विषय सूची

1. नींद की मात्रा कम करने के लिये सुझाव

  1.1 ताजा भोजन लेना

  1.2 सादा खाना

  1.3 कितना खाना चाहिये?

  1.4 खाने के बाद तुरंत ना सोयें

  1.5 सोने के लिये सही दिशा

  1.6 अपने को सोने से जबर्दस्ती ना रोकें

  1.7 आनंदपूर्ण अवस्था बनाये रखें

  1.8 अपने जीवन के साथ न झगड़ें

  1.9 यौगिक अभ्यास : शाम्भवी महामुद्रा

  1.10 शून्य ध्यान

प्रश्नकर्ता: नमस्कारम सदगुरु। मैं आपसे नींद के बारे में कुछ पूछना चाहता हूँ। मैं जानता हूँ कि आपने इसके बारे में बहुत कुछ कहा है पर मैं चाहता हूँ कि हम इस बारे में थोड़ा और गहराई से बात करें। आपने कहा है कि ऐसे कुछ आसान से तरीके हैं जिन्हें अपनाकर हम अपनी नींद की मात्रा कम कर सकते हैं। मैं अपने सारे यौगिक अभ्यास करता हूँ पर फिर भी मुझे लगता है कि ज्यादातर लोग जितनी नींद लेते हैं, पर मेरी नींद की ज़रूरत उससे ज्यादा है।

सदगुरु: क्या आप मुझे नींद में और ज्यादा गहरे जाने के लिये कह रहे हैं?

प्रश्नकर्ता: जी हाँ, उसके विज्ञान में!

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सदगुरु: हमें समझना चाहिये कि नींद क्या है? नींद का मतलब है शरीर की थकान उतार कर फिर से तरोताजा, चुस्त दुरुस्त हो जाने का समय। इसका मतलब ये है कि इस समय में शरीर अपनी अशुद्धियों को दूर करता है। दिन भर के जीवन में शरीर को जो कुछ भी नुकसान पहुँचता है, उसे कोशिकाओं के स्तर पर, ऊर्जाओं के स्तर पर और कई तरह के अलग अलग तरीकों से ठीक-ठाक (मरम्मत) करने का यही समय है।

मरम्मत की इस प्रक्रिया में आपको कितना समय चाहिये ये इस बात पर निर्भर करता है कि आपके शरीर की कितनी मरम्मत होनी जरूरी है? जीवन जीने के दौरान आप अपने शरीर को कितना नुकसान पहुँचाते हैं, यही सवाल है! अगर आपके अंदर टकराव, घर्षण बहुत है तो नुकसान बहुत ज्यादा होगा। अगर आपकी पूरी प्रणाली अच्छी तरह से स्थिर है और आसानी से काम कर रही है तो अंदरूनी टकराव, घर्षण कम होगा और शरीर की मरम्मत की ज़रूरत स्वाभाविक रूप से कम ही होगी।

नींद की मात्रा कम करने के लिये 10 सुझाव

#1 ताजा भोजन लेना

सदगुरु: अपनी नींद कम करने के लिये आप क्या कर सकते हैं? पहली बात है - हमेशा ताजा खाना खायें। यौगिक संस्कृति में ये एक आसान सी समझ है कि अगर आप कुछ पकाते हैं तो उसे डेढ़ घंटे के अंदर खा लेना चाहिये। इसके बाद उस खाने में जड़ता आने लगती है। अगर आप बहुत ज्यादा जड़ता वाला खाना खाते हैं, तो शरीर आलसी होने लगता है और उसे ज्यादा नींद की ज़रूरत पड़ती है क्योंकि उस जड़ता को खत्म करने के लिये शरीर को बहुत ज्यादा ऊर्जा खर्च करनी पड़ती है। इसका मतलब ये है कि शरीर की मरम्मत करने का आपका समय बढ़ जाता है, क्योंकि अपनी प्रणाली में आपने भोजन के रूप में खराब गुणवत्ता (क्वालिटी) वाला ईंधन डाला है।

जब खाना पकता है तो एक तरह से उसमें उपस्थित जीवन को आप मार ही डालते हैं और वो फिर जीवित नहीं रहता। अगर कोई व्यक्ति मर जाये और उसके शरीर को तीन दिनों तक ऐसा ही रखा जाये तो वो सड़ेगा ही। यही बात हरेक जीव के साथ सच है, वो चाहे कोई सब्जी हो या किसी पशु का माँस या कोई और चीज़ हो। जैसे ही हम किसी जीवन के रूप को पका कर नष्ट कर देते हैं, तो वो सड़ने लगता है।

