‘मैं क्यों जी रहा हूं?’
आध्यात्मिक मार्ग पर चल रहे बहुत से लोग जब सुबह पांच बजे सोकर उठते हैं तो अकसर उनके मन में ये सवाल आते हैं- ‘आखिर मैं यह सब क्यों कर रहा हूं? जब सारी दुनिया सुबह आठ बजे सोकर उठती है तो मैं क्यों सुबह पांच बजे उठता हूं? जब हर व्यक्ति दिन में पांच बार खाता है तो मैं ही सिर्फ दो बार भोजन क्यों करता हूं?
इस स्पॉट में सद्गुरु बता रहे कि इससे फर्क नहीं पड़ता कि आप क्या कर रहे हैं, अगर आपका दिमाग चल रहा है, तो आपके भीतर ये प्रश्न जरुर उठेगा कि "मैं इसमें क्यों फंस गया?" या "मैं यहां क्यों हूँ?" जानते हैं कि ऐसा क्यों होता है -
आध्यात्मिक मार्ग पर चल रहे बहुत से लोग जब सुबह पांच बजे सोकर उठते हैं तो अकसर उनके मन में ये सवाल आते हैं- ‘आखिर मैं यह सब क्यों कर रहा हूं? जब सारी दुनिया सुबह आठ बजे सोकर उठती है तो मैं क्यों सुबह पांच बजे उठता हूं? जब हर व्यक्ति दिन में पांच बार खाता है तो मैं ही सिर्फ दो बार भोजन क्यों करता हूं? हर व्यक्ति धरती मां की तरह प्रसन्न दिखाई देता है, फिर मैं ही ऐसा क्यों हूं?’ (धरती की ओर गोलाई की तरफ इशारा करते हुए सद्गुरु कहते हैं) यह आकार तो धरती माता का है, मानव आकार ऐसा नहीं है, फिर भी बहुत से लोग उस जैसा बनने की कोशिश कर रहे हैं।
तो अकसर यह सवाल उठता है कि मैं यह सब क्यों कर रहा हूं? हालांकि पारंपरिक तौर पर वह यही कहेंगे-‘आपको आत्म साक्षात्कार होना चाहिए, आपको ईश्वर का साक्षात्कार होना चाहिए। आपको मुक्ति पाने की कोशिश करनी चाहिए।’
मानव मन की यही प्रकृति है
अगर आपमें किसी कीड़े जितनी समझ होती तो आपके दिमाग में यह ‘क्यों’ होता ही नहीं। अगर आपकी समझ किसी भैंस जितनी होती, जिसका दिमाग यानी कम से कम सिर तो आपसे ज्यादा बड़ा होता है तो भी ऐसी समस्यां नहीं होती।
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अगर आप सृष्टि की मूल प्रकृति पर गहराई से गौर करेंगे तो फिर आपको विरोधाभासों में जीना सीखना होगा, जो आपको बेहद समझौतावादी बना देगा। जो व्यक्ति पूरी तरह अंधा है, जिसने कभी अपनी भावनाओं, विचारों और कार्यों पर कभी ध्यान नहीं दिया, केवल वही व्यक्ति सोच सकता है कि वह पूरी तरह से ठीक ठाक है। वर्ना अगर आप गौर करेंगे, चीजों पर ध्यान देंगे तो आपको समझ में आएगा कि इस सबमें कितना जबरदस्त समझौता छिपा हुआ है। अगर आपका दिमाग चलता है तो फिर आपको जहां कही भी रखा जाए, आपके भीतर से एक ही सवाल उठेगा- ‘मैं यहां क्यों हूं?’ हालांकि लोग अपने दिमाग को चलने से रोकने के लिए तमाम तरह की कोशिशें करते हैं, लेकिन वे कामयाब नहीं हो पाते। अगर आपका दिमाग सक्रिय है तो ‘क्यों’ फौरन हाजिर हो जाएगा। हां, अगर आपका दिमाग चलना बंद कर चुका है तो आपके दिमाग में यह ‘क्यों’ का सवाल मृत्यु की घड़ी में ही सिर उठाएगा।
ये सवाल जितना जल्दी उठे उतना अच्छा है
मेरा यह आशीर्वाद है कि यह सवाल- ‘मैं क्यों जी रहा हूं? मैं क्यों यह कर रहा हूं?’ ये सारे सवाल जिंदगी में जितनी जल्दी हो सकें, आपके दिमाग में आने चाहिए, ताकि आपके भीतर वो उर्जा और ताकत रहे, जिससे आप इनके जवाब ढूंढ सकें।
जब हम कैलाश यात्रा पर जा रहे थे तो रास्ते में हमने कुछ लोगों को ढीला पड़ते देखा। इसलिए मैंने स्वयंसेवियों और टीचरों को बुलाया और पूछा- ‘आखिर दिक्कत क्या है? आप हर साल यहां आ रहे हैं, इसलिए क्या कैलाश आपके लिए नीरस हो उठा है? अरे लोग तो यहां आने के लिए बेताब रहते हैं। आखिर आप लोगों के साथ परेशानी क्या है?’ इस पर उन्होंने जवाब दिया- ‘नहीं सद्गुरु, हम थक गए हैं।’ मैंने उनसे कहा कि थकना तो अच्छी बात है। इसका मतलब है कि आप मरे नहीं हैं। थकना समस्या नहीं है, आप मरे नहीं हैं, ठीक है? आप तो बहुत जवान हैं। तभी एक प्रतिभागी बोल पड़ा- वे तो हमेशा तैयार खड़े रहते हैं। मैंन जवाब दिया- ‘जिंदगी जीने का सबसे अच्छा तरीका ही यही है कि हर पल आप तैयार रहें।’ क्या आपको लगता है कि आराम से पड़े रहना ही जिंदगी जीने का ठीक तरीका होता है? जीवन जीने का सर्वश्रेष्ठ तरीके है कि आप हमेशा कमर कसे खड़े हैं। इसका मतलब है कि आप जो जीवन जी रहे हैं, उसमें कुछ गति है, उसमें कुछ हो रहा है। आप एक ठहरी हुई या रुकी हुई जिंदगी नहीं जी रहे। आप एक ऐसा जीवन जी रहे है, जहां हर पल कुछ न कुछ हो रहा है, घट रहा है।
आपको अपने आपको खुशकिस्मत समझना चाहिए कि जिंदगी में लगातार कुछ न कुछ हो रहा है, हफ्ते के सातों दिन, साल के 365 दिन कुछ घटित हो रहा है। यही एक चीज है, जिसे लेकर आप ईशा में कभी कोई शिकायत नहीं कर सकते। यहां आप नहीं कह सकते कि ‘कुछ नहीं हो रहा’। यहां हर वक्त कुछ न कुछ चलता रहता है। यह बेहद जरूरी भी है। मेरा आशीर्वाद है कि आप कर्म के उस आनंद को जान सकें जो आपको निश्चलता की ओर ले जाता है।