नेल्सन मंडेला – एक युग का अंत
नेल्सन मंडेला- एक महान युग-पुरुष के साथ ही एक युग का अंत हो गया है। आज के स्पॉट में उस प्रेरक व्यक्तित्व को सद्गुरु की एक श्रद्धांजली -
इस हफ्ते नेल्सन मंडेला के रूप में एक युग का अंत हो गया। उनका जीवन केवल राजनैतिक रूप से ही महत्वपूर्ण नहीं रहा है। इसमें कोई शक नहीं कि दक्षिण अफ्रिका में उनका राजनैतिक महत्व भी बहुत ज्यादा रहा है, लेकिन सिर्फ एक इंसान के तौर पर भी पिछली सदी में हमें उन जैसे बहुत कम लोग मिले हैं। एक तरह से भारत का स्वतंत्रता संग्राम भी दक्षिण अफ्रीका में ही सिंक कर तैयार हुआ। महात्मा गांधी की प्रतिष्ठा को वहां के रंगभेदी शासन ने जो ठेस पहुंचाई, उसी ने देश के स्वतंत्रता संग्राम की चिनगारी को आग का रूप दिया। यह बड़े दुर्भाग्य की बात है कि कई महापुरुष अन्याय, दमन और कई तरह की क्रूरता से उपजे हैं। हमें ऐसा तरीका ढूंढना होगा कि बिना किसी संघर्ष, दमन या अन्याय के भी महापुरुष पैदा हो सकें। ऐसे महापुरुषों को हमें आनंद और उत्सव की गरमाहट में सेंक कर तैयार करना होगा। ज्यादातर समाज ऐसा इसलिए नहीं कर पाए हैं, क्योंकि अभी तक दुख-दर्द और पीड़ा ही मानव जीवन का सबसे गहरा अनुभव रहा है, आनंद, प्रेम या उल्लास नहीं। यह उस अनुभव की गहराई ही है, जो दुर्लभ गुणों और अविश्वसनीय शक्ति वाले संतुलित महापुरुषों को जन्म देती है।
नेल्सन मंडेला की खासियत यह है कि बर्बरता और अन्याय के दिल दहला देने वाले हालातों से गुजरने के बावजूद, उनके अंदर न तो कड़वाहट आई और न ही घृणा। वे खुशी के साथ मुस्कराते हुए अपनी जिंदगी जिए, नफरत और नाराजगी के साथ नहीं। ऐसा करने के लिए किसी इंसान में एक खास गुण का होना जरूरी होता है। लोग अपने साथ हुई छोटी-छोटी बातों को भी जीवन भर याद रखते हैं और पूरी जिंदगी नफरत और नाराजगी पालते हुए गुजार देते हैं – वो भी कोई ऐसा कहर नहीं, जो किसी बर्बर शासन ने उन पर ढाया हो, बल्कि छोटी-छोटी चीजें, जो उनके मां-बाप ने उनके साथ की हों।
नेल्सन मंडेला का निधन हम सबको यह याद दिलाएगा कि हमें नफरत और नाराजगी से हमेशा दूर रहना है। आपको सच्ची आजादी के लिए अकेले खड़े हो जाना चाहिए। आजादी राजनैतिक या आर्थिक तरीकों से नहीं मिलती, आजादी तब मिलती है जब किसी के भड़काने से भी आपके भीतर कोई अनचाहा गुण या कोई बुराई पैदा न हो सके।
एक दिन सेना का एक ड्रिल सार्जेंट बहुत खराब मूड में था, तो उसने सैनिकों को भारी बोझ ढोने का काम सौंप दिया। फिर उसने उनको तेज धूप में खूब दौड़ाया। बेचारे सैनिकों के पैर लड़खड़ा रहे थे और वे थक कर चूर हो रहे थे। एक सैनिक के चेहरे पर वे सारे भाव झलकने लगे, जो वह सार्जेंट के बारे में महसूस कर रहा था। सार्जेंट उस सैनिक के पास पहुंचा और उससे नजरें मिलाते हुए बोला, “मुझे यकीन है कि जब मैं मर जाऊंगा, तो तुम मेरी कब्र पर पेशाब करना चाहोगे।” सैनिक ने बड़ी शांति से जवाब दिया, “सर, एक चीज मैंने तय कर ली है – जब मैं सेना छोड़ूंगा, तो कभी किसी कतार में खड़ा नहीं होऊंगा।”
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नेल्सन मंडेला का घटनापूर्ण जीवन समाप्त हो गया है। हमें देखना होगा कि उन जैसे कई महापुरुष इस धरती पर पैदा हों – जरूरी नहीं कि वे उन हालातों से गुजरें, जिनसे गुजर कर मंडेला के व्यक्तित्व का निर्माण हुआ। आध्यात्मिक प्रक्रिया का अर्थ यही होता है – बाहरी हालात आपकी राह और दिशा तय नहीं करते, ना ही वे आपको अपने अनुसार ढालते हैं। आपको अपना सर्वश्रेष्ठ कर दिखाने के लिए दुनिया की यातनाओं की जरूरत नहीं रहती, आप खुद ही अपने को तपाने के लिए तत्पर होते हैं। जब यह सब आप खुद ही अपनी आत्म- प्रेरणा की वजह से करते हैं तो हम इसको आध्यात्मिक-प्रक्रिया कहते हैं; और जब यह किसी और की वजह से करना पड़े, तो यह गुलामी बन जाती है।
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मंडेला
वाह! वह भी क्या इंसान हुआ!
नहीं स्वीकार था उसे
अपने अंदर के इंसान को
समर्पण करने देना
घोर अमानवीय कृत्य के भी आगे।
किसने उससे क्या लिया क्या छिना
इससे कोई फर्क नहीं पड़ा
वो या उसका व्यक्तित्व
न इससे कभी छोटा पड़ा।
भयानक दासता और दमन से जन्मा
अपने अंदर सम्मान और आजादी की
निरंतर चाह लिए हुए
जीता रहा देखने को अंत
उस दानवी शासन का
पर ह्रदय मे कभी नही थी
कोई कड़वाहट या घृणा
जीवन था उसका उत्सव
हंसी, खुशी और आजादी का।
बहुत नहीं है
अभी तक पैदा हुए इस धरती पर
उस जैसा युग-पुरुष
आशा है उसका जीवन
अपनी प्रेरणा से पैदा कर सकेगा
उस जैसे ही अनेक महापुरुष
जिसकी जरूरत है
भविष्य को।
वाह! वह भी क्या इंसान हुआ!