वैसे सड़ने में कुछ गलत नहीं है क्योंकि फिर वो एक अलग तरह का जीवन हो जाता है। सड़ने का मतलब है कि कोई और जीवन अब इसे अपना भोजन बना रहा है। इसमें बहुत तरह के जीव आ जाते हैं, भले ही वे बहुत ही सूक्ष्म जीवाणु हों! आप उन्हें देख नहीं पायेंगे पर वे तो इस सड़ते भोजन में दावत उड़ा रहे हैं। जीवाणु जिस चीज़ का मजा ले रहे हैं, उसे खाने से आपको जरूर ही तकलीफ होगी। इसका मतलब ये नहीं है कि आप तुरंत ही बीमार हो जायेंगे क्योंकि उनमें आपको संक्रमित करने की ताकत नहीं होती, पर फिर भी इससे आपकी ऊर्जा सरूर कम हो जाती है और शरीर में जड़ता आ जाती है।

बड़े स्टोर्स में से जो पका हुआ, तैयार किया हुआ डब्बाबंद खाना आप लेते हैं, उनमें बहुत सारी चीजें वहाँ एक महीने से होती हैं और आप उन्हें लाकर अपने फ्रिज़ में एक और महीने तक रखते हैं और जब-जब इच्छा होती है, तब-तब थोड़ा थोड़ा खाते रहते हैं। ये खाना आपको ज्यादा नींद लेने के लिये मजबूर करता है और डॉक्टर्स भी आपको बताते हैं कि आपको आठ घंटे सोना चाहिये नहीं तो आप शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ नहीं रहेंगे - क्योंकि वे खुद भी वही खाना खाते हैं!

#2 सादा भोजन खायें

मनुष्य के अलावा हर प्राणी उस परिस्थिति के अनुसार ढल जाता है, जिसमें वो होता है पर मनुष्य की ऐसी काबिलियत है कि वो जैसी परिस्थिति चाहता है, वैसी बना सकता है। ये बात मनुष्य को कुछ खास बनाती है, दूसरे प्राणियों से एकदम अलग। तो, जिनको अपनी थोड़ी भी चिंता है, उन्हें  उन चीजों के बारे में सजग रहना चाहिये, जो उनके अंदर जाती हैं।

जिस खाने में जटिल (पेंचीदा) याददाश्त बिल्कुल कम मात्रा में हो, वो खाना दो चार घंटे के अंदर आपकी प्रणाली का हिस्सा बन जाता है। ऐसा खाना आपकी नींद की मात्रा को काफी कम कर देता है। पर, आज की दुनिया में अच्छी गुणवत्ता का भोजन लेना ज्यादा मुश्किल होता जा रहा है, क्योंकि आप जो खाना खा रहे हैं वो ज्यादातर शरीर का ईंधन नहीं है बल्कि ढेर सारा व्यापार है। बहुत सारे लोग, वे जो पश्चिमी देशों में रहते हैं और इस तरह का खाना खाते रहे हैं, मुझे बताते हैं कि जब वे ईशा योग सेंटर में आ कर रहते हैं तो दो तीन महीनों बाद उन्हें इस बात पर आश्चर्य होने लगता है कि वे पर्याप्त मात्रा में सो क्यों नहीं रहे हैं? उनका मानना है कि उन्हें कम से कम 8 घंटे सोना चाहिये पर यहाँ हमारा मानक तो चार घंटे का है। हम सिर्फ चार घंटों में नींद पूरी कर लेते हैं और फिर भी हम हर तरह से बढ़ रहे हैं, स्वस्थ हैं, खुश हैं और ज्यादा काम कर रहे हैं।

जिस खाने में बहुत सारे रासायनिक पदार्थ और बनावटी चीजें हों, ऐसा खाना पचाने के लिये आपका शरीर नहीं बना है। जिस खाने का 1% भाग भी बनावटी हो, रासायनिक हो - चाहे खाद के रूप में हो या दूसरे रसायनों, प्रिज़रवेटिव्स के रूप में - वो खाना आपके पाचन तंत्र में गड़बड़ी पैदा करता है और पाचन प्रणाली को बिगाड़ देता है।

