ईशा योग केंद्र, कोयंबतूर के प्राण-प्रतिष्ठित स्थान में 32 देशों से, 800 से भी ज़्यादा प्रतिभागी, अपने भीतरी विकास के लिये सात महीनें बिताने के लिये इकट्ठा हुए हैं, जिससे वे साधना पर आधारित तनावमुक्त और आनंदपूर्ण जीवन की रचना कर सकें। सभी प्रतिभागी साधना के तीव्र एवं अनुशासित कार्यक्रम का नियमबद्ध पालन करते हैं। अपनी कुशलता के हिसाब से वे ईशा के कार्यों में अपना योगदान देते हैं, और आश्रम में होने वाले ईशा के अनेक उत्सवों तथा आयोजनों में अपने आप को डुबो देते हैं। इस ब्लॉग सीरीज में हम आपको उनकी यात्रा में आने वाले उतार चढ़ावों की परदे के पीछे की कहानी दिखायेंगे।

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साधनापद शुरू हुए तीन महीने हो गये हैं, और प्रतिभागियों को पता भी नहीं चला कि समय कैसे बीत गया। हर दिन वे सूर्योदय के पहले जागते हैं, उठते ही कठिन साधना यानि हठ योग और क्रियाएँ करने में लग जाते हैं, और फिर तीर्थ कुंडों में ताज़ा कर देने वाली डुबकी लगा कर अपने आप को दिन-भर के सेवा कार्यों के लिये तैयार करते हैं। दिन भर का थका देने वाला व्यस्त कार्यक्रम उन्हें नीरस नहीं लगता क्योंकि इससे उन्हें नये-नये अनुभव मिलते हैं, और साथ ही सेवा कार्यों की विविधतायें एवं चुनौतियाँ उन्हें लगातार सजग रखती हैं।

सितम्बर के महीने में, सेवा ने एक नया रूप ले लिया - जब उन सब के सामने कावेरी पुकारे अभियान के रूप में एक विशाल ऐतिहासिक अवसर आ गया। सद्‌गुरु ने स्वयं अपनी मोटरसाइकिल पर भारत के दो राज्यों की यात्रा, जिसका उद्देश्य था कावेरी घाटी में 242 करोड़ वृक्ष लगाने के लिये धनराशि इकट्ठा करना। हज़ारों ईशा स्वयंसेवकों ने इसे अपने जीवन का सबसे बड़ा उद्देश्य बना कर, इस अभियान में अपना योगदान दिया। सेवा के माध्यम से सभी स्वयंसेवक उद्देश्य, तीव्रता और भावना के एक नए स्तर पर पहुँच गए।

एक हेयर-कट की कीमत: दो वृक्षों का योगदान

थिरुर, केरल के 31 वर्षीय राजेश को हेयर स्टाइल करने का बेहद शौंक है, इतना ज्यादा कि साधनापद के लिये आते समय वे अपने बाल काटने के सारे सामान भी साथ में ले कर आये! और जल्द ही वे अपने साथी प्रतिभागियों के बीच लोकप्रिय भी हो गये क्योंकि हर कोई उनके इस हुनर का लाभ लेना चाहता था। जब उनके कमरे में रहने वाले साथी ने उनको सुझाव दिया कि वे उनसे हेयर-कट करवाने वालों से, हेयर कट के बदले कावेरी पुकारे अभियान के लिये योगदान माँग सकते हैं तो उन्हें यह सलाह बहुत पसंद आयी। उनके बाक़ी साथी प्रतिभागी भी इससे बहुत खुश हुए क्योंकि यह अभियान उन सब को अत्यंत प्रिय हो गया है। अब हर हेयर-कट के लिये कम से कम दो वृक्षों का योगदान जुटाने वाले राजेश की 1000 वृक्षों का योगदान इकट्ठा करने की आशा है। हमारी हार्दिक शुभकामना है कि उनकी यह योजना सफल हो।

इस तरह कई प्रतिभागियों ने इस अभियान में भाग लेने के लिये अपने अनोखे तरीके बनाये हैं। उन सब ने मिल कर अब तक 50,000 से भी ज्यादा वृक्षों के लिये धन इकट्ठा कर लिया है।

कावेरी पुकारे अभियान के लिये साधनापद के प्रतिभागियों ने क्या-क्या किया?

