काश, शहरों के चेहरे मानवीय होते!!
अमेरिका से लिखे गए इस बार के स्पॉट में सद्गुरु शहरों की चर्चा करते हुए एक तरफ नेपाल के भक्तपुर के विध्वंस की, दूसरी तरफ अमेरिका के कुछ बड़े शहरों की बात कर रहे हैं
अमेरिका से लिखे गए इस बार के स्पॉट में सद्गुरु शहरों की चर्चा करते हुए एक तरफ नेपाल के भक्तपुर के विध्वंस की, दूसरी तरफ अमेरिका के कुछ बड़े शहरों की बात कर रहे हैं:
न्युयॉर्क शहर के अहम हिस्से सेंट्रल पार्क पर उड़ती सी नजर डालते हुए गुजरता हूं तो वहां पूरे शहर की घड़कन और चहल-पहल की गूंज सुनाई देती है। अचानक एक ईमानदार नौजवान पुलिस ऑफिसर के चेहरे पर गोली लगती है और वह अपनी जान गंवा बैठता है। भले ही दुख और मौत की छाया परिवार व कुछ और लोगों को शोक संतप्त कर गई, लेकिन बाकी शहर अपनी गति से चलता रहा।
रंगबिरंगा मैनहटन, बेरहम और निर्दयी बाजार, चमचमाता हुआ टाइम स्क्वायर, प्रतिभाओं से भरा ब्रॉडवे, जमीन के नीचे बने रास्ते, वहां की अपनी संस्कृति, सड़कें व सीवर सब अपने पूरे प्रवाह में दिखाई देते हैं।
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पिछले चार दिनों में अमेरिका के तीन बड़े शहरों से गुजरा हूं - लॉस एंजिलेस से शिकागो और शिकागो से न्युयॉर्क। इनमें से हर शहर की अपनी एक अलग खूबी है। हर शहर एक अलग तरह का ही प्राणी लगता है। कैसे शहर फैलते हुए एक विशालकाय जंतु का आकार ले लेते हैं, जिनमें से हरेक की अपनी अलग स्टाइल और महक है। ये सामूहिक कर्मों का नतीजा है।
अब अगर शहरों की बात हो रही है, तो ध्यान आता है भक्तपुर का। ग्यारह सौ साल पुराना यह शहर, प्रेम और भक्ति में आस्था रखने वाले लोगों के द्वारा बनाया गया यह शहर, आज भूकंप की त्रासदी से बर्बाद होकर बिखरा हुआ है। भूकंप ने शालीन लोगों के इस पवित्र देश को आहत और क्षत-विक्षत कर डाला है।
आने वाले हफ्ते में मैं बोस्टन की मजबूती और वाशिंगटन डी.सी. की ताकत को महसूस करने की कोशिश करुंगा। कल मैं अशांति के दौर से गुजर रहे बाल्टीमोर में था। दरअसल, शहर ऐसे प्राणी हैं, जिनका निर्माण हम लोग करते हैं और हमें इन्हें एक मानवीय चेहरा देने की कोशिश जरूर करनी चाहिए।