रहस्यमय चाँद
इस बार के स्पॉट के लिए सद्गुरु हाल ही में लिखी पोएम मिस्टिक मून यानि रहस्यमय चाँद भेज रहे हैं। ये पोएम 14 नवम्बर के दिन के सुपर मून को समर्पित है। चाँद इससे पहले पृथ्वी के इतना करीब और आकार में इतना बड़ा 1948 में हुआ था। जानते हैं चांद के अलग-अलग पहलूओं को इस पोएम के माध्यम से...
सुनकर परियों की कहानियां
मानने लगे थे कि
तुम हो – एक गेंद मक्खन की
फिर यकीन दिलाया – किसी ने कि
पहुंच गए हैं कदम इंसान के
तुम तक, जो है
एक ऊँची छलांग मानवता के लिये।
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वो सारी तनहा रातें
जो गुजारी थी मैंने – तुम्हें निहारते हुए
और निहारा था
हर दिन बदलती तुम्हारी ज्यामिती को
मन में था कौतुहल
कि बने हो तुम किस से
और लगे हो कैसे
मुझे बनाने में
मेरे शरीर को बनाने में
और मेरी बोध की धुरी बनने में।
लगा जब भी तुम्हें समझने ही वाला हूँ
बदल लिया तुमने अपना आकार
ताकि हो जाओ और दुर्ग्राह्य
मेरी आंखों के लिए
जो अंधी हैं तेरी रौशनी के छलावे से
केवल तब जब मेरे नयनों ने
पा कर भीतर से रौशनी
शुरु कर दिया देखना – अंधेरे को
समझ पाया मैं तुम्हारे बदलते रूप के रहस्यों को
यद्यपि तुम हो मात्र एक प्रतिबिम्ब
फिर भी है तुममें शक्ति
मात्रृत्व स्राव को प्रभावित करने की
जिसने किया संभव मेरा जन्म
और होगा निश्चय ही तुम्हारा हाथ
मेरी मृत्यु में भी।
तुम सचमुच ही रहे हो
एक द्वार – जो घूमता रहता है
गोल-गोल, और दे जाता है
मुझे ज्ञान ।