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अभियान के बारे में जागरूकता लाने, अधिक से अधिक लोगों तक जानकारी पहुँचाने और योगदान इकट्ठा करने के लिये ऑनलाइन तथा ऑफलाइन प्रचार करना बेहद जरूरी था। इन प्रतिभागियों ने कुछ इस तरह के तरीके अपनाये :

  1. 'कावेरी पुकारे' के लिये ऑनलाइन खेल बनाना
  2. टी शर्ट और पोस्टर डिज़ाइन करना
  3. ब्लॉग्स लिखना एवं सूचना चित्र बनाना
  4. वीडिओज़ का फिल्मांकन तथा संपादन कर के लोगों तक पहुँचाना
  5. पानी के संकट तथा वृक्ष आधारित खेती जैसे विषयों पर अनुसंधान करके जानकारी जुटाना।

सद्‌गुरु के साथ अभियान यात्रा का सफ़र

साधनापद के प्रतिभागी 7 महीनों तक आश्रम में रहने के लिये प्रतिबद्ध होते हैं पर जब कावेरी पुकार रही हो तो हर एक को अपनी जिम्मेदारी निभानी ही होगी। यहाँ, एक प्रतिभागी सद्‌गुरु के कारवाँ के साथ अपनी यात्रा एवं वीडियो फिल्मांकन के कार्य में पूरी तरह से लग जाने के अपने अनुभव को साझा कर रहे हैं:

बैंकेट हॉल से ले कर चलती कार से बाहर टंगने तक के अनुभव

"15 दिन के लिये कावेरी पुकारे अभियान का वीडियो फिल्मांकन करने वाली टीम जिस दिन आश्रम से निकलने वाली थी, उससे एक दिन पहले मुझसे कहा गया कि मैं भी टीम के साथ जाऊँ। मुझे न सिर्फ सद्‌गुरु को काम करते हुए देखने का अवसर मिल रहा था, बल्कि मुझे उनके फोटो भी लेने थे और वीडियो फिल्मांकन भी करना था। तब से मैं अत्यंत उत्साहपूर्ण, बेहद व्यस्त और गहरा संतोष देने वाले इस कार्यक्रम से जुड़ गया हूँ। अत्यंत आकर्षक सभागृहों से ले कर कीचड़ से भरे फिसलनदार शिविर स्थलों तक, और अद्भुत बैंकेट हॉल से ले कर अच्छा वीडियो बनाने के लिये चलती कार से बाहर लटकने तक - यह एक जबरदस्त यात्रा रही है। मुख्यमंत्री, बच्चे, ग़रीब, सभी तरह के लोग कावेरी पुकारे अभियान को सहयोग दे रहे हैं - मेरे लिये तो यह एक आँखें खोलने वाला अनुभव रहा है। इस यात्रा में मेरी साधना को एक नया अर्थ मिला है - मैं आश्चर्यचकित भी हूँ, और कृतज्ञता के भाव से विनम्र हो कर झुक भी गया हूँ" आरुष, 45, मुम्बई।

आश्रम की गतिविधियां

तेज़ बरसात और तूफान के बीच में सद्‌गुरु को बिना रुके, लगातार अपनी मोटरसाइकिल पर फर्राटे से दौड़ते हुए देख कर न केवल अभियान को देखने वाले लोग, बल्कि आश्रम में रह कर अभियान का सूक्ष्म प्रबंधन करने वाली टीम भी अति उत्साहित एवं कार्यबद्ध हो गई। लंबे समय तक कार्य में रत रहना, बहुत कम नींद, नाम भर का खाना, आदि के बावजूद सभी स्वयंसेवक बिना किसी शिकायत के बस पूरी तरह से जुटे हुए थे। एक तरफ़ वित्त विभाग हज़ारों की संख्या में दान रसीदों की जांच कर रहा था, सोशल मीडिया टीम चौबीसों घंटे ताजी सूचनायें और समाचार पहुंचाने के काम में लगी थी, और साथ ही मीडिया टीम अखबारों के लिये लेख, प्रेस नोट जारी कर रही थी।

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यह मेरे अपने लिये है!

"जितनी ज्यादा मैं कावेरी पुकारे अभियान में भागीदारी ले रही हूँ, उतना मुझे समझ आ रहा है कि यह अभियान सद्‌गुरु या किसानों को सहयोग देने के बारे में नहीं है, न ही यह नदी या पर्यावरण के बारे में है – यह तो मेरे अपने बारे में है। मैं तो यह सुनिश्चित कर रही हूँ कि जब तक मैं जीवित हूँ, मेरी थाली में भोजन होगा। यह सोच बहुत बेचैन कर देती है कि अगर हमने यह नहीं किया तो किसी दिन हमें भोजन और पीने का पानी तक नहीं मिलेगा"। अश्विनी, 27, सिनसिनाटी, यूएसए

नदियों की तरह बहना सीखना

कुछ लोगों के लिये इस बहुआयामी अभियान की यह माँग थी कि वे बस प्रवाह के साथ जायें और वह करें जो उन्होंने पहले कभी नहीं किया था।

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मैंने कावेरी पुकारे पर एक रैप गीत लिखा!

