लेख : दिसंबर 23, 2019

अपने आंतरिक विकास हेतु, ईशा योग सेंटर के प्राणप्रतिष्ठित स्थान में 7 महीनों का समय सबके साथ बिताने के लिये, 32 देशों से, 800 से भी ज्यादा प्रतिभागी आते हैं।

यहाँ कुछ उन प्रतिभागियों के अनुभव हैं, जिन्होंने स्वयं को इस शक्तिशाली स्थान में ऐसी खोज करने हेतु 7 महीनों के लिये प्रतिबद्ध किया है।

"प्रत्येक मनुष्य एक प्राणप्रतिष्ठित स्थान में रहने का हकदार है - ऐसे स्थान में, जो आप को भौतिक जगत के तौर तरीकों के परे ले जाये" - सद्‌गुरु

प्रयत्नरहित आनंद

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"मैं नहीं जानता कि प्राणप्रतिष्ठित स्थान क्या होता है पर यहाँ मैं देख रहा हूँ कि मेरे अंदर क्या हो रहा है - मैं अगर अपनी सीमाओं के पार जाने के लिये एक कदम चलता हूँ तो मेरी बहुत सारी अन्य कमियाँ अपने आप निकल जाती हैं! घर पर अन्य लोग जो कुछ भी कर रहे होते हैं, उनके बारे में मैं बहुत ज्यादा कोलाहल करता हूँ पर आश्रम के अंदर, बिना किसी प्रयत्न के, आनंद बस स्वाभाविक रूप से फूट पड़ता है, और इसके कारण ही मैं अपने अंदर और आसपास हो रही चीज़ों की सराहना कर पा रहा हूँ।" - वैशक, 22, बैंगलुरू

आश्रम में अलग-अलग प्राणप्रतिष्ठित स्थान - सद्‌गुरु

"आश्रम में रहने के बाद मुझे ऊपर बताये हुए सुविचार की सत्यता स्पष्ट हुई है। यहाँ आने से पहले मैंने प्राणप्रतिष्ठित स्थानों के बारे में बस पढ़ा ही था और मुझे इसके बारे में काफी संदेह था, पर यहाँ पिछले 5 महीनों से रहते हुए इन स्थानों का मेरे मन एवं शरीर पर, तथा भावनाओं पर जो प्रभाव हो रहा है, उसका महत्व मैंने अनुभव किया है "।

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"यहाँ पर सभी प्राणप्रतिष्ठित स्थान स्फूर्तिदायक तथा ऊपर उठाने वाले हैं। जब भी मुझे बहुत उदासी, हताशा का अनुभव हुआ तो देवी के सामने बैठने से काफी आराम मिला है। ध्यानलिंग ने मेरे अंदर की अशांति, अस्तव्यस्तता को शांत किया है, प्रदक्षिणा ने हमेशा मुझे मेरे मन की बड़बड़ बंद करने में सहायता की है - इसे करने के बाद, मैं ज्यादा जीवंत एवं लक्ष्यकेंद्रित हुई हूँ। मुझे सूर्यकुंड के पास साधना करने में बहुत आनंद आता है, वहाँ झरने के गिरते पानी की आवाज़ मुझे एकदम स्थिर कर देती है। आदियोगी आलयम में मंत्रजाप करने से अक्सर मेरे आँसू निकल आते हैं - ये मेरी क्रियायें और आसन करने के लिये प्रिय स्थान है। और अंत में, पर कम महत्वपूर्ण नहीं, भिक्षा हॉल में जाप करना एक रोम रोम में हर्ष लाने वाला अनुभव होता है।

इन अनुभवों ने मुझे ज्यादा से ज्यादा पाने के लिये और भी आकांक्षी बना दिया है।" - पूनम, 23, मुम्बई

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कृपा में ओतप्रोत

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"ध्यानलिंग मंदिर में बैठना मेरे दिमाग के अंदर का सारा शोर गायब कर देता है। सूर्यकुंड में डुबकी लगाना मुझे एक बिल्कुल अलग स्तर पर जीवंत बना देता है।" – जयग्नेश, 24, हैदराबाद

