किसी एक व्यक्ति का हमारे पर्यावरण पर क्या असर होता है, इसे नापने के लिए वैज्ञानिक कार्बन फुटप्रिंट की अवधारणा को लेकर सामने आए।  वे सारे काम जो हम रोजाना करते हैं या हम जिन भी चीज़ो का इस्तेमाल करते हैं, उन सब से कार्बन डाई ऑक्साइड (CO2) निकलता है। औद्योगिक क्रांति से पहले मनुष्यों द्वारा पैदा किया गया जितना भी सीओ वातावरण में  आता था, वह आसपास के जंगलां और पेड़ पौधों द्वारा सोख लिया जाता था। जंगल व पेड़ पौधे कार्बन को सोख कर ऑक्सीजन को वापस हवा में छोड़ देते हैं।

औद्योगिक युग के शुरुआत के साथ ही  ईधन का प्रयोग बड़े पैमाने पर हाने लगा जिससे CO2 भारी मात्रा में निकलने लगा। साथ ही, बढ़ती आबादी का पेट भरने के लिए खेती के लिए बड़े पैमाने पर जंगल काटे गए, जो कार्बन सोखने का काम करते थे। आज स्थिति यह है कि जितनी सीओ2 वातावरण में पैदा होती है, उसे सोखने  के लिए पर्याप्त मात्रा में पेड़ ही नहीं बचे हैं।

क्या आप जानते हैं कि औसतन एक शहरी साल में चार टन CO2 का उत्सर्जन करता है? पर्यावरण की रक्षा हम सभी की ज़िम्मेदारी है। 

कार्बन डाइऑक्साइड क्या करती है?

कार्बन डाइऑक्साइड वातावरण में ‘ग्रीन हाउस गैस‘ के रूप में  काम करती है। इस का मतलब है कि वह सूर्य की गर्मी को रोक लेती है। आज धरती के तापमान को बढ़ाने में ‘ग्रीन हाउस गैस‘ ही मुख्य रूप से जिम्मेदार है। इसकी वजह से मौसम में बदलाव आए हैं - ग्रीष्म ऋतु में गरमी बढ़ी है, बेमौसम बरसात होने लगी है, सूखे और बाढ़ का प्रकोप भी बढ़ा है, शीत ऋतु में ठंड बढ़ी है। इन बदलावों का असर मनुष्य सहित पेड़ पौधों व पृथ्वी पर मौजूद सभी जीवों पर भी हो रहा है।

बातावरण में CO2 के बढ़ने के करण

हमारे द्वारा चलाए जाने वाले वाहनों से होने वाले प्रदूषण के अलावा और भी ऐसे कई कारण हैं:

Subscribe

Get weekly updates on the latest blogs via newsletters right in your mailbox.

बिजली / इलेक्ट्रिसिटी: हम जिस बिजली का इस्तेमाल करते हैं, वह ज्यादातर जीवाश्म ईंधन (जैसे कोयला, नैसर्गिक गैस और तेल जैसी प्राकृतिक चीजों) से बनती है। जिससे CO2 निकलता है। हम जितना ज्यादा बिजली या बिजली के उपकरणों  का प्रयोग करेंगे, बिजली के उत्पादन के लिए उतने ही ज्यादा ईंधन की खपत होगी और उससे उतना ही ज्यादा CO2 बढे़गा।

अन्‍न: जो अन्न हम खाते हैं वह भी हमारे कार्बन फुटप्रिंट में महत्वपूर्ण योगदान देता है। खासतौर पर अगर वह स्थानीय नहीं हो कर प्रसंस्कृत हो तो इसका उत्सर्जन ज्यादा होता है।

वनों का संहार: खेती योग्य जमीन, इमारतों के निर्माण, लकड़ी और खनिज को पाने के लिए हमने जंगलों और पेड़ो का विनाश किया है।

औद्योगिक उत्पादन: ज्यादातर हम जिन चीजों का उपयोग करते हैं, वे कारखानों में बनती हैं। ये चीजें फिर से न पैदा होने वाले खनिजों व धरती से निकलने वाले ईंधन के इस्तेमाल से बनती हैं। जिन्हें दूर दराज के इलाकों तक मालगाड़ियों से भेजा जाता है।

क्या आप जानते हैं कि औसतन एक शहरी साल में चार टन CO2 का उत्सर्जन करता है? पर्यावरण की रक्षा हम सभी की ज़िम्मेदारी है।

CO2 को कम करने का दूसरा तरीका सीओ को सोखना है । वृक्षारोपण  इसका सबसे आसान और प्रभावशाली तरीका है। एक पेड़ अपने जीवन काल में एक टन सीओ को कार्बन और ऑक्सीजन में बदलता है। 

हम क्या कर सकते हैं?

इंसान के पास अपने कार्बन फुटप्रिंट कम करने के कई तरीके हैं। एक तरीका तो यह है कि आप कम से कम CO2 उत्सर्जन करें। इसका मतलब है कि आप सोच समझ कर चीजों का इस्तेमाल करें, रीसाइकिलिंग करें, सार्वजनिक यातायात का इस्तेमाल करें । जहां तक हो सके ज्यादा से ज्यादा पैदल चलें, स्थानीय और रिसाइकिल्ड उत्पादों का प्रयोग करें, स्थानीय चीजों व कम से कम प्रसंस्कृत पदार्थों का सेवन करें।

CO2 को कम करने का दूसरा तरीका CO2 को सोखना है । वृक्षारोपण  इसका सबसे आसान और प्रभावशाली तरीका है। एक पेड़ अपने जीवन काल में एक टन CO2 को कार्बन और ऑक्सीजन में बदलता है।

क्या आप ‘कार्बन-न्यूट्रल‘ बन सकते हैं, इसका मतलब है कि आप अपने कार्बन फुटप्रिंट को पूरी तरह से मिटाने के लिए उतने पेड़ लगाइए, उनकी देखभाल कीजिए, जो आप द्वारा उत्सर्जित होने वाले पूरे CO2 को सोख लें।

तो चलें अभी से वृक्षरोपण में जुट जाएं !

पेड़ लगाने और ज्यादा जानकारी के लिए हमारी वेबसाइट देखें : www.giveisha.org/pgh