"व्यक्तिगत स्तर पर योगदान देने की मेरी क्षमता अत्यंत सीमित है पर सद्‌गुरु ने मुझे एक अवसर और एक मंच दिया है, जिससे कावेरी पुकारे अभियान के माध्यम से मैं विश्व के पर्यावरण पर एक स्थायी प्रभाव बना सकूँ। सारा दिन मेरे भीतर सूक्ष्म आनंद का भाव बना रहता है और इसके कारण मुझमें एक ऐसी आंतरिक रचनात्मकता पैदा हो गयी है जो पहले नहीं थी, और अब वह मेरे कार्य में भी दिख रही है। मैंने कावेरी पुकारे अभियान पर एक रैप गीत ( तालबद्ध गीत) भी लिखा जब कि मैंने इससे पहले कभी रैप संगीत सुना भी नहीं था!" बारन, 35, मेलबोर्न, ऑस्ट्रेलिया

पूर्व प्रतिभागी का जुड़ाव

साधनापद के एक पूर्व प्रतिभागी कावेरी पुकारे अभियान की उस वीडियो टीम में शामिल हुए जिसने कर्नाटक और तमिलनाडु में हुई पूरी यात्रा का फिल्मांकन किया। वास्तविक अभियान शुरू होने के कई सप्ताह पहले इस टीम का कामकाज शुरू हो गया था जब उन्होंने कावेरी घाटी में घूम-घूम कर सही स्थानों की खोज की।

रास्ते की टोह लेना, सूचना जुटाना, किसानों की सुनना

"कावेरी पुकारे अभियान का हिस्सा होना एक अत्यंत जिंदादिल अनुभव रहा है। रास्तों और स्थानों की टोह लेने के लिये, उनके बारे में सूचना जुटाने के लिये यात्रा करते हुए, हमने ये स्वयं अपनी आँखों से देखा और महसूस किया कि कैसे हरियाली की कमी ने मिट्टी पर और उसके कारण नदी के पानी की मात्रा पर खराब असर डाला है और उसकी गुणवत्ता नष्ट की है। प्रत्येक सभा में हमें हर प्रकार के लोगों की जबरदस्त प्रतिक्रियायें मिलीं। हुनसुर और मैसूरु में किसानों के बड़े समूह आये थे। उनसे जब हमने सुना कि वे सद्‌गुरु की इस पहल के लिये कितने आभार का अनुभव कर रहे थे, मुझे समझ में आया कि ये अभियान कितना अधिक आवश्यक है"। वरुण, 29, बैंगलुरु

कावेरी पुकारे अभियान का समापन

सद्‌गुरु की यात्रा के कोयंबतूर शहर में समापन से एक दिन पहले साधनापद के सभी प्रतिभागियों को सूचित किया गया कि उन सब को उसमें उपस्थित रहना है। अगली सुबह, बहुत ही उत्साह के साथ वे सब बसों में सवार हुए जिससे वे नियत स्थान पर पहुँच कर सद्‌गुरु से मिल सकें। एक घंटे की बस यात्रा मस्ती भरी थी और वे बसों में सारा समय गाते रहे और खेल खेलते रहे। जैसे ही वे कार्यक्रम स्थल पर पहुँचे तो पहुँचते ही ज़रूरी काम संभालने में लग गये। कुछ लोग सेट अप लगाने में मदद करने लगे तो कई भोजन परोसने के काम में जुट गये और बाकी के लोग मार्ग पर सद्‌गुरु का स्वागत करने की तैयारी में लग गये।

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"मैंने 2000 वृक्षों के योगदान की शपथ ली है और 600 वृक्षों के लिये धन एकत्रित हो चुका है"

"17 सितंबर के दिन, मैं सद्‌गुरु तथा उनके दल के स्वागत के लिये घंटों खड़ी रही। मुझे यह बहुत अदभुत लग रहा था कि कैसे वे 62 वर्ष की उम्र में भी 3,080 किमी की यात्रा सिर्फ 14 दिनों में करते हुए, कई सारे कार्यक्रमों द्वारा लोगों को जागृत करते हुए, लोगों को देश, राज्य, जाति, धर्म, राजनैतिक दल आदि के अंतर के बावजूद एकजुट करते हुए, एक महान उद्देश्य की पूर्ति के लिये अथक परिश्रम कर रहे हैं। ये सब अत्यंत प्रेरणादायक था। उनसे मुझे जो लगन और निष्ठा मिली है, उससे मेरा लोगों के पास दान मांगने के लिये जाने का दृष्टिकोण बिलकुल बदल गया है। पहले कदम के रूप में मैंने 2000 वृक्षों के योगदान की शपथ ली है और अब तक 600 वृक्षों के लिये धन इकट्ठा हो चुका है"। सुश्री, 24, भुबनेश्वर, ओडिशा