"मेरे मन में जो कुछ भी बहुत ज्यादा चलता रहता है, मैं उसे आदियोगी योगेश्वर लिंग के पास बैठ कर बिल्कुल बाहर कर देता हूँ। मैं वहाँ घंटों तक बैठा रह सकता हूँ।" – अबिन्स, 28, बैंगलुरु

"ऐसा बहुत बार हुआ है कि मैं बिना किसी प्रयत्न के ध्यानलिंग में आँखें बंद कर के बैठा रहा हूँ। मैं जब भी किसी प्राणप्रतिष्ठित स्थान में होता हूँ तो मेरे अनुभव में समय बस ऐसे ही उड़ जाता सा लगता है और पता ही नहीं चलता।" – मुनीर, 29, पाइलर, आंध्रप्रदेश

"ध्यानलिंग में बैठना मेरे जीवन का सर्वोत्तम अनुभव रहा है। वो स्थिरता, वो शांति मैंने कहीं और अनुभव नहीं की है।" – श्वेता, 26, वाराणासी

"आप जब सन्निधि के पास बैठते हैं तो लगभग ऐसा लगता है जैसे उस स्थान की ऊर्जा ही आप के लिये साधना कर रही है।" – अभिनव, 28, मुम्बई

"ये पूरा आश्रम ही अत्यंत जीवंत तथा दीवानों जैसा है। मैं जब स्पंदा हॉल में भावस्पन्दन कार्यक्रम के लिये थी तब मैं जो चीजें कर रही थी, वो निश्चित रूप से केवल मेरी शारीरिक शक्ति के कारण नहीं हो रहीं थीं। वह इस जगह की वजह से हो रहीं थीं। मुझे इसमें कोई संदेह नहीं है।" – कुंता, 22, हैदराबाद 

सब के साथ साधना करना

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"लोगों के साथ साधना करने से मुझ पर चमत्कारिक परिणाम हुए हैं। मैं जब शाम को अपने आप शाम्भवी करता हूँ तो ये सामान्य ही होती है। पर, जब सुबह मैं अपने साथी प्रतिभागियों के साथ, आसनों के पश्चात इसे करता हूँ तब अत्यंत ऊर्जावान हो जाता हूँ और वो अनुभव सर्वश्रेष्ठ होता है। मैं यह महसूस कर सकता हूँ कि सुबह में यह स्थान अत्यंत तीव्र कम्पायमान तथा ऊर्जावान होता है।

यहाँ आने से पहले, मैंने इस बात को बहुत महत्व नहीं दिया था, इसका विचार भी नहीं किया था कि प्राणप्रतिष्ठित स्थान क्या होता है? वह विचार निश्चित रूप से बदल गया है। सूर्यकुंड एक ऐसा ही स्थान है - ये तुरंत ही मुझमें जीवंतपन ला देता है। जब कभी भी मुझे सुस्ती लगती है तो मैं वहाँ जाता हूँ। उस पानी में बस 10-15 मिनट रहता हूँ और वाकई पुनः उत्साहित तथा जीवंत हो कर वापस आता हूँ। सब कुछ देखा जाये तो मेरे यहाँ आने के पहले के ऊर्जा स्तर और अभी के ऊर्जा स्तर की किसी भी तरह से तुलना नहीं हो सकती। – रामनाथ, 21, हैदराबाद 

एक चीनी दृष्टिकोण

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"चीन में कुछ पर्वतों और मंदिरों में भी सकारात्मक ऊर्जा होती है, जैसे माउंट वटाई। लेकिन वहाँ ऐसा कोई स्थान नहीं है जैसे यहाँ सद्‌गुरु ने इतने सारे शक्तिशाली प्राणप्रतिष्ठित स्थान बनाये हैं। आश्रम में जीवन स्वर्ग में जीने जैसा लगता है। यहाँ मैं संतुलित और स्थिर हो गयी हूँ, साथ ही ज्यादा ध्यानस्थ, शांत और आनंदपूर्ण भी! ज्यादा साधना और स्वयंसेवी गतिविधियों के उपरांत भी मेरी भोजन एवं नींद की ज़रूरत कम हो गयी है। आश्रम में जो ऊर्जा है, वो मुझे एक उच्च्तर स्तर पर ले जाती है।" - चान काओ, 32, कुनमिंग, चीन 

