मुक्तिनाथ यात्रा: कैलाश यात्रा से पहले का पड़ाव
नेपाल के रास्ते सद्गुरु अभी मुक्तिनाथ की तरफ बढ़ रहे हैं। इस यात्रा के रोमांच और कठिनाइयों को वे साझा कर रहे हैं हमसे आज के स्पॉट में ...
नेपाल के रास्ते सद्गुरु अभी मुक्तिनाथ की तरफ बढ़ रहे हैं। इस यात्रा के रोमांच और कठिनाइयों को वे साझा कर रहे हैं हमसे आज के स्पॉट में ...
काठमांडू में उतरे अभी 48 घंटे भी नहीं हुए। इस बीच गोकर्ण के 45 होल वाले पहाड़ी गोल्फ कोर्स में मैंने खूब हाथ साफ किया, ताकि आने वाले भीषण और थकाउ रास्ते के सफर की तैयारी हो जाए। यहां तक आने में हमने बारिश के इस मौसम में हिमालय के घुमावदार पहाड़ों के बीच कुछ बेहतरीन उड़ान का मजा लिया। हालांकि इस मौसम में घने बादलों के चलते हमारे समूह का सिर्फ एक छोटा सा हिस्सा हमदे पहुँच पाया, जो समुद्र तल से 11,300 मीटर उपर स्थित है। एएस350 नाम का एक छोटा-सा अदम्य जहाज सिर्फ हम 17 लोगों को ही यहां ला पाया। बाकी लोग घने व भारी बादलों के चलते यहां नही पहुँच पाए। इन्हें स्वर्ग के बादली दरवाजे कहना गलत नहीं होगा। हमारे दल के बाकी बचे हुए लोग पोखरा से कल दोपहर तक हमारे अगले पड़ाव मनांग पहुंचेंगे।
दुनिया की इस सबसे हैरतअंगेज पहाड़ी श्रृंखला से होकर गुजरने वाली वाली यह यात्रा एक तीर्थ यात्रा होने के साथ-साथ, हमारी भीतरी हिम्मत और हौसले की एक परीक्षा की तरह है। ऐसी यात्रा लोगों के भेदों को मिटाकर सभी को समकक्ष ला खड़ा करती है, और हमें झूठे छोटे-बड़े ओहदों और हमारी तात्कालिक नश्वरता की सच्चाई को दिखाती है। जिस तरह से बादल घिरते और छटते हैं, उससे ऐसा लगता है कि मानों नशे में धुत कोई दिमाग पहाड़ों के अलग-अलग रंग और आयामों को हमारे सामने पेश कर रहा हो। जैसे ही सूर्य इन आकर्षक अन्नपूर्णा पहाड़ियों के पीछे छिपता है, वैसे ही खुबसूरत मनांग घाटी में एक खासतरह का मौन और स्थिरता छा जाती है। दिनभर में अपने रंग बिरंगे स्वरूप में दिखने वाली घाटी रात होते ही इस सृष्टि के एक ही रंग में डूब जाती है। मुक्तिनाथ पहुंचने के लिए अभी भी हमें इन पहाडों में कई मील की लंबी यात्रा करनी है।
बर्फ से ढंकी अन्न्पूर्णा ने
ढंक लिया है
खूबसूरत मानंग घाटी को
और साथ ही
पहाड़ों के प्रति उस मेरे दीवानेपन को,
जो नशा है कम
ऑक्सीजन वाली ठंडी हवाओं का
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एक वादा है इसका
शरीर के हर तंतु को खींच कर
एक दर्द भरे स्वर्ग को रचने का।
मेरी यह यात्रा
नहीं है तलाश
किसी परम मुक्ति की
यह तो है आनंद शुद्ध हवा का, दर्द का
और कसौटी है अपने जीवट को जांचने की।
यह पहाड़, यह धुंध
और चारों ओर बिखरा रहस्य
और इन सबसे बढ़कर मेरा दीवानापन
- ये सभी मिलकर
पैदा कर देते हैं एक सिहरन
मेरे पूरे वजूद में
और भर देते हैं अहसास
एक रिक्तता का
मनरहित मस्तिष्क में ।
मुक्तिनाथ की मेरी यह यात्रा
मुक्त है - जीवन ओर मृत्यु से ।