, जिससे आप एक गहन और सुंदर जीवन जी सकें।

सृष्टि के नियमों के साथ लयबद्ध होना

हमारी संस्कृति में कोई भी नैतिकता, स्थिर नियमों - आप को क्या करना चाहिये, क्या नहीं करना चाहिये - इस तरह की बात नहीं करता। "आप अगर ये करेंगे तो स्वर्ग में जायेंगे, वो करेंगे तो नर्क में जायेंगे" - ऐसा कुछ भी नहीं है इस संस्कृति में। ये सब नहीं होने का कारण ये है कि हमनें लोगों में यह आयाम पैदा किया है कि अगर आप सृष्टि के नियमों के साथ लय में हैं तो आप को पुरस्कार अथवा दंड की आवश्यकता ही नहीं है। ये वैसा ही है कि यदि आप ट्रैफिक के नियम जानते हैं और उसी के अनुसार अपना वाहन चलाते हैं तो आप को ट्रैफिक पुलिस की ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी।

अभी लोग कहते हैं कि इस पृथ्वी पर जीवन के 1 ट्रिलियन यानि 10 खरब प्रकार हैं, लेकिन मुझे लगता है कि इससे भी कहीं ज्यादा हैं जिन्हें आप ने कभी देखा ही नहीं है। एक अत्यंत सूक्ष्म जीव से ले कर मनुष्य तक, सभी प्रकार के जीव इसी मिट्टी से आते हैं। उसी मिट्टी से एक बेल और एक पेड़ भी उगते और बढ़ते हैं। उसी मिट्टी से आप ने अपना भोजन पाया है और आप के पास उस प्रकार का शरीर है, उसी मिट्टी से मैंने भी खाया है और मेरा शरीर इस प्रकार का है।

आप अपनी मर्ज़ी से एक पेड़ या कुत्ता, बिल्ली, गाय, हाथी, बाघ आदि नहीं बन सकते। स्रोत सबका वही है पर देखिये, अभिव्यक्ति कितने अनेकानेक प्रकार की है। तो स्पष्ट है कि कोई विधान है जो इस व्यवस्था को चला रहा है, चाहे कुछ भी हो। ये एक रेलवे ट्रैक की तरह स्थिर है और आप इस पर चल रहे हैं। प्रश्न केवल इतना है कि आप कितनी तेजी से और कितनी दूर जायेंगे? और यह भी कि कितनी गहनता से हम इस धर्म या क़ानून को समझते हैं और इसके साथ कितनी लय में हैं ?

मूल रूप से योग की सम्पूर्ण प्रणाली इसीलिये है कि हम अस्तित्व के साथ लय में रहें, जिससे हमारा जीवन आनंदपूर्ण रहे, उल्लास भरा हो तथा अपनी पूर्ण क्षमता के अनुसार हो। आप के जीवन के साथ सिर्फ एक ही चीज़ गलत हो सकती है और वह है कि - आपके जीवन को पूर्ण अभिव्यक्ति मिल पायी है या नहीं ? एक पेड़ के साथ क्या गलत हो सकता है ? यही कि वो अपनी पूर्ण क्षमता तक बढ़ेगा या नहीं, कहीं आधी बढ़ी हुई अवस्था में ही मर तो नहीं जायेगा ? एक मनुष्य के साथ भी ऐसा ही है। आप यदि सृष्टि के विधान के साथ लय में हैं तो आप अपनी पूर्ण संभावना तक विकसित होंगे। अगर आप लय में नहीं हैं तो आप की बढ़त पूरी नहीं होगी, आप का विकास बीच में ही रुक जायेगा। मूल रूप से हमारी यही एक चिंता है, चाहे हम इसके बारे में जागरूक न हों। लोगों की सभी इच्छायें, रुचियाँ तथा महत्वाकांक्षायें एक पूर्ण विकसित जीवन बनने के लिये ही हैं। अगर आप एक पूर्ण विकसित जीवन होना चाहते हैं तो यह बहुत महत्वपूर्ण है कि आप उन विधानों को समझें जो आप के जीवन का आधार हैं।

सनातन धर्म न आप का है न मेरा, ये तो सृष्टि ने बनाया है। ये आपका और मेरा काम है, कि हम इसके साथ लय में रहें। भारत में हमने इसे समझा और नियमबद्ध कर के एक खास रूप में इसे प्रस्तुत किया। पर इसका अर्थ ये नहीं है कि बाकी की दुनिया में इसके बारे में कोई जानता न हो। बहुत से लोग व्यक्तिगत स्तर पर इसे जानते हैं, समझते हैं। उन्होंने इसे भले ही श्रुति और स्मृति के रूप में न लिखा हो पर सारी दुनिया में बहुत से ऐसे लोग रहे हैं, जो इसके साथ लय में रहे हैं क्योंकि सारी दुनिया में, हर जगह, लोग भली भांति खिले हैं, पूर्ण विकसित हुए हैं और अच्छी तरह से रहे हैं।

तो क्या आज सनातन धर्म मंद हो गया है, और ख़त्म हो रहा है? यह तो हमारे हाथ में भी नहीं है कि हम इसे ख़त्म कर सकें। व्यक्तिगत समझ मंद पड़ सकती है। व्यक्तिगत स्तर पर हरेक व्यक्ति की समझ के आयाम अलग अलग हो सकते हैं। पर आप सनातन धर्म को ख़त्म नहीं कर सकते क्योंकि ये तो अस्तित्व का आधार है। आप इसे ख़त्म नहीं कर सकते, क्योंकि आपने इसे नहीं बनाया है।