यह एक अद्भुत हफ्ता है, जिसका वर्णन करना वाकई मुश्किल है। इस भूभाग की बनावट, आकार-प्रकार और रंगों को स्पष्ट रूप से बयान करने में मैं खुद को असमर्थ पा रहा हूं, किसी भी आदमी के लिए यह सब समझना बहुत कठिन है। पिछले दो दिनों में हमें सिंधु नदी की उस सहायक नदी के किनारे रहने का सौभाग्य मिला, जो पाकिस्तानी सीमा के काफी करीब है। यह जगह गेके कस्बे से कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर है, जो सिंधु घाटी सभ्यता के ऊपरी खंड में स्थित है। हिंदु शब्द, दरअसल सिंधु का अपभ्रंश रूप है, जो इस इलाके में रहने वाले लोगों के लिए इस्तेमाल किया जाता है। सदियों से हिंदुस्तान के रूप में जानी जाने वाली यह धरती भले ही आज अंग्रेजीकरण होने के बाद दुनिया में इंडिया के तौर पर जानी जाती है, लेकिन असल में इसका आशय सिंधु की धरती से ही है।

यह धरती शिव के पद्चिन्हों से आज भी थर्राती है। हमारा कैंप नदी के किनारे लगा है। यह जगह चारों तरफ से ऐसे पहाड़ों से घिरी है, जो हर घंटे अपना रंग बदलते हैं। यहां की खूबसूरती तो बेमिसाल है ही, लेकिन इस जगह की शक्ति सबसे परे है। एक दिन की खामोशी और साधना ने मेरे भीतर एक नई तरह की ताजगी और जीवंतता भर दी है।

हम सुबह नौ बजे गेके से चले थे और शाम सात बजे मानसरोवर पहुंचे। इस दौरान लगभग पूरा सफर कठिन चट्टानी पहाड़ी प्रदेश में ही हुआ, जिसमें सड़कों का नामोनिशान नहीं था। हालांकि नदियों और रेगिस्तानों से होकर टोयोटा से सवारी करने का काफी मजेदार अनुभव भी रहा। फिलहाल रात के साढ़े आठ बज रहे हैं, लेकिन हमारे साथ की कोई दूसरी कार अभी तक यहां नहीं पहंची है। अभी मैं यहां बैठकर स्पॉट के लिए अपना यह स्तंभ लिख रहा हूं, नौ बजे दूसरे दल के लोगों के साथ सत्संग का आयोजन है। यह सत्संग उस दल के लिए होगा, जो सागा से छोटा रास्ता पकड़कर पहले ही यहां पहुंच चुके हैं। ये सारे लोग एक अच्छी खासी सड़क से बस द्वारा यहां पहुंचे हैं।

500 किलोमीटर का ऊबड़-खाबड़ पहाड़ी सफर करने के बाद मुझे ऐसी ताजगी महसूस हो रही है, जैसे भोर में महसूस होती है। उसकी (शिव की) गहन मौजूदगी भरा साथ मुझमें थकावट का अहसास भी नहीं होने देता।

कल हम लोग कैलाश की यात्रा पर निकलेंगे। हालांकि यहां आने का यह मेरा लगातार सांतवा मौका है, फिर भी मैं पहले से कहीं ज्यादा उत्साहित हूं। कैलाश की शक्ति और आनंद भरे उन्माद को सभी जानें, यही मेरी कामना है…..

Love & Grace

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