अमेरिका में लोग भारी मात्रा में ऐंटेसिड्स इस्तेमाल करते हैं जो पेट में एसिडिटी को दबाने के लिये रासायनिक दवाईंयां हैं। ये आपके पेट के लिये ठीक नहीं हैं। आपके दिल में, कलेजे में होने वाली जलन इसलिये नहीं होती कि आप किसी के प्यार में हैं - बल्कि इसलिये होती है कि आपकी सारी अन्नप्रणाली बहुत सारे कारणों से एसिड्स की वजह से जल रही होती है। आपके खाये हुए भोजन की 1% मात्रा भी अगर बनावटी पदार्थों, रसायनों के रूप में हो तो अपनी प्रणाली में इस खाने को शोषित कर लेने की आपकी काबिलियत बहुत कम हो जाती है, और इस वजह से नींद की मात्रा बहुत बढ़ जाती है। क्योंकि आपका शरीर खुद अपने ही साथ संघर्ष कर रहा है, तो उसे स्वाभाविक रूप से ठीक करने के लिये आपको ज्यादा समय चाहिये, ज्यादा नींद चाहिये। 

#3 कितना खाना चाहिये?

आप अपनी ऊर्जाओं का प्रबंधन (मैनेजमेंट) कितनी दक्षता से करते हैं ये तय करता है कि आप कितने सजग हैं! अगर आप ध्यान करना चाहते हैं तो सजगता सिर्फ मन की ही नहीं बल्कि आपकी ऊर्जाओं की होनी चाहिये। इसीलिये यौगिक मार्ग पर चलने वालों से ये कहा जाता है वे बस 24 कौर खाना ही खायें और हर कौर को चौबीस बार चबायें। इससे होता ये है कि भोजन मुँह में ही पचने के लिये तैयार हो जाता है और, ये आगे प्रणाली में जा कर कोई सुस्ती नहीं पैदा करता।

जो लोग अपने शाम के खाने में ऐसा करते हैं, वे सुबह 3.30 बजे उठ सकते हैं। यौगिक प्रणाली में इस समय को ब्रह्म मुहूर्त कहा जाता है। इस समय पर यौगिक क्रियायें करना बहुत अच्छा है क्योंकि प्रकृति भी आपकी साधना में सहायक रहती है। 

#4 खाने के बाद तुरंत न सो जायें

बहुत से लोगों की मानसिक अवस्था कुछ ऐसी होती है कि जब तक वे अपने पेट में बहुत सारा भोजन भरकर शरीर को एकदम सुस्त नहीं बना देते, तब तक उनको नींद ही नहीं आती। अगर आपकी दशा भी ऐसे लोगों की तरह है, तो इस मामले पर ध्यान दे कर आपको उसे ठीक करना चाहिये। ये बात सोने की नहीं पर एक खास मानसिक दशा की है।

मेरा कहना ये है कि खाने के दो घंटे के अंदर सो जाने वालों का 80% खाया हुआ खाना व्यर्थ हो जाता है। अपने खाये हुए खाने को पचाने के लिये आपको उसे पर्याप्त समय देना चाहिये। 

 

#5 सोने के लिये सही दिशा

जब आप सीधे, जमीन के समांतर (पैरेलल) , लेटते हैं तो आप की नब्ज़ चलने की गति (पल्स रेट) एकदम कम हो जाती है। शरीर अपने आप ये काम कर लेता है क्योंकि अगर आपका हृदय पहले की तरह(जब आप खड़े हैं या चल/दौड़ रहे हैं) ही खून की पम्पिंग करता रहेगा तो सीधे लेटने पर बहुत सारा खून आपके सिर की ओर आकर,  मस्तिष्क को नुकसान पहुँचायेगा। शरीर में ऊपर के भाग की ओर जाने वाली खून की नलियाँ, शरीर के निचले भाग की ओर जाने वाली नलियों की तुलना में ज्यादा कुशल काम करने वाली होती हैं। जब वे मस्तिष्क में पहुँचती हैं, तो बिल्कुल बाल की तरह महीन (पतली) हो जाती हैं, जिससे ज़रूरत से ज्यादा खून की एक भी बूंद आगे न जाये।

सोते समय सिर उत्तर की ओर रखने से और 5 -6 घंटों तक उसी दिशा में रहने से, पृथ्वी का चुम्बकीय आकर्षण आपके मस्तिष्क पर ज्यादा दबाव डालता है, क्योंकि आपके खून में लौह तत्व महत्वपूर्ण मात्रा में होता है। ऐसा नहीं है कि इस तरह से सोने से आप मर जायेंगे पर अगर आप रोज ऐसा ही करते हैं, तो आप अपने लिये मुसीबत बुला रहे हैं। जो लोग एक खास उम्र से ज्यादा की उम्र के हैं, और जिनकी खून की नलियाँ कमज़ोर हैं, उनकी शिरायें ऐसा करने से फट सकती हैं (हैमरेज हो सकता है) और उन्हें पक्षाघात(पैरालिसिस) भी हो सकता है। जिनकी शारीरिक प्रणाली स्वस्थ है वे भी उत्तर की ओर सिर रख कर अच्छे से नहीं सो सकते, क्योंकि तब मस्तिष्क में रक्त संचालन ज़रूरत से ज्यादा होगा जिससे अच्छी नींद नहीं मिल पाएगी।

पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध (अर्थात भूमध्य रेखा से ऊपर के क्षेत्रों में) रहने वालों के लिये सोने की सबसे अच्छी दिशा ये होगी कि आपका सिर पूर्व में हो। उत्तर पूर्व भी ठीक है। पश्चिम चलेगा और बहुत ज़रूरी हो दक्षिण की तरफ सिर रखना भी चलेगा। पर, उत्तर की ओर कभी नहीं। अगर आप दक्षिणी गोलार्ध में हैं, तो सोते समय सिर दक्षिण में न रखें। 

#6 अपने को जबर्दस्ती सोने से न रोकें

आपके शरीर को कितनी नींद की ज़रूरत है ये आपकी शारीरिक गतिविधि पर निर्भर करता है। अपने लिये भोजन या नींद की मात्रा तय कर के रखने की कोई ज़रूरत नहीं है। जब आपकी गतिविधि का स्तर कम हो तो कम खायें और जब गतिविधि ज्यादा हो तो थोड़ा ज्यादा खा सकते हैं। यही बात नींद के लिये भी सही है। जैसे ही शरीर को समुचित विश्राम मिल जाता है, ये जाग जायेगा, फिर चाहे सुबह के 3 बजे हों या 8। सुबह जागने के लिये अलार्म न लगायें। ज़रूरी विश्राम मिलने पर शरीर को जाग ही जाना चाहिये।

जबर्दस्ती नींद को टालने से शारीरिक, मानसिक और दूसरी काबिलियतें कम हो जाती हैं। ऐसा कभी न करें। शरीर को नींद की जितनी ज़रूरत है, उतनी उसे लेने दीजिये।

पर, अगर आपका शरीर, बिस्तर को किसी कब्र की तरह इस्तेमाल कर रहा है तो ये बिस्तर छोड़ना नहीं चाहेगा। किसी दूसरे व्यक्ति को आपको नींद से जगाना पड़ेगा। ये इस बात पर निर्भर करता है कि आप किस तरह से अपना जीवन चला रहे हैं। जीवन को टालने की जिनकी मानसिक दशा है, जो जीवन से दूर भागना चाहते हैं, वे तो स्वाभाविक रूप से ज्यादा खायेंगे और ज्यादा सोयेंगे।

#7 आनंदपूर्ण अवस्था बनाये रखना

नींद का मतलब है अस्थायी मौत। नींद समय है शरीर के रख रखाव का, उसे तरोताजा करने का। दिन के समय में अगर आप शरीर को इस तरह से रखते हैं कि उसका कम से कम नुकसान हो तो रखरखाव का समय भी अपने आप कम हो जाता है। सही खाना खा कर और अपने आपको आनंदपूर्ण अवस्था में रख कर ये किया जा सकता है। अगर आपके शरीर में टकराव, संघर्ष नहीं है, आप दिन भर आनंदपूर्ण अवस्था में हैं, आपने अपने शरीर को इस तरह से बनाया है कि आपकी उर्जा प्रणाली में कोई टकराव नहीं है और आपका मन, आपकी भावनायें भी टकराव से मुक्त हैं, तो आपकी नींद की मात्रा अपने आप कम हो जाती है।

#8 अपने जीवन के साथ जंग न लड़ें

शरीर को विश्राम की ज़रूरत होती है, नींद की नहीं - पर ज्यादातर लोगों के अनुभव में विश्राम का सबसे गहरा रूप नींद ही है, और इसीलिये वे नींद के बारे में ही बात करते हैं। मूल रूप से शरीर की माँग नींद नहीं बल्कि विश्राम की अवस्था है। जब रात को आपको विश्राम नहीं मिलता तो सुबह में आप थके थके रहते हैं, सेहत बिगड़ सकती है। तो, नींद नहीं बल्कि विश्राम की अवस्था ज्यादा महत्वपूर्ण है।

अगर सारा दिन आप अपने शरीर को विश्राम की अवस्था में रखें, अगर आपका काम, व्यायाम या आपकी कोई भी गतिविधि आपके लिये विश्राम के रूप में है, तो स्वाभाविक रूप से आपकी नींद की मात्रा कम हो जायेगी। समस्या ये है कि लोगों को यही सिखाया जाता है कि वे सब कुछ पूरा जोर लगाकर, तनाव में रहकर करें। मैं देखता हूँ कि सुबह  बगीचे में टहलते समय भी लोग तनाव में होते हैं। इस तरह की कसरत आपको खुशहाली की जगह नुकसान ही ज्यादा देती है। हर चीज़ पर इस तरह मत जाईये जैसे कि वो कोई युद्ध हो। आप चाहे चल रहे हों, दौड़ रहे हों या कोई व्यायाम कर रहे हों, आप इसे आराम से, आनंदपूर्वक क्यों नहीं कर सकते?