आश्रम और घर का अंतर पहली ही साँस में स्पष्ट हो गया था

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"अभी हाल में मैं अपनी बहन की शादी के लिये घर गया। वहाँ जा कर जब मैंने साधना शुरू की तो पहली ही साँस में मुझे अंतर समझ में आ गया। ये ऐसे ही था जैसे आप खाने का पहला कौर लेते ही समझ जाते हैं कि इसमें नमक नहीं है। ये इतना आसान है। उस अर्थ में, आश्रम में पूरा अनुभव ऐसा जायकेदार था जो घर पर मिलना मुश्किल है।" – प्रयाग, 27, मोरवी, गुजरात

"आश्रम में तीन महीने रहने के बाद, मुझे एक आपातकालीन परिस्थिति के कारण दो दिन के लिये घर जाना पड़ा। मुझे अच्छी तरह याद है कि कैसे वहाँ पहुंचते ही, मुझे आश्रम में वापस जाने की इच्छा हो गयी। आश्रम में जो शांति एवं आनंद का अनुभव मुझे मिल रहा था, उसे मैंने शायद वहाँ से निकलने से पहले एक सामान्य, हमेशा मिलने वाली चीज़ मान लिया था। 18 वर्षों की नौकरी ने मुझे लंबे काम के घंटे, काफी ज्यादा यात्रायें तथा तनावपूर्ण वातावरण ही दिया था। और आश्रम ने मुझे ऊर्जा, स्पष्टता एवं स्थिरता इतनी ज्यादा दी है कि अब मैं अपने आप को कायाकल्प किया हुआ पाता हूँ, तथा दुनिया को नये ढंग से संभाल सकता हूँ।” – सत्यनाथ, 38, विशाखापत्तनम, आंध्रप्रदेश

"अपने घर पर रोज साधना करना तथा नियम बनाये रखना एक बड़ी चुनौती थी। मैं समझ नहीं पाता था कि मुझे इतना आलस क्यों आता था और सुबह जल्दी उठने में इतनी मुश्किल क्यों होती थी ? पिछले 5 महीनों में साधनापद के दिशानिर्देशों के अनुसार, मैं सुबह 3.30 बजे उठ जाता हूँ और साधना के सभी कार्यक्रम बिना किसी प्रयत्न के पूरे करता हूँ। अब मुझे ये समझ में आ गया है कि कैसे मेरी खाने की आदतें, सारा दिन मेरे सिस्टम के काम करने के ढंग पर तथा मुझे कितनी नींद की ज़रूरत है उस पर कैसे महत्वपूर्ण ढंग से असर करती है। सन्निधि के समीप अपनी साधना करने से मुझे बहुत ज्यादा लाभ मिला है। वहाँ मैं ज्यादा लक्ष्यकेन्द्रित एवं प्रक्रिया में ज्यादा शामिल रहता हूँ।" – अंकुश, 26, हैदराबाद

आत्मज्ञानी जीवों के एक नक्षत्रमंडल का निर्माण करना

सद्‌गुरु: अगर आप उच्चस्तरीय लोगों की एक पीढ़ी का निर्माण करना चाहते हैं तो आप को इस तरह के स्थान की आवश्यकता है अन्यथा सिर्फ सौभाग्यवश अपने व्यक्तिगत प्रयत्नों, कर्मों से ही कोई कुछ कर सकता है, पर आप सुंदर, उच्चस्तरीय लोगों की एक संपूर्ण पीढ़ी का निर्माण नहीं कर पायेंगे। हमारी संस्कृति ने ज्ञान का और आत्मज्ञानी जीवों का एक पूरा नक्षत्रमंडल बनाया है। अगर बहुत बड़ी संख्या में लोग लगातार प्राणप्रतिष्ठित स्थानों के संपर्क में आते हैं तो मनुष्य पूर्णता के एक बिल्कुल अलग अर्थ में खिलेंगे, जीवन को जैविक एवं एकरूपता के अलग ढंग से देखेंगे, तथा सबसे पहले वे पूर्ण मनुष्य होंगे।

 

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