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मेरे पास खड़ा हुआ एक विदेशी चिल्लाया, "कावेरी बचाओ"

"हम सब हाथ में झंडे और कावेरी पुकारे अभियान के पोस्टर लिये हुए खड़े थे तथा नदी स्तुति गा रहे थे और हर एक गुज़रने वाले के सामने चिल्ला रहे थे, "कावेरी, कावेरी" ! अचानक मेरे पास खड़ा हुआ एक विदेशी चिल्लाया, "कावेरी बचाओ" ! मुझे नहीं पता कि क्या हुआ पर यह देख कर मेरी आँखों में आँसू आ गये कि वे लोग भी, जो हमारे देश के नहीं हैं, कावेरी के लिये चिंतित हैं। मेरा हृदय द्रवित हो उठा। अब मैं और भी ज्यादा कार्यरत हो गई हूँ और मेरी क्षमता से जो भी हो सकता है, वह करके मैं लोगों को जागृत और प्रेरित कर रही हूँ कि वे अधिक से अधिक योगदान दें"। कृति, 20, रांची, झारखंड

क्या साधना सिर्फ आंखें बंद कर के ही होती है?

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कावेरी पुकारे अभियान के दौरान सभी प्रतिभागी अपने अनुभव से जान गये कि ध्यानमय होने के लिये यह आवश्यक नहीं कि आप स्थिर बैठें और आँखें बंद कर लें। साधनापद में सेवा की जो तीव्र और शक्तिशाली प्रक्रिया हो रही है, उसके द्वारा ये (ध्यानमय होना) सरलता से हो सकता है।

Sadhguruसद्‌गुरु कहते हैं, "योग की सम्पूर्ण प्रक्रिया बस खुद को अर्पित करने की है। ये संभव है कि आप बस यहाँ बैठें, अपनी आँखें बंद कर लें और खुद को दुनिया को अर्पित कर दें। लेकिन जागरूकता का ये स्तर अधिकतर मनुष्यों में नहीं होता। उन्हें अपने आप को किसी भी चीज़ के प्रति समर्पित करने के लिये कुछ काम करना जरूरी है। तो वॉलिंटियरिंग एक जबरदस्त संभावना है जिसमें आप अपने कार्य के माध्यम से अपने आप को वास्तविक रूप से समर्पित कर सकते हैं"।

"आम तौर पर हमें जो भी छोटा मोटा काम करना होता है, हम बस गणनायें करते रहते हैं, 'मुझे कितना करना चाहिये, क्यों करना चाहिये, इसे करने से क्या मिलेगा' आदि...। इन सब गणनाओं के कारण काम करने की सारी सुन्दरता खो जाती है और जीवन की प्रक्रिया ही बदसूरत हो जाती है। हमारी रोजाना की गतिविधियों में सरल काम करने के लिये भी हम इतना संघर्ष करते हैं क्योंकि हम समर्पित होने के लिये तैयार नहीं होते। वो चाहे आप का कामकाज हो, विवाहित जीवन हो, परिवार हो या और कुछ, आप ने ये सब अपनी इच्छा से किया क्योंकि आप को अपने जीवन में ये सब चाहिये था। लेकिन एक बार शुरुआत होने के बाद आप भूल गये कि आप ने ये सब शुरू क्यों किया था। अब आप खुद को अनिच्छापूर्वक देने लगे हैं। इसीलिए ये एक पीड़ादायक प्रक्रिया बन गयी है"।

"वॉलिंटियरिंग या सेवा वो मार्ग है, जहां हम जीवन को बस देने की प्रक्रिया बनाना सीखते हैं। एक स्वयंसेवक वो है जो तैयार है - सिर्फ यह अथवा वह करने के लिये नहीं, बल्कि वह बस इच्छुक बन गया है"।

आगे है -- उत्सव, आनंद

आश्रम में रहने के रोज के आनंद के अलावा, साधनापद के पिछले दो महीनों में बहुत सी मजेदार गतिविधियाँ हुई हैं, कई सारे आनंदोत्सव हुए हैं। अगली श्रृंखला में आप जीवन को उत्सव की तरह जीने और साथ ही बेफिक्री की भावना रखने के बारे में पढेंगे!

कौन कहता है कि आध्यात्मिक मार्ग पर चलना मजेदार नहीं हो सकता?

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