जीवन के साथ संघर्ष न करें। अपने आपको चुस्त दुरुस्त, अच्छा रखना कोई युद्ध नहीं है। कोई खेल खेलिये, दौड़िये, तैरिये, टहलिये या चाहे जो करिये। आपको परेशानी तभी होगी जब आप सिर्फ चीज़केक खाने के पीछे ही पड़े रहेंगे। नहीं तो, किसी भी गतिविधि को आराम से करना और सेहत को अच्छी बनाये रखना कोई मुश्किल काम नहीं है। 

#9 यौगिक क्रियायें : शाम्भवी महामुद्रा

शाम्भवी महामुद्रा जैसी यौगिक क्रियायें करने वाले अपने आपमें जो पहला बदलाव पाते हैं, वो है उनकी नब्ज की चलने की गति थोड़ी कम हो जाना। मिसाल के तौर पर, अगर किसी ने हाल ही में इनर इंजीनियरिंग कार्यक्रम किया हो और शाम्भवी करना शुरू किया हो, वो अगर रात के खाने के पहले और बाद में अपनी नब्ज़ की गति को नोट कर ले और फिर, 6 सप्ताह तक रोज दो बार शाम्भवी महामुद्रा का अभ्यास करे, तो वो देखेगा कि उसकी नब्ज़ 8 से 15 काउंट कम हो गयी है। शाम्भवी के दौरान जो वास्तव में गहरे विश्राम की अवस्था में जाता है, उसकी नब्ज़ और भी धीमी हो जाती है।

12 से 18 महीने के अभ्यास के बाद आप अपनी नब्ज़ की गति को 50 से 60 तक ला सकते हैं। अगर ऐसा होता है तो आपकी नींद की मात्रा नाटकीय ढंग से कम हो जायेगी क्योंकि सारा दिन आपका शरीर सहज रूप से विश्राम की अवस्था में रहेगा। आपकी गतिविधि चाहे जो भी हो, शरीर विश्राम की अवस्था में रहेगा और ज्यादा नींद नहीं मांगेगा। 

#10 शून्य ध्यान

हम एक खास ध्यान विधि सिखाते हैं, शून्य ध्यान! ये एक ऐसे कार्यक्रम में सिखाया जाता है जो सिर्फ दक्षिणी भारत के ईशा सेंटर्स में और अमेरिका में होता है। हम इसे दूसरी जगहों पर नहीं सिखाते क्योंकि इसके लिये एक खास वातावरण, प्रशिक्षण और अन्य प्रक्रियाओं की ज़रूरत होती है। शून्य आपकी नींद की ज़रूरत को नाटकीय ढंग से कम कर सकता है। ये सिर्फ 15 मिनिट का ध्यान है पर आप देखेंगे कि अगर आप इस ध्यान प्रक्रिया में सही ढंग से स्थिर हो जाते हैं तो आपका मेटाबोलिज्म 24% तक कम हो जायेगा। ध्यान की चेतन अवस्थाओं में 24% की कमी सबसे ज्यादा होती है। अगर आप इससे भी आगे निकलते हैं, तो सामान्य रूप से चेतन नहीं रहेंगे। एक खास सीमा तक विश्राम की अवस्था में रहना हो और उसमें से बाहर चेतन अवस्था में आना हो, तो आप 24% से आगे नहीं जा सकते।

आप देखेंगे कि विश्राम अवस्था के संदर्भ में ये 15 मिनिट का ध्यान 2 से 3 घंटे की नींद के बराबर है। इसे नियंत्रित, समर्पित परिस्थितियों में सिखाये जाने की वजह ये है कि इससे आपके शरीर में खून की रासायनिक अवस्था के स्तर पर जबर्दस्त बदलाव आते हैं। 

आप अपनी अंदरूनी परिस्थिति में जैसे बदलाव लाना चाहते हैं, वैसे बदलाव अगर नहीं हो रहे हों - तो अपने आपको अंदर से बदलने के लिये पहले कदम के रूप में ऑनलाइन इनर इंजीनियरिंग करें।.

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